आजकल के अधिकतर माता-पिता बेटा-बेटी (Daughter) में अंतर नहीं करते है. वे बेटियों को भी उतना ही प्यार दुलार देते हैं जितना बेटों को. वे बेटियों की शिक्षा में कोई कमी नहीं करते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने और अपने पैरों पर खड़ी हो. वे अपनी बेटी को आजादी तो देते हैं मगर कंडीशन अप्लाई के साथ.
जैसे, वह अपने पसंद के कपड़े तो पहन सकती है लेकिन उसमें माता-पिता की मर्जी होनी चाहिए. कुल मिलाकर बेटियों के मामले में च्वाइस माता-पिता की मानी जाती है. कहते हैं कि बेटियां पिता की लाडली होती है और मां के करीब होती हैं. एक समय के बाद तो वे मां की सहेली भी बन जाती हैं, फिर जब मां अपनी बेटी को हर बात पर टोका-टाकी करती है तो वे चिढ़कर उनसे ही दूरी बनाने लगती हैं.
एक समय तो ऐसा आता कि सख्त बिहेवियर के कारण बेटियां अपने माता-पिता से बातें छिपाने लगती हैं. पता नहीं क्यों कुछ पैरेंट्स बेटियों के मामले में हिटलर बन जाने पर उतारू हो जाते हैं?
लड़कों से दोस्ती मत करना
बेटे की लडकियां दोस्त हो सकती हैं मगर बेटी का जैसे ही कोई लड़का दोस्त बनता है माता-पिता के कान खड़े हो जाते हैं. वे चाहते हैं कि क्लासमेट तक ठीक है, लेकिन कोई लड़का उनकी बेटी का करीबी दोस्त न बने. चलो यह समझ आता है कि माता-पिता को अपनी बेटी की चिंता रहती है मगर थोड़ा भरोसा उसपर भी तो कीजिए.
घर आने में देरी मत करना
बेटा कितने बजे भी घर आए चलेगा लेकिन बेटी के घर आने का टाइम फिक्स होता है. यह सच है कि माता-पिता को बेटी की सुरक्षा की चिंता रहती है मगर किसी दिन काम से भी अगर वह जरा भी लेट...
आजकल के अधिकतर माता-पिता बेटा-बेटी (Daughter) में अंतर नहीं करते है. वे बेटियों को भी उतना ही प्यार दुलार देते हैं जितना बेटों को. वे बेटियों की शिक्षा में कोई कमी नहीं करते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने और अपने पैरों पर खड़ी हो. वे अपनी बेटी को आजादी तो देते हैं मगर कंडीशन अप्लाई के साथ.
जैसे, वह अपने पसंद के कपड़े तो पहन सकती है लेकिन उसमें माता-पिता की मर्जी होनी चाहिए. कुल मिलाकर बेटियों के मामले में च्वाइस माता-पिता की मानी जाती है. कहते हैं कि बेटियां पिता की लाडली होती है और मां के करीब होती हैं. एक समय के बाद तो वे मां की सहेली भी बन जाती हैं, फिर जब मां अपनी बेटी को हर बात पर टोका-टाकी करती है तो वे चिढ़कर उनसे ही दूरी बनाने लगती हैं.
एक समय तो ऐसा आता कि सख्त बिहेवियर के कारण बेटियां अपने माता-पिता से बातें छिपाने लगती हैं. पता नहीं क्यों कुछ पैरेंट्स बेटियों के मामले में हिटलर बन जाने पर उतारू हो जाते हैं?
लड़कों से दोस्ती मत करना
बेटे की लडकियां दोस्त हो सकती हैं मगर बेटी का जैसे ही कोई लड़का दोस्त बनता है माता-पिता के कान खड़े हो जाते हैं. वे चाहते हैं कि क्लासमेट तक ठीक है, लेकिन कोई लड़का उनकी बेटी का करीबी दोस्त न बने. चलो यह समझ आता है कि माता-पिता को अपनी बेटी की चिंता रहती है मगर थोड़ा भरोसा उसपर भी तो कीजिए.
घर आने में देरी मत करना
बेटा कितने बजे भी घर आए चलेगा लेकिन बेटी के घर आने का टाइम फिक्स होता है. यह सच है कि माता-पिता को बेटी की सुरक्षा की चिंता रहती है मगर किसी दिन काम से भी अगर वह जरा भी लेट हो जाए तो सभी उसे शक की निगाहों से देखते हैं. भले ही वह सही हो.
बाहर अकेले मत जाना
सोलो ट्रिप तो छोड़ो अगर बेटी कहीं अकेले चली जाए तो घर में तूफान उठ जाता है. अरे वह बेटी है कोई बच्ची नहीं कि हर जगह आपका हाथ पकड़ कर चलेगी. उसके पास अपमा दिमाग है. वह अपना अच्छा-बुरा जानती है. इसलिए उसके पीछे पड़ने की जरूरत नहीं है. वह अपना काम अकेले कर सकती है.
अपनी जाति के लड़के को ही पसंद करना
बेटा, तुम अपने पसंद के लड़के से शादी कर सकती है हो. बस शर्त यह है कि वह अपनी ही जाति का हो. उसकी सरकारी नौकरी हो. उसके घऱवाले खानदानी हो. बाकी तुम अपनी पंसद देख लो, हमें कोई परेशानी नहीं है. हमारी सिर्फ इतनी ही मांग है.
कपड़े ढंग के पहनना
लड़की के पूरे घरवाले मिलकर तय करते हैं कि वह क्या पहन सकती है और क्या नहीं? वनपीस पहन सकती है मगर उसकी लंबाई घुटने के नीचे होनी चाहिए. स्कर्ट पहन सकती है मगर मिनी स्कर्ट नहीं. जींस पहन सकती है मगर रिप्ड नहीं.
तुम्हें पढ़ाई के लिए दूर नहीं भेज सकते
तुम्हें जो पढ़ना है पढ़ो मगर हम तुम्हें अकेले घर से दूर रहने के लिए परमिशन नहीं दे सकते हैं. हमें तुम्हारी टेंशन होती है. और फिर जमाना भी तो खराब है. पढ़ाई तो यहां के कॉलेज से भी हो ही जाएगी. यह कहकर लड़कियों को मुंह बंद करा दिया जाता है.
इसके उलट माता-पिता बेटों के मामले में बड़े उदार हो जाते हैं. बेटा देरी से भी घर आएगा तो चलेगा. उसे तो बाहर पढ़ने जाना ही चाहिए. कोई मेहमान आएगा तो पानी तो बेटी ही लाएगी बेटा नहीं. तो बेटी को आजादी तो मिलती है मगर बंधनों में. असल में हमारे यहां बेटियों को व्यक्तिगत रूप में देखा ही नहीं जाता है, उन्हें घर के सम्मान के साथ जोड़ दिया जाता है.
माता-पिता जब महिला अपराध की खबरें पढ़ते हैं तो बेटियों के लिए मन में डर पैदा हो जाता है और वे बेटियों के साथ सख्त व्यवहार करते हैं. समाज का इतना दबाव रहता है कि माता-पिता अपनी बेटियों की खुशी को ताख पर रख देते हैं. ऐसे में या तो बेटियां डरपोक हो जाती हैं या तो विद्रोही... माता-पिता से उनके रिश्ते खराब होते हैं सो अलग.
ऐसे घरों में बेटियां पीरियड्स, सेक्स, दोस्त, पुरुष, रिलेशनशिप पर खुलकर बात नहीं कर पाती हैं. मगर माता-पिता दूसरों के सामने सीना चौड़ाकर के कहते हैं कि हमने तो अपनी बेटियों को पूरी आजादी दे रखी है. हमारे बेटा-बेटी में अंतर नहीं करते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.