खबर 1:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यदि हम मानहानि को क्रिमिनल एक्ट नहीं मानेंगे तो देश में अराजकता फैल जाएगी.
खबर 2:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्राइवेसी (निजता) का अधिकार लोगों का मौलिक अधिकार नहीं है.
इस हफ्ते केंद्र सरकार के लिए अराजकता शब्द के मायने बदल गए. दरअसल बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी (Right to Privacy) जनता का मौलिक अधिकार नहीं है. वह आधार कार्ड के लिए जनता की व्यक्तिगत सूचनाएं जमा करने पर निजता के अधिकार का हनन मामले पर केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे थे. रोहतगी ने तर्क दिया कि निजता के अधिकार के नाम पर सरकार जन-कल्याण के कार्यक्रम को रद्द नहीं कर सकती है.
इसके अगले दिन गुरुवार को अटॉर्नी जेनरल मुकुल रोहतगी आईपीसी से मानहानि को अपराधिक श्रेणी से हटाए जाने के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से तर्क दे रहे थे. उनका कहना था कि जब संविधान बना था तब मानहानि को सिविल और क्रिमिनल दोनों कैटिगरी में रखा गया था. अब इंटरनेट के आ जाने के बाद मानहानि का दायरा और बढ़ गया है, ऐसे में इसे क्रिमिनल कैटिगरी से हटा देना तर्कसंगत नहीं है. दरअसल राहुल गांधी, सुब्रमनियन स्वामी और अरविंद केजरीवाल के अलावा कई लोगों ने मानहानि को अपराधिक श्रेणी से हटाने के लिए याचिका दायर की है.
सरकार के तर्क पर मैं थोड़ा कंफ्यूज हूं. जिस इंटरनेट की दुहाई देकर केंद्र सरकार मानहानि को बड़ा अपराध बता रही है, इसकी क्या गारंटी है कि आधार कार्ड का डाटा इनके पास सुरक्षित रह ही जाए? आखिर यह डाटा भी तो किसी सर्वर में ही रखे जाएंगे! कल को यह डाटा हैक कर लिए जाएं, लोगों की निजी जानकारी गलत हाथों में चली जाए. ऐसे में सरकार क्या मानहानि पर अलग राय देगी?
आखिर मानहानि के नाम पर सरकार डर किससे रही है? नेता ही नेता की मानहानि करते हैं - इस वाक्य पर शायद ही किसी को रत्ती भर भी शक होगा. डरना तो...
खबर 1:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यदि हम मानहानि को क्रिमिनल एक्ट नहीं मानेंगे तो देश में अराजकता फैल जाएगी.
खबर 2:
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्राइवेसी (निजता) का अधिकार लोगों का मौलिक अधिकार नहीं है.
इस हफ्ते केंद्र सरकार के लिए अराजकता शब्द के मायने बदल गए. दरअसल बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी (Right to Privacy) जनता का मौलिक अधिकार नहीं है. वह आधार कार्ड के लिए जनता की व्यक्तिगत सूचनाएं जमा करने पर निजता के अधिकार का हनन मामले पर केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे थे. रोहतगी ने तर्क दिया कि निजता के अधिकार के नाम पर सरकार जन-कल्याण के कार्यक्रम को रद्द नहीं कर सकती है.
इसके अगले दिन गुरुवार को अटॉर्नी जेनरल मुकुल रोहतगी आईपीसी से मानहानि को अपराधिक श्रेणी से हटाए जाने के खिलाफ केंद्र सरकार की ओर से तर्क दे रहे थे. उनका कहना था कि जब संविधान बना था तब मानहानि को सिविल और क्रिमिनल दोनों कैटिगरी में रखा गया था. अब इंटरनेट के आ जाने के बाद मानहानि का दायरा और बढ़ गया है, ऐसे में इसे क्रिमिनल कैटिगरी से हटा देना तर्कसंगत नहीं है. दरअसल राहुल गांधी, सुब्रमनियन स्वामी और अरविंद केजरीवाल के अलावा कई लोगों ने मानहानि को अपराधिक श्रेणी से हटाने के लिए याचिका दायर की है.
सरकार के तर्क पर मैं थोड़ा कंफ्यूज हूं. जिस इंटरनेट की दुहाई देकर केंद्र सरकार मानहानि को बड़ा अपराध बता रही है, इसकी क्या गारंटी है कि आधार कार्ड का डाटा इनके पास सुरक्षित रह ही जाए? आखिर यह डाटा भी तो किसी सर्वर में ही रखे जाएंगे! कल को यह डाटा हैक कर लिए जाएं, लोगों की निजी जानकारी गलत हाथों में चली जाए. ऐसे में सरकार क्या मानहानि पर अलग राय देगी?
आखिर मानहानि के नाम पर सरकार डर किससे रही है? नेता ही नेता की मानहानि करते हैं - इस वाक्य पर शायद ही किसी को रत्ती भर भी शक होगा. डरना तो जनता को चाहिए. व्यक्तिगत सूचनाओं के गलत हाथों में चले जाने से मान की हानि तो जनता की होगी. बेहतर होता अटॉर्नी जेनरल मुकुल रोहतगी दोनों मुद्दों पर अपने तर्कों की अदला-बदली कर देते. समस्या का समाधान भी हो जाता और चर्चा की गुंजाइश भी नहीं बचती.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.