योगी सरकार को अपने सांसदों और विधायकों के लिए बाकायदा एक सरकारी 'फतवा' यानी सलाह जारी करना पड़ा. भूल जाइए, की लाल बत्ती के साथ वीआईपी कल्चर चला गया, सरकारें आपको एहसास कराती रहेंगी की जनता को हांकते हुए नुमाइंदे कितने खास हैं और आम जनता कितनी निरीह. इसी बात से अंदाजा लगाइये की एक 8वीं पास और रेप मर्डर का आरोपी अगर आईएएस, आईपीएस या पीसीएस के सामने आ जाए तो इन 'बाबू' लोग को अदब के साथ उसके सामने खड़ा होना पड़ेगा.
योगी जी काम करें और चर्चा न हो, संभव नहीं. लिहाजा उनकी सरकार का नया फरमान है की कोई भी एमपी एमएलए अफसरों से मिलने पहुंचे तो वे उनका खड़े होकर सम्मान करें. लखनऊ के सरकारी दफ्तरों में तो ये फरमान अच्छी खासी बहस का टॉपिक बना हुआ है. मजेदार बात तो यह है की इससे पहले भी ये आदेश माया और अखिलेश सरकार का कार्यकाल मिलाकर 17 बार जारी हो चुका है.
अफसरों को सलाह देने वाले भी सूबे के बड़े अफसर यानी की सीएम साहब के चीफ सेक्रेटरी राजीव कुमार हैं. उन्होंने अपने नीचे के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी. डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, पुलिस कप्तानों सहित सबको एक खत लिखकर समझा दिया है की अगर कोई माननीय (सांसद या विधायक) उनके दफ्तर पहुंचे तो खड़े होकर उनका स्वागत और विदाई दोनों करें. लाल बत्ती हट गई, लेकिन लाट साहबों वाला वीआईपी कल्चर न गया.
एनेक्सी के अंदर तो कोई क्या बोलेगा, हां बाहर चर्चा जरूर होती रही, "एमपी/ एमएलए के साथ चलने वाले के हाथ मे एक हूटर थमा दो. ताकि जब माननीय कउनो दफ्तर में घुसें तो सबका मालूम पड़ जाए कि कउनो माननीय जी आई गए हैं... हूटर बजे से, नेता जी लोगन का सब खड़े मिलिहैं..." जाहिर सी बात है, अब नौकरी में सही सलामत बना हुआ कोई आईएएस अफसर तो...
योगी सरकार को अपने सांसदों और विधायकों के लिए बाकायदा एक सरकारी 'फतवा' यानी सलाह जारी करना पड़ा. भूल जाइए, की लाल बत्ती के साथ वीआईपी कल्चर चला गया, सरकारें आपको एहसास कराती रहेंगी की जनता को हांकते हुए नुमाइंदे कितने खास हैं और आम जनता कितनी निरीह. इसी बात से अंदाजा लगाइये की एक 8वीं पास और रेप मर्डर का आरोपी अगर आईएएस, आईपीएस या पीसीएस के सामने आ जाए तो इन 'बाबू' लोग को अदब के साथ उसके सामने खड़ा होना पड़ेगा.
योगी जी काम करें और चर्चा न हो, संभव नहीं. लिहाजा उनकी सरकार का नया फरमान है की कोई भी एमपी एमएलए अफसरों से मिलने पहुंचे तो वे उनका खड़े होकर सम्मान करें. लखनऊ के सरकारी दफ्तरों में तो ये फरमान अच्छी खासी बहस का टॉपिक बना हुआ है. मजेदार बात तो यह है की इससे पहले भी ये आदेश माया और अखिलेश सरकार का कार्यकाल मिलाकर 17 बार जारी हो चुका है.
अफसरों को सलाह देने वाले भी सूबे के बड़े अफसर यानी की सीएम साहब के चीफ सेक्रेटरी राजीव कुमार हैं. उन्होंने अपने नीचे के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी. डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, पुलिस कप्तानों सहित सबको एक खत लिखकर समझा दिया है की अगर कोई माननीय (सांसद या विधायक) उनके दफ्तर पहुंचे तो खड़े होकर उनका स्वागत और विदाई दोनों करें. लाल बत्ती हट गई, लेकिन लाट साहबों वाला वीआईपी कल्चर न गया.
एनेक्सी के अंदर तो कोई क्या बोलेगा, हां बाहर चर्चा जरूर होती रही, "एमपी/ एमएलए के साथ चलने वाले के हाथ मे एक हूटर थमा दो. ताकि जब माननीय कउनो दफ्तर में घुसें तो सबका मालूम पड़ जाए कि कउनो माननीय जी आई गए हैं... हूटर बजे से, नेता जी लोगन का सब खड़े मिलिहैं..." जाहिर सी बात है, अब नौकरी में सही सलामत बना हुआ कोई आईएएस अफसर तो जल्दी खुलकर बोलेगा नहीं, सो इसका जवाब भी आया तो एक रिटायर्ड आईएएस की तरफ से. अपने कार्यकाल के दौरान खासे चर्चित रहे रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने इस आदेश पर जमकर यूपी सरकार की आलोचना की है. उन्होंने फेसबुक पोस्ट के जरिए पूछा है, 'पाँव लगें, VIP ‘श्रीमन’ के ‘कुर्सी’ पर चिपके रहने का आशीर्वाद मिलेगा!'
अधिकारी कुर्सी छूकर नमस्ते करें, नहीं तो दंडित होंगे.....क्या डीपी यादव जैसे अपराधी या फिर प्रजापति जैसे भ्रष्ट/बलात्कारी को भी ये सम्मान मिले? 2007 में यह नियम बना था कि अधिकारीगण विधायकों /जनप्रतिनिधियों को खड़े होकर नमस्ते करेंगे, चाहे वह अपराधी ही क्यों न हो. वे लिखते हैं, "यह सर्वमान्य सत्य है कि ‘सम्मान मांगा नहीं जाता, बल्कि अर्जित किया जाता है (Respect is not demanded but commanded)..."
सूर्य प्रताप सिंह के अनुसार, "पिछले एक दशक में 18 बार ऐसे शासनादेश क्यों जारी करने पडे, यह सोचनीय और एक दिलचस्प विषय है." उन्होंने अपनी पोस्ट में बताया है कि ऐसा पहला शासनादेश 14 दिसम्बर, 2007 को जारी हुआ था और अब 17 अक्टूबर 2017 को मुख्य सचिव ने तब से लेकर अबतक 18वीं बार ऐसा आदेश जारी किया है.
उन्होंने इस आदेश पर चोट करते हुए लिखा है कि यह आदेश इसलिए जारी करना पड़ा क्योंकि या तो अधिकारीगण विधायकों का सम्मान नहीं कर रहे या फिर कई विधायकों का आचरण ‘सम्मान योग्य’ नहीं रहा ? दोनों में से एक कारण होगा ही. आज यूपी के 43% एमएलए क्रिमिनल बैकग्राउंड के हैं.
खैर, ऐसे आदेशों की फ्रीक्वेंसी देखकर यही लगता है कि ये कर्यक्रम तो चलता रहेगा और खबरें भी बनती रहेंगी कि फलाना डीएम के ट्रांसफर के पीछे फलाना एमपी या एमएलए साहब की नाराजगी रही. न यकीन हो तो गाजीपुर के डीएम संजय खत्री और कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर के किस्से को ही याद कर लें. मंत्री जी, डीएम का ट्रांसफर करवाकर ही माने.
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