टीवी पत्रकार के प्राण अगर किसी चीज़ में बसते हैं तो वो है पीटीसी या लाइव! पूरी खबरनवीसी का ग्लैमर ही है ये कमबख्त पीटीसी. तीन अक्षर का ये प्यारा सा शब्द दरअसल पीस टू कैमरा का इब्रीवीएशन है.
खबर शूट होने के बाद रिपोर्टर के आगे हमेशा आ खड़ा होने वाला यक्ष प्रश्न- पीटीसी क्या करें? ये तय करने में ही दिमाग का दही हो जाता है. कभी किसी को फोन, कभी कागज के टुकड़े की तलाश, जिस पर मोटी-मोटी चीज़ें लिख ली जाएं. यानी रिपोर्टर पूरा ज्ञान और ऊर्जा लगा देता है 30 सेकेंड के पीस टू कैमरा यानी पीटीसी में.
स्टोरी के मूड को देखते हुए स्वांग भी भरना पड़ता है. धार्मिक स्टोरी है तो तिलक लगाओ, कुर्ता पहनो! बाढ़ आ गई तो नदी की तेज धार में उतरो! पहाड़ में आपदा आ गई तो कोई भी रिस्क लेने से मत चूको चौहान. क्योंकि नो रिस्क नो गेन! अवार्ड ऐसी ही पीटीसी से मिलते हैं. कई बार तो दंगा हो रहा हो, रिपोर्टर जान बूझ के बीच मे कूद पड़ता है. चलते पत्थरों के बीच पीटीसी करता है. कई बार तो चैनल के दफ्तर से भी फोन आ जाते हैं पीटीसी धांसू होना चाहिए एकदम चकल्लस! और रिपोर्टर जान लगा देता है.
कई बार टेक पर टेक ले और पीटीसी मुकम्मल न हो तो कुछ टोटके भी आज़माए जाते हैं. सबसे प्रचलित है जगह बदलना! रिपोर्टर अपनी जगह से थोड़ा हिल जाता है या डायरेक्शन बदल देता है. चांद नवाब ने भी जगह बदली तभी कामयाब हुआ.
अब नाटकीयता पीटीसी का श्रृंगार बन चुकी है. नाटक नहीं तो खबर झमाझम नहीं और मसाला नहीं तो खबर पिटी. एक रिपोर्टर तो यमुना में बाढ़ की विभीषिका को नाटकीय रूप देते हुए नदी के दो फुट पानी मे घुटनों के बल बैठ गए, ये दिखाने को कि पानी सर तक आ गया है. लेकिन तभी पीछे से 10-11 साल की एक लड़की आराम से घुटनों तक पानी की धार पार कर गई. वीडियो वायरल हो गया और पीटीसी चमक गई!
हाल ही में पाकिस्तान ने बाढ़ की...
टीवी पत्रकार के प्राण अगर किसी चीज़ में बसते हैं तो वो है पीटीसी या लाइव! पूरी खबरनवीसी का ग्लैमर ही है ये कमबख्त पीटीसी. तीन अक्षर का ये प्यारा सा शब्द दरअसल पीस टू कैमरा का इब्रीवीएशन है.
खबर शूट होने के बाद रिपोर्टर के आगे हमेशा आ खड़ा होने वाला यक्ष प्रश्न- पीटीसी क्या करें? ये तय करने में ही दिमाग का दही हो जाता है. कभी किसी को फोन, कभी कागज के टुकड़े की तलाश, जिस पर मोटी-मोटी चीज़ें लिख ली जाएं. यानी रिपोर्टर पूरा ज्ञान और ऊर्जा लगा देता है 30 सेकेंड के पीस टू कैमरा यानी पीटीसी में.
स्टोरी के मूड को देखते हुए स्वांग भी भरना पड़ता है. धार्मिक स्टोरी है तो तिलक लगाओ, कुर्ता पहनो! बाढ़ आ गई तो नदी की तेज धार में उतरो! पहाड़ में आपदा आ गई तो कोई भी रिस्क लेने से मत चूको चौहान. क्योंकि नो रिस्क नो गेन! अवार्ड ऐसी ही पीटीसी से मिलते हैं. कई बार तो दंगा हो रहा हो, रिपोर्टर जान बूझ के बीच मे कूद पड़ता है. चलते पत्थरों के बीच पीटीसी करता है. कई बार तो चैनल के दफ्तर से भी फोन आ जाते हैं पीटीसी धांसू होना चाहिए एकदम चकल्लस! और रिपोर्टर जान लगा देता है.
कई बार टेक पर टेक ले और पीटीसी मुकम्मल न हो तो कुछ टोटके भी आज़माए जाते हैं. सबसे प्रचलित है जगह बदलना! रिपोर्टर अपनी जगह से थोड़ा हिल जाता है या डायरेक्शन बदल देता है. चांद नवाब ने भी जगह बदली तभी कामयाब हुआ.
अब नाटकीयता पीटीसी का श्रृंगार बन चुकी है. नाटक नहीं तो खबर झमाझम नहीं और मसाला नहीं तो खबर पिटी. एक रिपोर्टर तो यमुना में बाढ़ की विभीषिका को नाटकीय रूप देते हुए नदी के दो फुट पानी मे घुटनों के बल बैठ गए, ये दिखाने को कि पानी सर तक आ गया है. लेकिन तभी पीछे से 10-11 साल की एक लड़की आराम से घुटनों तक पानी की धार पार कर गई. वीडियो वायरल हो गया और पीटीसी चमक गई!
हाल ही में पाकिस्तान ने बाढ़ की पीटीसी कुछ इस तरह दी-
अब भई रिपोर्टर मर-खप कर पीटीसी कर भी दे, पर खबर में न लगे तो फिर महाभारत ही हुआ समझो. यानी रिपोर्टर मरता ही है लाइव और पीटीसी के लिए. लेकिन आज बात सिर्फ पीटीसी पर! लाइव के लोचे पर फिर कभी!
तो भैया पीटीसी टीवी पर चलने वाली खबरों में रिपोर्टर की एडिटोरियल टिप्पणी होती है. लेकिन असल में ये रिपोर्टर के टीवी स्क्रीन पर दिखने का बहाना है. इसी चक्कर मे चांद नवाब दर्जनों पान खा गए साहब! मुझे भी मथुरा में होली की कवरेज के दौरान भंग की तरंग वाली स्टोरी करते हुए कम से कम छह बार भांग वाली ठंडाई गटकनी पड़ी थी. कभी कोई बीच में आ जाए, कभी दोहा-श्लोक दिमाग से उतर जाए और कभी ठंडाई मुंह के बजाय बाहर गिर जाए. खैर फाइनल टेक के बाद जो दुर्दशा हुई, उसका तो अलग किस्सा है.
देखिए पान के लिए चांद नवाब की पीटीसी-
पंजाब में किसानों की स्टोरी पर पीटीसी कर रहा था. पब्लिक ने घेर लिया तो बैकग्राउंड ढक गया. उमस भरी गर्मी में लोगों ने और बदबू भर दी थी. एक पुलिस वाले के हाथ जोड़े कि इन्हें हटाकर हमारी मदद करो. लेकिन पीटीसी के दौरान अपनी गर्दन पर गर्म सांसें महसूस हुईं तो मैंने साइन ऑफ करते हुए पीछे खड़े आदमी की जांघ पर जोर से चिकोटी काटी. पीटीसी खत्म हुई तो देखा वही पुलिस कर्मी अपनी जांघ सहला रहा था. अब पीटीसी के ज़रिए टीवी पर दिखने का लोभ किसी को भी हो सकता है. यानी कुल मिलाकर पीटीसी का लोभ कभी तृप्त ना होने वाली लालसा है. एक रिपोर्टर तो पेट के निचले हिस्से में गंभीर ऑपरेशन के बावजूद नीचे तहमद बांधे और ऊपर कोट टाई पहने पीटीसी करते दिखे. पीटीसी की महिमा ही नहीं लालसा भी अपरम्पार है.
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