गाजीपुर बॉर्डर को लेकर तमाम आशंकाएं हैं. इसमें दो तरह के लोग मुखर हैं. एक वो लोग जो आज भी बाबा रामदेव का मजाक इसलिए उड़ाते हैं क्योंकि सरकारी दमन में उन्हें सलवार पहन कर भागना पड़ा मगर अभी किसानों को लेकर डर और दुख का ढोंग कर रहे हैं. खैर इस तरह के लोगों की क्या बात करना. ऐसे ही वो भी लोग हैं जो चाहते हैं दमनात्मक कार्यवाही हो, किसान नेता मरें और उसमें ये खुशी ढूंढ रहे हैं. आज किसानों को गाली दे रहे हैं कल फौजियों को भी दे देंगे. ऐसे लोगों की भी क्या ही बात करना.
बात उन सब आम नागरिकों की करनी है जो कहीं न कहीं इन सब के बीच में हैं. जो एक पक्षीय नहीं हैं और सही को सही गलत को गलत कहने के लिए पार्टी का मुंह नहीं देखते. जब सब कुछ इतना गड़बड़ हो जाता है तो इस पक्ष को भी समझ नहीं आता कि क्या सही क्या गलत. नहीं मैं नहीं समझाने आया कि किसानों की मांग सही है या गलत. ये मेरा काम नहीं और एक्सपर्टीज भी नहीं.
मैं सिर्फ वो कहना चाहता हूं जो मुझे समझ आती है और मुझे जो एक चीज समझ में आज तक आयी वह ये कि हम किसी से सहमत हों या नहीं हमें उसके शांतिपूर्ण प्रदर्शन / मांग / आंदोलन का विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि बोलना हमारा मौलिक अधिकार है. लोकतंत्र में यही एक ताकत है जो आम आदमी के पास है कि वह अपनी बात बिना डर के कह सके.
एक चीज जो मुझे और समझ आती है वह ये कि सरकार कभी भी आम आदमी के लिये नहीं होती. सरकारें अपने खिलाफ आवाज़ उठाने वालों के खिलाफ नैरेटिव सेट करने की कोशिश जरूर करती हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो कांग्रेस जो अन्ना हजारे को युद्ध का भगोड़ा साबित करने की कोशिश करे, रामदेव की सभा में सोते लोगों पर लाठीचार्ज करे या फिर वो...
गाजीपुर बॉर्डर को लेकर तमाम आशंकाएं हैं. इसमें दो तरह के लोग मुखर हैं. एक वो लोग जो आज भी बाबा रामदेव का मजाक इसलिए उड़ाते हैं क्योंकि सरकारी दमन में उन्हें सलवार पहन कर भागना पड़ा मगर अभी किसानों को लेकर डर और दुख का ढोंग कर रहे हैं. खैर इस तरह के लोगों की क्या बात करना. ऐसे ही वो भी लोग हैं जो चाहते हैं दमनात्मक कार्यवाही हो, किसान नेता मरें और उसमें ये खुशी ढूंढ रहे हैं. आज किसानों को गाली दे रहे हैं कल फौजियों को भी दे देंगे. ऐसे लोगों की भी क्या ही बात करना.
बात उन सब आम नागरिकों की करनी है जो कहीं न कहीं इन सब के बीच में हैं. जो एक पक्षीय नहीं हैं और सही को सही गलत को गलत कहने के लिए पार्टी का मुंह नहीं देखते. जब सब कुछ इतना गड़बड़ हो जाता है तो इस पक्ष को भी समझ नहीं आता कि क्या सही क्या गलत. नहीं मैं नहीं समझाने आया कि किसानों की मांग सही है या गलत. ये मेरा काम नहीं और एक्सपर्टीज भी नहीं.
मैं सिर्फ वो कहना चाहता हूं जो मुझे समझ आती है और मुझे जो एक चीज समझ में आज तक आयी वह ये कि हम किसी से सहमत हों या नहीं हमें उसके शांतिपूर्ण प्रदर्शन / मांग / आंदोलन का विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि बोलना हमारा मौलिक अधिकार है. लोकतंत्र में यही एक ताकत है जो आम आदमी के पास है कि वह अपनी बात बिना डर के कह सके.
एक चीज जो मुझे और समझ आती है वह ये कि सरकार कभी भी आम आदमी के लिये नहीं होती. सरकारें अपने खिलाफ आवाज़ उठाने वालों के खिलाफ नैरेटिव सेट करने की कोशिश जरूर करती हैं, कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो कांग्रेस जो अन्ना हजारे को युद्ध का भगोड़ा साबित करने की कोशिश करे, रामदेव की सभा में सोते लोगों पर लाठीचार्ज करे या फिर वो भाजपा हो जो किसी भी विरोध करने वाले को देशद्रोही साबित करने लगे. सरकार का एक ही चरित्र है और यह चरित्र किसी भी पार्टी से नहीं बदलता. जो पार्टी सत्ता में आती है, उसका चरित्र जरूर सरकारी हो जाता है.
यदि आप उन लोगों में से हैं जो रामदेव की सभा के लाठीचार्ज पर आज तक हंसते हैं और अभी रो रहे हैं तो याद रखिये आपके किये दोगले बर्ताव की सजा समाज भुगत रहा है और ये किसान भी. आपकी नकली मोहब्बत इनके लिए जनसमर्थन कभी पैदा नहीं करेगी.
यदि आप उन लोगों में से हैं जिन्हें किसानों की मांग गलत लगती है और इसलिए आप उन पर वैसी ही दमनात्मक कार्यवाही चाहते हैं जैसी पहले हुई तो याद रखिये आप अपनी आने वाली नस्लों के लिए वो गड्ढा खोद रहे हैं जिसमें से कभी निकल नहीं पाएंगे और अपना मुंह नहीं खोल पाएंगे. न हों आप समर्थन में, किसानों की मांग के. पर उनके बोलने के लोकतांत्रिक अधिकार का विरोध मत करिये वरना कल आपको बोलने की जरूरत पड़ी तो आपका मुंह बंद करने को भी एक वर्ग होगा.
P.S. बस इतना ही कि ऐसी ही मूर्खता पिछली सरकार ने रामदेव के साथ की और उसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा.
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