कहते हैं जब एक औरत मां बनती है तभी वो पूरी होती है. ऐसा भारत में कहा जाता है और जिस महिला को मात्रत्व का सुख प्राप्त नहीं होता उसे अधूरी यानि बांझ करार दे दिया जाता है. खैर, जिन महिलाओं को ये सुख मिल जाता है उनकी जिंदगी कई मायनों में पूरी होती है, उनकी जिंदगी में संतान आ जाती है, डेरों खुशियां आ जाती हैं, लेकिन जिस बात को लोग नहीं समझ पाते वो ये कि नई मां की जिंदगी में साथ आता है पोस्टपार्टम (Postpartum) डिप्रेशन. यानि बच्चा पैदा होने के बाद आने वाला डिप्रेशन.
कई बार लोग ये सोचते हैं कि प्रेग्नेंसी में महिलाओं को फिजिकल समस्या बहुत होती है, लेकिन असलियत देखें तो फिजिकल के साथ-साथ मेंटल समस्याएं ज्यादा होती हैं. प्रेगान्यूज ने एक वीडियो बनाया है और इसमें पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में बात की गई है.
भारत में हर पांच में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती है. इसमें उन्हें उदासी, चिंता, थकान, सोने और खाने में तकलीफ, चिड़चिड़ाहट कुछ भी हो सकता है. कई बार ये इतना खतरनाक हो जाता है कि डिप्रेशन ठीक होने में काफी वक्त लग जाता है. मां को अपने बच्चे से लगाव ही नहीं रह जाता.
कब होता है..
पोस्टपार्टम डिप्रेशन अक्सर डिलिवरी के दो हफ्ते से लेकर एक महीने बाद तक कभी भी शुरू हो सकता है. पर एक रिसर्च कहती है कि 50% केस में ये डिलिवरी के कुछ समय पहले शुरू हो जाता है. ये कई महीनों तक चल सकता है बल्कि साल भी खींच सकता है, ये जितना लंबा होगा इसका असर उतना ही भयावह होगा. ये उन महिलाओं के साथ भी हो सकता है जिन्होंने अपना बच्चा खो दिया हो, या कोई मेडिकल समस्या हो गई हो.
मां और बच्चे दोनों पर असर....
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारण मां और बच्चे दोनों की सेहत पर काफी गहरा असर पड़ता है. मां...
कहते हैं जब एक औरत मां बनती है तभी वो पूरी होती है. ऐसा भारत में कहा जाता है और जिस महिला को मात्रत्व का सुख प्राप्त नहीं होता उसे अधूरी यानि बांझ करार दे दिया जाता है. खैर, जिन महिलाओं को ये सुख मिल जाता है उनकी जिंदगी कई मायनों में पूरी होती है, उनकी जिंदगी में संतान आ जाती है, डेरों खुशियां आ जाती हैं, लेकिन जिस बात को लोग नहीं समझ पाते वो ये कि नई मां की जिंदगी में साथ आता है पोस्टपार्टम (Postpartum) डिप्रेशन. यानि बच्चा पैदा होने के बाद आने वाला डिप्रेशन.
कई बार लोग ये सोचते हैं कि प्रेग्नेंसी में महिलाओं को फिजिकल समस्या बहुत होती है, लेकिन असलियत देखें तो फिजिकल के साथ-साथ मेंटल समस्याएं ज्यादा होती हैं. प्रेगान्यूज ने एक वीडियो बनाया है और इसमें पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बारे में बात की गई है.
भारत में हर पांच में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती है. इसमें उन्हें उदासी, चिंता, थकान, सोने और खाने में तकलीफ, चिड़चिड़ाहट कुछ भी हो सकता है. कई बार ये इतना खतरनाक हो जाता है कि डिप्रेशन ठीक होने में काफी वक्त लग जाता है. मां को अपने बच्चे से लगाव ही नहीं रह जाता.
कब होता है..
पोस्टपार्टम डिप्रेशन अक्सर डिलिवरी के दो हफ्ते से लेकर एक महीने बाद तक कभी भी शुरू हो सकता है. पर एक रिसर्च कहती है कि 50% केस में ये डिलिवरी के कुछ समय पहले शुरू हो जाता है. ये कई महीनों तक चल सकता है बल्कि साल भी खींच सकता है, ये जितना लंबा होगा इसका असर उतना ही भयावह होगा. ये उन महिलाओं के साथ भी हो सकता है जिन्होंने अपना बच्चा खो दिया हो, या कोई मेडिकल समस्या हो गई हो.
मां और बच्चे दोनों पर असर....
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कारण मां और बच्चे दोनों की सेहत पर काफी गहरा असर पड़ता है. मां और बच्चे की बॉन्डिंग बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी है और मां का लगातार चिड़चिड़ाते रहना यकीनन बच्चे के लिए खराब है. मां का डिप्रेशन उन्हें बच्चे की ठीक तरह से देखभाल करने से रोकता है. इसमें बच्चे को दूध पिलाने से लेकर उसके लगातार रोते रहने पर भी मां परेशान हो जाती है.
कई बार कुछ कहा नहीं जा सकता है, मां के लिए पोस्टपार्टम डिप्रेशन बहुत आम बात है, उसपर भारतीय परिवारों में अक्सर उससे वही सब उम्मीदें की जाती हैं जो बच्चे से पहले की जाती थीं. उसे वही सब काम करने पड़ते हैं और बच्चे को संभालना भी होता है. अगर वर्किंग महिला है तब तो समस्या और भी ज्यादा क्योंकि घर की जिम्मेदारी, बच्चे की जिम्मेदारी और साथ ही साथ ऑफिस का काम. यकीन करिए महिलाओं के लिए ये समय आसान नहीं होता, न जाने कितनी ही ऐसी महिलाएं होती हैं जो इस प्रेशर के कारण अपने और बच्चे दोनों की सेहत को नुकसान पहुंचा बैठती हैं. कई बार हालात इतने खतरनाक हो जाते हैं कि महिलाओं को लगातार रोना आता है और अपने बच्चे को रोता छोड़ महिलाएं उसपर ध्यान देना बंद कर देती हैं.
क्या करें?
- नई मां से लगातार बात करते रहें (इसका मतलब ये भी नहीं की उसे आराम न करने दें और डिस्टर्ब करें.) डिप्रेशन का सीधा साधा और आसान इलाज होता है बात करना और उनकी समस्या को समझना.
- नई मां की जिम्मेदारी थोड़ी बांटने की कोशिश करें. बच्चे की जिम्मेदारी 24*7 की होती है और सिर्फ 1-2 घंटे उसे खिला लेना और रोने पर मां को दे देना सही नहीं.
- मां को जो अच्छा लगता है वो करने की कोशिश करें. उसे घुमाने ले जाएं और ये एहसास करवाएं कि वो अकेली नहीं है इस सब में. उसके काम में हाथ बटाने की कोशिश करें. इन छोटी-छोटी बातों से एक बड़ी समस्या को हल किया जा सकता है.
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