मंदसौर से संतोषजनक खबर आई है. 8 साल की बच्ची से रेप के दो आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई है. ये वही रेप केस है जिसने पूरे देश को एकजुट कर दिया था और मंदसौर से लेकर दिल्ली तक हर कोई उस बच्ची के दोषियों के लिए मौत की सज़ा की अपील कर रहा था.
दो आरोपी इरफान और आसिफ 26 जून को मंदसौर के एक स्कूल से अपने पिता का इंतज़ार कर रही बच्ची को बहला फुसला कर अपने साथ ले गए थे और उसका रेप किया था. रेप के बाद उसे टॉर्चर किया गया और गला काटकर मारने की कोशिश की गई. बेहद गंभीर हालत में अस्पताल लाई गई बच्ची को आखिर बचा लिया गया. फिर बारी आई आरोपियों के इंसाफ की. दो महीने से कम की अदालती कार्रवाई में दोनों फांसी की सजा सुना दी गई है.
ठीक चार महीने पहले यानी 21 अप्रैल 2018 से लागू POCSO act ordinance का ही ये असर है कि बच्चियों के साथ दरिंदगी कर रहे लोगों का फटाफट हिसाब हो रहा है. इस ऑर्डिनेंस में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप करने वालों को फांसी की सज़ा देने का प्रावधान बनाया गया है. Section 376DB के तहत ऐसे अपराधों की तफ्तीश 2 महीने के भीतर करने का आदेश है.
ऑर्डिनेंस की खास बातें...
- रेप की न्यूनतम सज़ा 10 साल होनी चाहिए.
- अगर 16 साल से कम उम्र की बच्ची का रेप है तो 20 साल
- अगर 12 साल से कम उम्र की बच्ची का रेप है तो 20 साल का कठिन कारावास या फिर मौत की सज़ा.
- फाइन भी इस तरह से लगाता जाए कि पीड़िता के इलाज और उसके पुनर्वास का पूरा काम हो सके.
- अगर किसी पुलिस ऑफिसर ने ये किया है तो कम से कम 10 साल की सज़ा.
- हर रेप केस की जांच-पड़ताल घटना के तीन महीने के अंदर पूरी हो जानी चाहिए.
- आरोपी...
मंदसौर से संतोषजनक खबर आई है. 8 साल की बच्ची से रेप के दो आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई है. ये वही रेप केस है जिसने पूरे देश को एकजुट कर दिया था और मंदसौर से लेकर दिल्ली तक हर कोई उस बच्ची के दोषियों के लिए मौत की सज़ा की अपील कर रहा था.
दो आरोपी इरफान और आसिफ 26 जून को मंदसौर के एक स्कूल से अपने पिता का इंतज़ार कर रही बच्ची को बहला फुसला कर अपने साथ ले गए थे और उसका रेप किया था. रेप के बाद उसे टॉर्चर किया गया और गला काटकर मारने की कोशिश की गई. बेहद गंभीर हालत में अस्पताल लाई गई बच्ची को आखिर बचा लिया गया. फिर बारी आई आरोपियों के इंसाफ की. दो महीने से कम की अदालती कार्रवाई में दोनों फांसी की सजा सुना दी गई है.
ठीक चार महीने पहले यानी 21 अप्रैल 2018 से लागू POCSO act ordinance का ही ये असर है कि बच्चियों के साथ दरिंदगी कर रहे लोगों का फटाफट हिसाब हो रहा है. इस ऑर्डिनेंस में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप करने वालों को फांसी की सज़ा देने का प्रावधान बनाया गया है. Section 376DB के तहत ऐसे अपराधों की तफ्तीश 2 महीने के भीतर करने का आदेश है.
ऑर्डिनेंस की खास बातें...
- रेप की न्यूनतम सज़ा 10 साल होनी चाहिए.
- अगर 16 साल से कम उम्र की बच्ची का रेप है तो 20 साल
- अगर 12 साल से कम उम्र की बच्ची का रेप है तो 20 साल का कठिन कारावास या फिर मौत की सज़ा.
- फाइन भी इस तरह से लगाता जाए कि पीड़िता के इलाज और उसके पुनर्वास का पूरा काम हो सके.
- अगर किसी पुलिस ऑफिसर ने ये किया है तो कम से कम 10 साल की सज़ा.
- हर रेप केस की जांच-पड़ताल घटना के तीन महीने के अंदर पूरी हो जानी चाहिए.
- आरोपी सज़ा मिलने के 6 महीने के अंदर ही अपील कर सकता है.
- अगर 16 साल से कम उम्र की लड़की का रेप हुआ है तो आरोपी को बेल नहीं मिलेगी. उसे जेल में ही रहकर केस लड़ना होगा.
एक महीने में 14 फांसी..
Pocso एक्ट में संशोधन तो अप्रैल में किया गया था और तब से लेकर अब तक कई लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी है, लेकिन अगर सिर्फ 17 जुलाई से लेकर अभी तक के डेटा को देखें तो भी 14 मामलों में आरोपियों को फांसी की सज़ा हो चुकी है. जिनमें से 11 अकेले मध्यप्रदेश के हैं.
1. सागर रेप कांड: 20 अगस्त की ही खबर है कि नाबालिग के साथ रेप करने और लड़की को जिंदा जलाकर मारने की कोशिश करने वाले 22 वर्षीय सर्वेश सेन को फांसी की सज़ा सुनाई गई है. घटना देवल गांव की है.
2. बुरहानपुर रेप कांड: मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में महिला की रेप के बाद हत्या के आरोपी को फांसी की सज़ा सुनाई गई है. ये फैसला 38 दिन में ही ये फैसला दे दिया गया.
3. कटनी रेप कांड: मध्यप्रदेश के कटनी जिले में ऑटो चालक ने एक 5 साल की बच्ची का रेप किया था. इस मामले में आरोपी राज कुमार को मौत की सज़ा सुनाई गई. इस घटना का जिक्र पीएम मोदी ने भी किया था.
4. सागर कांड: जुलाई में सागर जिले में ही हुए रेप कांड का फैसला आया. ये फैसला 46 दिन के अंदर ही आ गया था. खमरिया निवासी भगीरथ उर्फ भग्गी को मौत की सज़ा सुनाई गई. 5. दतिया कांड: 8 अगस्त को मध्य प्रदेश के ही दतिया की एक अदालत ने बच्ची के साथ रेप के दोषी को महज 3 दिन की सुनवाई के बाद मौत होने तक कैद की सजा का ऐलान किया था.
6. छतरपुर कांड: मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले की स्थानीय अदालत ने एक दो साल की बच्ची के साथ रेप करने वाले आरोपी तौहीद खान को फांसी की सज़ा सुनाई. ये खबर 7 अगस्त की है.
7. ग्वालियर कांड: ग्वालियर में भी 6 साल की बच्ची के साथ रेप कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया था. आरोपी जितेंद्र कुशवाह को 27 जुलाई को मौत की सज़ा सुनाई गई.
8. दतिया कांड: 14 अगस्त को 10 वर्षीय बच्चे का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म और हत्या के आरोपी नंद किशोर गुप्ता को मौत की सज़ा सुनाई गई थी.
9. रहली कांड: सागर जिले के रहली कांड में 10 वर्षीय लड़की के साथ 40 साल के नरेश परिहार ने दुष्कर्म किया था. उसे अदालत ने फांसी की सज़ा सुनाई.
10. जबलपुर कांड: ये अपने आप में अलग मामला है क्योंकि यहां 27 जुलाई को आरोपी राजकुमार कोल को नाबालिग से दुष्कर्म की कोशिश के मामले में ही फांसी की सज़ा सुनाई गई.
11. मंदसौर कांड: ये मामला आज का ही है जहां मंदसौर कांड के आरोपियों को सज़ा मिली है.
12. अलवर रेप कांड: राजस्थान के अलवर जिले में एससी-एसटी कोर्ट ने 7 महीने की बच्ची के साथ रेप और अपहरण के मामले में दोषी को फांसी की सज़ा सुनाई.
13. आलमपुर कांड: पंजाब के आलमपुर में जुलाई में पहली बार 6 साल की बच्ची के रेप और हत्या के आरोपी को मौत की सज़ा सुनाई गई. मामला 13 मई 2016 को दर्ज किया गया था.
14. बाड़मेर कांड: राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले की एक स्थानीय अदालत ने एक नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने के पांच साल पुराने मामले में पांच में से दो आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई.
आपकी जानकारी के लिए आपको बता दूं कि मध्यप्रदेश में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के रेप के आरोपियों को मौत की सज़ा के प्रावधान पर दिसंबर 2017 से ही मोहर लग चुकी थी. पूरे भारत में ये 4 महीने पहले हुआ है, लेकिन मध्यप्रदेश में उससे भी चार महीने पहले हो गया था. कानून बनाना और सज़ा सुनाना तो सही है. कम से कम रेप के मामलों में सज़ा सुनाई जा रही है और एक तरफ पीड़ितों को न्याय मिलने की आशा और उम्मीद है.
हर दूसरे दिन मिली फांसी की सज़ा!
एक तरह से देखा जाए तो 1 महीने में फांसी मिलने की 14 खबरें आईं हैं अलग-अलग जगह से. हो सकता है इसके अलावा भी कई केस ऐसे ही चल रहे हों. यानी अगर देखा जाए तो औसत हर दूसरे दिन फांसी की सज़ा मिली है. दोषियों को फांसी की सज़ा तो इतनी आराम से सुनाई जा रही है, लेकिन क्या फांसी मिल भी रही है लोगों को?
अगर हम इस कानून के लागू होने से पहले के कुछ आंकड़ों पर नजर डालें तो?
कानून लागू अभी हुआ है और पुराने मामले में देखें तो इस कानून को लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी उसकी तफ्तीश हो जाएगी.
1. नाबालिगों के रेप (12 साल से कम उम्र की बच्चियां) ..
NCRB के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में नाबालिगों के साथ 16863 रेप हुआ. यानी हर दिन 46 बच्चियों का रेप. यानी हर घंटे 2 और हर आधे घंटे में एक बच्ची के साथ भारत में रेप हो रहा है. इसमें 12 साल से कम उम्र की बच्चियों की संख्या 1596 थी. ये डेटा 2017 के अंत में आया था. तब से लेकर अब तक नाबालिगों और बच्चियों के साथ रेप के मामले काफी बढ़ गए हैं.
अगर इस डेटा को भी मान लिया जाए तो साल में 12 साल से कम उम्र वाली बच्चियों के रेप की घटनाएं 1596 थीं, यानी हर दिन 4 से 5 बच्चियों का रेप हुआ है.
2. कितनों को मिलती है सज़ा?
अगर सभी रेप केस की बात करें तो 2016 में NCRB के डेटा के अनुसार 38,947 मामले हुए. यानी हर दिन 107 मामले. 2014 - 2016 में पोस्को एक्ट के तहत ही 1,04,976 मामले दर्ज किए गए. हर साल इसमें लगभग 34 से 35 हजार मामले दर्ज किए गए. हालांकि, 1 लाख से ज्यादा मामलों में लगभग सवा लाख लोगों की गिरफ्तारी भी हुई, मगर इसमें 11266 लोगों को ही दोषी ठहराया गया. यानी पॉक्सो एक्ट में कन्विक्शन रेट देखें तो लगभग 12 फीसदी का ही है. डेटा कहता है कि हर 10 में से 4 रेप पीड़ित नाबालिग थे और हर 10 में से 1 बच्ची 12 साल से कम उम्र की थी. यहां भी आंकड़ा साफ बताता है कि बच्चियों के रेप के मामले में दोषियों को सज़ा कम मिली है.
यानी 100 दोषियों में से सिर्फ 12 को ही सज़ा मिलती थी और बच्चियों के मामले में ये आंकड़ा 10 ही था. अगर देखा जाए तो फांसी की सज़ा मिलने की स्पीड से लग रहा है कि यकीनन सज़ा मिलने तेज़ी आई है.
पर एक अहम सवाल अभी बाकी है..
एक बहुत अहम सवाल अभी बाकी है वो ये कि क्या फांसी की सज़ा सुनाना ही काफी है? सज़ा तो सुना दी जाती है लेकिन फांसी दी नहीं जाती. अपील हो जाती है या फिर दोषी को बेल मिल जाती है या कुछ और, लेकिन फांसी मिलती नहीं है. ये बहुत ही दिलचस्प मामला है.. भारत में क्राइम तो बढ़ रहा है, लेकिन सज़ा लगातार कम होती जा रही है. अगर फांसी की सज़ा की बात करें तो भारत में 2017 में 109 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई. 2016 में ये आंकड़ा 136 था.
पिछले साल मिली फांसी की सज़ा में से 51 सिर्फ हत्या के मामले थे और 43 मामले मर्डर और रेप के थे. दो मामले ड्रग्स से जुड़े थे. Amnesty International की रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से किसी को भी फांसी हुई नहीं. जी हां, इन्हें सिर्फ सज़ा सुनाई गई और ये अभी भी जेल में ही हैं. आखिरी बार भारत में 2015 को फांसी दी गई थी जो याकूब मेमन की फांसी थी. जो मुंबई बम धमाकों का दोषी था.
अब अंदाज़ा लगाइए दो साल में 245 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई जिसमें से एक को भी फांसी नहीं हुई.. अब बात करते हैं एक और आंकड़े की. 12 साल से कम उम्र की 1596 बच्चियों के साथ रेप 2016 में हुआ (अब ये आंकड़ा यकीनन बढ़ गया होगा. NCRB का लेटेस्ट डेटा 2016 का है). इस हिसाब से तो हर दिन 4 फांसी देनी चाहिए भारत में. पर Conviction rate की बात करते हैं. जो सिर्फ 12% है. यानी 1596 बलात्कार के मामलों में 191 दोषियों को सज़ा मिली.
फांसी देना सही है, लेकिन अपराध के मामलों में कमी क्यों नहीं आ रही इसके बारे में भी तो सोचना जरूरी है. सज़ा का प्रावधान बना देने से या फिर सज़ा सुना देने से नहीं कम होते अपराध. अपराध कम तो तब हों जब वाकई सज़ा मिले अपराधियों को. अगर रेप और मॉलेस्टेशन जैसे अपराधों पर कमी लानी है तो वाकई सिर्फ सज़ा सुनाने से नहीं बल्कि फांसी देने से लोगों में डर आएगा. कितने ही ऐसे देश हैं जहां रेप की सज़ा सिर्फ मौत होती है. भारत को भी अपराधियों के साथ सख्ती बरतनी ही पड़ेगी.
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