अभी कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक खबर वाइरल हो रही थी. खबर थी आर्मी के जवानों द्वारा छेड़छाड़ की. बहुत से मित्र संघ आलोचक और मोदी के विरोध करने वाले लोग उस खबर को अपनी वाल पर साझा कर रहे थे ज्यादतर लोग पढ़े लिखे समझदार लोग थे. खबर थी सेना के जवानों के द्वारा कथित तौर पर एक लड़की से छेड़छाड़ की. इस खबर से स्थानीय लोगों की नाराजगी की वजह से विरोध प्रदर्शन हुए, उसमें तीन लोगों की मौतें भी हुईं. सेना के जवानों द्वारा कथित तौर पर एक छात्रा के साथ छेड़ छाड़ के विरोध में ये इस प्रदर्शन का आयोजन हंदवाड़ा में हुआ था. इसमें पहले पत्थरबाजी हुई और फिर भीड़ को काबू करने के लिए सेना को फायरिंग करनी पड़ी. इस बीच उस लड़की का वीडियो भी सामने आया है जिसमे उसने इस तरह की घटना से इंकार किया है.
खैर कुपवाड़ा में हुई फायरिंग की राज्य सरकार और सेना दोनों ही अपने अपने स्तर पर जांच कर रही है उम्मीद है दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा. लेकिन ये घटना कहीं न कहीं भारतीय सेना के मनोबल को तोड़ती है. विश्व में हमारी साख को कमजोर करती है. आज जब युद्ध सिर्फ रणक्षेत्र में ही नहीं लडे जाते राजनैतिक रूप से कूटनीतिज्ञ युद्ध भी होता है और प्रचार प्रसार के माध्यम से प्रोपगेंडा फैला कर भी आपको हराने की कोशिश की जाती है. कश्मीर का मसला भी कुछ ऐसा है जहां पाकिस्तान छल बल सभी का प्रयोग कर रहा है और ये कोई नई बात नहीं है. सेना के लिए भी इस क्षेत्र में काम करना तलवार की धार पर चलने जैसा है. कहीं भी थोड़ी सी भी चूक बहुत महंगी पड़ सकती है. भारतीय सेना वहां दिन रात सीमाओ की रक्षा अपनी जान पर खेलकर कर रही है, इसमें कोई दो राय नहीं है.
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लेकिन सेना का एक दूसरा...
अभी कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक खबर वाइरल हो रही थी. खबर थी आर्मी के जवानों द्वारा छेड़छाड़ की. बहुत से मित्र संघ आलोचक और मोदी के विरोध करने वाले लोग उस खबर को अपनी वाल पर साझा कर रहे थे ज्यादतर लोग पढ़े लिखे समझदार लोग थे. खबर थी सेना के जवानों के द्वारा कथित तौर पर एक लड़की से छेड़छाड़ की. इस खबर से स्थानीय लोगों की नाराजगी की वजह से विरोध प्रदर्शन हुए, उसमें तीन लोगों की मौतें भी हुईं. सेना के जवानों द्वारा कथित तौर पर एक छात्रा के साथ छेड़ छाड़ के विरोध में ये इस प्रदर्शन का आयोजन हंदवाड़ा में हुआ था. इसमें पहले पत्थरबाजी हुई और फिर भीड़ को काबू करने के लिए सेना को फायरिंग करनी पड़ी. इस बीच उस लड़की का वीडियो भी सामने आया है जिसमे उसने इस तरह की घटना से इंकार किया है.
खैर कुपवाड़ा में हुई फायरिंग की राज्य सरकार और सेना दोनों ही अपने अपने स्तर पर जांच कर रही है उम्मीद है दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा. लेकिन ये घटना कहीं न कहीं भारतीय सेना के मनोबल को तोड़ती है. विश्व में हमारी साख को कमजोर करती है. आज जब युद्ध सिर्फ रणक्षेत्र में ही नहीं लडे जाते राजनैतिक रूप से कूटनीतिज्ञ युद्ध भी होता है और प्रचार प्रसार के माध्यम से प्रोपगेंडा फैला कर भी आपको हराने की कोशिश की जाती है. कश्मीर का मसला भी कुछ ऐसा है जहां पाकिस्तान छल बल सभी का प्रयोग कर रहा है और ये कोई नई बात नहीं है. सेना के लिए भी इस क्षेत्र में काम करना तलवार की धार पर चलने जैसा है. कहीं भी थोड़ी सी भी चूक बहुत महंगी पड़ सकती है. भारतीय सेना वहां दिन रात सीमाओ की रक्षा अपनी जान पर खेलकर कर रही है, इसमें कोई दो राय नहीं है.
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लेकिन सेना का एक दूसरा पक्ष भी है जिसके बारे में बहुत कम लिखा पढ़ा जाता है, वो है उसका मानवीय चेहरा. जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ के दिनों में अपनी एक रिपोर्ट के दौरान बहुत बहुत से सैन्य अफसरों और जवानों को से मिलने जुलने का मौका मिला. आमतौर पर जैसा की फिल्मों से छवि बनती है गुस्सैल उम्रदराज़ और जाने क्या क्या. लेकिन भारतीय सेना की छवि इससे बिलकुल विपरीत है. शायद वहां की परिस्थितियों के हिसाब से जवानों और अफसरों को वहां तैनात किया हुआ है. ज्यादातर बहुत नेक मददगार इंसानियत से लबरेज़ गबरू युवक हैं. पंजाब हरियाणा उत्तराखंड के बहुत से जवानों से मिलने का मौका मिला जिन्होंने बाढ़ के दिनों में कश्मीर की अवाम की सेवा में अपना दिन रात एक कर दिया था. चारों तरफ कीचड भयंकर बदबू सडांध मारते शव और उन सब के बीच लेफ्टिनेंट और कर्नल रैंक के युवा अधिकारी फावड़ा उठाये न सिर्फ काम कर रहे थे बल्कि स्थानीय लोगों का भी उत्साह बढ़ा रहे थे.
जम्मू कश्मीर में आई बाढ़ के वक्त रेस्क्यू ऑपरेशन में लगी रही सेना |
सेना की ज़िंदगी चुनौतियों के साथ शानदार ज़िंदादिल तरीके से जीने का दूसरा नाम है. ना सिर्फ सैन्य अधिकारी बल्कि इनकी पत्नियों और अन्य परिवार के लोगों ने श्रीनगर में जगह जगह इनके लिए खाने पीने की व्यवस्था की. क्योंकि केंद्र की मदद मिलने में अभी भी कुछ वक़्त लगता और उमर अब्दुल्ला सरकार अभी भी उसपर राजनीति की रोटियां सेक रही थी. सेना पर दोहरा बोझ् था एक तरफ सीमापार से आतंकियो के प्रवेश को रोकना दूसरी तरफ यहां ज़िंदगी फिर से बहाल करना. सोचिये इतनी मुश्किल घडियों में भी सेना का मनोबल हिमालय से भी ऊँचा था. सोचिये रातो रात नदियों पर पुल और बेघरों को आसरा दिया. कुछ ही दिनों में बिजली पानी स्कूल सब बहाल हो गया. हर तरफ भारत माता की जय के नारे गूंज रहे थे. स्थानीय लोगों के लिए भारतीय सेना वहां किसी दोस्त की तरह हर मुश्किल घडियों में खड़ी रहती है.
बाढ़ के वक्त रेस्क्यू ऑपरेशन करते जवान |
कभी उन जवानों या अधिकारियों से बात करने का मौका मिले तो कुछ समय बात जरूर कीजियेगा. मुश्किल से 25-30 साल के है ज्यादातर. आपको हैरानी होगी उन लोगों को सुनकर. क्योंकि वो लोग नेताओं या सोशल मीडिया एक्टिविस्ट की तरह कोरी लफ़्फ़ाज़ी नहीं करते हैं. बहुत कुछ सीखने को मिलेगा इन नौजवानों से. दरअसल पाक की मंशा कामयाब नहीं हो पायी यहाँ के लोगों को भड़काने की. कश्मीर में आई बाढ़ ने सेना और लोगों को बहुत करीब ला दिया. इसके बाद जब केंद्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल हुआ तो घाटी में उम्मीद की किरण जागी कि यहाँ भी विकास का सवेरा होगा.
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यही बात अलगाववादियों और पाकिस्तान को रास नहीं आ रही. आम कश्मीरी दरअसल सिर्फ विकास चाहता है लेकिन उसकी बदकिस्मती है की वो अंतराष्ट्रीय राजनीती का शिकार है. कश्मीर में पर्यटन उद्योग तो अच्छा चल रहा है लेकिन बाँकी उद्योग धंधे खेती बाड़ी की दशा बहुत अच्छी नहीं है. अब तक जितनी भी सरकारें आईं उन्होंने सिर्फ इनकी मुसीबतों को बढाने का काम किया. क्योंकि राज्य सरकार भी चुनौतियों और समस्याओं को बरकरार रखने में ज्यादा मसरूफ रही. इन सब के बीच आम कश्मीरी की उम्मीदों और मदद का केंद्र बिंदु सिर्फ भारतीय सेना ही बचती है, क्योंकि इनसे इनका पाला रोज़ पड़ता है, दुआ सलामी होती है और कोई परेशानी होती है तो बेझिझक इन्हीं को कहते है.
सोचिए इन सैनिकों के जूनून ने बाढ़ के दिनो में रातों रात न जाने कितने ही पुल और सड़कें बनाईं. कश्मीर की ज़िन्दगी पटरी पर आने में बरसों लग सकते थे अगर सेना ने मदद का हाथ नही बढ़ाया होता. मुझे याद है रात 9 से ज्यादा हो रहे थे और मैं कुपवाड़ा के किसी ग्रामीण इलाके से गुज़र रहा था वहाँ कुछ लोगो ने हमारी कार को घेर लिया और दुसरे गांव की तरफ मोड़ा. हम सब डरे हुए थे लेकिन वहां जाने पर देखा बारिश और सर्दी मे कटे-फटे कपड़ो में बहुत से लोग हमारा इंतज़ार कर रहे थे, जिनकी शिकायतों का पुलिंदा था स्थानीय विधायक और सरकार के खिलाफ. भूखों मरने की दहलीज़ पर थे वो बेबस लोग. उन्होंने अपनी बात कही और सकुशल मैन रोड तक छोड़ आये दरअसल वहां की अवाम भी अधिकांश अमनपसंद है. धूर्त पाकिस्तान के काले सच से वाकिफ है कि कैसे पाक अधिकृत कश्मीर में अपने अधिकार और नौकरी मांगने पर मौत मिलती है या फिर आतंकी बनने का प्रशिक्षण.
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अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर जब जब पाकिस्तान को मुँह कि खानी पड़ी है तब तब वो ऐसी नापाक हरकतें करता है. अलगाववादियों और पाकिस्तान की साज़िश कोई नई नहीं है जब उसने तिल का ताड़ बनाया हो और लोगों को उकसाया हो. इससे पहले भी उसने अलगाववदियों की मदद से पत्थरबाज़ों का प्रायोजित गुट बनाया हुआ था शायद इसलिए कभी आईएसआईएस का झंडा लहराया जाता है कभी कैंपस में छात्रों को उकसाया जाता है. आज आम कश्मीरी अवाम का भारत सरकार के प्रति जो भरोसा कायम हुआ है उसकी वजह सिर्फ भारतीय सेना की दिन रात की मेहनत है जो बॉर्डर पर और राज्य में उन्होंने पिछले 7 दशकों में बनाया है. भारतीय सेना उनके दिलों पर राज करती है. आम कश्मीरी जानता है उनके ऊपर अगर कभी कोई मुसीबत आई तो उन्हें भरोसा है उनका दोस्त घर के बाहर बन्दूक लिए उसकी रक्षा में खड़ा मिलेगा. इसलिए भारतीय सेना के इस मानवीय चेहरे को भी समझना बहुत जरूरी है.
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