अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) को पीढ़ी दर पीढ़ी लड़कियों ने जिया है. लड़कियां हमेशा ही उनसे प्रभावित हुईं हैं और अपने अंदर की छिपी अमृता को तलाशने की कोशिश करती रहीं हैं. ये सिलसिला अभी थमा नहीं है क्योंकि साल 2021 की लड़कियां भी अमृता की तलाश में भटकती हैं. मेरा मतलब उनकी किताबों से नहीं है, किताबें तो आजकल ऑनलाइन भी मिल जाती है. असल में आजाद ख्यालों वाली लड़कियां अमृता प्रीतम को खुद में ही खोजती हैं.
ऐसे तो हमेशा अमृता प्रीतम की चर्चा गीतकार-शायर साहिर लुधियानवी और चित्रकार इमरोज़ से जुड़े किस्सों के लिए होती रहती है लेकिन इससे अलावा अमृता प्रीतम की असली पहचान उनकी कलम से है. वो कहानियां जिसमें अमृता स्त्री मन को बेहद खूबसूरती से टटोलती थीं...जिसमें औरत की टीस है, जिसमें औरत के बराबरी की बातें हैं, जिसमें भले ही औरत की मजबूरी है लेकिन वह बेचारी नहीं है.
कभी किसी ने कुछ जोड़ दिया तो कभी किसी ने घटा दिया. हां यह सच है कि वे प्रेम में थी. एक ऐसा प्रेम जो उनके चेहरे के भाव को शांत रखता था, जो अगल होकर भी उन्हें पूरा रखता था. लोग कहते हैं कि आज के जमाने में लोग प्यार नहीं करते लेकिन प्रेम किसी भी साल में किया गया हो वह होता तो प्यार ही है. बशर्ते वह प्यार होना चाहिए कोई बाहरी आकर्षण नहीं. अगर कोई लड़की प्रेम में डूबी हो तो उसे अमृता प्रीतम से प्रेम होना स्वाभाविक है. प्रेम कोई कठिन बनाने वाली आदत नहीं बल्कि सरल सी बात है, जिसे जितना आसान बनाना चाहे बनाया जा सकता है.
वे लिखती हैं- ‘मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ एक किसी “पूरे मर्द“ या “पूरी औरत” के बीच घट सकती है.’ पूरी औरत से उनका मतलब ‘वह औरत जो आर्थिक तौर पर, जज्बाती तौर पर और जहनी...
अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) को पीढ़ी दर पीढ़ी लड़कियों ने जिया है. लड़कियां हमेशा ही उनसे प्रभावित हुईं हैं और अपने अंदर की छिपी अमृता को तलाशने की कोशिश करती रहीं हैं. ये सिलसिला अभी थमा नहीं है क्योंकि साल 2021 की लड़कियां भी अमृता की तलाश में भटकती हैं. मेरा मतलब उनकी किताबों से नहीं है, किताबें तो आजकल ऑनलाइन भी मिल जाती है. असल में आजाद ख्यालों वाली लड़कियां अमृता प्रीतम को खुद में ही खोजती हैं.
ऐसे तो हमेशा अमृता प्रीतम की चर्चा गीतकार-शायर साहिर लुधियानवी और चित्रकार इमरोज़ से जुड़े किस्सों के लिए होती रहती है लेकिन इससे अलावा अमृता प्रीतम की असली पहचान उनकी कलम से है. वो कहानियां जिसमें अमृता स्त्री मन को बेहद खूबसूरती से टटोलती थीं...जिसमें औरत की टीस है, जिसमें औरत के बराबरी की बातें हैं, जिसमें भले ही औरत की मजबूरी है लेकिन वह बेचारी नहीं है.
कभी किसी ने कुछ जोड़ दिया तो कभी किसी ने घटा दिया. हां यह सच है कि वे प्रेम में थी. एक ऐसा प्रेम जो उनके चेहरे के भाव को शांत रखता था, जो अगल होकर भी उन्हें पूरा रखता था. लोग कहते हैं कि आज के जमाने में लोग प्यार नहीं करते लेकिन प्रेम किसी भी साल में किया गया हो वह होता तो प्यार ही है. बशर्ते वह प्यार होना चाहिए कोई बाहरी आकर्षण नहीं. अगर कोई लड़की प्रेम में डूबी हो तो उसे अमृता प्रीतम से प्रेम होना स्वाभाविक है. प्रेम कोई कठिन बनाने वाली आदत नहीं बल्कि सरल सी बात है, जिसे जितना आसान बनाना चाहे बनाया जा सकता है.
वे लिखती हैं- ‘मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ एक किसी “पूरे मर्द“ या “पूरी औरत” के बीच घट सकती है.’ पूरी औरत से उनका मतलब ‘वह औरत जो आर्थिक तौर पर, जज्बाती तौर पर और जहनी तौर पर स्वतंत्र हो. आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नहीं जा सकती... न ही यह पहनी जा सकती है, यह वजूद की मिट्टी से उगती है.’ अमृता ने प्यार की एक अलग ही परभाषा दी, उन्हें समझकर समझ आता है कि प्यार में डूबी स्त्री की मूरत कैसी हो सकती है.
अमृता प्रीतम ने आत्मकथा 'काला गुलाब' में अपनी जिंदगी से जुड़े कई अनोखे अनुभव साझा किए हैं. साथ ही यह महिलाओं को प्यार और शादी जैसे मामलों में खुलकर अपनी बात रखने के लिए प्रेरित करता है.
लड़कियां, जब भी उनकी बातें सुनती हैं, उन्हें पढ़ती हैं तो लगता है कि क्या यह उनकी कहानी से मिलती जुलती है. अमृता प्रीतम जमाने से आगे की सोच रखती थीं. इसलिए तो उनकी लिखी कहानियां, कविताएं आज के समय पर भी सटीक बैठती हैं.
आधुनिकता ने भले घरों में घर कर लिया लेकिन समाज में महिलाओं की हालात क्या है यह आप महिला अपराध से जुड़े आंकडों को देखकर समझ जाएंगे. अपनी कहानियों में अमृता ने स्त्री किरदारों को दया के पात्र के रूप में नहीं दर्शाया है.
वे बहुत आजाद ख्याल की महिला थीं. उन्होंने जो जिया उसे ही लिखा और जो लिखा उसे ही जिया. लड़कियां उनके जिंदगी जीने के तरीके के वजह से, उनकी प्रगतिशी सोच और उनके प्रेम करने के तरीके की वजह से उनसे आकर्षित होती हैं उन्हें आदर्श मानती हैं. हालांकि उनकी आलोचना करने वालों की भी कमी नहीं थी लेकिन इसका उन्होंने खुद पर असर नहीं होने दिया.
उस जमाने में जब अमृता ने इमरोज के साथ रहने का फैसला किया तब उन्हें समाज ने कई तानों से नवाजा. साल 1964 में जब अमृता-इमरोज़ एक साथ रहने लगे तो उन पर समाज के नियम तोड़ने के उलाहने दिए गए. वह ऐसा दौर था जब एक औरत और मर्द का बिना शादी किए साथ रहना अच्छा नहीं माना जाता था. इस सोच को बदलने की नींव दोनों ने रखी थी. बिना किसी की परवाह किए क्योंकि अमृता अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीती थीं. यह उऩका प्रभाव ही था कि तब लड़कियां तकिए के नीचे रसीदी टिकट रख कर सोती थीं और आज गूगल पर उनकी लिखी बातों को खोजकर पढ़ती हैं.
उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में कभी कुछ नहीं छिपाया क्योंकि वह खुद को अपना चुकी थीं. उनके व्यक्तित्व का जादू लडकियों के सिर चढ़कर बोलता है. उस जमाने में लड़कियों ने उनका स्टाइल तक को कॉपी किया था और आज भी लड़कियां उनके लिए पागल हैं. उनकी प्रेम कहानी की प्रेमिका को खुद में देखती हैं. उनके खुलकर जिंदगी जीने के तरीके से प्रभावित होती हैं.
उनकी शादी सफल नहीं हुई तो उन्होंने पति से तलाक लेकर अलग रहने का फैसला किया. उन्हें साहिर लुधियानवी से प्रेम हुआ लेकिन दोनों सदा के लिए एक नहीं हो पाए. इसके बाद उनकी जिंदगी में इमरोज आए जिन्हें अमृता से प्रेम हुआ. वे अक्सर साहिर का नाम इमरोज के पीठ पर अपनी उंगलियों से लिखती थीं, इमरोज का पता होता था लेकिन वे इस बात को भी जानते थे कि अमृता ने साहिर से तो मैंने अमृता से प्यार किया है. वहीं साहिर की गीतों में भी उनके लिए प्रेम झलकता है.
अमृता का जन्म 31 अगस्त 1929 में गुंजरावाला में हुआ. अब ये जगह पाकिस्तान में है. सोलह साल में पहली कविता संग्रह ‘अमृत लहरें’ छप गया. इसके बाद प्रीतम सिंह के साथ इनकी शादी हुई और वे अमृता प्रीतम बन गईं. साहिर लुधियानवी से अमृता की पहली मुलाक़ात 1944 में हुई जब वे एक मुशायरे में शिरकत कर रही थीं.
बचपन में मां की मौत हो गई. उन्होंने बंटवारे का दर्द भी सहा. अपनी शादी में वे बरसों घुटीं. साहिर से प्रेम किया और दूरी नसीब हुई. आखिर में जाकर उन्हें इमरोज़ का साथ मिला.अमृता को 1947 में लाहौर छोड़क भारत आना पड़ा.
इन्होंने बंटवारे पर एक कविता 'अज्ज आखां वारिस शाह नूँ' लिखी. यह कविता यह बताती है कि सरहद के दोनों ओर उजड़े लोगों की टीस ऐक जैसी है यानी दर्द की कोई सरहद नहीं होती. जब वे लाहौर से भारत आईं तो गर्भवती थीं. उस समय सरहद पर हर तरफ बर्बादी का मंज़र था. कागज पर कविता के रूप में अमृता ने उन तमाम औरतों के दर्द को बयान किया था जो बंटवारे की हिंसा में मारी गईं, जिनका बलात्कार किया गया, जिनके बच्चे उनकी आंखों के सामने मार दिए गए.
लड़कियां इनकी दिवानी है क्योंकि अमृता ने अपनी कलम से औरत को आवाज देने का काम किया है. अमृता प्रीतम ने एक पुराने इंटरव्यू में कहा था "कोई भी लड़की, हिंदू हो या मुस्लिम, अपने ठिकाने पहुंच गई तो समझना कि 'पूरो' की आत्मा ठिकाने पहुंच गई." दरअसल ‘पूरो’ अमृता प्रीतम की किताब पिंजर का किरदार है. जिस पर हिंदी फिल्म भी बनी है. फिल्म में पूरो का रोल उर्मिला मातोंडकर ने निभाया है.
अमृुता अपनी कहानियां में औरत और मर्द के रिश्तों को औरत के नज़रिए से टोटलती रहीं. उनके उपन्यास 'धरती, सागर ते सीपियां' एक ऐसी लड़की की कहानी है जो बिना शर्त प्यार करती है लेकिन जब सामने वाला प्यार पर शर्त लगाने की कोशिश करता है तो अपनी मोहब्बत को बोझ न बनने देने का रास्ता भी अपने लिए चुन लेती है. इस पर भी 70 के दशक में फिल्म बनी है, यह किरदार शाबना आजमी वे निभाया है.
एक बार अमृता ने दोस्त ने उनसे पूछा था कि तुम घर से बाहर क्यों नहीं निकलती, तुम लोग दिन भर घर में करते क्यो हो- तब उन्होंने हंसकर जवाब दिया था गल्लां...जब वो रात में लिखतीं तो इमरोज उनके लिए रात के समय चुपचाप एक कप चाय बनाकर रख जाते थे और उन्हें पता भी नहीं चलता था. बिना शर्त, बिना रोक-टोक औऱ बिना स्वार्थ के दोनों का प्यार अमर हो गया. कोई भी महिला अपनी प्रेम कहानी में ये बातें चाहती हैं, दिखावे से दूर एक वो एहसास को इसे पूर्ण बनाता हो, दोनों के बीच वो सामजस्य जिसे कुछ कहने के लिए बोलने की जरूरत ना पड़े.
उन्होंने अपनी आत्मकथा 'रसीदी टिकट' में साहिर लुधियानवी से जुड़े कई किस्से भी हैं. वो खिलकर लिखती हैं कि "साहिर चुपचाप मेरे कमरे में सिगरेट पिया करता. आधी पीने के बाद सिगरेट बुझा देता और नई सिगरेट सुलगा लेता. जब वो जाता तो कमरे में उसकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती. मैं उन सिगरेट के बटों को संभाल कर रखतीं और अकेले में उन बटों को दोबारा सुलगाती. जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि मैं साहिर के हाथों को छू रही हूं. इस तरह मुझे सिगरेट पीने की लत लगी." असल में साहिर ने भी ताउम्र किसी से शादी नहीं की.
इमरोज ने अमृता से कहा था कि तू ही मेरा समाज है. जिनके साथ वह बिना शादी किए एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहीं. इस बारे में जब समाज ने अमृता से नियम तोड़ने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘हम दोनों ने प्रेम के बंधन को और मजबूत किया है. जब शादी का आधार ही प्रेम है तो हमने कौन सा सामाजिक नियम या बंधन तोड़ा है? हमने तन, मन, कर्म और वचन के साथ निभाया है, जो शायद बहुत से दूसरे जोड़े नहीं कर पाते. हमने हर मुश्किल का सामना किया है, इकट्ठे और पूरी सच्चाई से इस रिश्ते को जिया है.’
अमृता ने 100 से ज्यादा किताबें लिखीं. वे पंजाब की सबसे पड़ी कवियित्री हैं. उन्हें हिंदी भाषी भी बहुत प्रेम करते हैं. अमृता को ऐसे तो कई सारे अवार्ड मिले. इसमें 1981 भारतीय ज्ञानपीठ और 2005 में मिला भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण भी शामिल हैं लेकिन उनका सबसे बड़ा अवार्ड तो लोगों का प्यार है जो कभी खत्म नहीं होने वाला है. उस जमाने में भले लोगों ने उन्हें जली-कटाई सुनाई हो और समझा नहीं हो लेकिन आज की युवा पीढ़़ी भी उन्हें आदर्श मानती है.
अमृता ने अपने किरदारों को दावेदारी के साथ समाज में पेश किया. जब भी बात प्रेम, आजादी एहसास और स्त्री की होगी तो अमृता प्रीतम का नाम जरूर लिया जाएगा. वो कल भी लोकप्रिय थीं, आज भी हैं और आगे भी रहेंगी. लड़कियां अपने एहसासों को, अपनी भावनाओं को उनमें तलाशती रहेंगीा...लड़कियों को लगता है कि अमृता प्रीतम ने कैसे इतने सालों पहले उनकी बातें समझ लीं...जो आज तक यह समाज नहीं समझ पाया!
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