आज वो वक़्त है जब टेक्नोलॉजी अपने शीर्ष पर है. सुविधाओं का अंबार है. आज भले ही हमारे पास कार या बाइक न हो मगर ओला और उबेर जैसी सेवाओं के रूप में हमें टेक्नोलॉजी के जरिये ऐसी सुविधा मिली हैं जिसमें हम घर बैठे बैठे मोबाइल से अपनी पसंद की गाड़ी बुक कर सकते हैं. एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ पूरी शानो शौकत से जा सकते हैं. भारत जैसे देश में कैब है तो एक सुविधा लेकिन किरकिरी तब है जब राइड कैंसिल हो जाए. कैब वाले भइया तमाम तरह के बहानों और बातों का हवाला देकर एसी न चलाएं. गूगल मैप को फॉलो करने में असमर्थ हों. राइड लेने से सिर्फ इसलिए मना कर दें क्योंकि उन्हें पेटीएम या गूगल पे पर नहीं बल्कि पैसा कैश में चाहिए. स्थिति जब ऐसी होती है तो कैब वालों का कितना नुकसान होता है इसपर बात फिर कभी. लेकिन यकीन मानिये इन तमाम नाटकों के चलते ग्राहकों को खूब झेलना पड़ता है.
बात आगे बढ़ेगी लेकिन उससे पहले हमें इस बात को भी समझना होगा कि व्यक्ति शौक में कम मज़बूरी में या बहुत साफ़ कहें तो इमरजेंसी में ही कैब / बाइक लेना प्रिफर करता है. ऐसे में यदि आप कैब या बाइक बुक करें. उसके बाद 10 या 15 मिनट इंतजार करें. फिर कैब या बाइक वाला आपको फोन करें और ये पूछे कि कहां जाना है? आपका डेस्टिनेशन सुनने के बाद राइड कैंसिल कर दे और ये क्रम बार बार चले तो पीड़ा का गुस्से में बदलना स्वाभाविक है.
माना पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ रही हैं. ऐसे में हमारी आपकी तरह कैब वालों को भी उसका सामना करना पड़ रहा है लेकिन किराया तो उनको मिल ही रहा है. ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि ग्राहक...
आज वो वक़्त है जब टेक्नोलॉजी अपने शीर्ष पर है. सुविधाओं का अंबार है. आज भले ही हमारे पास कार या बाइक न हो मगर ओला और उबेर जैसी सेवाओं के रूप में हमें टेक्नोलॉजी के जरिये ऐसी सुविधा मिली हैं जिसमें हम घर बैठे बैठे मोबाइल से अपनी पसंद की गाड़ी बुक कर सकते हैं. एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ पूरी शानो शौकत से जा सकते हैं. भारत जैसे देश में कैब है तो एक सुविधा लेकिन किरकिरी तब है जब राइड कैंसिल हो जाए. कैब वाले भइया तमाम तरह के बहानों और बातों का हवाला देकर एसी न चलाएं. गूगल मैप को फॉलो करने में असमर्थ हों. राइड लेने से सिर्फ इसलिए मना कर दें क्योंकि उन्हें पेटीएम या गूगल पे पर नहीं बल्कि पैसा कैश में चाहिए. स्थिति जब ऐसी होती है तो कैब वालों का कितना नुकसान होता है इसपर बात फिर कभी. लेकिन यकीन मानिये इन तमाम नाटकों के चलते ग्राहकों को खूब झेलना पड़ता है.
बात आगे बढ़ेगी लेकिन उससे पहले हमें इस बात को भी समझना होगा कि व्यक्ति शौक में कम मज़बूरी में या बहुत साफ़ कहें तो इमरजेंसी में ही कैब / बाइक लेना प्रिफर करता है. ऐसे में यदि आप कैब या बाइक बुक करें. उसके बाद 10 या 15 मिनट इंतजार करें. फिर कैब या बाइक वाला आपको फोन करें और ये पूछे कि कहां जाना है? आपका डेस्टिनेशन सुनने के बाद राइड कैंसिल कर दे और ये क्रम बार बार चले तो पीड़ा का गुस्से में बदलना स्वाभाविक है.
माना पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ रही हैं. ऐसे में हमारी आपकी तरह कैब वालों को भी उसका सामना करना पड़ रहा है लेकिन किराया तो उनको मिल ही रहा है. ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि ग्राहक राइड बुक कर रहा है और किसी चैरिटी के नाते कैब वाले सवारी को मुफ्त ही उसके डेस्टिनेशन पर छोड़ रहे हैं.
सवाल कैब वालों से है. सवाल उन राइडर्स से है जिन्होंने ओला, उबेर या रैपिडो में अपनी बाइक लगाई हुईं हैं. दिन का तो फिर भी ठीक है लेकिन क्या कभी कैब संचालकों / बाइक वालों ने उन सवारियों के बारे में सोचा जो देर रात अपने अपने दफ्तरों से सिर्फ इस भरोसे निकल रहे हैं कि उन्हें कैब मिल जाएगी. वो ओला / उबेर बाइक बुक कर लेंगे?
बात सिर्फ राइड के कैंसिल होने तक ही सीमित नहीं है. इसके अलावा भी तमाम तरह के ड्रामे हैं जिनका सामना यूजर्स को करना पड़ता है. कैसे? हाल फ़िलहाल में एक समस्या बहुत कॉमन है. मौजूदा वक़्त में जिस जिस ने भी एप पर जाकर कैब बुक की होगी जानते होंगे कि कैब वाले इसी नहीं चला रहे हैं. प्रायः ऐसी स्थिति में कैब चलाने वाले की तरफ से तर्क यही दिया जाता है कि पेट्रोल महंगा है और अगर इसी चलाया तो उससे गाड़ी का माइलेज प्रभावित होगा.
हम समझते हैं इस बात को लेकिन हमारा सवाल ये है कि इसका भुगतान एक ग्राहक के रूप में हमारी तरफ से किया जा रहा है. इसके अलावा एक बड़ी समस्या लोकेशन की भी है. जैसा कि ज्ञात है चाहे वो ओला हो या फिर उबेर और रैपिडो ये जीपीएस पर चलते हैं. मगर ये अपने में दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज्यादातर ड्राइवर और राइडर लोकेशन का इस्तेमाल नहीं कर पाते.
ध्यान रहे हमें इस बात को भी समझना होगा कि जो भी ड्रामा कैब ड्राइवर या बाइक राइडर पैसेंजर के साथ कर रहे हैं उसकी कोई शिकायत नहीं है. ज्यादा से ज्यादा या तो इंसान ट्विटर और फेसबुक पर अपनी शिकायत कर सकता है या फिर सपोर्ट के नाम पर कुछ बातें कंपनी को सूचित करा सकता है. मगर उन बातों पर कितना एक्शन होगा ये फैसला पूर्णतः कंपनी का है.
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