भारतीय रेलवे की एक बात इसे सबसे अलग बनाती है. वो ये कि यहां की ट्रेन भी यहां के लोगों की तरह इंडियन टाइन फॉलो करती हैं, यानी 5 मिनट में आ रही हैं के अनाउंसमेंट के बाद भी 45 मिनट लगा ही देती हैं. भारत में कुछ लोगों का आलम तो ये है कि अगर ट्रेनें लेट नहीं होतीं तो वो कभी सफर कर ही नहीं पाते. यकीनन ये सिर्फ कुछ ही लोगों के हाल हैं, लेकिन अधिकतर जनता ट्रेनों के लेट होने से अच्छी खासी परेशान रहती है. भारतीय ट्रेनों की लेट-लतीफी ने कई बारातों को पूरी-पूरी रात स्टेशन पर रुकवाया है, स्टूडेंट्स का पेपर छुड़वाया है और किसी मेडिकल इमर्जेंसी की बात तो न ही की जाए यही अच्छा है. यकीनन किसी के लिए भी इंडियन रेलवे की लेट लतीफी का शिकार बनना काफी बुरा होगा, लेकिन अब रेलवे डिपार्टमेंट ने इसका एक रामबाण इलाज निकाला है.
अब अगर ट्रेनें लेट होंगी तो इसकी भरपाई रेलवे अधिकारी अपने प्रमोशन से करेंगे. इसे एक दुनिया बदल देने वाला फैसला कहा जाए तो गलत नहीं होगा. कम से कम इस फैसले के बाद रेलवे डिपार्टमेंट बाकी सरकारी ऑफिस की तरह काम नहीं करेगा जहां भगवान भरोसे काम होता है और बस कुछ ही घंटों में फाइलों का पुलिंदा देखे बिना अफसर अपने घर को निकल जाते हैं. भारतीय रेलवे पर हर दिन सफर करने वाले करोड़ों यात्रियों की जिम्मेदारी होती है और रेलवे डिपार्टमेंट में लेटलतीफी और गैरजिम्मेदारी का शिकार हो जाएं तो ये यकीनन बुरी बात होगी. देर से ही सही, लेकिन इस बार लग रहा है कि रेलवे डिपार्टमेंट कुछ हरकत में आ रहा है.
रेल मंत्रि पियुष गोयल ने रेलवे के आला अधिकारियों को ये अल्टिमेटम दे दिया है कि अगर ट्रेनें वक्त पर नहीं चलीं तो इसका खामियाज़ा उन्हें अपने प्रमोशन से चुकाना पड़ेगा. साथ ही, उनके सालाना अप्रेजल पर भी इसका फर्क पड़ेगा. अगर सिर्फ रेलवे अधिकारियों की बात करें तो उन्हें 1 महीना दिया...
भारतीय रेलवे की एक बात इसे सबसे अलग बनाती है. वो ये कि यहां की ट्रेन भी यहां के लोगों की तरह इंडियन टाइन फॉलो करती हैं, यानी 5 मिनट में आ रही हैं के अनाउंसमेंट के बाद भी 45 मिनट लगा ही देती हैं. भारत में कुछ लोगों का आलम तो ये है कि अगर ट्रेनें लेट नहीं होतीं तो वो कभी सफर कर ही नहीं पाते. यकीनन ये सिर्फ कुछ ही लोगों के हाल हैं, लेकिन अधिकतर जनता ट्रेनों के लेट होने से अच्छी खासी परेशान रहती है. भारतीय ट्रेनों की लेट-लतीफी ने कई बारातों को पूरी-पूरी रात स्टेशन पर रुकवाया है, स्टूडेंट्स का पेपर छुड़वाया है और किसी मेडिकल इमर्जेंसी की बात तो न ही की जाए यही अच्छा है. यकीनन किसी के लिए भी इंडियन रेलवे की लेट लतीफी का शिकार बनना काफी बुरा होगा, लेकिन अब रेलवे डिपार्टमेंट ने इसका एक रामबाण इलाज निकाला है.
अब अगर ट्रेनें लेट होंगी तो इसकी भरपाई रेलवे अधिकारी अपने प्रमोशन से करेंगे. इसे एक दुनिया बदल देने वाला फैसला कहा जाए तो गलत नहीं होगा. कम से कम इस फैसले के बाद रेलवे डिपार्टमेंट बाकी सरकारी ऑफिस की तरह काम नहीं करेगा जहां भगवान भरोसे काम होता है और बस कुछ ही घंटों में फाइलों का पुलिंदा देखे बिना अफसर अपने घर को निकल जाते हैं. भारतीय रेलवे पर हर दिन सफर करने वाले करोड़ों यात्रियों की जिम्मेदारी होती है और रेलवे डिपार्टमेंट में लेटलतीफी और गैरजिम्मेदारी का शिकार हो जाएं तो ये यकीनन बुरी बात होगी. देर से ही सही, लेकिन इस बार लग रहा है कि रेलवे डिपार्टमेंट कुछ हरकत में आ रहा है.
रेल मंत्रि पियुष गोयल ने रेलवे के आला अधिकारियों को ये अल्टिमेटम दे दिया है कि अगर ट्रेनें वक्त पर नहीं चलीं तो इसका खामियाज़ा उन्हें अपने प्रमोशन से चुकाना पड़ेगा. साथ ही, उनके सालाना अप्रेजल पर भी इसका फर्क पड़ेगा. अगर सिर्फ रेलवे अधिकारियों की बात करें तो उन्हें 1 महीना दिया गया है ट्रेनों के लेट शेड्यूल को सही करने के लिए.
अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो पिछले वित्तीय वर्ष में 30% ट्रेनें लेट रही हैं और साथ ही साथ रेल अधिकारियों ने इसके पीछे सिर्फ मेंटेनेंस को दोष दिया है. ये आंकड़े गर्मियों की छुट्टियों के समय भी ठीक नहीं हो रहे और यकीनन रेलवे की सच्चाई इन सरकारी आंकड़ों से काफी आगे है. उत्तरी रेलवे इस मामले में सबसे खराब दौर से गुजर रही है जहां 49.59% ट्रेनें लेट होती रहती हैं. और यहां भी आंकड़ा खराब ही हो रहा है. यहां भी एक ही जवाब दिया जा रहा है. वो ये कि ट्रैक्स की मेंटेनेंस चल रही है. जहां एक हद तक ये सही बात है वहीं दूसरी तरफ देखें तो रेलवे के ट्रैक मेंटेनेंस का और लापरवाही का मिलाजुला रूप समझ आ सकता है.
रेल मंत्री से प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस बारे में पूछताछ की है. गौरतलब है कि सुरेश प्रभु के दौर में भी इस तरह से रेल अधिकारियों की क्लास ली गई थी और उस दौर में रेल अधिकारी इमर्जेंसी के समय की फाइलें खोज रहे थे. ये भारत के इतिहास का वो पन्ना है जब 90% ट्रेनें सही समय पर चला करती थीं. जब इंदिरा गांधी सरकार की तरफ से इमर्जेंसी लगाई गई थी तब हर सरकारी दफ्तर और आला अधिकारियों पर एक तरह का प्रेशर होता था. उन्हें अपनी नौकरी जाने का खतरा रहता था और ये प्रेशर एक बहुत बड़ी वजह बना था इमर्जेंसी के समय ट्रेनों के समय पर चलने का.
अब 2018 की बात करते हैं. प्रेशर शायद उसका आधा भी नहीं है, यात्री यकीनन तीन गुने हो गए हैं और कुछ हज़ार ट्रेनें ज्यादा चलने लगी हैं, लेकिन उसी के साथ बढ़ा है रेल मेहकमा और अधिकारियों की संख्या, रेलवे को मिलने वाला बजट और उम्मीदें. हाल ही की बात है जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्टेशन पर इंजीनियरों ने 25 लाख रुपए बर्बाद कर दिए थे और ये सिर्फ एक पुल की बीम को बदलने के लिए हुए थे. गोयल ने इस बारे में बात की और अधिकारियों से ये पूछा कि आखिर इस तरह के पार्ट बदलने में होने वाले खर्च को रोकने की कोई तकनीक क्यों नहीं है और क्यों बिना बात के ट्रेनें उस समय लेट हो रही हैं जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है.
पियूष गोयल ने इस बात को पूरी तरह से खारिज कर दिया है कि ये समस्या सिर्फ मेंटेनेंस के कारण हो रही है. 30 जून तक का अल्टिमेटम भी दे दिया गया है कि अगर इस समय तक हालात में सुधार नहीं हुए तो रेल अधिकारियों के लिए कोई प्रमोशन नहीं होगा.
सुरेश प्रभू के दौर में रेलवे ट्रैफिक बोर्ड के मेंबर अजय शुक्ला ने एक पत्र लिखकर आला अधिकारियों को इस बात की गंभीरता का अहसास करवाया था कि गलत डेटा दिए जाने पर सस्पेंशन भी हो सकता है. सेंट्रल कोचिंग ऑपरेशन इंफोर्मेशन सिस्टम पर में मैनुअल गलतियों के कारण ये हो रहा था. यकीनन इसे इस बात का पैगाम भी समझा जा सकता है कि रेलवे में गलत डेटा दिखाया जाता है. यानी जो स्थिती दिख रही है वो असल स्थिती के मुकाबले काफी सही है.
ट्रैफिक डायरेक्टर जिनका काम है रेलवे में सही समय पर ट्रेनों की आवाजाही करवाना उन्हें हमेशा सिग्नलर खराब है, मेंटेनेंस चल रही है, सही उपकरण नहीं हैं या उपकरण खराब हो गए हैं जैसे ही बहाने देते सुना जा सकता है, लेकिन ऐसा कितनी ही बार हुआ है कि रेलवे अधिकारियों की लापरवाही सामने आई हो. एक तरह से अब जो प्रेशर उनपर डाला जा रहा है उसे सही कहा जा सकता है.
जिस समय भारत में ठीक तरह के उपकरण नहीं थे, तकनीक ने इतनी तरक्की नहीं की थी अगर उस समय ट्रेनें सही समय पर चल रही थीं तो कम से कम अब जब भारत बुलेट ट्रेन लेकर आने का सोच रहा है तब तो यकीनन ट्रेनें सही समय पर चल सकती हैं और मेंटेनेंस का काम भी ठीक समय पर हो सकता है. जापान जहां से बुलेट ट्रेन लाने की बात है वहां अगर ट्रेन 20 सेकंड जल्दी भी निकल जाती है तो भी ट्रेन कंपनी माफी मांगती है यात्रियों से वहां की तकनीक को भारत लाया जा रहा है तो कम से कम यहां की मौजूदा ट्रेनों की स्थिती थोड़ी तो बेहतर की जा सकती है.
इमर्जेंसी के समय का प्रेशर भारत में बहुत ज्यादा था. अगर उस समय के हिसाब से थोड़ा सा प्रेशर आज भी सरकारी अधिकारियों पर डाला जाए तो यकीनन बात संभल सकती है. अपनी नौकरी और तरक्की का प्रेशर शायद अधिकारियों को सही डेटा देने के लिए और लापरवाही के बिना काम करने के लिए प्रेरित करे और जो भी हो कम से कम ये यात्रियों के लिए तो एकदम सही होगा.
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