इसे भारत देश की सबसे बड़ी खूबी कहा जाए, या हमारा भोलापन. अपने देश में घटने वाली घटनाओं को भूल, हम उन देशों और वहां की घटनाओं पर छाती पीटते हैं जिनसे हमारा कोई लेना देना नहीं है. कहा जा सकता है कि चीजों के प्रति हमारा गुस्सा बहुत ज्यादा सेलेक्टिव है. साथ ही हम वैश्विक मुद्दों के प्रति गुस्सा भी सिर्फ इसलिए दिखाते हैं ताकि हमारे लोग हमें प्रबल बुद्धिजीवी मान लें और हम टीवी पर आएं, अखबार में दिखें. आम बोलचाल की भाषा में कहूं तो आज हम जो भी कर रहे हैं उसके पीछे एक खास किस्म की भूख शामिल है. ये भूख है दिखने की, छपने की और सुने जाने की.
उपरोक्त कथन को आप सीरिया, मिस्र, पाकिस्तान, सऊदी अरब और विशेषकर रोहिंग्या मुसलमानों के सन्दर्भ में रखकर देखिये. बात खुद-ब-खुद शीशे की तरह साफ हो जाएगी. अपने वजूद की लड़ाई लड़ता, भारत का आम मुसलमान अपनी शिक्षा, अपनी गरीबी, अपनी पस्ताहाली, अपनी तंगहाली को भूल दुनिया भर के मुसलमानों, खासतौर से रोहिंग्या मुसलमानों पर रोए नहीं थक रहा है.
इतना पढ़ने के बाद, भले ही आप मुझे काफ़िर, जाहिल, भटका हुआ या किसी प्रकार की अन्य संज्ञा से नवाज दें. या फिर आप मुझे अलग-अलग विशेषणों से रख के पाट दें, मुझेसच में इसका कोई फर्क नहीं पड़ता. शायद मेरे आपके बीच पनप चुके सत्य का सफेद पर्दा गंदा होने के चलते धुंधला है. अब इसे अगर आप साफ और चमकदार कहना चाहें तो ये आपकी मर्जी...
इसे भारत देश की सबसे बड़ी खूबी कहा जाए, या हमारा भोलापन. अपने देश में घटने वाली घटनाओं को भूल, हम उन देशों और वहां की घटनाओं पर छाती पीटते हैं जिनसे हमारा कोई लेना देना नहीं है. कहा जा सकता है कि चीजों के प्रति हमारा गुस्सा बहुत ज्यादा सेलेक्टिव है. साथ ही हम वैश्विक मुद्दों के प्रति गुस्सा भी सिर्फ इसलिए दिखाते हैं ताकि हमारे लोग हमें प्रबल बुद्धिजीवी मान लें और हम टीवी पर आएं, अखबार में दिखें. आम बोलचाल की भाषा में कहूं तो आज हम जो भी कर रहे हैं उसके पीछे एक खास किस्म की भूख शामिल है. ये भूख है दिखने की, छपने की और सुने जाने की.
उपरोक्त कथन को आप सीरिया, मिस्र, पाकिस्तान, सऊदी अरब और विशेषकर रोहिंग्या मुसलमानों के सन्दर्भ में रखकर देखिये. बात खुद-ब-खुद शीशे की तरह साफ हो जाएगी. अपने वजूद की लड़ाई लड़ता, भारत का आम मुसलमान अपनी शिक्षा, अपनी गरीबी, अपनी पस्ताहाली, अपनी तंगहाली को भूल दुनिया भर के मुसलमानों, खासतौर से रोहिंग्या मुसलमानों पर रोए नहीं थक रहा है.
इतना पढ़ने के बाद, भले ही आप मुझे काफ़िर, जाहिल, भटका हुआ या किसी प्रकार की अन्य संज्ञा से नवाज दें. या फिर आप मुझे अलग-अलग विशेषणों से रख के पाट दें, मुझेसच में इसका कोई फर्क नहीं पड़ता. शायद मेरे आपके बीच पनप चुके सत्य का सफेद पर्दा गंदा होने के चलते धुंधला है. अब इसे अगर आप साफ और चमकदार कहना चाहें तो ये आपकी मर्जी है. यूं भी आपकी मर्जी पर सारे अधिकार आपके ही पास सुरक्षित हैं.
वोट बैंक और बांटने की राजनीति कर रहे कुछ 'सेक्युलर' संगठनों द्वारा, आज भारत के मुसलमान को इन तस्वीरों और व्हाट्स ऐप पर कुछ एडिटेड विडियो द्वारा, ये बताने का प्रयास किया जा रहा है कि 'यदि वो नहीं जागे तो जहां आज नंबर, रोहिंग्या मुसलमानों का है, तो वही कल इनका भी होगा'.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
बताया जाता है कि, रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले वो लोग हैं जो 1400 ई. के आस-पास बर्मा (आज के म्यांमार) के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे. इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे. इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था.
कहा ये भी जा सकता है कि, वैश्विक मुद्दों पर भारत के मुसलमान के जज्बाती होने के पीछे की एक सबसे बड़ी वजह 'डर' है. वो डर जो कूट-कूट के इनके दिमाग में भर दिया गया है. बहरहाल, कुछ वजहें जिनके चलते भारतीय मुसलमान को रोहिंग्या मुसलमानों पर न तो छाती पीटनी चाहिए और न ही रोना चाहिए.
आउटरेज, सेलेक्टिव न हो
ये बात ही इस आर्टिकल का सार है, यही इस आर्टिकल का बेस है. किसी चीज के प्रति यदि हम अपने गुस्से को, अपने रोष को विशेष परिस्थितियों में या फिर विशेष मौकों पर जाहिर कर रहे हैं तो इसे बस हमारा छदम व्यवहार कहा जाएगा और ये मान लिया जाएगा कि हम भीतर से लेकर बाहर तक पूर्णतः फेक हैं और वो कर रहे हैं जो हमें नहीं करना चाहिए.
ये एक तीखी और कड़वी बात है. भारत का आम मुसलमान रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले जुल्मों को जुल्म मान रहा है. मगर उसे न तो अपने देश में मरते अपने ही समुदाय के लोग दिख रहे हैं और न ही वो कश्मीरी पंडित जिन्हें उनके ही घर से बेघर कर दिया गया. यदि इस देश के मुसलमान को रोहिंग्या मुसलमानों का कटा हुआ हाथ दिख रहा है तो उन्हें असम या बंगाल के उस हिन्दू का फूटा हुआ माथा भी दिखना चाहिए जिसे अपने पत्थर से किसी बांग्लादेशी घुस बैठिये ने फोड़ा है. प्रदर्शन और विरोध के लिए इस देश में मुद्दे कम नहीं हैं. कहा ये जा सकता है कि जिस दिन भारत के अंतर्गत घूमने वाले मुद्दे खत्म हो जाएं उसी दिन भारतीय मुसलमान को अपना रुख ग्लोबल करना चाहिए.
रोहिंग्या मुसलमानों को यूएन लेगा, आप अपनी स्थिति सुधारिये
ये एक सबसे जरूरी बात है. आज हमें आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं. इन 70 सालों में हम अपने जीवन में कई विशेष उतार चड़ावों का भी अनुभव कर चुके हैं. ऐसे में भारतीय मुस्लिम यदि रोहिंग्या मुसलमानों पर हाय तौबा मचा रहा है तो पहले उसे अपनी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थिति समझनी होगी. मौजूदा वक्त में इस देश का मुसलमान अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है. भारत का मुसलमान अपनी शिक्षा, अपनी गरीबी, अपनी पस्ताहाली, अपनी तंगहाली को भूल अगर व्यर्थ की बातों और व्यर्थ के मुद्दों पर उलझा हुआ है. तो ये बात खुद इस चीज को साफ कर देती है कि अभी चीजें सुधरने में वक्त है. इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि यदि व्यक्ति भूखा है तो पहले उसे अपनी भूख शांत कर चाहिए न कि वो दूसरों के लिए रोटी जुटाने की जुगत करे.
जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं. भारत में भारतीय मुस्लिमों का रोहिंग्या मुसलमानों पर हल्ला करने की एक वजह उन मुल्लों द्वारा डाला गया वो डर भी है जिसके अनुसार यदि भारत का मुस्लिम इस पर अपना विरोध दर्ज नहीं करता है तो अगला नंबर उसका हो सकता है. ज्ञात हो कि ये बात अपने आप में सबसे बड़ा झूठ है जिसे एक विशेष प्रोपेगेंडा के तहत भारतीय मुसलमानों के दिमाग में बसाया गया है. अब समय आ गया है कि भारतीय मुस्लिमों को इस बात को बेहतर ढंग से समझ लेना चाहिए कि ये देश एक लोकतांत्रिक देश हैं एक ऐसा देश जो सभी समुदायों को साथ लेकर उनके विकास की बात करता है.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. यदि आप रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे जुल्म को इस्लाम का हनन मान रहे हैं या फिर आपका ये सोचना है कि आप इस्लाम के झंडाबरदार तब ही बन सकते हैं जब आप ऐसे मुद्दों पर 'खुल कर सामने आएं' तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है. ऐसा इसलिए क्योंकि देश में मुसलमानों के अलावा अन्य समुदायों के हितों का हनन हो रहा है और अगर आप उन समुदायों के हितों के हनन को नजरंदाज कर रहे थे तो आप एक ऐसा गुनाह कर रहे हैं जिसके लिए आपका अल्लाह आपको कभी माफ नहीं करेगा. याद रखिये इस्लाम कहता है कि जुल्म देखना और उसपर चुप रहना सबसे बड़ा गुनाह है.
कहा जा सकता है कि, कहने-सुनने, बोलने-बताने को कई सारी बातें हैं. ऐसी बातें जिन्हें हमने एक विशेष अजेंडा के तहत सिरे से खारिज कर दिया है. अंत में इतना ही कि, यदि आप दूर देश में बैठे रोहिंग्या मुसलमानों पर रो रहे हैं तो उन सभी भारतीयों पर भी रोइए. जिनके साथ रोजाना, कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए और जो पूर्णतः गलत है. साथ ही ये भी की यदि आप दूसरों की गर्दन पर लगी मैल देख रहे हैं तो आपको अपने शरीर पर लगी मैल का भी आंकलन करना चाहिए और लोगों को खुल के ये बात बतानी चाहिए कि आप इतने गंदे क्यों हैं.
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