'अरे उसका रेप हो गया, बड़ी मॉर्डन है न ऐसा तो होना ही था.' 'कुछ कपड़े ही ऐसे पहने होंगे, छोटे कपड़े पहनेगी तो यही होगा...' ये है हमारा समाज. वो समाज जो मेरी बेटी मेरा अभिमान के फ्रेम वाली फोटो तो फेसबुक पर अपलोड कर सकता है, लेकिन किसी और की बेटी को उतनी इज्जत और प्यार नहीं दे सकता है. उसपर उंगली जरूर उठा सकता है.
किसी लड़की का रेप हो जाता है, किसी लड़की को सरेआम छेड़ा जाता है या उसकी इज्जत उछाली जाती है तो ये कहा जाता है कि उसने छोटे कपड़े पहने होंगे, लेकिन रेप तो उसका भी होता है जो फ्रॉक पहनती है, रेप तो उसका भी होता है जो साड़ी या बुर्के में होती है.
रेप को लेकर विक्टिम ब्लेमिंग की ये मानसिकता शायद समाज के मन में हमेशा से थी और रहेगी भी. शायद इसी मानसिकता से लड़ने के लिए बेल्जियम के ब्रसल्स में एक प्रदर्शिनी लगी है. ये प्रदर्शिनी रेप विक्टिम और सेक्शुअल असॉल्ट विक्टिम के कपड़ों की है. ये वो कपड़े हैं जो लड़कियों ने तब पहने थे जब उनके साथ रेप किया गया. इस प्रदर्शिनी का नाम “What were you wearing?” रखा गया है.
इस प्रदर्शिनी में पैजामा, ट्रैक सूट, यहां तक एक बच्ची की 'आई एम पोनी' कैप्शन वाली टीशर्ट भी है. ये सभी कपड़े...
'अरे उसका रेप हो गया, बड़ी मॉर्डन है न ऐसा तो होना ही था.' 'कुछ कपड़े ही ऐसे पहने होंगे, छोटे कपड़े पहनेगी तो यही होगा...' ये है हमारा समाज. वो समाज जो मेरी बेटी मेरा अभिमान के फ्रेम वाली फोटो तो फेसबुक पर अपलोड कर सकता है, लेकिन किसी और की बेटी को उतनी इज्जत और प्यार नहीं दे सकता है. उसपर उंगली जरूर उठा सकता है.
किसी लड़की का रेप हो जाता है, किसी लड़की को सरेआम छेड़ा जाता है या उसकी इज्जत उछाली जाती है तो ये कहा जाता है कि उसने छोटे कपड़े पहने होंगे, लेकिन रेप तो उसका भी होता है जो फ्रॉक पहनती है, रेप तो उसका भी होता है जो साड़ी या बुर्के में होती है.
रेप को लेकर विक्टिम ब्लेमिंग की ये मानसिकता शायद समाज के मन में हमेशा से थी और रहेगी भी. शायद इसी मानसिकता से लड़ने के लिए बेल्जियम के ब्रसल्स में एक प्रदर्शिनी लगी है. ये प्रदर्शिनी रेप विक्टिम और सेक्शुअल असॉल्ट विक्टिम के कपड़ों की है. ये वो कपड़े हैं जो लड़कियों ने तब पहने थे जब उनके साथ रेप किया गया. इस प्रदर्शिनी का नाम “What were you wearing?” रखा गया है.
इस प्रदर्शिनी में पैजामा, ट्रैक सूट, यहां तक एक बच्ची की 'आई एम पोनी' कैप्शन वाली टीशर्ट भी है. ये सभी कपड़े पूरे हैं और कोई भी ऐसा नहीं जो भड़काऊ हो. जिस संस्था ने ये प्रदर्शिनी लगाई है वो ये बताना चाहती है कि असल में रेप का कपड़ों से कोई संबंध नहीं. ये सही भी है. विदेश की बात छोड़ दीजिए भारत में ही 1.5 साल की बच्ची का जब रेप होता है तो क्या उसके कपड़ों को देखकर होता है? यूपी में 100 साल की बूढ़ी महिला का जो रेप हुआ था तो क्या वो कपड़े देखकर हुआ था? उसने तो साड़ी पहनी थी.
पाकिस्तान में 7 साल की ज़ैनब का रेप हुआ और हत्या कर उसे कचरे के ढेर में फेंक दिया गया. ज़ैनब को लेकर सोशल मीडिया पर कैंपेन भी चल रहा है. सीसीटीवी फुटेज में भी दिख रहा है कि ज़ैनब ने सलवार सूट पहना था. हर कोई ज़ैनब के लिए इंसाफ चाहता है. क्या उस छोटी बच्ची का सलवार सूट जिम्मेदार था?
हमारे देश की ही बात करें तो शायद 10% से भी कम मामलों में रेप के दोषी को सज़ा मिलती है. न जाने कितने रेप केस तो रिपोर्ट ही नहीं किए जाते. कारण शायद समाज ही है. वो समाज जो दोषी को दोष देने से पहले पीड़ित को दोष देता है. 4 साल की बच्ची को दोष देता है, 100 साल की बुढ़िया को दोष देता है, मॉर्डन होते ज़माने को दोष देता है.
रेप के लिए केवल एक और सिर्फ एक ही इंसान दोषी होता है और वो है रेपिस्ट. इसके बारे में सोचना जरूरी है और अगर अब नहीं सोचा गया तो ये समस्या इतनी विकराल हो जाएगी कि फिर इसका कोई समाधान नहीं मिलेगा.
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