रामचरितमानस (Ramcharitmanas) ग्रंथ को आप नहीं पढ़ते हैं कोई बात नहीं. नहीं मानते हैं कोई बात नहीं, आप सम्मान नहीं करते हैं कोई बात नहीं मगर जलाने की क्या जरूरत थी? इससे क्या साबित हो जाएगा? सोचिए जो व्यक्ति रामचरितमानस को पूजता है उसके मन पर कितनी गहरी चोट लगी होगी? रामचरितमानस ग्रंथ में कई लोगों की आस्था है, वे भक्ति करते हैं. ऐसे में उन्हें बुरा तो बहुत लगा होगा. ऐसी भी क्या राजनीति कि आप इतना नीचे गिरने पर उतारु हो जाएं?
वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि, लखनऊ में ओबीसी महासभा के कुछ नेता रामचरितमानस की प्रतियों को फाड़ रहे हैं और जला रहे हैं. वे उन प्रतियों पर जूते पहने पैर रख रखे हैं. ऐसा लग रहा है कि इनके मन में ग्रंथ के प्रति कितना जहर भरा है. इन लोगों का कहना है कि वे समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के साथ हैं.
सवाल यह है कि अगर कुछ लोगों को लगता है कि ग्रंथ में उनकी जाति का अपमान किया गया है तो वे अपनी बात कहते, कानून का सहारा लेते मगर ग्रंथ को फाड़कर उसके पन्नों को जलाना गलत है. इस तरह का अधिकार उन्हें किसी ने नहीं दिया है.
सोचिए हिंदू धर्म के लोग कितने सहिष्णु हैं वरना अब तक सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता था, हिंसा फैल सकती था. यही तो सनातन धर्म की खूबसूरती है. अगर स्वामी प्रसाद के लोगों ने किसी और धर्म के साथ ऐसा किया होता तो उन्हें करारा जवाब मिल गया होता. यहां सब शांत हैं, क्योंकि लोगों को कानून पर भरोसा है.
विरोध करने में और किसी की आस्था को चोट पहुंचाने में फर्क होता है. यह भी तो किसी के धर्म का अपमान करना ही है. एक तरफ आप सम्मान की बात कर रहे हो, दूसरी तरफ खुद ही...
रामचरितमानस (Ramcharitmanas) ग्रंथ को आप नहीं पढ़ते हैं कोई बात नहीं. नहीं मानते हैं कोई बात नहीं, आप सम्मान नहीं करते हैं कोई बात नहीं मगर जलाने की क्या जरूरत थी? इससे क्या साबित हो जाएगा? सोचिए जो व्यक्ति रामचरितमानस को पूजता है उसके मन पर कितनी गहरी चोट लगी होगी? रामचरितमानस ग्रंथ में कई लोगों की आस्था है, वे भक्ति करते हैं. ऐसे में उन्हें बुरा तो बहुत लगा होगा. ऐसी भी क्या राजनीति कि आप इतना नीचे गिरने पर उतारु हो जाएं?
वायरल हुए वीडियो में देखा जा सकता है कि, लखनऊ में ओबीसी महासभा के कुछ नेता रामचरितमानस की प्रतियों को फाड़ रहे हैं और जला रहे हैं. वे उन प्रतियों पर जूते पहने पैर रख रखे हैं. ऐसा लग रहा है कि इनके मन में ग्रंथ के प्रति कितना जहर भरा है. इन लोगों का कहना है कि वे समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के साथ हैं.
सवाल यह है कि अगर कुछ लोगों को लगता है कि ग्रंथ में उनकी जाति का अपमान किया गया है तो वे अपनी बात कहते, कानून का सहारा लेते मगर ग्रंथ को फाड़कर उसके पन्नों को जलाना गलत है. इस तरह का अधिकार उन्हें किसी ने नहीं दिया है.
सोचिए हिंदू धर्म के लोग कितने सहिष्णु हैं वरना अब तक सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता था, हिंसा फैल सकती था. यही तो सनातन धर्म की खूबसूरती है. अगर स्वामी प्रसाद के लोगों ने किसी और धर्म के साथ ऐसा किया होता तो उन्हें करारा जवाब मिल गया होता. यहां सब शांत हैं, क्योंकि लोगों को कानून पर भरोसा है.
विरोध करने में और किसी की आस्था को चोट पहुंचाने में फर्क होता है. यह भी तो किसी के धर्म का अपमान करना ही है. एक तरफ आप सम्मान की बात कर रहे हो, दूसरी तरफ खुद ही दूसरों का अपनाम कर रहे हो. आप किसी धर्म का सम्मान नहीं कर सकते तो मत करिए लेकिन कम से कम अपमान तो मत करिए.
आज रामचरितमानस फाड़ने वाले लोग कल किसी अन्य धर्म के ग्रंथ के फटने पर भारत को असहिष्णु होने का आरोप मढ़कर लोगों को भड़काएंगे. इन लोगों को याद रखने की जरूरत है कि लोकतंत्र में बेअदबी की कोई जगह नहीं है.
अगर आपको रामचरितमानस पर विश्वास नहीं है तो मत करो, मन्दिर नहीं जाना है तो मत जाओ कोई फोर्स करने नहीं आ रहा है, मगर किसी ग्रंथ के पन्ने जलाना कहां से सही है? ऐसा करके आप रामचरितमानस का नहीं अपना ही अपमान कर रहे हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.