दिवाली की रौनक के बाद अब लोग डॉक्टरों के चक्कर लगा रहे हैं. किसी को सांस लेने में परेशानी हो रही है तो किसी का गला खराब है, किसी की आंखों में जलन है तो किसी को खांसी की शिकायत है. अब बहस करने वाले भले ही करें कि क्या सिर्फ दिवाली के पटाखों से ही प्रदूषण होता है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि दिवाली के बाद से ही दिल्ली NCR की हालत खराब है.
दिवाली के अगले दिन, दिल्ली की Air Quality 'बहुत खराब' तक पहुंच गई. वो बात और थी कि पिछले 5 सालों की तुलना में ये बेहतर हुई. लेकिन ये खुश होने वाली बात नहीं थी.
National Air Quality Index के अनुसार, दिवाली के अगले दिन यानी 28 अक्टूबर को सुबह 11 बजे वायु का स्तर 362 यानी सबसे खराब था. लेकिन एक दिन के बाद तो हालात और बिगड़ गए. दिल्ली का AQI 400 था जबकि गाजियाबाद 446 AQI के साथ आपातकालीन या 'बहुत गंभीर' स्तर पर था. जबकि शुद्ध हवा का स्तर 0-50 होता है.
सोशल मीडिया पर पटाखों से होने वाले प्रदूषण पर बहस छिड़ी. दिल्ली में ग्रीन दिवाली मनाने की मुहिम चली. लेकिन सवाल सबके मन में उठता है कि क्या दिल्ली एनसीआर की फिजा बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार सिर्फ दिवाली है?
जानते हैं वो कारण जिसकी वजह से दिल्ली और आसपास के इलाकों के ऐसे हालात हैं-
पटाखे का धुंआ
धुंआ किसी का भी हो वो हवा को खराब तो करता ही है. इसलिए इस बात से बचा तो नहीं जा सकता कि पटाखों से प्रदूषण नहीं होता. और इसीलिए 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था. केवल ग्रीन पटाखे यानी जिन पटाखों से प्रदूषण 30 प्रतिशत कम होता है वही पटाखे मान्य थे. जिसमें अनार और फुलझड़ी जलाने से कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन...
दिवाली की रौनक के बाद अब लोग डॉक्टरों के चक्कर लगा रहे हैं. किसी को सांस लेने में परेशानी हो रही है तो किसी का गला खराब है, किसी की आंखों में जलन है तो किसी को खांसी की शिकायत है. अब बहस करने वाले भले ही करें कि क्या सिर्फ दिवाली के पटाखों से ही प्रदूषण होता है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि दिवाली के बाद से ही दिल्ली NCR की हालत खराब है.
दिवाली के अगले दिन, दिल्ली की Air Quality 'बहुत खराब' तक पहुंच गई. वो बात और थी कि पिछले 5 सालों की तुलना में ये बेहतर हुई. लेकिन ये खुश होने वाली बात नहीं थी.
National Air Quality Index के अनुसार, दिवाली के अगले दिन यानी 28 अक्टूबर को सुबह 11 बजे वायु का स्तर 362 यानी सबसे खराब था. लेकिन एक दिन के बाद तो हालात और बिगड़ गए. दिल्ली का AQI 400 था जबकि गाजियाबाद 446 AQI के साथ आपातकालीन या 'बहुत गंभीर' स्तर पर था. जबकि शुद्ध हवा का स्तर 0-50 होता है.
सोशल मीडिया पर पटाखों से होने वाले प्रदूषण पर बहस छिड़ी. दिल्ली में ग्रीन दिवाली मनाने की मुहिम चली. लेकिन सवाल सबके मन में उठता है कि क्या दिल्ली एनसीआर की फिजा बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार सिर्फ दिवाली है?
जानते हैं वो कारण जिसकी वजह से दिल्ली और आसपास के इलाकों के ऐसे हालात हैं-
पटाखे का धुंआ
धुंआ किसी का भी हो वो हवा को खराब तो करता ही है. इसलिए इस बात से बचा तो नहीं जा सकता कि पटाखों से प्रदूषण नहीं होता. और इसीलिए 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था. केवल ग्रीन पटाखे यानी जिन पटाखों से प्रदूषण 30 प्रतिशत कम होता है वही पटाखे मान्य थे. जिसमें अनार और फुलझड़ी जलाने से कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन प्रतिबंध के बावजूद भी दिल्ली एनसीआर में पटाखे, बॉम्ब, रॉकेट, बदस्तूर बिक रहे थे और दिवाली की रात दो घंटे के लिए ही सही दिल खोलकर फोड़े गए. हां जानते हैं कि सालों से भारत में इसी तरह से दिवाली मनाई जाती रही है. लेकिन पिछले कुछ सालों से दिल्ली क्या पूरी दुनिया के वातावरण में बदलाव हुए हैं. जिसका दिवाली के आसपास वैसे भी मौसम बदल जाता है और ये धुंआ उस वक्त सबसे ज्यादा हानिकारक माना जाता है.
पराली का धुंआ
हां केवल दिवाली में फोड़े जाने वाले पटाखों को प्रदूषण का दोषी नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि हवा के खराब स्तर के लिए पराली का जलाया जाना भी उतना ही जिम्मेदार है. पाकिस्तान जब पराली जलाता है तो पंजाब की हवा पर उसका असर दिखाई देता है. उसी तरह जब पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाएं होती हैं तो उसका असर दिल्ली और आसपास के इलाकों पर साफ-तौर पर नजर आता है.
पिछले सप्ताह का सैटेलाइट डाटा बताता है कि 26 अक्टूबर को भारत और पाकिस्तान में पराली जलाने की घटनाएं अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गई थीं. 26 अक्टूबर यानी दिवाली से एक दिन पहले पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की 1276 घटनाएं सामने आईं. ये खुलासा इंडिया डुटे डाटा इंटेलिजेंस यूनिट की स्टडी में हुआ है. अक्टूबर 24 को पराली जलाने की 536 घटनाएं हुईं थी, जबकि 21 अक्टूबर को 412 जगहों पर पराली जलाई गई. पिछले सप्ताह 20 अक्टूबर को सबसे कम जगहों पर यानी कि 100 स्थानों पर पराली जलाई गई. आंकड़ों के मुताबिक 22 अक्टूबर तक उत्तर भारत में 5316 सक्रिय आग के केंद्र थे. यानी कि इन स्थानों पर बड़े पैमाने पर कुछ जलाया गया था.
पराली पर हल्ला दिवाली के ही आसपास इसलिए होता है क्योंकि सर्दी में पराली जलाने का असर ज्यादा खतरनाक होता है. सितंबर और अक्टूबर में ही पराली जलाई जाती है. इस दौरान हवा की गति कम रहती है, इसलिए पराली के जलने से उठा धुआं वातावरण में ही मौजूद रहता है और सांस के रूप में लोग इसी हवा को लेते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि सितंबर-अक्टूबर में दिल्ली-एनसीआर में खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि प्रदूषण के जहरीले अवशेष हवा में देर तक बने रहते हैं, जबकि गर्मियों में जहरीले तत्व हवा में तेजी से बिखर जाते हैं, इसलिए प्रदूषण फैलाने वाले तत्व एक स्थान पर मौजूद नहीं रह पाते हैं.
हवा की गति
Central Pollution Control Board के मुताबिक इस वक्त हम जिन हालातों का सामना कर रहे हैं उसका कारण ये है कि इस वक्त हवा की गति न्यूनतम है. हवा नहीं चल रही. और इसी वजह से धुंआ हवा के जरिए उड़ नहीं पा रहा. पिछले साल की तुलना में दिवाली के दिन हवा तेज चल रही थी. और प्रदूषित हवा इकट्ठी न होकर फैल रही थी. लेकिन अगले दिन हवा की गति धीमी हो गई जिसकी वजह से हवा में प्रदूषण बना रहा.
धुंआ चाहे गाड़ियों द्वारा जल रहे पेट्रोल का हो, पराली जलाने का हो या फिर बम और पटाखे जलाने का, सर्दियों में अगर हवा नहीं चले तो ये धुंआ सिर्फ परेशानी ही लेकर आता है.
वायु प्रदूषण का शरीर पर असर
दिल्ली में हर एक सांस लोगों को बीमार बना रही है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अगर कोई व्यक्ति दिल्ली में एक पूरा दिन रहता है तो वो करीब 30-50 सिगरेट (एरिया के हिसाब से) पीने बराबर का धुआं सांस के जरिए शरीर में लेगा. जो प्रदूषण दिल्ली में फैल रहा है इससे कार्डियोवस्कुलर बीमारियां, सांस से जुड़ी बीमारियां आदि हो सकती हैं. प्रदूषण की वजह से बीमारियों से लड़ने की क्षमता यानी इम्यूनिटी कम हो रही है. लोगों को इस स्मॉग में सांस लेने में परेशानी हो रही है, गला खराब, आंखों में जलन और खांसी सबसे पहले दिखाई दे जाती है जिसकी शिकायत लोग करते हैं. लेकिन जो बिना शिकायत प्रदूषण की सबसे ज्यादा मार झेलते हैं वो हैं नवजात. उन्हें जो असर प्रदूषण की वजह से होता है वो दिखाई नहीं देता. बड़ों को न्यूरोलॉजिकल बीमारियां होने की समस्या हो सकती हैं. सबसे बड़ा खतरा तो अटैक का है. प्रदूषण की वजह से अटैक का खतरा 17% बढ़ जाता है.
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