सऊदी अरब की महिलाओं के बारे में सोचिए, तो काले हिजाब या अबाया में लिपटी महिला की तस्वीर जहन में आएगी. हां, बिल्कुल ऐसी ही तो दिखाई देती हैं, वहां की महिलाएं. पर वहां की ये महिला आपके दिमाग में बसी ऐसी तस्वीरों को धुंधला करने के लिए काफी है.
प्रिंसेस दीना अलजुहानी अब्दुलअज़ीज़ की तस्वीरें देखकर कोई भी ये नहीं कह सकता कि ये सऊदी अरब के शाही परिवार से ताल्लुक रखती हैं. इनके बारे में जो कुछ भी सुना और पढ़ा है, उससे वास्तव में आश्चर्य होता है. वजह बहुत साफ है, सऊदी अरब की महिलाओं के जीवन से जुड़े जितने भी पहलुओं से हम वाकिफ हैं, दीना उनसे बिलकुल अलग हैं.
सऊदी अरब में महिलाओं का हिजाब में रहना और पूरी तरह ढका होना जरूरी है, लेकिन दीना के लिए हिजाब में भी रियायत, क्यों भला ?
जब दीना अरब में होती हैं तो हिजाब की औपचारिकता निभाती दिखाई देती हैं, लेकिन जैसे ही वो सरहदें लांघती हैं, उनका अंदाज़ ही बदल जाता है. कपड़े पहनने से लेकर सड़क पर चलने का तरीका, सब कुछ..
आपको भी हैरानी होगी जब आप ये जानेंगे कि
- 41 साल की प्रिंसेस दीना अलजुहानी अब्दुलअज़ीज़ फैशन वर्ल्ड का एक चमकता सितारा हैं.
- वो एक स्टाइल आइकॉन हैं.
- वो D'NA नाम से अपना फैशन बिजनेस चलाती हैं.
- वो Vogue Arabia मैगज़ीन की एडिटर इन चीफ भी हैं.
- उन्हें शायद ही हिजाब या अबाया में देखा गया है.
- उनके बाल छोटे (बॉब कट) हैं.
- वो पूरी दुनिया में घूमती हैं.
- वो वेस्टर्न कपड़े पहनती हैं.
3 बच्चों की मां दीना, शायद सऊदी अरब की महिलाओं के लिए प्रेरणा हों, और सिर्फ वहीं क्यों, जिस देश में भी मुस्लिम महिलाओं के लिए पाबंदियां हो, वो दीना से प्रेरणा ले सकती हैं. आखिर शाही परिवार की कोई महिला इतनी दबंग है. दबंग इसलिए, क्योंकि जिस जगह की महिलाओं को कुछ भी करने से पहले पुरुषों की इजाज़त लेनी होती हो अगर वहां एक महिला वो सब कुछ करे जो वो करना चाहती है, तो ये वाकई तारीफ के काबिल है.
दीना की ये अदा कई सवाल खड़े करती है-
दीना का व्यक्तित्व कई सवालों को जन्म देता है. वो ये कि सऊदी अरब की एक महिला जिसके पास शाही परिवार का ठप्पा हो, पैसे हों, पॉवर हो, जो अकेले देश विदेश घूमे, तब, जबकि सऊदी अरब की बाकी महिलाएं घर के पुरुष सदस्य की मर्जी के बिना अपने शहर में भी अकेले न घूम सकती हों, तो ये बात चौंकाती है. वो सऊदी अरब के बाहर हों तो कुछ भी पहन सकती हैं, उनके लिए हिजाब जैसी कोई मजबूरी नहीं.
दीना का इतना फॉर्वर्ड होना वहां की महिलाओं के लिए मुंह चिढ़ाने जैसा ही लगता है. चूंकि वो शाही परिवार से हैं तो उन्हें छूट है, बाकियों को नहीं. सवाल ये उठता है कि अरब का कानून बाकियों के लिए अलग क्यों?
देखा जाए तो ये सिर्फ दीना नहीं बल्कि वहां की हर महिला की ख्वाहिशें होगीं, जो दीना के रूप में दिखाई दे रही हैं. वो कुछ ख्वाहिशें, आत्मनिर्भर होने की, बंदिशों और पांबिदियों के बगैर जीने की, वो सबकुछ करने की जो वो करना चाहती हैं, और सिर्फ इसीलिए नहीं कर पातीं क्योंकि देश का कानून उन्हें वो करने की इजाज़त नहीं देता.
हम ये नहीं कहते कि दीना को भी सऊदी अरब की बाकी महिलाओं जैसा हो जाना चाहिए, या वो उनकी तरह क्यों नहीं..बल्कि वो तो एक उदाहरण हैं, उनकी ख्वाहिशों का जीता जागता रूप हैं, जो पाबंदियों में जकड़ी गई हर महिला के दिल में बसती हैं. यहां उन महिलाओं का जिक्र करना भी जरूरी है जो पाबंदियों में रहने को अपनी परंपरा मानकर खुश रहती हैं और उसपर दलीलें भी देती हैं. पर सच तो ये है कि उन्हें भी अगर उनके हिस्से का आसमान मिल जाए तो वो भी उड़ना सीख लेंगी.
और इतिहास गवाह है कि जिस भी महिला ने समाज और पुरुषसत्ता को चुनौती देते हुए आगे बढ़ना चाहा, वो आगे बढ़ीं और सफल भी हुईं. ऐसे बहुत सारे नाम हैं जैसे मलाला यूसुफजई, नूर टैगोरी, सानिया मिर्जा, मधुबाला, शमशाद बेगम, मीना कुमारी और न जाने कितने ही उदाहरण मौजूद हैं, जो ये बताते हैं कि एक मुकाम हासिल होने के बाद उनपर उंगली उठाने वालों की बोलतियां बंद हो जाती हैं.
तो दीना अलजुहानी अब्दुलअज़ीज़ जैसे उदाहरण और चाहिए, जो लोगों को सोचने पर मजबूर करें, जिनपर सवाल उठें..क्योंकि सवाल उठेंगे तभी जवाब मिलेगा.
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