एंबुलेंस सेवा की कमी के कारण होने वाली समस्या की खबरें भारत में आये दिन सुर्ख़ियों में होती हैं , दूर दराज के गांव- देहातों में तो लोग इस समस्या से जूझते रहते है, भारत के महानगरों में भी लोगों को इससे दो चार होना पड़ता है. महानगरों में बढ़ते ट्रैफिक की वजह से मरीजों को सड़क मार्ग से अस्पताल पहुंचाना असंभव सा होने लगा है. जाहिर है, लोग असामयिक मौत को गले लाने को विवश हो रहे हैं और ये दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती भारत की अर्थव्यवथा के नाम पर करार तमाचा है .
हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि विभिन्न राज्यों से जुड़े राष्ट्रीय राजमार्गों 92851 हजार किमी नेशनल हाईवे में कुल 106 एम्बुलेंस तैनात किए गए हैं. ये स्थिति केवल चिंताजनक नहीं बल्कि भारत जैसे विशाल देश के लिए शर्मनाक भी है. देश में एंबुलेंस की स्थिति को लेकर पड़ताल करने पर पता चलता है कि देश में एक लाख की आबादी पर मात्र एक एंबुलेंस है जबकि सरकार कहती है कि उसकी कोशिश है कि 60 हजार की आबादी पर एक एम्बुलेंस उपलब्ध हो.
अगर हम राज्यवार स्थिति देखें तो ऐसा प्रतीत होता है की एम्बुलेंस की कमी से भारत के तमाम राज्य जूझ रहे है... कुछ बानगी देखिये
विकट समस्या
सरकारी नियम कहता है 80 हजार लोगों पर 1 एंबुलेंस होनी चाहिए. उत्तरप्रदेश में 1.16 लाख पर 1 सरकारी एम्बुलेंस हैं. महाराष्ट्र में सरकारी अस्पतालों और 108 सेवा की कुल 4456 एम्बुलेंस हैं. यह संख्या राज्य की आधी जरूरत को ही पूरा करती है. झारखण्ड में जहां 1000 एम्बुलेंस की जरूरत की जगह आधी संख्या में ही इसकी सुविधा उपलब्ध है. बिहार में 300 सरकारी एम्बुलेंस की कमी है.
भारत... एंबुलेंस सेवा की कमी के कारण होने वाली समस्या की खबरें भारत में आये दिन सुर्ख़ियों में होती हैं , दूर दराज के गांव- देहातों में तो लोग इस समस्या से जूझते रहते है, भारत के महानगरों में भी लोगों को इससे दो चार होना पड़ता है. महानगरों में बढ़ते ट्रैफिक की वजह से मरीजों को सड़क मार्ग से अस्पताल पहुंचाना असंभव सा होने लगा है. जाहिर है, लोग असामयिक मौत को गले लाने को विवश हो रहे हैं और ये दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती भारत की अर्थव्यवथा के नाम पर करार तमाचा है . हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया कि विभिन्न राज्यों से जुड़े राष्ट्रीय राजमार्गों 92851 हजार किमी नेशनल हाईवे में कुल 106 एम्बुलेंस तैनात किए गए हैं. ये स्थिति केवल चिंताजनक नहीं बल्कि भारत जैसे विशाल देश के लिए शर्मनाक भी है. देश में एंबुलेंस की स्थिति को लेकर पड़ताल करने पर पता चलता है कि देश में एक लाख की आबादी पर मात्र एक एंबुलेंस है जबकि सरकार कहती है कि उसकी कोशिश है कि 60 हजार की आबादी पर एक एम्बुलेंस उपलब्ध हो. अगर हम राज्यवार स्थिति देखें तो ऐसा प्रतीत होता है की एम्बुलेंस की कमी से भारत के तमाम राज्य जूझ रहे है... कुछ बानगी देखिये विकट समस्या सरकारी नियम कहता है 80 हजार लोगों पर 1 एंबुलेंस होनी चाहिए. उत्तरप्रदेश में 1.16 लाख पर 1 सरकारी एम्बुलेंस हैं. महाराष्ट्र में सरकारी अस्पतालों और 108 सेवा की कुल 4456 एम्बुलेंस हैं. यह संख्या राज्य की आधी जरूरत को ही पूरा करती है. झारखण्ड में जहां 1000 एम्बुलेंस की जरूरत की जगह आधी संख्या में ही इसकी सुविधा उपलब्ध है. बिहार में 300 सरकारी एम्बुलेंस की कमी है.
एक बड़ी समस्या ये भी है कि तत्काल आवश्यकता पड़ने पर एम्बुलेंस जहां 10 मिनट की रिपोर्टिंग टाइम पर पहुंचनी चाहिए वहां आधे से एक घण्टे का समय लग जाता है. इससे कई बार मरीजों की स्थिति काफी बिगड़ जाती है या फिर अस्पताल पहुचने के पहले ही उसकी मौत हो जाती है. एक आकड़े के मुताबिक देश में सड़क दुर्घटना के 49% जख्मी लोग ही एम्बुलेंस से समय पर अस्पताल पहुंच पाते हैं. कुछ नए शुरुआत असम सरकार ने 2009 में मजूली जिले में स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए बोट एंबुलेंस का इस्तेमाल शुरू किया. केरल और महाराष्ट्र में भी बोट सेवा शुरु की है. मोटर साइकिल की सुविधा छत्तीसगढ़ सरकार ने शुरू की है . तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने सैकड़ों की तादाद में टू-व्हीलर एंबुलेंस सेवाएं शुरू कर दी हैं. गुजरात ने ऑटो-एंबुलेंस सेवा शुरू की है. और डायरेक्टर जरनल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) ने देश के पहले एयर एंबुलेंस हैलिकॉप्टर को भारत में सेवा देने के लिए अनुमति दी है. यह भी पढ़ें- क्या केरल सरकार द्वारा ‘फैट टैक्स’ लगाने से सुधरेगी लोगों की सेहत? एंबुलेंस में ये सुविधाएं होना चाहिए जैसे -ऑटोमेटिक स्ट्रेचर, जीवन रक्षक दवाएं ,ब्लड प्रेशर इक्विपमेंट, स्टेथेस्कोप, दो ऑक्सीजन सिलेंडर, फर्स्ट एड बॉक्स जैसे बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम के अलावा प्रशिक्षित स्वस्थ्य कर्मी या फिर डॉक्टर भी होना चाहिए. सरकार किसी दुर्घटना जैसी आपात स्थिति में एम्बुलेंस सेवा सुगम बनाने की दिशा में निरन्तर प्रयासरत है. फिर भी 125 करोड़ जनसंख्या वाले इस देश में केवल सरकार और कुछ स्वयमसेवी संस्थओं के बूते प्रत्येक भारतीय नागरिकों को ऐसी सुविधा प्रदान करना मुमकिन नहीं है. पैसों के अभाव के अलावे भी बहुत सारी लाचारी है. लेट-लतीफी और सही नीयत का भी अभाव लगता है. इसलिए कॉर्पोरेट वर्ल्ड की भी भागीदारी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है, ताकि समाज के अंतिम व्यक्ति तक यह सुविधा सुगमता से पहुंच सके. इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |