ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आए अदालत के आदेश ने कई बुद्धिजीवी टाइप लोगों को कष्ट पहुंचाया है. कहा जा रहा है कि औरंगजेब ने जो काम फौजी आक्रामकता से किया, वही मौजूदा दौर में न्यायिक आक्रामकता से किया जा रहा है. यानी औरंगजेब और कोर्ट को एक कैटेगरी में रखने की कोशिश की जा रही है. कुछ लिबरल तो यहां कहते नजर आ रहे हैं कि 2022 में इन गड़े मुर्दों को जीवित किया जा रहा है. हम क्यों मंदिर-मस्जिद विवाद को हवा दे रहे हैं? ऐसे तमाम लोगों की सोच पर तरस आता है कि आखिर वे औरंगजेब की करतूत पर पर्दा डालने के लिए ऐसे बेशर्म तर्क कहां से लाते हैं. वे कोर्ट पर अंगुली कैसे उठा सकते हैं, जहां दोनों पक्षों को सुना जा रहा है. अब आइये, थोड़ी बातें उन बुद्धिजीवियों-पत्रकारों की भी कर लेते हैं, जिनके भीतर एक कट्टरपंथी इस्लामिक छुपा हुआ है. वे खुद को बेचारा, सताया हुआ बताने के लिए ऐसे घडियाली आंसू बहा रहे हैं कि क्या कहें. ऐसे लोगों को आईना दिखाने के लिए मैं अपनी हाल की एक यात्रा का जिक्र करना चाहूंगी. इस यात्रा के दौरान ली गई इन तस्वीरों को देखिए, और बताइए इनको देख कर क्या महसूस कर रहे हैं?
ये भुलेश्वर मंदिर है. पुणे से कोई 40-45 किलोमीटर दूर. मैंने जब यहां की मूर्तियों को देखा तो लगा जैसे किसी ने मेरे बदन पर ये ज़ख़्म दे दिए हैं. एक मंदिर जो तेरहवीं शदी में बना, सोचिए इसे बनाने में कितनी मेहनत लगी होगी. कितने मज़दूरों की उंगलियां घायल हुई होंगी, कितने ज़ख़्म उग आए होंगे उनकी हथेलियों में. तब जा कर महादेव शिव का ये प्राचीन भुलेश्वर मंदिर बना होगा. जिसे मुस्लिम आक्रांताओं ने क्षत-विक्षत करके रख दिया है.
इस मंदिर में जा कर रोना आया और ग़ुस्सा भी. सोचने लग गयी आख़िर क्या मानसिकता...
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आए अदालत के आदेश ने कई बुद्धिजीवी टाइप लोगों को कष्ट पहुंचाया है. कहा जा रहा है कि औरंगजेब ने जो काम फौजी आक्रामकता से किया, वही मौजूदा दौर में न्यायिक आक्रामकता से किया जा रहा है. यानी औरंगजेब और कोर्ट को एक कैटेगरी में रखने की कोशिश की जा रही है. कुछ लिबरल तो यहां कहते नजर आ रहे हैं कि 2022 में इन गड़े मुर्दों को जीवित किया जा रहा है. हम क्यों मंदिर-मस्जिद विवाद को हवा दे रहे हैं? ऐसे तमाम लोगों की सोच पर तरस आता है कि आखिर वे औरंगजेब की करतूत पर पर्दा डालने के लिए ऐसे बेशर्म तर्क कहां से लाते हैं. वे कोर्ट पर अंगुली कैसे उठा सकते हैं, जहां दोनों पक्षों को सुना जा रहा है. अब आइये, थोड़ी बातें उन बुद्धिजीवियों-पत्रकारों की भी कर लेते हैं, जिनके भीतर एक कट्टरपंथी इस्लामिक छुपा हुआ है. वे खुद को बेचारा, सताया हुआ बताने के लिए ऐसे घडियाली आंसू बहा रहे हैं कि क्या कहें. ऐसे लोगों को आईना दिखाने के लिए मैं अपनी हाल की एक यात्रा का जिक्र करना चाहूंगी. इस यात्रा के दौरान ली गई इन तस्वीरों को देखिए, और बताइए इनको देख कर क्या महसूस कर रहे हैं?
ये भुलेश्वर मंदिर है. पुणे से कोई 40-45 किलोमीटर दूर. मैंने जब यहां की मूर्तियों को देखा तो लगा जैसे किसी ने मेरे बदन पर ये ज़ख़्म दे दिए हैं. एक मंदिर जो तेरहवीं शदी में बना, सोचिए इसे बनाने में कितनी मेहनत लगी होगी. कितने मज़दूरों की उंगलियां घायल हुई होंगी, कितने ज़ख़्म उग आए होंगे उनकी हथेलियों में. तब जा कर महादेव शिव का ये प्राचीन भुलेश्वर मंदिर बना होगा. जिसे मुस्लिम आक्रांताओं ने क्षत-विक्षत करके रख दिया है.
इस मंदिर में जा कर रोना आया और ग़ुस्सा भी. सोचने लग गयी आख़िर क्या मानसिकता रही होगी उन मुस्लिम राजाओं की जिन्होंने मंदिरों को यूं तहस-नहस करके रख दिया. क्या बिगाड़ा होगा इन मंदिर की मूर्तियों ने? कोई बुद्धिजीवी आए और मेरे सवालों का जवाब दें या इस्लाम को मानने वाले ही मुझे समझा जाए कि मंदिर क्यों तोड़े गए?
ट्वीटर पर पत्रकार अरफ़ा ख़ानम कह रही हैं कि, 'हर रोज़ एक नया ज़ख़्म'. कोई उनसे इन मूर्तियों को मिले ज़ख्मों का हिसाब मांगे ज़रा. मेहरबानी होगी!
कभी भुलेश्वर मंदिर घूम कर आइए, और देखिए क्रूरता की कहानियों को अपनी आंखों से. पोस्ट शेयर करिए ताकि लोगों को पता चले कि ख़ाली अयोध्या ही नहीं, जहां भी प्राचीन मंदिर थे सब जगह इन लोगों के क्या तांडव किया है!
ये भी पढ़ें -
SP पर बंदूक तानने वाली कांस्टेबल की दिलेरी के साथ कर्तव्यनिष्ठा की तारीफ हो रही है
भेदभाव की वजह किसी का दलित, आदिवासी, महिला या हिंदू-मुस्लिम होना है ही नहीं
महिलाएं रोज ये 12 गलतियां करती हैं, और फिर अपनी नाखुशी का दोष दूसरों के सिर मढ़ती हैं
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.