क्लासिक फिल्म 'साथ-साथ' की वह कार्टून टाइप लड़की याद है, जो दो चोटी किये, मोटा चश्मा लगाये ऊल-जुलूल हरकत करती थी? अगर नहीं तो, अपनी कटीली आंखों में दुनिया भर की कामुकता भरे 'चोली के पीछे क्या है? पूछती फिल्म 'खलनायक' की वो राजस्थानी नर्तकी तो ज़रूर याद होगी जिसने माधुरी दीक्षित के साथ स्क्रीन शेयर करते हुए भी एक पल के लिए अपना जादू नहीं खोया था. यह थीं नीना गुप्ता. ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलों के बीच अपनी शर्तों पर चलती हुई, सही अर्थों में थिएटर और फिल्म इंडस्ट्री की 'empowered woman’ नीना गुप्ता की शख्सियत ही कुछ ऐसी है कि लोग उनके बारे में ना सिर्फ़ जानना चाहते हैं बल्कि और ज़्यादा जानना चाहते हैं. नीना गुप्ता ने भी अपने प्रशंसकों को निराश नहीं किया. हाल में ही उनकी आत्मकथा ‘सच कहूं तो’ रिलीज़ हुई और उनके प्रशंसकों ने हाथों हाथ ली. नीना गुप्ता एक ऐसी नज़ीर है जिन्हें देख-सुन कर हमारे समाज की लड़कियां थोड़ा और साहसी बनती हैं. उनकी ही आत्मकथा का शीर्षक उधार लेकर ' ', सच कहना एक मुश्किल काम है. उस पर एक ऐसी औरत, जिसने समाज की सारी रूढ़ियों को धता बताते हुए बिन ब्याही मां बनने का फैसला आज से 32 साल पहले किया हो, उसका सच कहना, तेज़ाब की बारिश में नहाने जैसा हो सकता है.
बच्चा भी किसी साधारण पुरुष का नहीं. दुनिया के जाने-माने क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स की प्रेमिका बनना और उनके प्यार की निशानी को बिना शादी किये ही जन्म देना. ऐसी हिम्मत करने वाली औरत का सच धधकते ज्वालामुखी के लावे जैसा हो सकता है. फिर ऐसे सच से हमारी उम्मीदें बढ़ जाती हैं. ऐसा सच कहने वाले से और भी ज़्यादा. मगर इस किताब के साथ ही नीना गुप्ता का एक बयान सामने आया, जो न केवल...
क्लासिक फिल्म 'साथ-साथ' की वह कार्टून टाइप लड़की याद है, जो दो चोटी किये, मोटा चश्मा लगाये ऊल-जुलूल हरकत करती थी? अगर नहीं तो, अपनी कटीली आंखों में दुनिया भर की कामुकता भरे 'चोली के पीछे क्या है? पूछती फिल्म 'खलनायक' की वो राजस्थानी नर्तकी तो ज़रूर याद होगी जिसने माधुरी दीक्षित के साथ स्क्रीन शेयर करते हुए भी एक पल के लिए अपना जादू नहीं खोया था. यह थीं नीना गुप्ता. ज़िन्दगी की तमाम मुश्किलों के बीच अपनी शर्तों पर चलती हुई, सही अर्थों में थिएटर और फिल्म इंडस्ट्री की 'empowered woman’ नीना गुप्ता की शख्सियत ही कुछ ऐसी है कि लोग उनके बारे में ना सिर्फ़ जानना चाहते हैं बल्कि और ज़्यादा जानना चाहते हैं. नीना गुप्ता ने भी अपने प्रशंसकों को निराश नहीं किया. हाल में ही उनकी आत्मकथा ‘सच कहूं तो’ रिलीज़ हुई और उनके प्रशंसकों ने हाथों हाथ ली. नीना गुप्ता एक ऐसी नज़ीर है जिन्हें देख-सुन कर हमारे समाज की लड़कियां थोड़ा और साहसी बनती हैं. उनकी ही आत्मकथा का शीर्षक उधार लेकर ' ', सच कहना एक मुश्किल काम है. उस पर एक ऐसी औरत, जिसने समाज की सारी रूढ़ियों को धता बताते हुए बिन ब्याही मां बनने का फैसला आज से 32 साल पहले किया हो, उसका सच कहना, तेज़ाब की बारिश में नहाने जैसा हो सकता है.
बच्चा भी किसी साधारण पुरुष का नहीं. दुनिया के जाने-माने क्रिकेटर विवियन रिचर्ड्स की प्रेमिका बनना और उनके प्यार की निशानी को बिना शादी किये ही जन्म देना. ऐसी हिम्मत करने वाली औरत का सच धधकते ज्वालामुखी के लावे जैसा हो सकता है. फिर ऐसे सच से हमारी उम्मीदें बढ़ जाती हैं. ऐसा सच कहने वाले से और भी ज़्यादा. मगर इस किताब के साथ ही नीना गुप्ता का एक बयान सामने आया, जो न केवल गहरे तक चुभने वाला है बल्कि निराश भी करता है.
नीना गुप्ता ने कहा कि जब 49 साल की उम्र में शादी के उनके फ़ैसले पर बेटी मसाबा ने पूछा कि ‘आप ऐसा क्यों करना चाहती हैं?’ तो उन्होंने मसाबा को यह कहकर समझाया कि ‘हमारे समाज में सम्मान पाने के लिए शादी करना ज़रूरी होता है.’ उन्हें एक बोल्ड और खुदमुख्तार औरत के रूप में जानने वालों के लिए यह बात किसी झटके से कम नहीं कि शादी के मामले में नीना गुप्ता भी वैसे ही सोचती हैं, जो हमारे समाज की मध्यमवर्गीय कम पढ़ी-लिखी कोई भी स्त्री सोचती है.
शादी करना सम्मान की बात है. शादी करने से सम्मान मिलता है. समाज में पति के बिना जीना मुश्किल है. हालांकि ऐसा मानने के बावजूद नीना गुप्ता के पास अपना मनचाहा वर पसंद करके उससे विवाह करने का बहुत सुन्दर विकल्प मौजूद था लेकिन इस समाज में इसी शर्त पर सम्मान पाने की लालसा के साथ जीने वाली हर लड़की की किस्मत इतनी अच्छी नहीं होती.
‘सम्मान पाने के लिए शादी करना ज़रूरी है’ इसी सिद्धांत पर अमल करते हुए हर लड़की की शादी कर दी जाती है. जो शादी के लिए तैयार नहीं थी, जिसे उसके मेल का वर नहीं मिल रहा था, जो शादी से पहले करियर के बारे में सोच रही थी या जिसकी प्राथमिकता सूची में शायद शादी थी ही नहीं, सबकी शादी हो जाती है. उसके बाद चाहे सम्मान तो दूर उसे जी भर जी पाने का मौलिक अधिकार तक ना मिले.
ये ग़लत है और कोई नतीजा निकले, ना निकले, इस ग़लत के ख़िलाफ़ हमेशा से लड़कियों का एहतिजाज और मुख़ालिफ़त जारी है. ऐसे में इसी तरह के ‘सम्मान’ को तरजीह देता कोई बयान अगर नीना गुप्ता जैसी शख्सियत की ओर से आता है, ये एक तरह की मोहर होता है. किसे नहीं पता कि हमारे (तथाकथित) सभ्य समाज के अन्दर सबसे बड़े अपराधों में से एक है, बिन ब्याही मां बनना.
आज भी ये हिम्मत जुटा पाना किसी साधारण लड़की के बूते की बात नहीं. सोचिये, नीना गुप्ता ने बत्तीस साल पहले 1989 में ही ये मज़बूत फ़ैसला लिया. कितना सनसनीखेज़ रहा होगा. हज़ारों हज़ार मुश्किलें आयी होंगीं. कितनी बार टूटी होंगी. न जाने कितनी रातों की घुटन और कितने दिनों की रुसवाइयाँ जी होंगीं लेकिन एक सिंगल वूमेन और सिंगल मदर के रूप में वो फ़ेल नहीं हुईं.
व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों के वर्क फ्रंट पर भी उन्होंने हमें कभी निराश नहीं किया. रोल कोई भी रहा हो, छोटा या बड़ा, उन्होंने अपने अभिनय से हर किरदार को ना सिर्फ़ जानदार बल्कि यादगार बनाया. हमेशा वही किया जो हमारे समाज में कोई भी आम औरत करने से डरती है. शादी के बाद तलाक़ लेना, एक विदेशी खिलाड़ी से प्रेम करना, संबंध बनाना, गर्भवती होना और फिर बच्चे को जन्म देना. मुंबई आना और एक-एक रुपए के लिए, हर दिन-हर जगह काम ढूंढते रहने के बावजूद अपनी डिग्निटी और करैक्टर को बचाए रखना.
फिर नीना गुप्ता ने एक और कमाल किया. अक्सर लकीर का फ़कीर कहा जाने वाला बॉलीवुड में ऐसा ट्रेंड सेट किया जिसकी तोड़ पहले कभी नहीं थी, बाद में भी कब होगी, कहा नहीं जा सकता. वह है 60 साल की उम्र में जीवन का सबसे बड़ा ब्रेक पाना, लीड रोल निभाना और बॉक्स ऑफिस पर छा जाना. ख़ुद एक इंटरव्यू के दौरान नीना गुप्ता ने माना है कि 2018 में रिलीज हुई फिल्म ‘बधाई हो’ वह ब्रेक था जिसके लिए वह जीवन भर इंतज़ार करती रही थीं.
जिस इंडस्ट्री में पुरुष कलाकार एक उम्र के बाद अपने लिए सूटेबल रोल तलाशते नज़र आते हैं वहाँ नीना गुप्ता अब हर चौथी फ़िल्म में ना सिर्फ़ होती हैं बल्कि अदाकारी से कमाल भी पैदा करती हैं. तकरीबन 50 साल की उम्र में शादी भी कोई मामूली फ़ैसला नहीं थी. जिस समाज में 25 की उम्र पार करते-करते लड़कियां शादी के लिए बूढ़ी हो रही मान ली जाती हों वहां एक तलाक़, एक प्रेम संबंध और एक अविवाहित मातृत्व के बाद अपनी मर्ज़ी और सहूलियत से अपना मनपसंद साथी चुन लेना, वो साहस है जिसके लिए नीना गुप्ता को सैल्यूट किया जाना चाहिए लेकिन बस ये बयान..... दिल दुखा गया.
बात कहने-सुनने में बुरी लगती है लेकिन सच है कि ये दुनिया औरतों के लिए हमेशा एक मुश्किल जगह रही है. हर कदम एक नया इम्तिहान और हर इम्तिहान के बाद एक नई फ़जीहत, बिना किसी मुरव्वत उसके हिस्से में आती है. औरत शासक बनी, प्रशासक बनी, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, पुलिस ऑफिसर, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार, सुगढ़ गृहणी बनी. यहां तक कि उसने जघन्य अपराध भी करके दिखाए.
आसमान तक भी पहुंची फिर भी ज़मीन पर बराबरी की लड़ाई जारी रही. वो हमेशा अपने घर के अंदर लड़ती रही है और बाहर भी. दिमाग से लड़ती रही है और दिल से भी. ख़ासतौर पर वो औरत, जो सीना तान के खड़ी हो. आंख में आंख डाल कर, मुंह खोल कर बहस करने का माद्दा रखती हो. ऐसे में अपनी उल्टी धार और अपने फ़ैसले बना-बिगाड़ कर अपने मुताबिक जी रही औरतों को नीना गुप्ता जैसी शख्सियत से बड़ा हौसला मिलता है.
मैं सोचती हूं, वह हौसला बड़ा कीमती है. उसे टूटना नहीं चाहिए. नहीं, मैं ये बिल्कुल नहीं कह रही कि नीना गुप्ता को ऐसा नहीं सोचना चाहिए था. मैं इस मामले में ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था’ पर पक्का यक़ीन रखती हूं. हर किसी को अपनी तरह से सोचने की पूरी आज़ादी है. मेरा कंसर्न सिर्फ एक है कि नीना गुप्ता को यह बात बयान की शक्ल में जारी नहीं करनी चाहिए.
हो सकता है उन्होंने अपनी बेटी से यही कहा लेकिन उनके इस विचार को समाज की किसी भी जुझारू लड़की को बार-बार सुना कर टॉर्चर किया जा सकता है और उसे यह विश्वास दिलाया जा सकता है कि अगर शादी नहीं की तो सम्मान भी नहीं मिलेगा और यह किससे छुपा है कि ‘सम्मान’ एक ऐसी चीज़ है, जो पशु भी चाहता है. सम्मान के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं.
तो बजाय इसे सम्मान के साथ जोड़ने के, नीना गुप्ता यह कहती कि ‘अब उन्हें उनका मनचाहा साथी मिल गया है इसलिए वो शादी कर रही हैं’ तो वो सबसे ख़ूबसूरत होता. बात सिर्फ़ नीना गुप्ता की नहीं है. मुझे बार-बार, हर बार, हर मोड़ पर, हर फ़ैसले से पहले माया एंजिलो याद रहती हैं. हर औरत को रहनी चाहिए. माया ने कहा था कि, 'Each time a woman stands up for herself, without knowing it possibly, without claiming it, she stands up for all women.'
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