आज दुनिया की 85 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ऐसे खतरनाक प्रदूषित इलाके में रह रही है जहाँ हर पल सांस लेने का मतलब है दो कदम धीमी गति से मौत की तरफ बढ़ना. हर साल दुनिया में 55 लाख से ज्यादा लोग वायु प्रदुषण के कारण मारे जा रहे हैं और इसमें से भी आधे से ज्यादा आबादी तेजी से विकसित हो रहे दो देश भारत और चीन के नागरिकों की है. एक अंतराष्ट्रीय संस्थान एएएएस के मुताबिक 2013 में चीन में 16 लाख जबकि भारत में 14 लाख लोग प्रदूषित हवा से होने वाली बिमारियों से मारे गए हैं. स्थितियां इतनी भयानक है वायु प्रदुषण दुनिया में मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है. ये अध्यन 1990 से 2013 के बीच 188 देशों के बीच किया गया था.
भारत में लोगो की आँखे तब खुलती हैं जब दिल्ली उच्च न्यायलय को दखल देना पड़ता है और टिपण्णी करनी पड़ती है. दिल्ली में रहना गैस चैम्बर्स में रहने जैसा है और राज्य की आबो हवा आपातकालीन प्रकृति की है. सरकारें उससे पहले तक चैन की नींद सो रही होती हैं, इस उम्मीद में की कोई उन्हें जगाएगा. इससे पहले भी बड़ी क्रांतिकारी पहल का श्रेय भी कोर्ट को ही जाता है. जब तमाम विरोधों के बावजूद राजनीतिक दलों और बस ऑपरेटर्स की लामबंदी को दरकिनार करते हुए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सीएनजी अनिवार्य करने का फैसला सुनाया गया. अगर आज भी डीज़ल बसें सड़क पर दौड़ती रहती तो कितने भयानक परिणाम होते ये बताने की जरूरत नहीं.
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चीन में आज लोग मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर का प्रयोग कर रहे है भारत में ये चलन दशकों पहले शुरू हो चूका होता. पहले बोतलबंद पानी फिर बोतलबंद हवा...सोचिये हम किस त्रासदी और बर्बादी की तरफ ले आये हैं दुनिया को. आधुनिकीकरण और अद्योगिकीकरण आज बदले में हमसे हमारी ज़िन्दगी मांग रहे हैं. विलासितापूर्ण जिंन्दगी और दिखावे ने हमें आज इस मोड़ पर खड़ा कर दिया है. इससे पहले भी विश्व स्वास्थ संघटन 2012 में ही 70 लाख लोगों के मरने की पुष्टि कर चूका है. यानी हर साल एक महानगर अकाल काल का ग्रास होता है. इसकी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 13 शहर सिर्फ भारत के हैं.
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वायु प्रदुषण दुनिया में मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है |
दिल्ली विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है जहां दो करोड़ से अधिक आबादी रहती है. ये दुनिया का पांचवा सबसे अधिक आबादी वाला शहर है. चाहे आनंद विहार हो या संसदमार्ग के आसपास का वीआईपी इलाका, इसका कोई भी हिस्सा प्रदुषण से अछूता नहीं है. दरअसल दिल्ली को सर्वाधिक प्रदूषित शहर का दर्जा दिया जाने का कोई एक कारण नहीं है बल्कि बहुत से कारणों का जहरीला मिश्रण है दिल्ली. यहां का भूगोल, विकास, प्रतिकूल मौसम, ऊर्जा उपभोग की संस्कृति और बढ़ती शहरी जनसंख्या ये सब मिलकर दिल्ली को बेहद ज़हरीला करते है. अगर आसपास समंदर होता तो भी परिस्थियां बदल सकती थीं. लेकिन यहां की भौगोलिक स्थिति भी शहर को और अधिक प्रदूषित करने के लिए ज़िम्मेदार है.
दिल्ली को प्रदूषणमुक्त करने की पहल इस साल जनवरी के पहले पखवाड़े में ही की गई थी जब दिल्ली सरकार ने पहली जनवरी से 15 जनवरी तक प्रायोगिक तौर पर आड ईवन योजना दिल्ली की सड़कों पर लागु की जिसके अनुसार आपकी गाड़ी का नंबर ये तय करते थे की आज आपकी गाड़ी सड़क पर उतरेगी या नहीं. सीऐनजी वाहनों को इससे छूट मिली थी और कुछ अन्य लोगों को भी मामूली छूट मिली थी. लोगों के मन में बहुत से सवाल थे जिनका जवाब इस योजना की सफलता या असफलता को तय करना था. दिल्ली में रोज़ाना 85 लाख गाड़ियां सड़कों पर उतरती हैं जो देश की किसी भी महानगर से कहीं ज्यादा है. आड ईवन को लेकर दिल्लीवालों का उत्साह देखने लायक था.
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हालांकि इस योजना को प्राम्भिक सफलता तो जरूर मिली लेकिन प्रदुषण स्तर बिलकुल ही कम हो गया हो ऐसा नहीं हुआ. और सिर्फ इस एक स्कीम के भरोसे ये सोच लेना भी अकलमंदी नहीं कहलायेगी लेकिन दिल्ली सरकार को जनता के बीच एक भरोसा जरूर पनपा की स्थितियां काबू में जरूर आयेंगीं. इस दौरान जो सबसे बड़ी उपलब्धि रही वो थी जाम रहित सड़कें सुबह 8 से रात 8 के बीच कहीं जाम का माहोल देखने को नहीं मिला. साथ ही लोगों का सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में विश्वास भी जागा. ज्यादा से ज्यादा लोगों ने मेट्रो और बसों का इस्तमाल किया. कारपुलिंग में तो सुप्रीम कोर्ट के जज और अन्य बड़े अधिकारी भी पीछे नहीं रहे. लेकिन बड़े आयोजन में इस तरह की कमियां सामने आती हैं और इस योजना की कमी और खूबियों को भी जानने का अवसर दुनिया को मिला.
शिमला में भी इस आड ईवन की तर्ज़ पर गाड़ियां चलाने की बात हुई वहीं मुम्बई हाई कोर्ट ने भी महाराष्ट्र सरकार को दिल्ली की तरह सम विषम फार्मूले पर चलने की सलाह दे डाली. इसके अलावा दुनिया भर के देशों ने केजरीवाल सरकार के इस कदम की सराहना भी की. शायद इसी योजना की शुरुआती सफलता का परिणाम था जिसके कारण टाइम्स पत्रिका ने उन्हें अपने लोकप्रिय लोगो की लिस्ट में ऊपर रखा. हालांकि इस दौरान इस योजना की आलोचनाएं भी बहुत हुई छूट के नियमों या कुछ और राजनैतिक कारणों से. विश्व स्वास्थय संघटन और यूरोपीय संघ द्वारा पीएम 2.5 प्रदुषण का स्तर प्रति घन मीटर 25 माइक्रोग्राम रखा गया है जबकी अमरिका में महज़ 12. दिल्ली में सामान्यत 20 गुना अधिक प्रदुषण रहता है वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के तय मानकों से बीज़िंग में जब दस गुना ही हुआ तब वह 2 बार रेड अलर्ट जारी हो चूका है. यानी सब निर्माण, कारखाने और गाड़ियां सब बंद. लेकिन दिल्ली में हैरानी वाली बात ये है अब तक इस तरह का कोई रेड अलर्ट जारी नहीं हुआ है. जबकि दिल्ली में औसत ही 500 से अधिक हे और आनंदविहार में तो 919 तक जा पहुंचा था.
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दिल्ली में प्रदुषण कम करने को लेकर एनजीटी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के कदमो की भी प्रशंसा करनी होगी जिसने सम विषम से पहले ही दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों पर लगाम लगाया था इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और ऐनसीआर में डीज़ल के वाहनों के रजिस्ट्रशन पर रोक लगा दी है और कुछ अन्य सुझाव दिए है जिससे उम्मीद की जानी चाहिए दिल्ली की ज़हर होती आबोहवा कुछ हद तक बेहतर होगी. लेकिन इन सब के बीच धूल कण को बेअसर करने के लिए निर्माण व्यवस्था में भी सुधार की काफी गुंजाइश है. हम सिर्फ मिटटी सीमेंट बदरपुर रेत से ऊपर उठकर कंक्रीट से बेहतर उपाय करने होंगे. इस बीच दिल्ली में एक बार फिर आड ईवन व्यवस्था शुरू हो रही है उम्मीद है ये दिल्लीवालों को ही नहीं दुनियाभर को इसके बारे में जागरूक करेगा. लोग वायु प्रदुषण की भयावहता को समझेंगे. और दिल्ली आधुनिक दुनिया में एक मॉडल के तौर पर उभरेगा.
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