साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद एक देश दो हो गए. तब से लेकर आज तक सीमा विवाद और उसके आर-पार गोली बारी की हदें पाकिस्तान ने पार कीं, कई बार युद्ध जैसे हालात हुए. दोनों देश अलग हैं, जहां भारत पूरे विश्व में एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है तो वहीं पाकिस्तान आंतकियों को पोषित करने वाले देश के तौर पर विश्व विख्यात.
हाल ही, पाकिस्तान की बाहरिया यूनिवर्सिटी ने अपने छात्र-छात्राओं के लिए एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि जब लड़के-लड़कियां साथ में हों तो एक दूसरे से 6 इंच की दूरी बनाकर रखें. इस यूनिवर्सिटी के कैंपस लाहौर, इस्लामाबाद और कराची में हैं. पाकिस्तानी यूनिवर्सिटी का ये आदेश आजीबों गरीब है. यूनिवर्सिटीज में अकसर आदेश ड्रेस कोड और सिलेबस को लेकर आम बात है वहीं छात्र-छात्राओं के निजी जीवन को नियंत्रित करने वाला ये आदेश एक जबरन कोशिश है. क्योंकि ये आदेश फतवे से कम नहीं है.
वर्ष 2013 में ऐसा ही एक फरमान पाकिस्तान की एक यूनिवर्सिटी ने जारी कर दिया था. इस्लामाबाद की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने विश्वविद्यालय परिसर में छात्र-छात्राओं के जींस पहनने पर रोक लगाने के साथ ही जींस पहनने वालों पर जुर्माना लगा दिया था. पाकिस्तान के ऐसे आदेश कट्टरवादी सोच की ओर इशारा करते हैं. ऐसी सोच सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि भारत में भी हैं जिसे छात्र-छात्राओं और खासकर लड़कियों पर जबरन थोपे जाने की कोशिशें आए दिन होती रहती हैं.
भारत में भी एक ऐसा “पाकिस्तान”
ऐसे कथित आदेश देने वालों की जमात पाकिस्तान में है तो भारत में कम नहीं हैं. फतवारूपी फरमान भारत में कई बार सुनाए गए....
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद एक देश दो हो गए. तब से लेकर आज तक सीमा विवाद और उसके आर-पार गोली बारी की हदें पाकिस्तान ने पार कीं, कई बार युद्ध जैसे हालात हुए. दोनों देश अलग हैं, जहां भारत पूरे विश्व में एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है, सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है तो वहीं पाकिस्तान आंतकियों को पोषित करने वाले देश के तौर पर विश्व विख्यात.
हाल ही, पाकिस्तान की बाहरिया यूनिवर्सिटी ने अपने छात्र-छात्राओं के लिए एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि जब लड़के-लड़कियां साथ में हों तो एक दूसरे से 6 इंच की दूरी बनाकर रखें. इस यूनिवर्सिटी के कैंपस लाहौर, इस्लामाबाद और कराची में हैं. पाकिस्तानी यूनिवर्सिटी का ये आदेश आजीबों गरीब है. यूनिवर्सिटीज में अकसर आदेश ड्रेस कोड और सिलेबस को लेकर आम बात है वहीं छात्र-छात्राओं के निजी जीवन को नियंत्रित करने वाला ये आदेश एक जबरन कोशिश है. क्योंकि ये आदेश फतवे से कम नहीं है.
वर्ष 2013 में ऐसा ही एक फरमान पाकिस्तान की एक यूनिवर्सिटी ने जारी कर दिया था. इस्लामाबाद की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने विश्वविद्यालय परिसर में छात्र-छात्राओं के जींस पहनने पर रोक लगाने के साथ ही जींस पहनने वालों पर जुर्माना लगा दिया था. पाकिस्तान के ऐसे आदेश कट्टरवादी सोच की ओर इशारा करते हैं. ऐसी सोच सिर्फ पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि भारत में भी हैं जिसे छात्र-छात्राओं और खासकर लड़कियों पर जबरन थोपे जाने की कोशिशें आए दिन होती रहती हैं.
भारत में भी एक ऐसा “पाकिस्तान”
ऐसे कथित आदेश देने वालों की जमात पाकिस्तान में है तो भारत में कम नहीं हैं. फतवारूपी फरमान भारत में कई बार सुनाए गए. जिस पर विवाद भी हुए. वर्ष 2014 में मथुरा के यदुवंशियों के करीब 52 गांव की पंचायतों में फरमान जारी कर लड़कियों के जींस पहनने पर रोक लगा दी गई. वर्ष 2016 में मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित जैन मंदिरों में लड़कियों के जींस–टीशर्ट और स्कर्ट पहनकर आने पर पाबंदी लगा दी गई थी. ये फरमान श्वैतांबर जैन समाज की ओर से सुनाया गया था. इसके अलावा वर्ष 2017 में राजस्थान के धौलपुर के बल्दियापुरा गांव पंचायत द्वारा बालिकाओं को जींस पहनने और मोबइल फोन इस्तेमाल पर रोक लगाई गई.
वर्ष 2016 में केरल के तिरुवंतपुरम के एक सरकारी कॉलेज में आदेश जारी करते हुए कहा गया कि लड़कियां टॉप, शॉर्ट, जींस और आवाज करने वाले गहने न पहनें. इसके बदले चूड़ीदार पयजामा और साड़ी पहनें.
क्या हो सकता है ऐसे आदेशों का लॉजिक
ऐसे आदेश, आदेश और निर्देशों के रूप में एक फतवा या फरमान ही होते हैं. ऐसे किसी भी आदेश या निर्देश या फरमान का जिक्र देश के कानून में नहीं है. अगर कानून में ऐसे फरमानों का जिक्र नहीं है तो ये गैर-कानूनी श्रेणी में ही आते हैं. इस तरह के विवाद इसलिए भी होते हैं, क्योंकि इन आदेशों और निर्देशों के पीछे कोई लॉजिक या तर्क नहीं होता. वहीं भारतीय समाज में पिछले वर्षों से चल रही लव जिहाद जैसे फरमानों पर बहस भी इसी सोच के बाद पनपे विवाद का नतीजा है.
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