कई बार गलती से कोई ऐसी चीज मिल जाती है, जिसकी हमें बहुत जरूरत होती है. और जब वो चीज मिलती है तो खुशी का ठिकाना न रहना लाजमी है. जापान में वैज्ञानिकों के एक दल को भी कुछ वैसी ही खुशी हुई थी, जब 2016 में उन्हें प्लास्टिक के कचरे के ढेर में एक ऐसा बग (कीड़ा) मिला, जो प्लास्टिक को खा जाता है. प्लास्टिक हमेशा से ही दुनिया के लिए एक समस्या रहा है. भले ही इसका इस्तेमाल खूब होता है, लेकिन इस्तेमाल के बाद इसे नष्ट नहीं किया जा सकता. न तो ये सड़ता है न गलता है. जमीन हो, पानी हो या फिर हवा हो... हर किसी को प्लास्टिक प्रदूषित ही करता है. लेकिन अब इस बग की मदद से प्लास्टिक को ठिकाने लगाया जा सकेगा.
वैज्ञानिकों ने खोज निकाला एंजाइम
जब से वैज्ञानिकों को ये बग मिला था, तब से ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनीवर्सिटी और अमेरिकी ऊर्जा विभाग के राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा प्रयोगशाला की रिसर्च टीम इसके एक एंजाइम की प्राकृतिक संरचना खोजने की कोशिश में लगे थे. अब यह पता चल चुका है कि वह बग कौन सा एंजाइम पैदा करता है, जिससे प्लास्टिक को डीग्रेड किया जा सकता है, जिसके बाद वह प्लास्टिक वातारण के लिए हानिकारक नहीं रहेगा. अब वैज्ञानिकों ने इसे बनाने में सफलता हासिल कर ली है. इस एंजाइम को प्लास्टिक को डीग्रेड करने में कुछ दिन लग जाते हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्द ही इसकी स्पीड को बढ़ाया जा सकता है.
अब समझिए कैसे काम करेगा ये
पहली बात तो ये है कि यह एंजाइम सिर्फ PET (polyethylene terephthalate) प्लास्टिक को डीग्रेड करेगा. आपको बता दें कि इस प्लास्टिक से बोतलें और पॉलीबैग जैसी चीजें बनती हैं. अगर आपको लग रहा है कि इस एंजाइम की वजह से प्लास्टिक खत्म हो जाएगा, तो ऐसा नहीं है. इसके चलते प्लास्टिक डीग्रेड होगा और ऐसी स्थिति में आ जाएगा कि उसे रीसाइकिल...
कई बार गलती से कोई ऐसी चीज मिल जाती है, जिसकी हमें बहुत जरूरत होती है. और जब वो चीज मिलती है तो खुशी का ठिकाना न रहना लाजमी है. जापान में वैज्ञानिकों के एक दल को भी कुछ वैसी ही खुशी हुई थी, जब 2016 में उन्हें प्लास्टिक के कचरे के ढेर में एक ऐसा बग (कीड़ा) मिला, जो प्लास्टिक को खा जाता है. प्लास्टिक हमेशा से ही दुनिया के लिए एक समस्या रहा है. भले ही इसका इस्तेमाल खूब होता है, लेकिन इस्तेमाल के बाद इसे नष्ट नहीं किया जा सकता. न तो ये सड़ता है न गलता है. जमीन हो, पानी हो या फिर हवा हो... हर किसी को प्लास्टिक प्रदूषित ही करता है. लेकिन अब इस बग की मदद से प्लास्टिक को ठिकाने लगाया जा सकेगा.
वैज्ञानिकों ने खोज निकाला एंजाइम
जब से वैज्ञानिकों को ये बग मिला था, तब से ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनीवर्सिटी और अमेरिकी ऊर्जा विभाग के राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा प्रयोगशाला की रिसर्च टीम इसके एक एंजाइम की प्राकृतिक संरचना खोजने की कोशिश में लगे थे. अब यह पता चल चुका है कि वह बग कौन सा एंजाइम पैदा करता है, जिससे प्लास्टिक को डीग्रेड किया जा सकता है, जिसके बाद वह प्लास्टिक वातारण के लिए हानिकारक नहीं रहेगा. अब वैज्ञानिकों ने इसे बनाने में सफलता हासिल कर ली है. इस एंजाइम को प्लास्टिक को डीग्रेड करने में कुछ दिन लग जाते हैं. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि जल्द ही इसकी स्पीड को बढ़ाया जा सकता है.
अब समझिए कैसे काम करेगा ये
पहली बात तो ये है कि यह एंजाइम सिर्फ PET (polyethylene terephthalate) प्लास्टिक को डीग्रेड करेगा. आपको बता दें कि इस प्लास्टिक से बोतलें और पॉलीबैग जैसी चीजें बनती हैं. अगर आपको लग रहा है कि इस एंजाइम की वजह से प्लास्टिक खत्म हो जाएगा, तो ऐसा नहीं है. इसके चलते प्लास्टिक डीग्रेड होगा और ऐसी स्थिति में आ जाएगा कि उसे रीसाइकिल करके फिर से उससे प्लास्टिक की बोतलों या फिर पॉलीबैग में बदला जा सके.
मौजूदा समय में प्लास्टिक को रीसाइकिल करने के बाद उससे सिर्फ अपारदर्शी फाइबर ही बनाया जा सकता था, पारदर्शी बोतलें नहीं. इस एंजाइम की मदद से प्लास्टिक की बोतलों से दोबारा प्लास्टिक की साफ बोतलें बन सकेंगी. इस तरह और अधिक प्लास्टिक पैदा करने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि पुराना प्लास्टिक ही उस जरूरत को पूरा कर देगा. हर मिनट करीब 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें बिकती हैं, जिनमें से सिर्फ 14 फीसदी की रीसाइकिल हो पाती हैं. बहुत सारी बोतले समुद्र में पहुंच जाती हैं और फिर समुद्र के जरिए ऐसी जगह भी पहुंच जाती हैं जहां पर इंसान भी नहीं पहुंच पाता.
यहां पहुंचा दुनिया का सबसे अधिक प्लास्टिक
दक्षिण पैसिफिक में स्थित हैंडरसन आइलैंड (Henderson Island) प्लास्टिक के खतरनाक होने का सबसे बड़ा उदाहरण है. यह आइलैंड न्यूजीलैंड और चिली से बराबर दूरी पर है. 2015 में इस आइलैंड पर गई ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ तस्मानिया की साइंटिस्ट Jennifer Lavers के अनुसार इस आइलैंड पर करीब 18 टन प्लास्टिक है. देखिए इस आइलैंड की कुछ तस्वीरें और इसका मैप. आपको जानकर हैरानी होगी कि NESCO ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज घोषित किया है, जहां पर अभी तक इंसान नहीं पहुंच सका है. सवाल यह है कि जब वहां इंसान जाते नहीं तो इतना सारा प्लास्टिक आया कैसे? दरअसल, समुद्र के बीच में स्थित इस आइलैंड पर लहरों के साथ रोजाना करीब 3,500 प्लास्टिक की चीजें आती हैं और यहां जमा होती जाती हैं. इसी के चलते धीरे-धीरे इस आइलैंड पर प्लास्टिक का ढेर लग गया है.
9.1 अरब टन है प्लास्टिक
अमेरिका के रिसर्चर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय धरती पर करीब 9.1 अरब टन प्लास्टिक है. आपका यह जानना बेहद जरूरी है कि इस समय दुनिया की आबादी करीब 7.6 अरब है. यानी अगर देखा जाए तो हर व्यक्ति पर लगभग 1.2 टन का प्लास्टिक है. सोचने वाली बात ये है कि जो चीज इतनी खतरनाक है, उसे भी हमने इतनी अधिक मात्रा में बना लिया है. ये कहना गलत नहीं होगा कि अपनी मौत का सामान हम खुद ही बना रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया की मुंडोर्क यनिवर्सिटी और इटली की सिएना यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने कहा है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्री जीवों के लिए बहुत ही हानिकारक हैं, क्योंकि इसमें हानिकारिक कैमिकल होते हैं. बंगाल की खाड़ी में इससे बहुत अधिक प्रदूषण फैल चुका है. व्हेल और शार्क जैसी बड़ी मछलियों के लिए यह बहुत बड़ा खतरा हैं.
जरा सोच कर देखिए, समुद्र में लगातार प्लास्टिक फेंकने से वह ऐसी जगह भी तबाही मचाने को तैयार है, जो जगह इंसानों से अछूती है. अगर समुद्र के बीच में स्थित एक आइलैंड का ये हाल है तो फिर शहरों में जमा प्लास्टिक से कितना प्रदूषण होता होगा, इस बारे में सिर्फ सोच कर भी डर लग जाता है. अभी तो वैज्ञानिकों ने सिर्फ यह खोज की है कि प्लास्टिक के दोबारा वैसा ही प्लास्टिक बनाया जा सके, लेकिन इस एंजाइम पर आगे और भी रिसर्च की जाएगी, ताकि यह विकसित होकर इतना पावरफुल बन जाए कि प्लास्टिक की पूरी तरह से खाकर हजम कर जाए या फिर उसे बायो डीग्रेडेबल बना दे. जिस दिन ऐसा हो जाएगा उस दिन वाकई में दुनिया को प्लास्टिक से आबादी मिल जाएगी.
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