कुछ रोज़ पहले, अप्रैल की शुरुआत में, एक लड़के का फ़ोन मेरे पास आया कि उसका भाई बहुत बीमार है. कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया है. उसके भाई की उम्र कोई 26 के आसपास होगी, उसको उस वक़्त ऑक्सीजन सिलिंडर की दरकार थी, मैंने कोशिश की और ज़रा मेहनत से एक ऑक्सीजन कैन वाले का पता मिल गया. ऑक्सीजन उस तक पहुंच भी गयी, फिर भी, उसकी हालत में कोई ख़ास सुधार न आया इसलिए उसको हॉस्पिटल रेफर किया गया. यहां कई लोगों ने मदद की, इधर उधर से कांटेक्ट दौड़ाए, एक नामी हॉस्पिटल में पता चला कि बेड है तो वहां भिजवाया. फिर नर्सेज, डॉक्टर्स, मेडिकल स्टाफ और कुछ ऊपर वाले की मेहरबानी से लड़का 10 दिन में रिकवर कर गया. 11वें दिन उसकी नेगेटिव रिपोर्ट भी आ गयी. बहुत थैंक यू थैंक यू बोला उसने.
अब कुछ दिनों से प्लाज्मा की डिमांड बढ़ गयी है. मैंने उसको फोन किया तो शुरुआती ना-नुकुर के बाद सीधा मुकर गया, बहानेबाजी करने लगा कि मैं प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकता. मेरी इम्युनिटी ख़त्म हो जायेगी. शुरुआत में लगा कि इसको वाकई इम्युनिटी को लेकर भ्रम है, मैंने कुछ माने हुए डॉक्टर्स के स्टेटमेंट भेज दिए कि प्लाज्मा डोनेशन से इम्युनिटी पर कोई असर नहीं पड़ता. तो पट्ठे ने फोन बंद कर दिया.
अब आप बताओ क्या ये अकेला ऐसा केस है? क्या ट्रीटमेंट के वक़्त हाथ फैलाते पेशेंट ठीक होने के बाद भाव नहीं खा रहे? मैं सबकी बात नहीं करता, बहुत से राहुल रस्तोगी जैसे अच्छे लोग भी हैं जो तीन नहीं दस-दस बार प्लाज्मा डोनेट करने को राज़ी हैं. पर वो हैं कितने? उंगलियों पर गिन सकते हैं हम.
एक लड़की बिचारी, पिछले साल शादी हुई थी उसकी, अपने पति के लिए एक यूनिट प्लाज्मा मांग-मांगकर ख़ुद अधमरी हो गयी. पति न बचा और न ही इन घर...
कुछ रोज़ पहले, अप्रैल की शुरुआत में, एक लड़के का फ़ोन मेरे पास आया कि उसका भाई बहुत बीमार है. कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया है. उसके भाई की उम्र कोई 26 के आसपास होगी, उसको उस वक़्त ऑक्सीजन सिलिंडर की दरकार थी, मैंने कोशिश की और ज़रा मेहनत से एक ऑक्सीजन कैन वाले का पता मिल गया. ऑक्सीजन उस तक पहुंच भी गयी, फिर भी, उसकी हालत में कोई ख़ास सुधार न आया इसलिए उसको हॉस्पिटल रेफर किया गया. यहां कई लोगों ने मदद की, इधर उधर से कांटेक्ट दौड़ाए, एक नामी हॉस्पिटल में पता चला कि बेड है तो वहां भिजवाया. फिर नर्सेज, डॉक्टर्स, मेडिकल स्टाफ और कुछ ऊपर वाले की मेहरबानी से लड़का 10 दिन में रिकवर कर गया. 11वें दिन उसकी नेगेटिव रिपोर्ट भी आ गयी. बहुत थैंक यू थैंक यू बोला उसने.
अब कुछ दिनों से प्लाज्मा की डिमांड बढ़ गयी है. मैंने उसको फोन किया तो शुरुआती ना-नुकुर के बाद सीधा मुकर गया, बहानेबाजी करने लगा कि मैं प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकता. मेरी इम्युनिटी ख़त्म हो जायेगी. शुरुआत में लगा कि इसको वाकई इम्युनिटी को लेकर भ्रम है, मैंने कुछ माने हुए डॉक्टर्स के स्टेटमेंट भेज दिए कि प्लाज्मा डोनेशन से इम्युनिटी पर कोई असर नहीं पड़ता. तो पट्ठे ने फोन बंद कर दिया.
अब आप बताओ क्या ये अकेला ऐसा केस है? क्या ट्रीटमेंट के वक़्त हाथ फैलाते पेशेंट ठीक होने के बाद भाव नहीं खा रहे? मैं सबकी बात नहीं करता, बहुत से राहुल रस्तोगी जैसे अच्छे लोग भी हैं जो तीन नहीं दस-दस बार प्लाज्मा डोनेट करने को राज़ी हैं. पर वो हैं कितने? उंगलियों पर गिन सकते हैं हम.
एक लड़की बिचारी, पिछले साल शादी हुई थी उसकी, अपने पति के लिए एक यूनिट प्लाज्मा मांग-मांगकर ख़ुद अधमरी हो गयी. पति न बचा और न ही इन घर बैठे सूरमाओं में शर्म बची. एक दिन में चार लाख पेशेंट आते तो सबको दिख रहे हैं पर ये भी तो देखिए कि करीब तीन लाख लोग रोज़ रिकवर भी हो रहे हैं. इनका क्या?
इनमें जो लोग अक्षम हैं, उन्हें कोई बीमारी है जिसके कारण वो प्लाज्मा नहीं दे सकते मैं उनकी बात नहीं करता, पर जो जवान जहान लड़के हैं, जो मदद के लिए आगे आ सकते हैं वो क्यों घूंघट ओढ़े बैठे हुए हैं? क्या उन्हें बाहर निकालना ज़रूरी नहीं है?
अगर ज़रूरी है तो इस ज़रुरत को पूरा करने के लिए मैंने पेटीशन डाली है कि हर एक रिकवर हुए मरीज को 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट करना ही है, ये अनिवार्य किया जाए. मैंने फॉर्मली मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर को भी चिट्ठी भेज दी है. पर उन्हें एक जन की चिट्ठी नहीं दिखेगी, उन्हें तब दिखेगी जब हम एक से एक हज़ार और एक हज़ार से एक लाख चिट्ठियां भेजेंगे. बस ज़रूरतमंद को प्लाज्मा दिलवाइए.
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