फिर से सियाचिन ट्विटर ट्रेंड बन गया है. कारण ये है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बने हैं जो सियाचिन के दौरे पर गए हैं. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम करीब एक दशक पहले सियाचिन गए थे. महामहीम सियाचिन जाकर जवानों से मिले और उनके साथ थोड़ा समय बिताया. वो कुमार पोस्ट का दौरा भी करेंगे.
सबसे पहले अप्रैल 2004 में राष्ट्रपति कलाम ने सियाचिन का दौरा करके इतिहास बना दिया था. ये दौरा भारत-पाक सीजफायर (2003 का समझौता) के बाद किया गया था. भले ही सियाचिन में कोई युद्ध नहीं चल रहा हो तब भी ये इलाका काफी खतरनाक होता है और किसी न किसी की मृत्यु की खबरें आती ही रहती हैं.
सियाचिन को 1984 में मिलिट्री बेस बनाया गया था. तब से लेकर 2015 तक 869 सैनिक सिर्फ खराब मौसम के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. सियाचिन देश के उन कुछ गिने-चुने इलाकों में से एक है जहां न तो आसानी से पहुंचा जा सकता है और न ही दुनिया के इस सबसे ऊंचे युद्ध मैदान में जाना हर किसी के बस की बात नहीं.
क्या कोई आम इंसान जा सकता है सियाचिन?
सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का मैदान है और सर्दियों में यहां पर पारा -60 डिग्री तक गिर जाता है. आम इंसानों को पानामिक तक ही जाने की अनुमति है. ये एक छोटा सा गांव है जहां के गर्म पानी के स्त्रोत इसे आकर्षण का केंद्र बनाते हैं. हालांकि, भारतीय सेना की तरफ से सियाचिन की सालाना सिविलियन ट्रेक ऑर्गेनाइज की जाती है. ये एक ही ऐसा मौका होता है जब आम इंसान सियाचिन जा सकते हैं.
आर्मी 40 लोगों को लेकर जाती है इसमें दो पत्रकार, डिफेंस साइंटिस्ट, स्कूल कडेट और कुछ सिविलियन होते हैं. इसे एक अनोखी एडवेंचर ट्रिप कहा जाए तो गलत नहीं होगा. 2007 में इस तरह के ट्रेक की शुरुआत हुई थी....
फिर से सियाचिन ट्विटर ट्रेंड बन गया है. कारण ये है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बने हैं जो सियाचिन के दौरे पर गए हैं. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम करीब एक दशक पहले सियाचिन गए थे. महामहीम सियाचिन जाकर जवानों से मिले और उनके साथ थोड़ा समय बिताया. वो कुमार पोस्ट का दौरा भी करेंगे.
सबसे पहले अप्रैल 2004 में राष्ट्रपति कलाम ने सियाचिन का दौरा करके इतिहास बना दिया था. ये दौरा भारत-पाक सीजफायर (2003 का समझौता) के बाद किया गया था. भले ही सियाचिन में कोई युद्ध नहीं चल रहा हो तब भी ये इलाका काफी खतरनाक होता है और किसी न किसी की मृत्यु की खबरें आती ही रहती हैं.
सियाचिन को 1984 में मिलिट्री बेस बनाया गया था. तब से लेकर 2015 तक 869 सैनिक सिर्फ खराब मौसम के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. सियाचिन देश के उन कुछ गिने-चुने इलाकों में से एक है जहां न तो आसानी से पहुंचा जा सकता है और न ही दुनिया के इस सबसे ऊंचे युद्ध मैदान में जाना हर किसी के बस की बात नहीं.
क्या कोई आम इंसान जा सकता है सियाचिन?
सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्ध का मैदान है और सर्दियों में यहां पर पारा -60 डिग्री तक गिर जाता है. आम इंसानों को पानामिक तक ही जाने की अनुमति है. ये एक छोटा सा गांव है जहां के गर्म पानी के स्त्रोत इसे आकर्षण का केंद्र बनाते हैं. हालांकि, भारतीय सेना की तरफ से सियाचिन की सालाना सिविलियन ट्रेक ऑर्गेनाइज की जाती है. ये एक ही ऐसा मौका होता है जब आम इंसान सियाचिन जा सकते हैं.
आर्मी 40 लोगों को लेकर जाती है इसमें दो पत्रकार, डिफेंस साइंटिस्ट, स्कूल कडेट और कुछ सिविलियन होते हैं. इसे एक अनोखी एडवेंचर ट्रिप कहा जाए तो गलत नहीं होगा. 2007 में इस तरह के ट्रेक की शुरुआत हुई थी. सबसे पहले ग्रुप में चायल मिलिट्री स्कूल, नैशनल डिफेंस अकेडमी, नैशनल कडेट कॉर्प्स, इंडियन मिलिट्री अकेडमी, राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज और आर्मी अफसरों के घर वाले शामिल थे.
ये ट्रेक इस बात का भी सबूत देता है कि भारत कितनी ऊंचाई पर भी अपनी सीमा की रक्षा कर सकता है. जो 40 लोग चुने जाते हैं पहले उनका मेडिकल चेकअप होता है, जो अनफिट होते हैं उन्हें वापस भेज दिया जाता है. फिर दो दिन सिर्फ हवा और तापमान के साथ एडजस्ट करने के लिए दिए जाते हैं. इसके बाद 8 दिन की ट्रेनिंग होती है सियाचिन बैटल स्कूल में. ये वही जगह है जहां सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वो ग्लैशियर पर अपनी जान बचा सकें.
यहां ट्रेक में चुने गए लोगों को 8 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है और इसके बाद फिर से मेडिकल चेकअप होता है. ये चेकअप बताता है कि लोग आगे जाएंगे या नहीं. इसमें से भी कई अनफिट करार दे दिए जाते हैं.
सियाचिन में 80 के दशक में ओपी नाम का एक सैनिक लापता हो गया था. तब से ये मान्यता है कि सियाचिन के सैनिकों की रक्षा ओपी बाबा करते हैं. यहां तक कि कोई भी सैनिक ओपी बाबा को प्रणाम किए बिना आगे नहीं बढ़ता. ये 60 किलोमीटर का ट्रेक 4 दिन में खत्म होता है और 20 हज़ार फीट की उंचाई पर जाकर समझ आता है कि हमारे जाबाज़ सैनिक किस तरह की मुसीबतों का सामना करते हैं.
क्यों जरूरी है सियाचिन?
सियाचिन ग्लेशियर काराकोरम रेंज में स्थित है. हिमालय की ये जगह भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच एक त्रिभुज के आकार में है. पाकिस्तान का भाग बहुत कम है. सियाचिन भारत के लिए काफी जरूरी है क्योंकि...
- सियाचिन एकलौता भारतीय स्त्रोत है जहां इतनी बड़ी मात्रा में पीने लायक पानी उपलब्ध है.
- यहां से नुब्रा नदी निकलती है और ये आगे जाकर सिंधु (Indus) नदी से मिलती है. ये पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का सबसे बड़ा पानी का स्त्रोत है. इसपर कंट्रोल मिलने का मतलब है कि इस पानी के बल पर पाकिस्तान से समझौता किया जा सकता है.
- सबसे अहम बात ये है कि ये कश्मीर का एंट्री प्वाइंट साबित हो सकता है. चीन और पाकिस्तान दोनों तरफ के लोग कश्मीर में सियाचिन की मदद से घुस सकते हैं.
- भारत का टूरिज्म भी लेह लद्दाक से लेकर खारदुंग्ला पास तक है जो नुब्रा घाटी से 120 किलोमीटर दूर है.
क्या है विवाद?
1949 कराची संधी में सियाचिन की सीम कुछ तय नहीं थी. इस समय कई आतंकी सियाचिन के रास्ते से आ सकते थे. 1972 के शिमला एग्रिमेंट में ये बात हुई कि इंसानों के लिए NJ9842 के उत्तर में (सियाचिन) पर बसना संभव नहीं है. 1984 तक तो दोनों देशों में से किसी का भी स्थाई ठिकाना सियाचिन नहीं था. 80 के दशक में ही पाकिस्तान ने कई सैलानियों के जत्थे सियाचिन भेजे ताकि इसपर कब्जा किया जा सके.
इसके बाद भारतीय सेना की तरफ से ऑपरेशन मेघदूत किया गया 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई और कुछ सबसे ऊंची चोटियों पर कब्जा किया ताकि ऊंचाई का फायदा उठा सके.
ये स्थिती कुछ ऐसी है कि पाकिस्तानी ग्लेशियर के ऊपर नहीं आ सकते और भारतीय नीचे नहीं जा सके. मौजूदा समय में भारत सियाचिन के दो तिहाई हिस्से पर मौजूद है और तीन में से दो रास्तों पर कब्जा किया गया है जिसमें खारदुंग्ला पास शामिल है.
भारत से हर दिन 5 करोड़ रुपए सियाचिन में मौजूद सैनिकों की सुरक्षा के लिए खर्च किए जाते हैं. यहां मौसम इतना खराब रहता है कि सिर्फ गन शॉट फायर करने या मेटल का कुछ भी छूने से फ्रॉस्ट बाइट हो सकती है.
ऐसी कठिन परिस्थितियों में रहने वाले सियाचिन पर तैनात सैनिकों के लिए ये राष्ट्रपति का आना और उनसे बातें करना प्रोत्साहन का कारण बन सकता है.
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