सुबह-सुबह अपने बच्चों को स्कूल के लिए भेजते वक्त हर माता-पिता की आंखों में बच्चे के सुनहरे भविष्य का सपना होता है. बच्चे को स्कूल की बस पर चढ़ाते वक्त या स्कूल के गेट पर अपने बच्चे को छोड़ते वक्त उन्हें इस बात का भरोसा होता है कि उनका बच्चा एक ऐसी जगह जा रहा है जहां उसे घर से ज्यादा सुरक्षा मिलेगी. जहां वो खेलकुद और शैतानियों के साथ कुछ नया सीखेगा. कुछ ऐसा जिससे उसका भविष्य बनेगा.
लेकिन अब ये हालात नहीं हैं. अब बच्चे को स्कूल भेजने के बाद माता-पिता के हाथ से अपना फोन नहीं छूटता. उनका ध्यान अपने काम पर कम और फोन पर ज्यादा होता है. हर समय दिल में ये डर बैठा रहता है कि कहीं स्कूल से किसी दुर्घटना की खबर न आ जाए. अभिभावकों में इस तरह के डर का कारण हाल-फिलहाल में स्कूली बच्चों के साथ घटी कुछ दर्दनाक घटनाएं हैं. रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात के बच्चे की विभत्स हत्या, दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ रेप की घटना, नोएडा के स्कूल में बच्चों द्वारा बदमाशी की खबरों के साथ-साथ हर दूसरे दिन स्कूलों में होने वाली दुर्घटनाओं की खबरों ने लोगों को हिलाकर रख दिया है. इन घटनाओं ने अभिभावकों को स्कूलों में अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए चिंतित कर दिया.
हाल-फिलहाल में हुई घटनाओं के मद्देनजर सीबीएसई ने स्कूलों के लिए कई तरह के गाईडलाइन जारी किए हैं. इसमें समय-समय पर स्कूलों की सुरक्षा का निरीक्षण करना. पुलिस वेरिफिकेशन करना. शिक्षकों और अभिभावकों का एक पैनल बनाना आदि. स्कूलों को सुरक्षा के मामलों में और ज्यादा चौकन्ना होना होगा.
सबसे बड़ा सवाल है कि इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है?
स्कूल की चारदिवारी के अंदर बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा स्कूल...
सुबह-सुबह अपने बच्चों को स्कूल के लिए भेजते वक्त हर माता-पिता की आंखों में बच्चे के सुनहरे भविष्य का सपना होता है. बच्चे को स्कूल की बस पर चढ़ाते वक्त या स्कूल के गेट पर अपने बच्चे को छोड़ते वक्त उन्हें इस बात का भरोसा होता है कि उनका बच्चा एक ऐसी जगह जा रहा है जहां उसे घर से ज्यादा सुरक्षा मिलेगी. जहां वो खेलकुद और शैतानियों के साथ कुछ नया सीखेगा. कुछ ऐसा जिससे उसका भविष्य बनेगा.
लेकिन अब ये हालात नहीं हैं. अब बच्चे को स्कूल भेजने के बाद माता-पिता के हाथ से अपना फोन नहीं छूटता. उनका ध्यान अपने काम पर कम और फोन पर ज्यादा होता है. हर समय दिल में ये डर बैठा रहता है कि कहीं स्कूल से किसी दुर्घटना की खबर न आ जाए. अभिभावकों में इस तरह के डर का कारण हाल-फिलहाल में स्कूली बच्चों के साथ घटी कुछ दर्दनाक घटनाएं हैं. रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सात के बच्चे की विभत्स हत्या, दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ रेप की घटना, नोएडा के स्कूल में बच्चों द्वारा बदमाशी की खबरों के साथ-साथ हर दूसरे दिन स्कूलों में होने वाली दुर्घटनाओं की खबरों ने लोगों को हिलाकर रख दिया है. इन घटनाओं ने अभिभावकों को स्कूलों में अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए चिंतित कर दिया.
हाल-फिलहाल में हुई घटनाओं के मद्देनजर सीबीएसई ने स्कूलों के लिए कई तरह के गाईडलाइन जारी किए हैं. इसमें समय-समय पर स्कूलों की सुरक्षा का निरीक्षण करना. पुलिस वेरिफिकेशन करना. शिक्षकों और अभिभावकों का एक पैनल बनाना आदि. स्कूलों को सुरक्षा के मामलों में और ज्यादा चौकन्ना होना होगा.
सबसे बड़ा सवाल है कि इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार कौन है?
स्कूल की चारदिवारी के अंदर बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा स्कूल पर होता है. इसके अलावा अभिभावकों के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों को भी बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. अभिभावकों को चाहिए कि बच्चे के स्कूल से आने के बाद उससे खुलकर बात करें और स्कूल में सुरक्षा व्यवस्था का भी समय-समय पर जायजा लेते रहें. वहीं सरकारी अधिकारियों को स्कूल में सुरक्षा व्यावस्थाओं का कड़ाई से पालन करवाना चाहिए.
इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?
स्कूल के सभी कर्मचारियों का बैकग्राउंड चेक होने के साथ-साथ वेरिफिकेशन भी होना चाहिए
अमूमन ये देखा जाता है कि कर्मचारियों के वेरिफिकेशन और बैकग्राउंड चेक को लेकर सार स्कूल बड़े ही ढुलमुल सा व्यवहार अपनाते हैं. लेकिन होना ये चाहिए कि स्कूल के सभी कर्मचारियों, यहां तक की हाउस कीपिंग स्टाफ, ड्राइवर, क्लर्क, मैनेजर, टीचर और भी जितने स्टाफ हैं सभी का वेरिफिकेशन होने के बाद ही उन्हें काम पर रखा जाए. हालांकि ये काम करना पहले ही अनिवार्य किया गया है लेकिन अब समय है इनके सख्त पालन की. इसके साथ ही कर्मचारियों के वेरिफिकेशन को क्रॉसचेक भी किया जाना चाहिए. खासकर प्राइमरी कक्षाओं के कर्मचारियों के केस में ये सबसे ज्यादा जरुरी है.
किसी भी कर्मचारी को काम पर रखने से पहले ये पता कर लेना चाहिए कि वो पहले कहां काम करता/करती थी. उसके सारे डिटेल लें. पहले काम करने की जगह पर फोन करके विस्तृत जानकारी इकट्ठा करें. साथ ही पहले के कार्यस्थल से उसका कैरेक्टर सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य करा देना चाहिए.
तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करें-
स्कूलों में सीसीटीवी लगवाना ही काफी नहीं है बल्कि इनकी मॉनिटरिंग के लिए बाकायदा एक आदमी रखा जाना चाहिए या फिर एक कंट्रोल रूम बनाया जाना चाहिए. वॉशरूम, प्लेग्राउंड जैसी जगहें जहां छात्रों का आना-जाना लगा रहता है वहां पर सीसीटीवी जरुर लगे होने चाहिए. छोटे बच्चों के वॉशरूम में महिला हाऊस कीपिंग स्टाफ की तैनाती जरूर होनी चाहिए. बच्चों को स्कूल के किसी भी सुनसान जगह में कभी भी अकेले नहीं छोड़ना चाहिए. टॉयलेट क्लासरूम से ज्यादा दूर नहीं होना चाहिए.
अब तो नई टेक्नोलॉजी आ गई है जिसके द्वारा स्कूल बसों से बच्चों के लाने, ले जाने का रियल टाइम स्टेटस पता चल सकता है. यही नहीं इसके द्वारा बच्चे के मूवमेंट पर भी नजर रखी जा सकती है. अभिभावक अपने स्मार्टफोन में एक एप के जरिए बच्चा कहां से बस पर चढ़ा और कहां उतरा तक की खबर रख सकते हैं. स्कूलों को बच्चों की आईडी में आरएफआईडी चिप लगाकर रखना चाहिए.
स्कूलों के वॉशरुम और सुनसान जगहों पर स्पेशल पैनिक बटन लगवा देना चाहिए. जिससे की किसी दुर्घटना के होने से पहले या किसी खतरे के एहसास के बाद बच्चे मदद के लिए पुकार सकें.
स्कूल परिसर में स्टाफ की आवाजाही प्रतिबंधित होनी चाहिए-
स्कूल का मेनगेट सबसे मुख्य द्वार होता है और यहां की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होनी चाहिए. गेट के गार्ड को इस बात की सख्त ताकीद की जानी चाहिए कि स्कूल के गेट के अंदर ड्राइवर, कंडक्टर या किसी अनजान व्यक्ति को अंदर आने की इजाजत नहीं हो. मिलने आने वालों के लिए एक्सेस कंट्रोल तकनीक के जरिए निगरानी रखी जानी चाहिए.
शिक्षकों का रोल-
स्कूल में बच्चों की सुरक्षा का ख्याल रखने में सबसे अहम् जिम्मेदारी शिक्षकों की होती है. शिक्षकों को स्कूल के सुनसान जगहों पर समय-समय पर चेक करते रहना चाहिए. साथ ही स्कूल के शिक्षकों द्वारा और स्कूल प्रशासन द्वारा औचक निरीक्षण भी किए जाने चाहिए. स्कूल बसों में टीचरों को साथ जाना चाहिए. साथ ही टीचर को बच्चे के स्टॉप पर उतरने/चढ़ने हर चीज पर पैनी नजर रखनी चाहिए. अगर किसी दिन टीचर नहीं आ पाएं तो बस में कोई अभिभावक मौजूद हो ऐसा सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
इसके साथ ही बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में भी बताया जाना चाहिए. साथ ही किसी भी तरह की दिक्कत होने के तुरंत बाद बच्चे शिक्षकों या अभिभावकों से निडर होकर समस्या बता पाएं ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए.
अभिभावकों का रोल-
माता-पिता को अपने बच्चों को शुरू से ही ये सीखा देना चाहिए कि किसी भी तरह की परेशानी हो तो सीधा उनतक अपनी शिकायत पहुंचाएं. साथ ही किसी भी तरह के शोषण का सामना डटकर करें. इसके लिए बच्चों को घर में एक फ्री माहौल देने की जरुरत है.
स्कूलों में बच्चों को लोगों को पहचानने और विकट परिस्थितियों में कैसे रिएक्ट करना है ये सारी शिक्षा दी जानी चाहिए. बच्चों की सुरक्षा के लिए ये बहुत ही जरुरी कदम है.
इसके साथ ही सरकारों द्वारा स्कूल प्रशासन और अभिभावकों तक साइबर-सुरक्षा और बदमाशी के खिलाफ उठाए जा सकने वाले कदम और कानूनों की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए.
सौ बातों की एक बात ये है कि सुरक्षा एक अहम मुद्दा है और स्कूलों को सुरक्षा इंतजाम दुरुस्त करने के लिए किसी घटना के होने का इंतजार नहीं करना चाहिए.
ये भी पढ़ें-
बच्चे को ए, बी, सी, डी सिखाने से पहले आत्मरक्षा के गुर सिखाएं
क्यों नहीं शर्मसार होता प्रद्युम्न को मारने वाला समाज
अव्यवस्था के शिकार भारत के स्कूल
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.