बेंगलुरु के ISRO कमांड सेंटर में प्रवेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिसने भी देखा, उसने पहले तो अचरज किया. एक ऐसे दौर में जब नेेता सिर्फ कामयाबी का श्रेय लेना चाहते हैं, तो मोदी चंद्रयान 2 मिशन के इस सबसे रिस्की चरण के पूरा होने से पहले परिदृश्य पर क्यों दिखाई दे रहे हैं. आखिर कुछ चूक हो गई, तो मोदी क्या प्रतिक्रिया देंगे? लेकिन जब आशंकाओं ने हकीकत का रूप लिया तो मोदी ने भी स्पष्ट कर दिया कि वे मिशन की कामयाबी ही नहीं, उसकी नाकामी पर भी ISRO के साथ खड़े होने का साहस रखते हैं. जब वे ISRO की कामयाबी का जश्न मना सकते हैंं, तो उसकी नाकामी के हिस्सेदार होने का भी दायित्व रखते हैं. और निभाते हैं.
शुक्रवार की रात जब लोग सोए तो इस कामना के साथ कि अगली सुबह खुशखबरी मिलेगी. मिशन चंद्रयान 2 सफल रहेगा. लेकिन शनिवार की सुबह जो खबर लेकर आई वो निराश कर देने वाली थी. चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम का चांद पर लैंडिग से ठीक 2.1 किमी पहले इसरो से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने का संदेश इसरो के वैज्ञानिकों के लिए पहला झटका था. ये झटका उन्हें मिशन पूरा होने के महज चंद मिनटों पहले मिला. जबकि इस मिशन के हर पड़ाव से इसरो सफलतापूर्वक आगे बढ़ता गया था.
इस मिशन के साथ जुड़े वैज्ञानिकों के लिए मिशन के लिए उठाया गया हर कदम महत्वपूर्ण था. सॉफ्ट लैंडिग वो पल था जिसके पीछे इसरों के वैज्ञानिकों की सालों की मेहनत थी. कितनी ही रातें बिना सोए बिताने वाले इन वैज्ञानिकों की आंखों ने इसी लैंडिंग का सपना देखा था. विक्रम से संपर्क टूटने के बाद इन आंखों के सपने आंसुओं में बदलने लगे.
के. सिवन के संघर्ष बताते हैं कि वो हार नहीं मानेंगे
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन की स्थिति सोचिए. किस तरह उन्होंने पूरी दुनिया को ये बताया होगा कि उनका सपना अधूरा रह गया. के सिवन को स्पेस साइंस के क्षेत्र में रॉकेटमैन के नाम से जाना जाता है. उनका पूरा जीवन संघर्ष की...
बेंगलुरु के ISRO कमांड सेंटर में प्रवेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिसने भी देखा, उसने पहले तो अचरज किया. एक ऐसे दौर में जब नेेता सिर्फ कामयाबी का श्रेय लेना चाहते हैं, तो मोदी चंद्रयान 2 मिशन के इस सबसे रिस्की चरण के पूरा होने से पहले परिदृश्य पर क्यों दिखाई दे रहे हैं. आखिर कुछ चूक हो गई, तो मोदी क्या प्रतिक्रिया देंगे? लेकिन जब आशंकाओं ने हकीकत का रूप लिया तो मोदी ने भी स्पष्ट कर दिया कि वे मिशन की कामयाबी ही नहीं, उसकी नाकामी पर भी ISRO के साथ खड़े होने का साहस रखते हैं. जब वे ISRO की कामयाबी का जश्न मना सकते हैंं, तो उसकी नाकामी के हिस्सेदार होने का भी दायित्व रखते हैं. और निभाते हैं.
शुक्रवार की रात जब लोग सोए तो इस कामना के साथ कि अगली सुबह खुशखबरी मिलेगी. मिशन चंद्रयान 2 सफल रहेगा. लेकिन शनिवार की सुबह जो खबर लेकर आई वो निराश कर देने वाली थी. चंद्रयान 2 के लैंडर विक्रम का चांद पर लैंडिग से ठीक 2.1 किमी पहले इसरो से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने का संदेश इसरो के वैज्ञानिकों के लिए पहला झटका था. ये झटका उन्हें मिशन पूरा होने के महज चंद मिनटों पहले मिला. जबकि इस मिशन के हर पड़ाव से इसरो सफलतापूर्वक आगे बढ़ता गया था.
इस मिशन के साथ जुड़े वैज्ञानिकों के लिए मिशन के लिए उठाया गया हर कदम महत्वपूर्ण था. सॉफ्ट लैंडिग वो पल था जिसके पीछे इसरों के वैज्ञानिकों की सालों की मेहनत थी. कितनी ही रातें बिना सोए बिताने वाले इन वैज्ञानिकों की आंखों ने इसी लैंडिंग का सपना देखा था. विक्रम से संपर्क टूटने के बाद इन आंखों के सपने आंसुओं में बदलने लगे.
के. सिवन के संघर्ष बताते हैं कि वो हार नहीं मानेंगे
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन की स्थिति सोचिए. किस तरह उन्होंने पूरी दुनिया को ये बताया होगा कि उनका सपना अधूरा रह गया. के सिवन को स्पेस साइंस के क्षेत्र में रॉकेटमैन के नाम से जाना जाता है. उनका पूरा जीवन संघर्ष की एक ऐसी कहानी कहता है कि कोई भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता. एक गरीब किसान के घर जन्मे सिवन पढ़ाई भी करते थे और खेतों में पिता का हाथ भी बंटाते थे. परिस्थितियां तो ये भी थीं कि खेत के हिस्से बेच बेचकर पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई. ये सिवन की मेहनत का ही नतीजा था कि उन्हें इसरो का अध्यक्ष पद मिला. वो जिस तरह गरीबी से उठ कर यहां तक पहुंचे वो काबिल-ए-तारीफ है और उनकी कहानी खुद ये बताती है कि कड़ी मेहनत और संघर्ष से किसी भी समस्या को सुलझाया जा सकता है. दो वक्त की रोटी के लिए जो इंसान संघर्षरत रहा हो वो सफलता और असलफलता को बहुत गहराई से समझता होगा. चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिग असफल हुई तो सबसे ज्यादा दुखी सिवन ही हुए. लेकिन उनकी जिंदगी ये बताने के लिए काफी है कि वो हारे नहीं हैं.
प्रधानमंत्री ने पिता की तरह संभाला
भारत के प्रधानमंत्री लैंडिंग के वक्त इसरो मुख्यालय में मौजूद थे. जो हमारे देश के इन मेहनती वैज्ञानिकों को मिलने वाली सफलता के साक्षी बनना चाहते थे. अपने देश की सफलता के ख्वाब तो प्रधानमंत्री की आंखों में भी पलते हैं. लेकिन इस घटना के बाद मोदी ने वैज्ञानिकों की आंखों में तैरती हुई निराशा को भांप लिया था. उस वक्त तो वो वहां से चले गए. लेकिन वैज्ञानिकों के हौसलों को मजबूती देने के लिए प्रधानमंत्री सुबह वहां दोबारा गए.
कहते हैं जब कोई हारकर दुखी होता है तो उसे संबल देने से दुख हल्का होता है. इसरो को संबल देने के लिए वहां प्रधानमंत्री थे. वहां जाकर प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा वो सुनकर किसी की भी आंखे भर जाएंगी. ये शब्द इसरो के वैज्ञानिकों के दिल पर महरम की तरह थे. ठीक उस पिता की तरह को अपने बच्चों की नाकामयाबी पर उन्हें फटकारता नहीं बल्कि हौसला बढ़ाने वाली बातों से उनके गिरे हुए मनोबल को और ऊंचा कर देता है.
आज सुबह इसरो के प्रांगण में बेहद भावुक कर देने वाले नजारे दिखे, जिसने भी देखा खुद को रोक न सका. प्रधानमंत्री भी दुखी थे, उनकी आवाज में दुख साफ झलक रहा था लेकिन शब्दों के संबल बहुत मजबूत थे. उन्होंने वैज्ञानिकों की मेहनत को सराहा. उन्होंने कहा कि आज चंद्रमा को छूने की हमारी इच्छाशक्ति और दृढ़ हुई है, संकल्प और प्रबल हुआ है. आज भले ही कुछ रुकावटें हाथ लगी हों, लेकिन इससे हमारा हौसला कमजोर नहीं पड़ा है, बल्कि और मजबूत हुआ है. आज हमारे रास्ते में भले ही एक रुकावट आई हो, लेकिन इससे हम अपनी मंजिल के रास्ते से डिगे नहीं हैं.
पीएम के शब्दों को एक बार जरूर सुनना चाहिए-
वो पल जो पीढ़ियां याद रखेंगी
इसरो के अध्यक्ष के. सिवन जब प्रधानमंत्री को बाहर छोड़ने के लिए आए तो भावुक हो गए. दोनों के बीच एक ही जैसा दर्द था जिसने दोनों को एक दूसरे के गले लगने के लिए मजबूर कर दिया. सिवन फफक फफक कर रो पड़े और प्रधानमंत्री ने उन्हें संबल दिया. इस पल की पीड़ा को पूरे देश में अपने दिलों में महसूस किया.
भावुक कर देने वाले ये पल शायद कभी भुलाया नहीं जा सकेंगे. ये वो पल हैं जो देश की हर नाकामी पर संबल बनकर खड़े हो जाएंगे. इन पलों का कोई मोल नहीं. क्योंकि ये पल बता रहे हैं कि निराशा के दौर में नेतृत्व और जिम्मेदारी कैसे निभाई जाती है. प्रधानमंत्री मोदी का इस तरह इसरो को संभालना और उन्हें दोबारा खड़े होने का हौसला देना किसी भी रूप में यादगार रहेगा.
चांद पर विक्रम की लैंडिंग भले ही सफलतापूर्वक न हो सकी हो, लेकिन हम ये नहीं कह सकते कि 978 करोड़ की लागत वाला ये मिशन फेल हो गया. क्योंकि लैंडर विक्रम और रोवर-प्रज्ञान से मिशन को सिर्फ 5% का नुक्सान हुआ है, बाकी 95% प्रतिशत चंद्रयान-2 ऑर्बिटर अभी भी चंद्रमा का सफलतापूर्वक चक्कर काट रहा है. कामयाबी और नाकामयाबी से अलग चंद्रयान 2 एक सफल प्रयास था. जो बहुत सी चीजें दिखाकर और सिखाकर गया है.
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