मशीन इंसान और इंसानी दुनिया को अपने कब्जे में ले लेंगे. यह कोई ख्याल नहीं है ना ही आने वाले 50 सालों के बाद की दुनिया की परिकल्पना है. यह आज का सच है. हम और आप चाहे अनचाहे अपने हाथ में ही अपनी जेल को लेकर चल रहे हैं. कैद केवल जिस्मानी नहीं होती मानसिक तौर पर कैद हो जाना ज्यादा खतरनाक है. मानसिक कैद में हमें पता ही नहीं होता कि हम कब किसी के गुलाम हो गए. उत्तर प्रदेश की हालिया घटना जहां एक 13 साल की बच्ची घायल अवस्था में मदद मांगती रही और आसपास के लोग मोबाइल फोन पर उसकी वीडियो बनाते रहे. यह अपने आप में भयावह है और विचलित करने वाला सत्य है. जरा सोचिए कि आप या आपके घर का कोई सदस्य सड़क पर दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है आने जाने वाले लोगों से मदद मांगता रहता है और लोग उसकी वीडियो बनाने में मशगूल रहते हैं. अपना दिल मजबूत कीजिए और आगे सोचिए कि आपका कोई अपना, मदद मांगते मांगते उसी सड़क पर दम तोड़ दे और कुछ दिन बाद मदद मांगती हुई वह वीडियो आप की आंखों के सामने से गुजरे!
इस विचलित करने वाले विचार तक लेकर आने के लिए आपसे माफी मांगती लेकिन कहूंगी कि आंख बंद करके इसे एक बार फिर सोचिए और सोचिए यह किस मानसिकता का नतीजा है. यह कौन से लोग थे जो एक 13 साल की बच्ची की मदद करने से पहले उसे अपने कैमरे में कैद करना चाहते थे?यह कौन से लोग थे जिनके अंदर संवेदनशीलता मृतप्राय हो चुकी है और उनके लिए हर इंसान और उससे जुड़ा हर हादसा एक खबर है ?
खबर जिस की खासियत यह है कि वह सबसे पहले उन तक पहुंची. सबसे पहले लोगों तक पहुंचाने वाले वो थे. खबर जो इतनी ताजा है कि अभी मुर्दे के का जिस्म भी ठंडा नहीं हुआ और उसकी वीडियो वायरल हो गई.जी हां पल-पल की खबर रखने के आदी हो चुके हैं हम लोग और इसलिए...
मशीन इंसान और इंसानी दुनिया को अपने कब्जे में ले लेंगे. यह कोई ख्याल नहीं है ना ही आने वाले 50 सालों के बाद की दुनिया की परिकल्पना है. यह आज का सच है. हम और आप चाहे अनचाहे अपने हाथ में ही अपनी जेल को लेकर चल रहे हैं. कैद केवल जिस्मानी नहीं होती मानसिक तौर पर कैद हो जाना ज्यादा खतरनाक है. मानसिक कैद में हमें पता ही नहीं होता कि हम कब किसी के गुलाम हो गए. उत्तर प्रदेश की हालिया घटना जहां एक 13 साल की बच्ची घायल अवस्था में मदद मांगती रही और आसपास के लोग मोबाइल फोन पर उसकी वीडियो बनाते रहे. यह अपने आप में भयावह है और विचलित करने वाला सत्य है. जरा सोचिए कि आप या आपके घर का कोई सदस्य सड़क पर दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है आने जाने वाले लोगों से मदद मांगता रहता है और लोग उसकी वीडियो बनाने में मशगूल रहते हैं. अपना दिल मजबूत कीजिए और आगे सोचिए कि आपका कोई अपना, मदद मांगते मांगते उसी सड़क पर दम तोड़ दे और कुछ दिन बाद मदद मांगती हुई वह वीडियो आप की आंखों के सामने से गुजरे!
इस विचलित करने वाले विचार तक लेकर आने के लिए आपसे माफी मांगती लेकिन कहूंगी कि आंख बंद करके इसे एक बार फिर सोचिए और सोचिए यह किस मानसिकता का नतीजा है. यह कौन से लोग थे जो एक 13 साल की बच्ची की मदद करने से पहले उसे अपने कैमरे में कैद करना चाहते थे?यह कौन से लोग थे जिनके अंदर संवेदनशीलता मृतप्राय हो चुकी है और उनके लिए हर इंसान और उससे जुड़ा हर हादसा एक खबर है ?
खबर जिस की खासियत यह है कि वह सबसे पहले उन तक पहुंची. सबसे पहले लोगों तक पहुंचाने वाले वो थे. खबर जो इतनी ताजा है कि अभी मुर्दे के का जिस्म भी ठंडा नहीं हुआ और उसकी वीडियो वायरल हो गई.जी हां पल-पल की खबर रखने के आदी हो चुके हैं हम लोग और इसलिए हादसे को संभालने और उसे खबर बनने से पहले रोकने की कोशिश भी नहीं करते.
अगर हादसा रुक जाएगा तो खबर का मसाला कैसे बनेगा? अगर मदद कर दी जाती तो खबर कैसे बनती? मदद कर दी जाती तो 14 साल की बिलखती हुई बच्ची की वीडियो कैसे बनती? अगर मदद कर दी जाती तो कल कोई ऐसी ही वीडियो का मीम कैसे बनेगा? मदद कर दी जाती तो कल ऐसी ही किसी वीडियो को रिमिक्स कर पीछे गाना या बेमतलब का टेक्स्ट कैसे डलेगा? अगर मदद कर दी जाती तो कंटेंट की दुनिया में एक और कंटेंट कैसे बनता?
संवेदनशीलता को मारकर हम सब खबर के ऐसे चक्रव्यूह में फंस चुके हैं जिसने किसी की पीड़ा को सोचने समझने और संवेदनशील होने की क्षमता का हरण कर लिया है. हम एक ऐसी रेस में हैं जहां हर कोई किस की खबर को किसने पहले एक फोन से दूसरे तक पहुंचाया इसकी होड़ है. जन्मदिन और ख़ुशी के मौके को पीछे छोड़ते हुए फोटो सहित श्रद्धांजलि देने की होड़ हम सबने देखी है.
किसी भी सेलेब्रिटी की मौत पर उसके साथ बिताये सेल्फी लेने भर के एक पल पर श्रद्धांजलि लिख कर वॉल पर पोस्ट करने की रेस देख कर एक अजीब सी विरक्ति होती है. हम किस समाज का निर्माण कर रहे है? ये कैसी दुनिया गढ़ दी हमने जहां सुख के लिए हम झूठ से परहेज़ नहीं करते और दूसरे का दुःख हमारे लिए परिचर्चा का विषय बन जाता है.
ऐसा मत सोचिये की इसके ज़िम्मेदार हम आप नहीं है. ये खबरजीवी हमारे आपके दिमाग और 'खबर में सबसे पहले हम' वाली रेस पर ही तो पल रहे हैं. अगर बिना सोचे समझे कर खबर विडिओ को आप फॉरवर्ड करते है तो आप भी गुनहगार है. अगर बिना किसी वीडियो की सच्चाई जाने आप उस पर यकीन करते है तो इन खबरजीवियों की खुराख आप ही हैं.
अगर हेड लाइन पढ़ कर आप 'फलाने की शादी में पड़ी दरार' को खोजने खबर पर क्लिक करते हैं तो आप आज की इस घटना की वीडियो बनाने वालो जितना ही ज़िम्मेदार है. पर पीड़ा में सुख खोजने का नकारत्मक विचार ही इस घटना के मर्म में है. हमने झूठ और वायरल कंटेंट का ऐसा जाल बीन लिया है जिससे निकलने का निकट भविष्य में कोई रास्ता नज़र नहीं आता. ज़रूरत है खुद को ज़िन्दगी और उसकी असलियत के करीब रखने की. हालाँकि भूसे में सुई ढूंढने जितना मुश्किल काम हममे से कितने कर पाएंगे नहीं पता लेकिन एक कोशिश खुद के लिए अवश्य बनती है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.