रेयान इंटरनेशनल स्कूल एक बार फिर ग़लत कारण से चर्चा में है. शुक्रवार को रेयान इंटरनेशनल स्कूल, गुरुग्राम में कक्षा 2 के एक विधार्थी की निर्मम हत्या का मामला सामने आया. शुरूआती जांच के अनुसार कक्षा 2 के छात्र प्रद्युम्न ठाकुर की स्कूल के बस कंडक्टर ने गला रेतकर हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार बस कंडक्टर ने स्कूल के शौचालय में प्रद्युम्न के साथ यौन उत्पीड़न का प्रयास किया. प्रद्युम्न के शोर मचाने पर बस कंडक्टर घबरा गया उसका गला रेतकर वहां से भाग गया. पिछले साल फ़रवरी 2016 में भी रेयान इंटरनेशनल स्कूल की दिल्ली की वसंत कुंज शाखा में एक विधार्थी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया था.
आज की तारीख में निजी स्कूल अभिभावकों से लाखों रुपए की डोनेशन और कई हज़ार रुपए मासिक फ़ीस लेते है. बदले में अभिभावक यह उम्मीद करते हैं कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले. अच्छी शिक्षा तो बाद की बात है यहां तो बच्चों की सुरक्षा पर ही सवालिया निशान खड़े हैं. कोई भी माता-पिता यह सोच भी नहीं सकते कि इतना खर्चा करने के बावजूद भी उनके बच्चों के साथ ऐसा होगा. उन माता पिता के ऊपर क्या गुज़रती होगी जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पेट काटकर भारी भरकम फ़ीस जमा करते हैं. पर स्कूलों की अव्यवस्था के कारण बदले में उन्हें जीवन भर का दर्द मिलता है?
यह समस्या सिर्फ़ एक स्कूल या एक शहर की नहीं बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था की है. क्या देश के सभी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं? अगर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं तो क्या चल भी रहे हैं? क्या स्कूलों में डॉक्टर, प्राथमिक उपचार की व्यवस्था, एंबुलेंस, सुरक्षा अधिकारी जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं? भूकंप की स्थिति में क्या हमारे स्कूल उसे झेलने में सक्षम हैं? आग लगने की स्थिति में स्कूलों में आग...
रेयान इंटरनेशनल स्कूल एक बार फिर ग़लत कारण से चर्चा में है. शुक्रवार को रेयान इंटरनेशनल स्कूल, गुरुग्राम में कक्षा 2 के एक विधार्थी की निर्मम हत्या का मामला सामने आया. शुरूआती जांच के अनुसार कक्षा 2 के छात्र प्रद्युम्न ठाकुर की स्कूल के बस कंडक्टर ने गला रेतकर हत्या कर दी. पुलिस के अनुसार बस कंडक्टर ने स्कूल के शौचालय में प्रद्युम्न के साथ यौन उत्पीड़न का प्रयास किया. प्रद्युम्न के शोर मचाने पर बस कंडक्टर घबरा गया उसका गला रेतकर वहां से भाग गया. पिछले साल फ़रवरी 2016 में भी रेयान इंटरनेशनल स्कूल की दिल्ली की वसंत कुंज शाखा में एक विधार्थी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया था.
आज की तारीख में निजी स्कूल अभिभावकों से लाखों रुपए की डोनेशन और कई हज़ार रुपए मासिक फ़ीस लेते है. बदले में अभिभावक यह उम्मीद करते हैं कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले. अच्छी शिक्षा तो बाद की बात है यहां तो बच्चों की सुरक्षा पर ही सवालिया निशान खड़े हैं. कोई भी माता-पिता यह सोच भी नहीं सकते कि इतना खर्चा करने के बावजूद भी उनके बच्चों के साथ ऐसा होगा. उन माता पिता के ऊपर क्या गुज़रती होगी जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पेट काटकर भारी भरकम फ़ीस जमा करते हैं. पर स्कूलों की अव्यवस्था के कारण बदले में उन्हें जीवन भर का दर्द मिलता है?
यह समस्या सिर्फ़ एक स्कूल या एक शहर की नहीं बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था की है. क्या देश के सभी स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं? अगर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं तो क्या चल भी रहे हैं? क्या स्कूलों में डॉक्टर, प्राथमिक उपचार की व्यवस्था, एंबुलेंस, सुरक्षा अधिकारी जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं? भूकंप की स्थिति में क्या हमारे स्कूल उसे झेलने में सक्षम हैं? आग लगने की स्थिति में स्कूलों में आग बुझाने की क्या सुविधा है? क्या स्कूलों की कक्षाएं, स्विमिंग पूल, कैंटीन, शौचालय, आदि अनधिकृत लोगों के लिए वर्जित हैं? इन सवालों का न तो देश-प्रदेश की सरकारों, न देश के सभी स्कूलों के पास जवाब है. जो हादसे रेयान इंटरनेशनल स्कूल में हुए, उस प्रकार की घटना देश के अधिकतम स्कूलों में घट सकती है. बल्कि ऐसी घटनाएं आए दिन घट भी रही है.
देश-प्रदेश की सरकारों द्वारा स्कूली विधार्थियों की सुरक्षा के लिए अनेक दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं. लेकिन फिर भी स्कूलों में विधार्थियों के साथ रैगिंग, मारपीट, यौन उत्पीड़न, अव्यवस्था के कारण मौत, हत्या के मामले आए दिन आते हैं. इससे साफ पता चलता है कि दिशा-निर्देश सिर्फ़ कागज़ों के लिए है. धरातल पर उनका अमल नज़र नहीं आता है. सरकार की इस विषय में उदासीनता इसी बात से पता चलती है की नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो बच्चों के खिलाफ हुए अपराध की जानकारी तो प्रकाशित करता है लेकिन भारत के स्कूलों में विधार्थियों के ऊपर हुए अपराध का कोई ब्यौरा ब्यूरो नहीं देता है.
इस समस्या में सुधार तभी संभव है जब स्कूलों की जवाबदेही तय हो. जब तक रेयान इंटरनेशनल स्कूल जैसे स्कूलों की मान्यता रद्द नहीं होगी. जब तक ऐसे स्कूलों के प्रधानाचार्यों पर क़ानूनी कारवाही नही होगी, तब तक सुधार नहीं आ सकता है. अभिभावकों की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि ज्यादा डोनेशन मांगने को स्कूल की गुणवता का मानक न मानें, बल्कि सुविधाओं की खुद जांच करें.
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