दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी ऑडिटोरियम में 16 नवंबर से साहित्य आजतक शुरू हो गया है और ये तीन दिन तक चलने वाला कार्यक्रम कई साहित्यकारों को साथ लाएगा. इस कार्यक्रम में दो मंच हैं एक दस्तक दरबार और दूसरा हल्ला बोल. साहित्य आजतक 2018 के दूसरे अहम मंच हल्ला बोल के दूसरे सत्र 'कविता के बहाने से' में कई कविताएं सुनाई गईं, लेकिन इन कविताओं के माध्यम से देश में चल रहे एक बेहद गंभीर मुद्दे Metoo पर कटाक्ष किया गया. ये कविता थी अरुण देव की जिन्होंने बेहद सरल शब्दों में ये बताया कि आखिर Metoo को किस नजरिए से देखते हैं लोग और कैसे कविता के माध्यम से वाकई किसी अहम मुद्दे को उठाया जा सकता है.
अरुण देव की कविता का अंश..
मिलना किसी स्त्री की तरह.. तुम जो भेजते हो मैसेज बॉक्स में गुलदस्ते,टैग किए रहते हो दिल फरेब नग्मों में मुझे,घड़ी-घड़ी बदलते हो तस्वीरें, इज़हार की कोमलता से झुकी हुईं,पोस्ट करते हो कविताएं, प्रेम के शुरूआती दिनों की उन्माद से भरी, मीठी,मुझे बताओ, स्त्री को तुम देखते कैसे हो,कभी देखी है उसकी आज़ादी,उसका इंकार सुना है कभी....
पूरी कविता यहां सुनें-
इस कविता ने किसी न किसी तरह वो बात कह दी जो शायद आजकल लोग समझ नहीं पा रहे. सबसे अहम सवाल जो कविता करती है वो ये कि आखिर पुरुष स्त्री को कैसे देखता है. न ही पुरुष उसकी आजादी देखता है, न ही उसका इंकार सुनने की कोशिश करता है, न ही ये सोचता है कि उसके मना करने पर क्या होगा.
किसी स्त्री को अकेले देखकर किसी पुरुष के मन में क्या भाव आते हैं? ये सोचने वाली बात है. अगर किसी पुरुष को देखकर सिर्फ उसकी नजरों से ही कोई महिला असहज महसूस करती है तो ये भी सोचने वाली बात है.
किसी पुरुष के...
दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी ऑडिटोरियम में 16 नवंबर से साहित्य आजतक शुरू हो गया है और ये तीन दिन तक चलने वाला कार्यक्रम कई साहित्यकारों को साथ लाएगा. इस कार्यक्रम में दो मंच हैं एक दस्तक दरबार और दूसरा हल्ला बोल. साहित्य आजतक 2018 के दूसरे अहम मंच हल्ला बोल के दूसरे सत्र 'कविता के बहाने से' में कई कविताएं सुनाई गईं, लेकिन इन कविताओं के माध्यम से देश में चल रहे एक बेहद गंभीर मुद्दे Metoo पर कटाक्ष किया गया. ये कविता थी अरुण देव की जिन्होंने बेहद सरल शब्दों में ये बताया कि आखिर Metoo को किस नजरिए से देखते हैं लोग और कैसे कविता के माध्यम से वाकई किसी अहम मुद्दे को उठाया जा सकता है.
अरुण देव की कविता का अंश..
मिलना किसी स्त्री की तरह.. तुम जो भेजते हो मैसेज बॉक्स में गुलदस्ते,टैग किए रहते हो दिल फरेब नग्मों में मुझे,घड़ी-घड़ी बदलते हो तस्वीरें, इज़हार की कोमलता से झुकी हुईं,पोस्ट करते हो कविताएं, प्रेम के शुरूआती दिनों की उन्माद से भरी, मीठी,मुझे बताओ, स्त्री को तुम देखते कैसे हो,कभी देखी है उसकी आज़ादी,उसका इंकार सुना है कभी....
पूरी कविता यहां सुनें-
इस कविता ने किसी न किसी तरह वो बात कह दी जो शायद आजकल लोग समझ नहीं पा रहे. सबसे अहम सवाल जो कविता करती है वो ये कि आखिर पुरुष स्त्री को कैसे देखता है. न ही पुरुष उसकी आजादी देखता है, न ही उसका इंकार सुनने की कोशिश करता है, न ही ये सोचता है कि उसके मना करने पर क्या होगा.
किसी स्त्री को अकेले देखकर किसी पुरुष के मन में क्या भाव आते हैं? ये सोचने वाली बात है. अगर किसी पुरुष को देखकर सिर्फ उसकी नजरों से ही कोई महिला असहज महसूस करती है तो ये भी सोचने वाली बात है.
किसी पुरुष के स्वामित्व को देखते हुए आखिर कैसे स्त्री खुद को बचाने की कोशिश करती है.
मीटू सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. बल्कि ये तो किचन तक पहुंच चुका है. क्या वाकई किसी स्त्री की रुचि किसी पुरुष की प्रोफाइल फोटो में होती है? नहीं ऐसा नहीं है.
कविता ने बेहद सरल शब्दों में जो कटाक्ष किया है समाज पर वो सुनने लायक है. अरुण देव की कविता में उन्होंने बताया है कि कैसे अगर बराबरी की बात की जाए तो पुरुष अपना स्वामित्व दिखाने लगते हैं और उन्हें लगता है कि वो सही नहीं हैं. वो अपनी मां को देखकर बड़े हुए हैं जो सबकी बात मानती है और अपनी बहनों को देखा होता है जिन्हें हमेशा से दबाया गया है तो पुरुष वही सब कुछ सच समझने लगते हैं और वही सब कुछ उन्हें लगता है कि हर स्त्री करती है, लेकिन ऐसा नहीं है.
ऐसे पुरुषों को हर रिश्ता मिलता है, लेकिन असल में प्यार नहीं मिलता और यही तो दिक्कत है क्योंकि हर रिश्ते की विवश्ता को प्यार समझ लिया जाता है. इस कविता के माध्यम से ये समझना जरूरी है कि क्या वाकई किसी इंसान के लिए स्त्री को समझना मुश्किल है या फिर उसने अभी तक जो देखा है सिर्फ वही समझा है. उसने स्त्री को पाने की कोशिश तो की है, लेकिन उसका प्रेम पाने की कोशिश नहीं.
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