आखिर क्यों प्रधानमंत्री मोदी कठुआ और उन्नाव रेप मामलों में शांत हैं? सोशल मीडिया की हलचल बढ़ रही है. इतनी कि इस तथाकथित 'शांति' के खिलाफ आवाजें बहरा बना रही हैं. ऐसा आखिरी बार तब हुआ था जब मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री के लिए मौन मोहन सिंह का उपनाम भी दे चुके थे. अब मामला उलट गया है और नरेंद्र मोदी अब मौन मोदी कहला रहे हैं.
कितने ताकतवर हैं मोदी के मौन को लेकर दिए जा रहे तर्क :
अगर मोदी बेल्जियम की आग और नेपाल की दुर्घटना के बारे में बोल सकते हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि निंदा के कुछ शब्द अपने देश में हो रहे इन भयंकर अपराधों के बारे में भी बोल सकते हैं. लोगों का कहना है कि कम से कम मोदी एक ट्वीट तो कर ही सकते हैं.
जरूर कर सकते हैं, पर पहले थोड़ा ठंडे दिमाग से सोचिए. मनमोहन सिंह ने सही काम किया था और अब मोदी सही काम कर रहे हैं. एक प्रधानमंत्री को इस तरह के भयंकर अपराधों के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहिए. कम से कम भारत में तो नहीं.
वो बेल्जियम की आग के बारे में बोल सकते हैं क्योंकि उस बात के लिए वो सिर्फ यही कर सकते हैं, सहानुभूति दिखाना. भारत में उन्हें काफी ज्यादा करना होगा और उन्हें वो काम करते रहने होंगे न कि ट्वीट करने में समय बर्बाद करना होगा.
बोलना विपक्ष और सोशल मीडिया का काम है. न्याय की मांग करना लोगों का काम है और ये जितना ज्यादा होगा उतना बेहतर होगा. न्याय देना न्यायपालिका का काम है. वो बेहतर है कि न्याय देने का काम करे और न सिर्फ बयानबाज़ी में लगे. सरकार का काम उसके लिए बोलता है.
किस पैमाने पर विरोध हो रहा है ये बिलकुल तय नहीं कर सकता कि प्रधानमंत्री बोलेंगे या नहीं. कठुआ रेप मामला बद से बद्तर होता जा रहा है. जो राजनीति इस...
आखिर क्यों प्रधानमंत्री मोदी कठुआ और उन्नाव रेप मामलों में शांत हैं? सोशल मीडिया की हलचल बढ़ रही है. इतनी कि इस तथाकथित 'शांति' के खिलाफ आवाजें बहरा बना रही हैं. ऐसा आखिरी बार तब हुआ था जब मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री के लिए मौन मोहन सिंह का उपनाम भी दे चुके थे. अब मामला उलट गया है और नरेंद्र मोदी अब मौन मोदी कहला रहे हैं.
कितने ताकतवर हैं मोदी के मौन को लेकर दिए जा रहे तर्क :
अगर मोदी बेल्जियम की आग और नेपाल की दुर्घटना के बारे में बोल सकते हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि निंदा के कुछ शब्द अपने देश में हो रहे इन भयंकर अपराधों के बारे में भी बोल सकते हैं. लोगों का कहना है कि कम से कम मोदी एक ट्वीट तो कर ही सकते हैं.
जरूर कर सकते हैं, पर पहले थोड़ा ठंडे दिमाग से सोचिए. मनमोहन सिंह ने सही काम किया था और अब मोदी सही काम कर रहे हैं. एक प्रधानमंत्री को इस तरह के भयंकर अपराधों के बारे में कुछ नहीं बोलना चाहिए. कम से कम भारत में तो नहीं.
वो बेल्जियम की आग के बारे में बोल सकते हैं क्योंकि उस बात के लिए वो सिर्फ यही कर सकते हैं, सहानुभूति दिखाना. भारत में उन्हें काफी ज्यादा करना होगा और उन्हें वो काम करते रहने होंगे न कि ट्वीट करने में समय बर्बाद करना होगा.
बोलना विपक्ष और सोशल मीडिया का काम है. न्याय की मांग करना लोगों का काम है और ये जितना ज्यादा होगा उतना बेहतर होगा. न्याय देना न्यायपालिका का काम है. वो बेहतर है कि न्याय देने का काम करे और न सिर्फ बयानबाज़ी में लगे. सरकार का काम उसके लिए बोलता है.
किस पैमाने पर विरोध हो रहा है ये बिलकुल तय नहीं कर सकता कि प्रधानमंत्री बोलेंगे या नहीं. कठुआ रेप मामला बद से बद्तर होता जा रहा है. जो राजनीति इस मामले पर की जा रही है वो इतनी बुरी है कि इंसानियत शर्मसार हो रही है. पर क्या ये ऐसी है कि इसके लिए प्रधानमंत्री का स्टेटमेंट चाहिए या फिर उनके लेवल का दख्ल होना जरूरी है?
हमें चिंता इस बात की करनी चाहिए कि उस दख्ल के कोई सबूत नहीं दिख रहे हैं. भाजपा नेता अपनी बयानबाज़ी से बाज़ नहीं आ रहे और घृणित कर देने वाली बातें बोल रहे हैं. स्थानीय वकील न्याय के लिए भी फिरौती मांग रहे हैं. उनकी पार्टी जम्मू-कश्मीर की सरकार के साथ शासन कर रही है. जम्मू के हिंदू अपनी सरकार पर ही भरोसा नहीं कर रहे. वहां के हिंदू दोषियों के साथ खड़े हैं.
ये वो बातें हैं जिनपर एक भारतीय को चिंता करनी चाहिए. न कि ये कि किसी ने कुछ बोला या नहीं. वो बोल नहीं रहे हैं ये अच्छा है उनके लिए. पिछले साल भारत में 25000 महिलाओं का रेप हुआ. उनमें से कोई भी रेप वाजिब नहीं कहा जा सकता. सभी रेप बुरे और भयंकर थे. क्योंकि हमारे आस-पास होने वाले घृणा योग्य अपराधों के बाद भी हम मौन हैं तो नाबालिगों के रेप से ही कम से कम हमारी भावनाएं आहत हों.
पिछले एक हफ्ते के अखबार देखिए, भारत में रेप की समस्या है. एक बेंगलुरू में 4 साल की बच्ची के रेप से लेकर, बिहार में 6 साल की बच्ची के रेप और बर्बर हत्या और असम में 7 साल की बच्ची के रेप तक बहुत कुछ है. किस-किस के लिए प्रधानमंत्री अपनी चुप्पी छोड़ेंगे. सिर्फ उस रेप के लिए जिसने पूरे देश और मीडिया का ध्यान अपने अपनी ओर खींचा?
ये बहुत भेदभाव वाली बात हो जाएगी अगर प्रधानमंत्री एक के लिए बोलेंगे और अगली के लिए चुप हो जाएंगे. इसके अलावा, प्रधानमंत्री के ऑफिस पर ये दबाव बढ़ जाएगा कि वो हर रेप पीड़िता के बारे में बोलें और साथ ही साथ ये दबाव भी आ जाएगा कि बाकी अपराधों पर भी कमेंट करे. ये बड़ा देश है क्या प्रधानमंत्री के पास इतना समय है कि वो हर अपराध पर टिप्पणीं करें.
सोशल मीडिया के जमाने में ये मदद नहीं करेगा. प्रधानमंत्री के काम को इतना बड़ा होना होगा कि सोशल मीडिया पर उनकी चुप्पी की ये हलचल अपनी मौत ही मर जाए.
ये भी पढ़ें-
नाबालिग से रेप के मामले में 6 महीने के भीतर फांसी की सज़ा क्यों जरूरी है...
ये उपवास था या बलात्कार की चीख के बीच बजती बेवक्त की शहनाई ?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.