आपने ये कहावत जरूर सुनी ही होगी कि 'मर्द को दर्द नहीं होता.' लेकिन आज विज्ञान इस कहावत को सिरे से गलत साबित कर रहा है. इस बात को सुनकर तो मेल ईगो थोड़ा सा हर्ट भी हो सकता है कि मर्द को दर्द भी होता है और औरत से ज्यादा होता है. जी हां, महिलाओं की तुलना में पुरुष दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.
एक शोध से पता चलता है कि स्त्री और पुरुष दोनों अलग-अलग तरीके से दर्द का अनुभव करते हैं और पुरुष दर्द के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं. पुरुष पुराने दर्द को बहुत स्पष्ट तरह से याद कर सकते हैं जबकि महिलाएं नहीं और इसीलिए दोबारा दर्द का अनुभव होने पर पुरुष ज्यादा तनाव में आ जाते हैं. महिलाएं दर्द के पिछले अनुभवों की अपेक्षा कम प्रतिक्रिया देती हैं और इसलिए कम परेशान रहती हैं.
ये रिसर्च मैकगिल यूनिवर्सिटी के पेन स्टडीज़ के प्रोफेसर डॉ. जेफरी मोगिल ने की है. निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए पहले ये रिसर्च चूहों पर की गई और बाद में मनुष्यों पर.
डॉ. जेफरी का कहना है- हमने चूहों में दर्द के प्रति अतिसंवेदनशीलता को देखने के लिए एक प्रयोग किया और नर और मादा चूहों के बीच तनाव के स्तर में आश्चर्यजनक अंतर पाया. क्या इंसानों में भी यही अंतर दिखता है, ये जानने के लिए हमने यही प्रयोग इंसानों पर करने का निर्णय लिया. और हमें ये जानकर बेहद आश्चर्य हुआ कि ठीक वैसा ही अंतर इंसानों में भी देखने को मिला, जैसा कि चूहों में दिखा था.
18 से 40 की उम्र के 41 पुरुष और 38 महिलाओं पर ये शोध किया गया. उन्हें एक खास कमरे में ले जाया गया जहां ताप के जरिए उनकी कलाई पर कम तीव्रता का दर्द दिया गया. लोगों ने 100 पॉइंट के स्केल पर उस दर्द की तीव्रता की रेटिंग की और उसके बाद बीपी चैक करने वाला टाइट कफ पहनकर उन्हें 20...
आपने ये कहावत जरूर सुनी ही होगी कि 'मर्द को दर्द नहीं होता.' लेकिन आज विज्ञान इस कहावत को सिरे से गलत साबित कर रहा है. इस बात को सुनकर तो मेल ईगो थोड़ा सा हर्ट भी हो सकता है कि मर्द को दर्द भी होता है और औरत से ज्यादा होता है. जी हां, महिलाओं की तुलना में पुरुष दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.
एक शोध से पता चलता है कि स्त्री और पुरुष दोनों अलग-अलग तरीके से दर्द का अनुभव करते हैं और पुरुष दर्द के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं. पुरुष पुराने दर्द को बहुत स्पष्ट तरह से याद कर सकते हैं जबकि महिलाएं नहीं और इसीलिए दोबारा दर्द का अनुभव होने पर पुरुष ज्यादा तनाव में आ जाते हैं. महिलाएं दर्द के पिछले अनुभवों की अपेक्षा कम प्रतिक्रिया देती हैं और इसलिए कम परेशान रहती हैं.
ये रिसर्च मैकगिल यूनिवर्सिटी के पेन स्टडीज़ के प्रोफेसर डॉ. जेफरी मोगिल ने की है. निष्कर्षों की पुष्टि करने के लिए पहले ये रिसर्च चूहों पर की गई और बाद में मनुष्यों पर.
डॉ. जेफरी का कहना है- हमने चूहों में दर्द के प्रति अतिसंवेदनशीलता को देखने के लिए एक प्रयोग किया और नर और मादा चूहों के बीच तनाव के स्तर में आश्चर्यजनक अंतर पाया. क्या इंसानों में भी यही अंतर दिखता है, ये जानने के लिए हमने यही प्रयोग इंसानों पर करने का निर्णय लिया. और हमें ये जानकर बेहद आश्चर्य हुआ कि ठीक वैसा ही अंतर इंसानों में भी देखने को मिला, जैसा कि चूहों में दिखा था.
18 से 40 की उम्र के 41 पुरुष और 38 महिलाओं पर ये शोध किया गया. उन्हें एक खास कमरे में ले जाया गया जहां ताप के जरिए उनकी कलाई पर कम तीव्रता का दर्द दिया गया. लोगों ने 100 पॉइंट के स्केल पर उस दर्द की तीव्रता की रेटिंग की और उसके बाद बीपी चैक करने वाला टाइट कफ पहनकर उन्हें 20 मिनट तक कलाई की एक्सरसाइज़ करने को कहा गया. 80 लोगों में से केवल 7 ने दर्द की तीव्रता की रेटिंग 50 से कम रखी थी.
अगले दिन दोबारा उन लोगों को उसी कमरे में ले जाकर उसी जगह पर दोबारा उतना ही दर्द दिया गया. पाया गया कि जिस तीव्रता का दर्द पुरुषों ने एक दिन पहले झेला था, अगले दिन पुरुषों ने उसे पिछली बार से ज्यादा बताया. जबकि महिलाओं ने नहीं.
डॉक्टर जेफरी ने बताया- हमारा मानना है कि चूहे और पुरुष दूसरी बार कफ की उम्मीद कर रहे थे. और उसी उम्मीद के तनाव की वजह से वो दर्द के प्रति ज्यादा संवेदशील हो गए.
हम भले ही पुरुषों को ज्यादा मजबूत देखते हैं, और मानते हैं कि महिलाओं की तुलना में भारी सामान पुरुष आसानी से उठा लेते हैं. लेकिन दोनों की दर्द सहने की क्षमता आश्चर्जनक रूप से अलग-अलग होती है. यानी महिलाएं शारीरिक रूप से भले ही पुरुषों से कमजोर लगें लेकिन दर्द सहने में वो पुरुषों से कहीं आगे हैं. उसी तरह पुरुष भले ही खुद को सख्त और कठोर कहें लेकिन दर्द होने पर सबसे पहले चीख उन्ही की निकलती है. वैज्ञानिक तो आज इस सत्य पर शोध कर रहे हैं जबकि प्रकृति तो खुद इसे साबित करती है. अगर पुरुष इतने ही शक्तिशाली हैं तो एक बच्चे को जन्म एक महिला ही क्यों देती है? जाहिर है महिलाएं दर्द सहती हैं, हमेशा सहती आई हैं. और सहती रहेंगी. इसीलिए उन्हें शक्ति का रूप भी कहा जाता है. लेकिन उनका इरादा पुरुषों को कमतर दिखाना कभी नहीं होता. पुरुष बस उनकी सहनशीलता का सम्मान करें.
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