मेरा मानना है अगर पढ़ाई पूरी तरह ऑनलाइन केंद्रित हो जाएगी. तो, शायद समाज का एक बड़ा वर्ग अशिक्षित ही रह जाएगा. आधुनिकता से भरे इस समाज में अभी भी कई लोग ऐसे हैं, जिनके पास स्मार्टफोन, टैबलेट या कंप्यूटर नहीं है. अगर है भी, तो शायद वो उन्हें बेहतर तरीके से प्रयोग में लेना नहीं जानते हैं. मौजूदा व्यवस्था के हिसाब से ऑनलाइन पढ़ाई भारत जैसे देश में लंबे समय तक संभव नहीं है.
इसके पीछे के एक नहीं कई कारण हैं. भारतीय अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. लेकिन, फिर भी 10,000 रुपये का स्मार्टफोन खरीदने की जगह 10 रूपये की कॉपी खरीदना उनके लिए मैं समझता हूं एक बेहतर पर्याय होगा. महामारी काल में जब दुनिया एक जगह पर आकर थम गई. तब अर्थव्यस्था को चलाने के लिए वर्चुअल युग का सहारा लिया गया. इस भरोसे के साथ कि थोड़े दिन के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा और फिर चीजे पहले के जैसी हो जाएंगी.
इतिहास गवाह है कि जब-जब सहारे ने स्थायी रूप लिया है. तब-तब समाज का एक बड़ा वर्ग इसके लाभ से अछूता रहा है. ऐसे में समाज को एक साथ लेकर चलने वाली मुहिम को अमली जामा पहनाते हुए पुराने ढर्रे में फिर से लौटना होगा. कोरोना की दो लहरों का प्रकोप झेलने के बाद अब जीवनशैली फिर से पटरी पर लौट रही है. लंबे वक्त से तालाबंदी की मार झेल रहे स्कूल भी अपनी गुलजारियत पाने को बेताब हैं. इस उम्मीद के साथ की आज के हालात कल और भी ज्यादा बेहतर होगें.
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