मुंबई हमले को 9 साल बीत चुके हैं. ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन बीते हुए नौ सालों में हमने बहुत सी बातों को भुला दिया और बहुत सी चीजों को खारिज कर दिया. कहा ये भी जा सकता है कि, गुजरे हुए 9 सालों में हम ऐसा बहुत कुछ भूल गए जो हमें ताउम्र याद रखना था. ये हमला हमारे मान से जुड़ा था. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान फंडेड आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने ये हमला हमारे एक शहर पर नहीं बल्कि हमारे दिलों में किया था और अगर हम इसे भूल रहे हैं तो वाकई एक नागरिक के नाते ये बेहद शर्मनाक है.
26 नवंबर, 2008 की रात करीब 9.50 बजे शुरू हुए इस आतंकी हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. बताया जाता है कि पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों द्वारा मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशन सीएसएमटी, ताज होटल, होटल ट्राइडेंट, लियोपोल्ड कैफे एवं नरीमन हाउस सहित सड़क पर चलते कुछ वाहनों को भी निशाना बनाया गया था. आतंकियों से पुलिस की मुठभेड़ चार दिन तक चली थी और इसमें मुंबई पुलिस के तीन जांबाज अधिकारियों सहित कई जवान शहीद थे.
व्यक्तिगत रूप से मैं औरों की नहीं जनता. मैं सदैव अपनी बात कहने पर यकीन रखता हूं. मैं जब भी इस हमले के विषय में सोचता हूं तो मुझे इसमें पहले हाफिज सईद का खौफनाक चेहरा फिर हमारे देश की कायरता, कूटनीति के तहत दिए जाने वाले नेताओं के खोखले बयान और नौकरशाही दिखती है. और देश का एक नागरिक होने के नाते मुझे गुस्सा आता है. मैं इसे हमारे देश की सहिष्णुता बिल्कुल नहीं मानता. बल्कि मेरा ये मानना है कि ये हमारे तंत्र का लचर रवैया है जिसके चलते दुश्मन बिना किसी खौफ़ के हमारे देश की तरफ आंख उठाने की हिमाकत कर बैठता है.
इस बात को बताना...
मुंबई हमले को 9 साल बीत चुके हैं. ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन बीते हुए नौ सालों में हमने बहुत सी बातों को भुला दिया और बहुत सी चीजों को खारिज कर दिया. कहा ये भी जा सकता है कि, गुजरे हुए 9 सालों में हम ऐसा बहुत कुछ भूल गए जो हमें ताउम्र याद रखना था. ये हमला हमारे मान से जुड़ा था. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान फंडेड आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने ये हमला हमारे एक शहर पर नहीं बल्कि हमारे दिलों में किया था और अगर हम इसे भूल रहे हैं तो वाकई एक नागरिक के नाते ये बेहद शर्मनाक है.
26 नवंबर, 2008 की रात करीब 9.50 बजे शुरू हुए इस आतंकी हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे और 300 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. बताया जाता है कि पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों द्वारा मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशन सीएसएमटी, ताज होटल, होटल ट्राइडेंट, लियोपोल्ड कैफे एवं नरीमन हाउस सहित सड़क पर चलते कुछ वाहनों को भी निशाना बनाया गया था. आतंकियों से पुलिस की मुठभेड़ चार दिन तक चली थी और इसमें मुंबई पुलिस के तीन जांबाज अधिकारियों सहित कई जवान शहीद थे.
व्यक्तिगत रूप से मैं औरों की नहीं जनता. मैं सदैव अपनी बात कहने पर यकीन रखता हूं. मैं जब भी इस हमले के विषय में सोचता हूं तो मुझे इसमें पहले हाफिज सईद का खौफनाक चेहरा फिर हमारे देश की कायरता, कूटनीति के तहत दिए जाने वाले नेताओं के खोखले बयान और नौकरशाही दिखती है. और देश का एक नागरिक होने के नाते मुझे गुस्सा आता है. मैं इसे हमारे देश की सहिष्णुता बिल्कुल नहीं मानता. बल्कि मेरा ये मानना है कि ये हमारे तंत्र का लचर रवैया है जिसके चलते दुश्मन बिना किसी खौफ़ के हमारे देश की तरफ आंख उठाने की हिमाकत कर बैठता है.
इस बात को बताना बेहद जरूरी है कि मेरे इस गुस्से की वजह राष्ट्रवाद नहीं है. मेरा ये गुस्सा एक नागरिक की फ़िक्र है. वो नागरिक जो वोट देता है और अपनी हिफाजत के लिए अपनी सरकार चुनता है. वो नागरिक जो मजबूत देशों की श्रेणी में अपने देश को देखना चाहता है. आप उस पल की कल्पना करिए जब वो व्यक्ति जिससे आप सबसे ज्यादा नफरत करते हैं वो मुस्कुराते हुए आपके सामने से निकल जाए. अब इस बात को हाफिज सईद पर रख कर देखिये. बात बीते दिन की है. मेरे अलावा तमाम लोगों ने देखा होगा कि मुंबई हमलों के आरोपी हाफिज सईद को नजरबंदी से रिहा कर दिया गया है.
ज्ञात हो कि मुंबई हमलों के बाद कई वर्षों तक बेख़ौफ़ होकर घूमने वाले हाफिज सईद को पाकिस्तान ने जनवरी 2017 में नजरबंद किया था. साथ ही कश्मीर में भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों ने यह आशंका जताई थी कि भारत सईद को कभी भी निशाना बना सकता है. इसके बाद सईद को नजरबंद कर दिया गया. कहने को तो जमात उल दावा के संस्थापक सईद ने बार बार मुंबई हमलों की साजिश से इनकार किया है मगर भारतीय जांचकर्ताओं का दावा है कि हमला हाफिज सईद के इशारों पर हुआ, और हमले के दौरान आतंकवादी फोन पर पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के संपर्क में थे और उनसे लगातार दिशा निर्देश ले रहे थे.
एक नागरिक के नाते मैंने मुंबई हमलों की याद में बहुत सारी मोमबत्तियां जला ली हैं. मैं मरने वालों को याद करते हुए बहुत सारी शोकसभाएँ भी कर चुका हूं. अब मुझे खुले में घूमता हाफिज सईद बर्दाश्त नहीं होता और मैं यही चाहता हूं कि हमारी सरकार द्वारा उसे भारत लाया जाए और बिना किसी देरी के उसे सख्त से सख्त सजा दी जाए ताकि दुश्मन ताकतें कभी भी हमारे देश की तरफ निगाह उठाने की जुर्रत न कर सकें.
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