दो पिता, दो बेटी... लेकिन कहानी अलग-अलग है. एक पिता ने कन्यादान में अपनी बेटी को लाखों रुपए दिए तो दूसरे पिता ने बेटी की विदाई के लिए गांव में हेलीकॉप्टर ही मंगवा दिए. इन दोनों पिता की ख्वाहिशों को देखकर हमें लगता है कि ये बेटियां अपने-अपने पिता की जरूर लाडली होंगी. अब इन दोनों सच्ची कहानियों को हम आपके सामने रख रहे हैं, आप खुद समझ जाएंगे कि दोनों में अंतर जरूर है?
असल में इंसान की खुशी किस बात में है वह उसकी इच्छा पर निर्भर करती है. लोगों को किस बात से सुकून मिलता है? यह हम तय नहीं कर सकते. इन दोनों कहानियों में दो पिताओं के अलग सुख का अंतर है. उन्होंने अपने जाने भर में बेटी की खुशी चाही है. हम यहां किसी को भी गलत नहीं ठहरा सकते, क्योंकि हर इंसान की ख्वाहिश अलग होती है. हर पिता का अपनी बेटी पर स्नेह दिखाने का तरीका अलग हो सकता है. सही, गलत तो समाज के लोग अपने-अपने नजरिए के हिसाब से करते हैं. जो सही लगता है उसकी तारीफ की जाती है और जो उनके देखने में गलत लगता है वे उसकी कमियां गिनाते हैं.
चलिए, सबसे पहले हम आपको अंजलि कंवर की कहानी बताते हैं. अंजलि राजस्थान बाड़मेर की रहने वाली है. इनके पिता पिता किशोर सिंह कानोड़ ने कन्यादान के रूप में इन्हें 75 लाख तोहफे में दी थी. यह पिता की तरफ से दी जाने वाली भेंट थी लेकिन बेटी ने इन रुपयों को गर्ल्स हॉस्टल बनवाने के लिए दान कर दिया. बेटी ने पिता से कहा कि आप मुझे शादी में जितना देना चाहते हैं दिल खोलकर दीजिए लेकिन मैं इन पैसों से लड़कियों की पढ़ाई के लिए छात्रावास बनवाना चाहती हूं.
जब अंजलि की शादी हो गई तब अपनी विदाई से पहले एक पत्र और पैसे महंत प्रतापपुरी महाराज को दे दिए. उस पत्र में बेटियों के लिए छात्रावास निर्माण की बात लिखी थी...
दो पिता, दो बेटी... लेकिन कहानी अलग-अलग है. एक पिता ने कन्यादान में अपनी बेटी को लाखों रुपए दिए तो दूसरे पिता ने बेटी की विदाई के लिए गांव में हेलीकॉप्टर ही मंगवा दिए. इन दोनों पिता की ख्वाहिशों को देखकर हमें लगता है कि ये बेटियां अपने-अपने पिता की जरूर लाडली होंगी. अब इन दोनों सच्ची कहानियों को हम आपके सामने रख रहे हैं, आप खुद समझ जाएंगे कि दोनों में अंतर जरूर है?
असल में इंसान की खुशी किस बात में है वह उसकी इच्छा पर निर्भर करती है. लोगों को किस बात से सुकून मिलता है? यह हम तय नहीं कर सकते. इन दोनों कहानियों में दो पिताओं के अलग सुख का अंतर है. उन्होंने अपने जाने भर में बेटी की खुशी चाही है. हम यहां किसी को भी गलत नहीं ठहरा सकते, क्योंकि हर इंसान की ख्वाहिश अलग होती है. हर पिता का अपनी बेटी पर स्नेह दिखाने का तरीका अलग हो सकता है. सही, गलत तो समाज के लोग अपने-अपने नजरिए के हिसाब से करते हैं. जो सही लगता है उसकी तारीफ की जाती है और जो उनके देखने में गलत लगता है वे उसकी कमियां गिनाते हैं.
चलिए, सबसे पहले हम आपको अंजलि कंवर की कहानी बताते हैं. अंजलि राजस्थान बाड़मेर की रहने वाली है. इनके पिता पिता किशोर सिंह कानोड़ ने कन्यादान के रूप में इन्हें 75 लाख तोहफे में दी थी. यह पिता की तरफ से दी जाने वाली भेंट थी लेकिन बेटी ने इन रुपयों को गर्ल्स हॉस्टल बनवाने के लिए दान कर दिया. बेटी ने पिता से कहा कि आप मुझे शादी में जितना देना चाहते हैं दिल खोलकर दीजिए लेकिन मैं इन पैसों से लड़कियों की पढ़ाई के लिए छात्रावास बनवाना चाहती हूं.
जब अंजलि की शादी हो गई तब अपनी विदाई से पहले एक पत्र और पैसे महंत प्रतापपुरी महाराज को दे दिए. उस पत्र में बेटियों के लिए छात्रावास निर्माण की बात लिखी थी और कन्यादान में मिले लाखों रूपए भी थे. असल में अंजलि के पिता पहले भी गर्ल्स हॉस्टल के लिए 1 करोड़ रुपए का दान कर चुके थे लेकिन अभी भी उसका निर्भाण अधूरा ही था. अंजलि चाहती थी कि उस हॉस्टल का काम पूरा हो जाए.
असल में अंजलि जब छोटी थी तो पढ़कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. पिता ने भी खूब साथ दिय़ा लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत ताने सुनने पड़े. लोगों ने तो यह भी कहा कि बेटी को कलेक्टर बनाना चाहते हो क्या? अंजलि ने स्नातक की पढ़ाई तो पूरी कर ली लेकिन यह बात उसके दिल में कहीं ना कहीं बैठ गई. अंजलि का कहना है कि वह बच्चियों की शिक्षा के लिए कुछ करना चाहती थी. पिता ने भी बेटी के इस फैसले का दिल खोलकर स्वागत किया और ब्लैंक चेक पकड़ा दिया.
बेटी को पता था कि 50 से 75 लाख के बीच में छात्रावास का काम पूरा हो जाएगा. अब इस दुल्हन की चारों तरफ चर्चा हो रही है. यह छात्रावास बाड़मेर में एनएच 68 पर बन रहा है. बहू के इस फैसले का ससुराल वालों ने भी स्वागत किया. ससुर ससुर मदन सिंह भाठी रणधा का कहना है कि मेरी बहू सच में लक्ष्मी है. सब के घर का बहू नसीब वालों को मिलती है. अंजलि ने समाज में एक उदाहरण पेश किया है.
दूसरी कहानी यूपी के प्रतापगढ़ की है. पिता विनोद सिंह ने अपनी बेटी उर्वशी सिंह की शादी को यादगार बनाने के लिए दिल खोलकर खर्च किया. पिता बचपन से ही कहते थे कि मेरी बेटी हवा में उड़कर अपने ससुराल जाएगी. इसलिए बहलोलपुर सराय सागर गांव में हेलीपेड बनाया गया. प्राइवेट कंपनी से हेलीकॉप्टर बुक किया गया. पुलिस भी सुरक्षा के लिए मुस्तैद रही. धूमधाम से शादी करने के बाद जब उर्वशी हेलीकाप्टर से ससुराल अर्जुनपुर पहुंची तो नजारा देखने लायक था. लोगों की जुबान पर इस शादी के चर्चे थे. लोग फोटो खिंचवा रहे थे. हेलीकॉप्टर से उतरती दुल्हन को देखने के लिए भीड़ जुट गई. गांव में इसतरह से शादी करना अपने आप में ही अनोखा है. गांव के लोग भी काफी उत्साहित थे. हैलीपैड पर सुबह से ही भीड़ जुट गई थी.
मतलब पिता ने अपनी लाडली के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और ख्वाहिश पूरी की. बेटी को हेलीकॉप्टर में विदा करने का पिता का सपना आखिरकार पूरा हो गया. लोग सही कहते हैं कि शादी एक बार होती है, लेकिन यह पूरी तरह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि दिखावे के लिए हम धूमधाम से शादी करते हैं या फिर साधारण तरीके से. कई लोगों का कहना है कि कुछ खास दोस्तों और परिवार वालों के साथ सिंपल तरीके से शादी करनी चाहिए ताकि दिखावे के नाम पर फालतू पैसा खर्च ना.
हम उन्हीं पैसों को जरूरतवाली जगह पर खर्च कर सकते हैं. शो ऑफ के नाम पर लोग लाखों रूपए खर्च कर देते हैं और बाद में पछताते हैं. एक पिता बेटी की शादी के नाम पर कर्ज में डूब जाता है और बाद में फिर चिंता में जीता रहता है. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यह काफी खास पल होता है इसलिए शादी तो यादगार ही होनी चाहिए. खैर, यह एक ऐसे बहस का मुद्दा है जो खत्म नहीं हो सकता, लेकिन यह पूरी तरह आपकी मर्जी है कि आप कैसी शादी चाहते हैं?
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