2016 सिविल सेवा का परीक्षा परिणाम घोषित हो चुका है. सफल अभ्यर्थी हमेशा ही बधाई के पात्र होते हैं और असफल अभ्यर्थियों के हिस्से में शुभकामना संदेश जाता है. हर साल की तरह इस बार भी अखबारों से लेकर टेलीविजन और विश्वविद्यालय के कैंपस से लेकर छात्रावास और जगह-जगह upsc के परिणाम, टॉपर और सफल-असफल लोगों की चर्चा हो रही है. मानो माहौल पूरा upsc की ख़ुमारी में नहाया हुआ मालूम पड़ रहा है. नये युवा बच्चे दूसरों की सफलता की चमक को अपनी आँखों में महसूस कर रहे हैं और उनका जोश इन दिनों जवान है. सुनने में तो यह भी आता है कि कुछ लड़के जो सिविल की तैयारी करते हैं वे अपनी प्रेमिकाओं को रिजल्ट आते ही कहते हैं कि..यार अब 1 साल तक यह मिलना-जुलना और फोन पर बातें करना थोड़ा बंद कर देते हैं. बस एक बार सेलेक्ट हो जाऊँगा उसके बाद तो यही सब न करना है.
ख़ैर......P.S.C की परीक्षा का पैटर्न, पाठ्यक्रम, पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति, भेदभाव रहित योग्य उम्मीदवारों का चुनाव, बहुत हद तक लोकतांत्रिक चयन प्रक्रिया और तीन चरणों में सम्पन्न होने वाली इस परीक्षा की अनिश्चितता बहुत सम्मानजनक और रोमांचक यात्रा की तरह है. यह परीक्षा न सिर्फ व्यक्ति के ज्ञान की बल्कि उसके व्यक्तित्व के विविध पहलुओं की भी परीक्षा है जिसमें व्यक्ति के धैर्य, रणनीति- कौशल, लगन, ईमानदारी, निष्ठा, संघर्ष, चिंतन, प्रस्तुतिकरण, जुझारूपन, सतत अभ्यास तथा सहज मानवीय दुर्बलताओं और लक्ष्य की दुर्दम जिजीविषा के बीच संतुलन साधने की कला भी शामिल है. इसलिए देश और समाज को चयनित उम्मीदवारों से उम्मीद भी बनती है और उनके प्रति सम्मान का भाव भी मजबूत होता है. ऐसे में यह बात बिलकुल ठीक है कि इस परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों को सम्मान मिले, यश मिले और लोग उनको समाज की एक प्रेरक इकाई और समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम करने वाले सेनापति के रूप में देखें और सम्मान दें. पर उनके बारे में कौन सोचता है जो योग्य होते हुए भी चयनित नहीं हो पाते, ईमानदार और समर्पित होने के बाद भी सफलता...
2016 सिविल सेवा का परीक्षा परिणाम घोषित हो चुका है. सफल अभ्यर्थी हमेशा ही बधाई के पात्र होते हैं और असफल अभ्यर्थियों के हिस्से में शुभकामना संदेश जाता है. हर साल की तरह इस बार भी अखबारों से लेकर टेलीविजन और विश्वविद्यालय के कैंपस से लेकर छात्रावास और जगह-जगह upsc के परिणाम, टॉपर और सफल-असफल लोगों की चर्चा हो रही है. मानो माहौल पूरा upsc की ख़ुमारी में नहाया हुआ मालूम पड़ रहा है. नये युवा बच्चे दूसरों की सफलता की चमक को अपनी आँखों में महसूस कर रहे हैं और उनका जोश इन दिनों जवान है. सुनने में तो यह भी आता है कि कुछ लड़के जो सिविल की तैयारी करते हैं वे अपनी प्रेमिकाओं को रिजल्ट आते ही कहते हैं कि..यार अब 1 साल तक यह मिलना-जुलना और फोन पर बातें करना थोड़ा बंद कर देते हैं. बस एक बार सेलेक्ट हो जाऊँगा उसके बाद तो यही सब न करना है.
ख़ैर......P.S.C की परीक्षा का पैटर्न, पाठ्यक्रम, पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति, भेदभाव रहित योग्य उम्मीदवारों का चुनाव, बहुत हद तक लोकतांत्रिक चयन प्रक्रिया और तीन चरणों में सम्पन्न होने वाली इस परीक्षा की अनिश्चितता बहुत सम्मानजनक और रोमांचक यात्रा की तरह है. यह परीक्षा न सिर्फ व्यक्ति के ज्ञान की बल्कि उसके व्यक्तित्व के विविध पहलुओं की भी परीक्षा है जिसमें व्यक्ति के धैर्य, रणनीति- कौशल, लगन, ईमानदारी, निष्ठा, संघर्ष, चिंतन, प्रस्तुतिकरण, जुझारूपन, सतत अभ्यास तथा सहज मानवीय दुर्बलताओं और लक्ष्य की दुर्दम जिजीविषा के बीच संतुलन साधने की कला भी शामिल है. इसलिए देश और समाज को चयनित उम्मीदवारों से उम्मीद भी बनती है और उनके प्रति सम्मान का भाव भी मजबूत होता है. ऐसे में यह बात बिलकुल ठीक है कि इस परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों को सम्मान मिले, यश मिले और लोग उनको समाज की एक प्रेरक इकाई और समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में काम करने वाले सेनापति के रूप में देखें और सम्मान दें. पर उनके बारे में कौन सोचता है जो योग्य होते हुए भी चयनित नहीं हो पाते, ईमानदार और समर्पित होने के बाद भी सफलता सूची में जगह नहीं बना पाते.
सफल और असफल होने की बातों के बावजूद इस .P.S.C से जुड़े कुछ ऐसे भी पक्ष हैं जिनके बारे में सोचते हुए मुझे बहुत कोफ़्त होती है. मसलन मैं थोड़े समय के लिए ठिठुर जाता हूँ. मैं उन सवालों की शिनाख़्त करते हुए भारत के उस किसान की स्थिति में महसूस करता हूँ जो फसल संवारने की लाख कोशिश के बाद भी आपदा आते ही बर्बाद हो जाता है. उन सवालों को कुछ इस तरह से देखा जा सकता है...
(1)--- हर साल लगभग 6 से 7 लाख छात्र परीक्षा में बैठते हैं और अंतिम रूप से चयनित उम्मीदवारों की संख्या औसतन 800- से 1000 के बीच में होती है. यह मान लिया जाय की गंभीर और समर्पित छात्रों की संख्या यदि 1 लाख ही हो तो भी 99 हजार योग्य छात्र प्रतिवर्ष असफलत किन्तु ईमानदार छात्र होते हैं. लगभग हर साल नई पीढ़ी से 5 लाख बच्चे जेनरल ट्रेन से उतरते यात्री की तरह भरभरा कर इस सेवा की तैयारी में उतर आते हैं और भीड़ के इस अनंत सफरनामे में अपना नाम दर्ज कर लेते हैं.
(2) ..सिविल की तैयारी करने वाले छात्रों में लगभग 90% ऐसे उम्मीदवार होते हैं जो अपनी उम्मीदवारी की अंतिम साँस तक(32 साल तक) इस परीक्षा के यज्ञ में अपने जीवन का होम कर देते हैं और खाली हाथ लौट जाते हैं. उनका यह कहना होता है कि मुझे भले सफलता न मिली किन्तु चीजों को देखने और समझने का नजरिया मिला. ऐसे में मेरे अंदर यह सवाल पैदा होता है कि क्या उनके भीतर यह समझ पैदा नहीं होती कि जीवन के 10 अनमोल वर्ष यूँ ही बेकार चले गए क्योंकि इन 10 सालों में आपने सिविल सर्विसेज के उसी सिलेबस को बार-बार पढ़ा, उन्हीं किताबों की पंक्तियों को बार-बार रंगते रहे, उसी एक छोटे से कमरे की चारदीवारी में आपने अपनी छोटी-छोटी खुशियों की कितनी ही कुर्बानियां दे दीं....आप चाहते हुए भी माँ से मिलने न जा सके, प्रेमिका से बात न कर सके, पसंद की जगह पर घूमने नहीं निकले क्योंकि प्रशासक बनने की लालसा ने आपको खुद पर और आपकी छोटी-छोटी खुशियों पर शासन करना सीखा दिया. आपके भीतर यह नजरिया नहीं पैदा हो सका कि सिविल सेवक का अंतिम लक्ष्य जब समाज में बदलाव लाना है तो क्या यह काम सिर्फ एक I.A.S के जिम्मे ही है या हर उस नागरिक के जो कुछ भी अच्छा कर समाज को बेहतर बना सकता है. क्या आपने अपने जीवन के 10 सालों में कुछ नया न करने के बजाय उसी परीक्षा और सफलता की चाह में खुद को गलाकर समाज के साथ अन्याय नहीं किया?
(3) यह बहुत सम्भव है कि आप I.A.S न भी बनते तो भी उस तैयारी की सीख से आप समाज और देश को अपने 8 साल बचाकर एक I.A.S से भी बेहतर दे पाते. परंतु आपके लिए I.A.S होना सेवा से ज्यादा हीरो बनने, प्रसिद्ध होने, बहुत सारा पैसा इकठ्ठा करने की चाहत का पर्याय होता है. आप हवाबाजी तो बहुत करते हैं कि यह तैयारी एक जीवन दृष्टि है, व्यक्तित्व निर्माण है पर अधिकांश की जीवन दृष्टि यही होती है कि असफल होते ही फटकर हाथ में आ जाता है और आप निराशा के गहरे भूतहा कुँए में डूब जाते हैं. क्या यही है आपकी दृष्टि और निर्माण..? इसमें दोष आपका भी नहीं है.
(4)... दरअसल समस्या बहुत मूल में कुछ और है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि समाज मे किसी के शिक्षक, वैज्ञानिक, क्लर्क, पोस्टमैन और इंजीनियर बनने पर उतनी खुशी नहीं मनाई जाती है जितनी खुशी अधिकारी बनने पर मनाई जाती है? क्योंकि यह सारा मामला सामाजिक प्रतिष्ठा के स्वीकार और अस्वीकार से जुड़ा हुआ है. इसलिए एक अभ्यर्थी अपने जीवन के 10 साल यदि बर्बाद करता है तो उसके ऊपर वे बहुत सारे दबाव और तनाव उस वृत्त की परिधि की तरह उसको घेरे रखते हैं जिसके केंद्र में ग्लैमर, पैसा और प्रतिष्ठा की राक्षसी चाह प्रमुख है.
(5).... मुझे तो उस किसान और मजदूर के बेटे का ख़याल ज्यादा आता है जो गाँव के सरकारी हिंदी माध्यम स्कूल का होनहार छात्र होता है और किसान पिता अपनी जमीन बेचकर और मजदूर पिता अपनी मजदूरी बेचकर उसे I.A.S बनाने का सपना देखता है. हम उन कहानियों की तो बहुत मिसाल देते हैं जिसमें रिक्शा चालक या किसान का बेटा सफल होता है पर क्या ऐसी अनगिनत कहानियाँ और नहीं हैं जिनमें माँ का गहना, घर की जमीन और मजदूर माँ- बाप की मजदूरी बेचकर आये पैसे से ईमानदारी से तैयारी करनेवाले कितने ही छात्र असफल हो गए!... आगे उस छात्र औऱ उसके परिवार का क्या हुआ कोई जानता भी है?
(6)...... मैं फेसबुक पर गौरव जैन (सिविल सेवा अभ्यर्थी) की पोस्ट जिसे किसी ने साझा किया था; देखकर हैरान रह गया. गौरव इस बार u.p.s.c के इंटरव्यू तक पहुँचे थे. ऐसा पहली बार नहीं था उनके लिए, वे 2007 से लगातार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठ रहे हैं और कई बार मुख्य, कई बार इंटरव्यू और कुछ एक बार प्रिलिम्स में भी अनुत्तीर्ण रहे हैं. उनकी कोशिश अभी भी जारी है. वे खुद लिखते हैं कि अब 2017 के लिए तैयार हो रहा हूँ. कुल मिलाकर जीवन के 11 साल इस सेवा के लिए खर्च हो रहे हैं. ऐसी स्थिति लगभग हर 4 थे और 5 वें उम्मीदवार की होती है. मैं ऐसे उम्मीदवारों के साहस, जुनून और पैशन को सलाम करता हूँ पर साथ में यह बात भी कहना उतना ही उचित समझता हूँ कि देश की सेवा करने का भाव ही जब प्रधान है तो प्रशासक ही क्यों? और भी विकल्प हो सकते हैं बजाय कि 10 साल खर्च किये जायें. मुझे तब यह लगता है कि महत्व सेवा का नहीं; महत्व उस कुर्सी और पावर का है जिसके लिए लोग मरे जा रहे हैं.
(7) क्या हम ऐसा समाज और ऐसा देश नहीं सोच सकते जिसमें एल क्लर्क, शिक्षक, प्रशासक, सफाईकर्मी, मजदूर, गाड़ी चालक, दुकानदार सबको समान सम्मान मिले. यकीन के साथ कह सकता हूँ कि यदि इस दिशा में हमारा समाज आगे बढ़े तो युवाओं का 10 साल बर्बाद होने से बच जाएगा. जवानी स्वयं के शासन में घुटेगी नहीं बल्कि उनमुक्त होकर निखर जाएगी.
तब सिर्फ सिविल में वो लोग ही आएंगे जो वास्तव में सेवा करना चाहते हैं. जिनके लिए पावर और फेम नहीं मनुष्य और समाज के विकास की जायज चिंता महत्वपूर्ण है. अभी हाल में रोमन सैनी का ज्वलंत उदाहरण सामने है. वह भी समाज की बड़ी सेवा कर रहे हैं पर प्रशासक बनकर नहीं बल्कि प्रशासक की नौकरी छोड़कर. जरूरी नहीं हम वहीं काम करें जिसे समाज में ज्यादा वैल्यू मिलता हो...क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम जो काम वास्तव में करना चाहते हैं उसे इतनी शिद्दत से करें कि समाज खुद ब खुद उसे वैल्यू दे और एक नया रास्ता निर्मित हो. मैं सैल्यूट करता हूँ रोमन सैनी जैसे समाज सेवकों को. जीवन का अंतिम उद्देश्य अपने जीवन के साथ- साथ दूसरों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना और खुशी बाँटने का नाम है तो उसके लिए सिर्फ I.A.S ही क्यों? एक सच्चा ईमानदार प्रोफेशन क्यों नहीं? चाहे वह किसी भी फील्ड में हो.
........... कोई चलता पदचिह्नों पर,कोई पदचिह्न बनाता है! सितारों के आगे जहाँ और भी है. प्यारे साथियों उम्मीद के चट्टानी पर्वत की लोलुपता को टाटा बाय कहिये और जीवन के अनमोल वर्षों की आहूति सिविल के नाम पर मत कीजिये. 2 से 3 साल ठीक है नहीं तो मंजिलें और भी हैं...रास्ते और भी हैं.
नोट...... याद रखिये जीवन I.A.S बनने और न बनने से कहीं आगे है. अंततः हमारा जीवन सबसे महत्वपूर्ण है और हमारी खुशियाँ सबसे मूल्यवान. आप एक बेहतर इंसान बनकर बहुत कुछ कर सकते हैं.बहुत कुछ दे सकते हैं और बहुत कुछ पा सकते हैं.
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