कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने लोगों के अंदर की संवेदनशीलता को खत्म कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोनाकाल में 'आपदा में अवसर' और 'आत्मनिर्भर भारत' का मंत्र दिया था. भारत में कुछ लोगों ने उनकी इस सलाह का अपने हिसाब से मतलब निकालकर मानवता को शर्मसार करने वाले काम शुरू कर दिए हैं. कोरोना मरीजों के लिए जीवनरक्षक इंजेक्शन रेमडेसिविर (Remdesivir) की कालाबाजारी और तस्करी के तमाम मामले सामने आ ही रहे थे. अब इन जीवनरक्षक इंजेक्शन की मार्केट में नकली खेप भी पहुंच चुकी है. रेमडेसिविर को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत इसकी कीमत है, जो इसकी कालाबाजारी को बढ़ने का मौका दे रही है. लेकिन, केंद्र सरकार इस पर लगाम लगा पाने में अक्षम नजर आ रही है. कहा जा सकता है कि भारत में पान पर चूना लगाने की परंपरा अब जान तक आ पहुंची है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, विकसित देशों की तुलना में कम आय और मध्यम आय वाले देशों में हर 100 चिकित्सा उत्पादों में से लगभग 10 नकली या कम गुणवत्ता वाले होते हैं. विश्व में जनसंख्या के आधार पर दूसरे सबसे बड़े देश भारत में नकली दवाओं का व्यापार कई हजार करोड़ का है. वहीं, इन नकली दवाओं का इस्तेमाल कोरोना महामारी के मुश्किल समय में एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है. भारत की गरीब जनता के लिए ये जीवनरक्षक दवाएं वैसे ही महंगी रहती है. जिसकी वजह से नकली दवाओं का धंधा फल-फूल रहा है. महामारी के इस दौर में यह और ज्यादा तेजी से बढ़ा है. हाल ही में इंदौर में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन की एक बड़ी खेप पकड़ी गई है. केंद्र सरकार ने रेमडेसिविर के निर्यात पर बैन लगा दिया है, लेकिन फिर भी यह बाजारों से गायब है. मरीजों के रिश्तेदार रेमडेसिविर के लिए भटक रहे हैं. यह तमाम व्यवस्थाओं और तंत्र के मुंह पर करारा तमाचा ही है कि जो इंजेक्शन बाजारों में नहीं मिल रहा है, वह OLX पर 6000 रुपये में लोगों के लिए उपलब्ध है.
भारत में रेमडेसिविर का उत्पादन 28 लाख शीशी प्रति माह से बढ़कर 41 लाख प्रति माह हो गया है.
हाल ही में केंद्र सरकार के एक मंत्री ने रेमडेसिविर इंजेक्शन के उत्पादन बढ़ाने को लेकर जानकारी दी थी. भारत में रेमडेसिविर का उत्पादन 28 लाख शीशी प्रति माह से बढ़कर 41 लाख प्रति माह हो गया है. लेकिन, यह सभी कोशिशें कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों को देखते हुए बहुत बौनी नजर आती हैं. कोरोना संक्रमण से ग्रस्त मरीज के उपचार में रेमडेसिवीर इंजेक्शन की 6 डोज इस्तेमाल होते हैं. लेकिन, जिस रफ्तार से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है, 41 लाख इंजेक्शन का आंकड़ा बहुत ही छोटा हो गया है. सरकार ने कई ब्रांडेड कंपनियों के इस इंजेक्शन की कीमत भी 5400 से घटाकर 3500 कर दी है. लेकिन, चौंकाने वाली बात ये है कि बाजार में यह इंजेक्शन 900-1000 में भी मिल रहा है. इसकी कीमत पर सरकार का कोई नियंत्रण ही नही है. पूरी सरकारी मशीनरी होने के बावजूद भी सरकार इसकी कालाबाजारी को नहीं रोक पा रही हैं. सरकार ने इसकी खरीद और बिक्री के लिए क्या सिस्टम बनाया है, लोगों को इसकी जानकारी ही नही है. आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत में कालाबाजारी और नकली दवाओं का कारोबार किस तरह से बढ़ रहा है.
कोरोनारोधी वैक्सीन की बात की जाए, देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने टीकाकरण को 25 से ऊपर उम्र के सभी लोगों के लिए शुरू करने की मांग की है. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने वैक्सीन को ओपन मार्केट में बेचने की मांग करने के साथ सर्वाधिक प्रभावित शहरों में बड़ी संख्या में वैक्सीनेशन करने का सुझाव दिया है. निश्चित तौर पर इन सभी मुख्यमंत्रियों ने अच्छा सुझाव दिया है. लेकिन, ऐसा करने से कालाबाजारी और नकली दवाओं का कारोबार करने वालों को और बढ़ावा मिलेगा. अभी तो केवल रेमडेसिविर के नकली इंजेक्शन और कालाबाजारी की खबरें सामने आ रही हैं. वैक्सीन के ओपन मार्केट में आ जाने के बाद इसकी भी कालाबाजारी होने और नकली वैक्सीन आने की संभावना बढ़ जाएगी. दिल्ली में कई अस्पतालों में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों की अनदेखी करते हुए कई लोगों को टीका लगाया गया था, जो 45 साल से कम उम्र के थे. इस तरह की घटनाएं वैक्सीन को लेकर ऐसी आशंकाओं को बल देती हैं.
भारत में वैक्सीन बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल की कमी के कारण अप्रैल माह में उत्पादन पर असर पड़ा है.
इस स्थिति में ओपन मार्केट में वैक्सीन लाने के फैसले से कालाबाजारी और नकली वैक्सीन के साथ ही अराजकता फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. भोपाल में रेमडेसिविर के 800 इंजेक्शन चोरी होने की घटना इसकी एक बानगी भर है. इस समय देश में हर व्यक्ति को अपनी जान बचाने के लिए वैक्सीन चाहिए और वह इसके लिए कोई भी कीमत देने को तैयार हो जाएगा. जो लोग वैक्सीन का खर्च उठा पाने में सक्षम नहीं है, उनके लिए स्थितियां और गंभीर हो जाएंगी. वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार के सामने कई समस्याएं हैं और इसका हल फिलहाल सरकार के पास नजर नहीं आ रहा है.
भारत में वैक्सीन बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल की कमी के कारण अप्रैल माह में उत्पादन पर असर पड़ा है. 45 लाख डोज प्रतिदिन का औसत बीते 10 दिनों में 30 लाख पर आ चुका है. रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी रुक नही रही है. ऊपर से मार्केट में नकली दवा आने का खतरा भी बढ़ गया है. भारत में चिकित्सा व्यवस्थाएं और कोरोना संक्रमित लोग भगवान भरोसे हैं. अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन और दवाओं का हाल सबके सामने है. कहना गलत नहीं होगा कि भारत में कोविड मरीजों से पहले मानवता ने दम तोड़ दिया है.
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