एक सामान्य गृहिणी (Housewife) जिसकी दुनिया उसके बच्चे, पति और सास हैं. महिला सुबह जगने से लेकर सोने तक उनके बारे में ही सोचती है. उसने अपने औसत घर को करीने से सजाया है. घर के आंगन में रखे पेड़-पौधे हरे-भरे हैं. वह अपने भविष्य के बारे में सोचती भी नहीं है, क्योंकि उसे लगता है कि यही तो उसकी जिंदगी है. हालांकि यह भ्रम तब टूट जाता है जब उसके पति को किसी दूसरी औरत से प्यार हो जाता है. जिससे शादी करने के लिए वह अपनी पत्नी को तलाक दे देता है.
पति से अलग होने के बाद महिला को अपना ससुराल छोड़कर जाना पड़ता है
पति से अलग होने के बाद महिला को अपना ससुराल छोड़कर जाना पड़ता है. उससे उसका घर, आंगन छूट जाता है. बच्चे और सास भी दूर हो जाते हैं. इस तरह उसकी दुनिया उजड़ जाती है. अब जब वह अकेले है तो उसे समझ नहीं आता कि आखिर वह क्या करे? किसी ने उसे इस दिन के लिए तैयार ही नहीं किया होता है. बचपन में उसे यह कहानी सुनाई गई थी कि, एक दिन सपनों का राजकुमार सफेद घोड़ी पर बैठकर आएगा और उसे अपने साथ अपनी दुनिया में ले जाएगा. जहां उसे किसी बात की तकलीफ नहीं होगी, सिर्फ उसे राजकुमार का ख्याल रखना होगा. किसी ने यह तो बताया ही नहीं था कि अगर सफर के बीच रास्ते में राजकुमार ने साथ छोड़ दिया तो उसे क्या करना होगा?
जब वह अपने मायके जाती है तो भाई-भाभी भी मदद करने से मना कर देते हैं. अब वह कहां जाएगी क्या करेगी कुछ समझ नहीं आता है. वह दूसरे मोहल्ले में किराये के कमरे में अकेले रहती है. वह कुछ ना कुछ करके अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं ताकि अपने बच्चों को अपने पास ला सके.
सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड सीरीज आप ZEE5 पर देख सकते हैं
असल में 'सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड' उन महिलाओं की कहानी है जो तलाक के बाद अपने आप को तलाशना शुरु करती हैं. यह कहानी बताती है कि एक महिला का आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है. वह महिला जो कम पढ़ी-लिखी है. जो फटाफट अंग्रेजी नहीं बोल सकती. जो दिखने में साधारण है. जो उम्र के उस पड़ाव पर है जहां औरत की खूबसूरती ढल जाती है.
उसे कुछ और तो आता नहीं है, ऐसे में वह अचार का बिजनेस शुरु करती, लेकिन उसके पड़ोसी शुक्ला जी उसे कुछ दिनों तक बेवकूप बनाते रहते हैं. तलाकशुदा महिला के संघर्ष और रिश्तों में कड़वाहट के ताने-बाने को इस कहानी ने बखूबी से पिरोया गया है. सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड के निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की हैं. इसे आप ZEE5 पर देख सकते हैं. जिसमें लीड रोल में अमृता सुभाष हैं जिन्होंने सुमन के किरदार को मानो घोल कर पी लिया हो.
इस सीरीज में इस मिथ को तोड़ा गया है कि सास-बहू कभी मां-बेटी की तरह नहीं रह सकती हैं. वे आपस में सिर्फ लड़ सकती हैं, क्योंकि यहां तो बहू को उसके पैरों पर खड़ा करने के लिए सास अपनी जान लगा देती है. इस बहू ने फोन में अपनी सास का नंबर बुढ़िया नाम से सेव किया है. भले ही उनके बीच चटपटी नोंक-झोक होती रहती है, लेकिन दोनों एक-दूसरे पर जान लुटाती हैं.
दूसरा मिथ यह तोड़ा गया है कि सौतेली मां बच्चों का ख्याल नहीं रखती, क्योंकि दूसरी पत्नी मनीषा ने बच्चों को अपना लिया है. वह तो अपने ही घर में परायों की तरह जिंदगी बिता रही है. अंत में सुमन के पति दिलीप को उसकी गलती का एहसास होता है. इस सीरीज में यह भी दिखाया गया है कि मां से बिछड़कर कैसे उसके बच्चे जूही और रिशु अपने रास्ते से भटकने लगते हैं.
इस सीरीज में इस मिथ को तोड़ा गया है कि सास-बहू कभी मां-बेटी की तरह नहीं रह सकती हैं
सास-बहू के अचार की कहानी बताती है कि एक हाउसवाइफ खुद पर आ जाए तो क्या कर सकती है...सुमन को जब उसके पड़ोसी शुक्ला जी से धोखा मिलता है तो वह खुद अकेले अचार बेचने निकल पड़ती है. बड़ी ही बारीकी से हर सीन को साफ-साफ दिखाया गया है. कैसे एक महिला घर के अकेले बाहर निकलकर झिझक महसूस करती है. वह तो लोगों से ठीक से अपनी बात भी नहीं कह पाती है.
सुमन बस में आचार बेचने जाती थी, लेकिन किसी से कुछ बोल नहीं पाती है. तभी उसकी सास यात्री बनकर आचार बेचने में उसका साथ देती हैं. लोगों को आचार पसंद आता है, इस तरह सास-बहू मिलकर आचार बेचने लगती हैं, लेकिन पुलिस को बस में आचार बेचने का पता चल जाता है और उनकी दुकान बंद हो जाती है.
सुमन को लगता है कि वह कुछ नहीं कर पाएगी. वह उदास हो जाती है, तभी उसके पड़ोसी शुक्ला जी को अपने गलती का एससास होता है और वे सुमन के पार्टनर बन जाते हैं. सुमन गृहिणयों वाला दिमाग लगती है और कामवाली बाई के सहारे घर-घर में आचार पहुंचाने लगती है. वह घर-घर जाकर आचार का प्रचार करती है. इतना कुछ करने के बाद भी उसका बिजनेस सफल नहीं होता है. हालांकि वह हार नहीं मानती है और एक के बाद एक आइडिया अपनाकर अपने आचार को फेमस बनाने में जुट जाती है. आखिरकार, उसका सपना पूरा हो जाता है.
शुक्ला जी को अपने गलती का एससास होता है और वे सुमन के पार्टनर बन जाते हैं
यह कहानी बताती है कि एक तलाकशुदा महिला दोबारा शादी किए बिना भी अपनी जिंदगी खुशी-खुशी जी सकती है. यह कहानी बताती है कि उम्र की ढलान पर दो सिंगल लोग सिर्फ दोस्त भी हो सकते हैं.
वे एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी बन सकते हैं. यह सीरीज जटिल रिश्तों को सरल बनाना सिखाती है, छोटी-मोटी कड़वाहट को भूलकर खुलकर बात करना सीखाती है. उलझ चुके रिश्तों को सुलझाना सिखाती है. यह कहानी बताती है कि रिश्तों में कम्युनिकेशन होना कितना जरूरी है.
कई उतार-चढ़ाव के बाद आखिरकार, सुमन के आचार का बिजनेस चल पड़ता है. वह इस काबिल हो जाती है कि बच्चों को पाल सकती है, उनकी जरूरतों को पूरा कर सकती है. वह अपने पूर्व पति और सौतन से मिलकर बात करती है और उलझे रिश्तों को सुलझा देती है...
सुमन के बच्चे, जिन्हें लगता था कि वह कुछ नहीं कर सकती, अब उन्हें अब अपनी मां पर नाज है. सीरीज की शुरुआत में उदास, बेचारी सी दिखने वाली सुमन अब कॉन्फिडेंस से लबरेज है. उसके चेहरे पर आत्ममिर्भर वाला संतोष का भाव है. अब वह खुद को कमजोर नहीं बल्कि एक मजबूत महिला समझती है...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.