देश में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है कि हमें रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजना चाहिए कि नहीं. बीजेपी सरकार उन्हें अवैध मानती है और वापस भेजने की बात करती है. कांग्रेस कहती है कि सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि ये एक गंभीर मसला है. तो वहीं ममता बनर्जी कहती हैं कि हमें रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजना चाहिए क्योंकि वो आतंकवादी नहीं हैं.
लेकिन रोहिंग्या आतंकवादियों ने अब भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करना शुरू कर दिया है. 28 जुलाई को उन्होंने अपने पहले सीधे हमले में असम राइफल्स को भारत-म्यांमार बॉर्डर पर टारगेट किया. ये अटैक अरकान रोहिंग्या और साल्वेशन आर्मी (अरसा) ने किया था. कहा जाता है कि ये रोहिंग्या आतंकवादी भारत से सटी म्यांमार सीमा पर अपना आतंकी कैंप बनाना चाहते हैं.
चाहे अरसा हो या और रोहिंग्या आतंकवादी ग्रुप, जैसे रोहिंग्या सॉलिडेरिटी आर्गेनाइजेशन या हरकत-अल-यकीं या अका-मुल-मुजाहिदीन, इन्हें पाकिस्तान और कुछ मुस्लिम देशों से पूरा समर्थन मिलता है और पाकिस्तान इन्हें अब भारत के खिलाफ उपयोग करना चाह रहा है. अरसा को आईएसआई से ना सिर्फ मिलिटरी ट्रेनिंग और लोजिस्टिक्स सपोर्ट मिलता है बल्कि लश्कर-ऐ-तैयबा और जैश-ऐ-मुहम्मद जैसे आतंकवादी दलों का साथ भी.
अरसा का लीडर अता उल्लाह कराची में पैदा हुआ था और बाद में सऊदी अरब चला गया. इस आतंकवादी दल में कितने आतंकी हैं ये तो पता नहीं लेकिन म्यांमार क्लेम करता है कि उसने अभी तक 400 से ज्यादा अरसा आतंकवादियों को मारा है. इससे पता चलता है कि ये संख्या काफी बड़ी है और पाकिस्तान भारत के खिलाफ इनका उपयोग ना सिर्फ...
देश में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है कि हमें रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजना चाहिए कि नहीं. बीजेपी सरकार उन्हें अवैध मानती है और वापस भेजने की बात करती है. कांग्रेस कहती है कि सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर निर्णय लेना चाहिए क्योंकि ये एक गंभीर मसला है. तो वहीं ममता बनर्जी कहती हैं कि हमें रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस नहीं भेजना चाहिए क्योंकि वो आतंकवादी नहीं हैं.
लेकिन रोहिंग्या आतंकवादियों ने अब भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करना शुरू कर दिया है. 28 जुलाई को उन्होंने अपने पहले सीधे हमले में असम राइफल्स को भारत-म्यांमार बॉर्डर पर टारगेट किया. ये अटैक अरकान रोहिंग्या और साल्वेशन आर्मी (अरसा) ने किया था. कहा जाता है कि ये रोहिंग्या आतंकवादी भारत से सटी म्यांमार सीमा पर अपना आतंकी कैंप बनाना चाहते हैं.
चाहे अरसा हो या और रोहिंग्या आतंकवादी ग्रुप, जैसे रोहिंग्या सॉलिडेरिटी आर्गेनाइजेशन या हरकत-अल-यकीं या अका-मुल-मुजाहिदीन, इन्हें पाकिस्तान और कुछ मुस्लिम देशों से पूरा समर्थन मिलता है और पाकिस्तान इन्हें अब भारत के खिलाफ उपयोग करना चाह रहा है. अरसा को आईएसआई से ना सिर्फ मिलिटरी ट्रेनिंग और लोजिस्टिक्स सपोर्ट मिलता है बल्कि लश्कर-ऐ-तैयबा और जैश-ऐ-मुहम्मद जैसे आतंकवादी दलों का साथ भी.
अरसा का लीडर अता उल्लाह कराची में पैदा हुआ था और बाद में सऊदी अरब चला गया. इस आतंकवादी दल में कितने आतंकी हैं ये तो पता नहीं लेकिन म्यांमार क्लेम करता है कि उसने अभी तक 400 से ज्यादा अरसा आतंकवादियों को मारा है. इससे पता चलता है कि ये संख्या काफी बड़ी है और पाकिस्तान भारत के खिलाफ इनका उपयोग ना सिर्फ पूर्वोत्तर सीमा पर बल्कि कश्मीर में भी कर सकता है.
और इसके संकेत भी मिलने लगे हैं. पिछले साल सुरक्षा बलों ने एक रोहिंग्या आतंकवादी, छोटा बर्मी, को जैसे-ऐ-मुहम्मद के आतंकवादी आदिल पठान के साथ मार गिराया था.
इसी तरह दूसरा आतंकवादी ग्रुप अका-मुल-मुजाहिदीन है जिसने लश्कर और जैस से नजदीकी सम्बन्ध बना लिए हैं. इसके लीडर्स की पूरी ट्रेनिंग पाकिस्तान में हुई है और उन्होंने फिर म्यांमार में जाकर रोहिंग्या को आतंकवादी ग्रुप में शामिल किया. लश्कर ने तो 2012 में रोहिंग्या आतंकियों की फौज तैयार करने के लिए रखिने में मदद के नाम पर अपने आतंकियों को भी भेजा था. रोहिंग्या लोग म्यांमार के रखिने इलाके से आते हैं.
इसके अलावा रिपोर्ट्स हैं कि रोहिंग्या आतंकवादियों ने म्यांमार में अपने इलाके में बौद्ध और हिन्दू लोगों की हत्या भी की है. म्यांमार सरकार के मुताबिक रखिने के रोहिंग्या बहुल इलाकों से बौद्धों और हिन्दुओं की कब्रगाहें मिली हैं. अभी मई में ही मानवाधिकार ग्रुप एमनेस्टी की रिपोर्ट आयी थी कि पिछले साल अगस्त में रोहिंग्या आतंकवादियों ने 99 हिन्दुओं का कत्लेआम किया था.
पाकिस्तान का सपोर्ट और रोहिंग्या आतंकवादियों द्वारा हिन्दुओं का कत्लेआम- ये गूढ़ विषय है जिसपर राजनीतिज्ञों को ध्यान देना चाहिए रोहिंग्या, शरणार्थियों पर कोई निर्णय लेने से पहले. देश में अभी 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी हैं जिसमें से 5700 जम्मू और कश्मीर में हैं और बाकी हरियाणा के मेवात, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर और चेन्नई में हैं. सरकार को और राजनीतिज्ञों को देखना होगा कि वो भारत में रोहिंग्या आतंकवाद को बढ़ावा देने में मदद न करें.
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