क्राइम क्या है? अक्सर आपके दिमाग में यह सवाल आता होगा. क्राइम यानि अपराध का अस्तित्व अनादि काल से है. प्रारंभिक आदिम समाज में लोकरीतियां, प्रथाएं, इंसानी आचरण को नियंत्रित करती थी. इनका उल्लंघन करने पर एक समूह द्वारा उचित दंड दिया जाता था. अमेरिकी समाजशास्त्री एडविन सदरलैंड का कहना है कि अपराध सामाजिक मूल्यों के लिये ऐसा घातक कार्य है, जिसके लिए समाज दंड की व्यवस्था करता है. भारत में यह दंड विधान संविधान संवत है. भारतीय संविधान में लिखे कानूनों के आधार पर ही दोष सिद्धी और सजा का ऐलान होता है. इनदिनों फांसी की सजा चर्चा के केंद्र में है. दरअसल, उत्तर प्रदेश की मथुरा जेल में बंद एक महिला के लिए सजा-ए-मौत मुर्कर हुई है. महिला का नाम शबनम है. उसे फांसी होनी है.
'शबनम' जितना सुंदर और आकर्षक नाम है, उतना ही प्यारा इसका मतलब भी है. शबनम का अर्थ 'ओस की बूंद' होता है. 'ओस की बूंदों' में मासूमियत इतनी की इस पर हर कोई फिदा हो जाए. तभी तो एक शायर ने लिखा है, 'ओस की बूंद बन, जो तुम ठहर जाओ, मुझमें! हम और भी निखर जाएंगे, पहले से ज्यादा!!' लेकिन ये शबनम 'शीतल' नहीं 'शोला' है. इस शबनम का दोष संगीन है. उस पर अपने ही परिवार के सात लोगों की हत्या का आरोप लगा था. तमाम सबूतों और गवाहों की बुनियाद पर शबनम के लिए फांसी जैसी सजा का ऐलान किया गया. शबनम आजाद भारत की ऐसी पहली महिला होगी जिसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. उसके अपराध इतने भयावह थे कि उसकी दया याचिकाओं को राष्ट्रपति तक खारिज कर चुके हैं.
जरायम की दुनिया में शबनम कोई अकेली-इकलौती नहीं है. उसकी तरह और भी कई महिलाएं हैं, जिनके जुर्म की कहानियां सुनने के बाद आपके होश उड़ जाएंगे. कहते हैं मर्द ज्यादा क्रूर होते हैं, लेकिन...
क्राइम क्या है? अक्सर आपके दिमाग में यह सवाल आता होगा. क्राइम यानि अपराध का अस्तित्व अनादि काल से है. प्रारंभिक आदिम समाज में लोकरीतियां, प्रथाएं, इंसानी आचरण को नियंत्रित करती थी. इनका उल्लंघन करने पर एक समूह द्वारा उचित दंड दिया जाता था. अमेरिकी समाजशास्त्री एडविन सदरलैंड का कहना है कि अपराध सामाजिक मूल्यों के लिये ऐसा घातक कार्य है, जिसके लिए समाज दंड की व्यवस्था करता है. भारत में यह दंड विधान संविधान संवत है. भारतीय संविधान में लिखे कानूनों के आधार पर ही दोष सिद्धी और सजा का ऐलान होता है. इनदिनों फांसी की सजा चर्चा के केंद्र में है. दरअसल, उत्तर प्रदेश की मथुरा जेल में बंद एक महिला के लिए सजा-ए-मौत मुर्कर हुई है. महिला का नाम शबनम है. उसे फांसी होनी है.
'शबनम' जितना सुंदर और आकर्षक नाम है, उतना ही प्यारा इसका मतलब भी है. शबनम का अर्थ 'ओस की बूंद' होता है. 'ओस की बूंदों' में मासूमियत इतनी की इस पर हर कोई फिदा हो जाए. तभी तो एक शायर ने लिखा है, 'ओस की बूंद बन, जो तुम ठहर जाओ, मुझमें! हम और भी निखर जाएंगे, पहले से ज्यादा!!' लेकिन ये शबनम 'शीतल' नहीं 'शोला' है. इस शबनम का दोष संगीन है. उस पर अपने ही परिवार के सात लोगों की हत्या का आरोप लगा था. तमाम सबूतों और गवाहों की बुनियाद पर शबनम के लिए फांसी जैसी सजा का ऐलान किया गया. शबनम आजाद भारत की ऐसी पहली महिला होगी जिसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा. उसके अपराध इतने भयावह थे कि उसकी दया याचिकाओं को राष्ट्रपति तक खारिज कर चुके हैं.
जरायम की दुनिया में शबनम कोई अकेली-इकलौती नहीं है. उसकी तरह और भी कई महिलाएं हैं, जिनके जुर्म की कहानियां सुनने के बाद आपके होश उड़ जाएंगे. कहते हैं मर्द ज्यादा क्रूर होते हैं, लेकिन इनकी करतूतों के बारे में जानने के बाद क्रूरता की जितनी परिभाषाएं अबतक गढ़ी गई होंगी, वो छोटी पड़ जाएंगी. इसमें साइनाइड मल्लिका से लेकर सोनिया तक और रेणुका से लेकर सीमा तक कई नाम हमारे सामने हैं. बंगलुरू की साइनाइड मल्लिका का असली नाम केडी केम्पामा, जो इस वक्त अपने गुनाहों के लिए उम्रकैद की सजा काट रही है, लेकिन हरियाणा की सोनिया, महाराष्ट्र की सीमा और रेणुका को सजा-ए-मौत मिल चुकी है. वे अपने अंतिम समय का इंतजार कर रहे हैं. फांसी के फंदे पर लटकने के साथ ही इनका इंतजार भी खत्म हो जाएगा.
शबनम: प्रेमी की खातिर चढ़ा दी परिवार की बलि
कहते हैं, ये इश्क़ नहीं आसां बस इतना समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है...शबनम इश्क में ऐसी डूबी की उसने अपने प्रेमी के लिए अपनी पारिवारिक जिंदगी में ही आग लगा ली. 14 अप्रैल 2008. उत्तर प्रदेश के अमरोहा के हसनपुर थाना क्षेत्र में एक ही परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई. ये नरसंहार किसी और ने नहीं, बल्कि परिवार की बेटी ने ही अंजाम दिया था. शौकत की बेटी शबनम और गांव का ही एक लड़का सलीम एक-दूसरे बहुत प्यार करते थे. परिवार वाले शबनम-सलीम के रिश्ते के खिलाफ थे. बस फिर क्या था अपने प्रेम पथ से परिवार को हटाने के लिए शबनम और सलीम ने ऐसी साजिश रची कि पुलिस के भी पैरों तले जमीन खिसक गई. प्रेमी के साथ मिलकर प्रेमिका ने अपने परिवार के 7 लोगों को मार डाला.
वारदात को अंजाम देने के बाद सलीम वहां से फरार हो गया. शबनम दहाड़ मारकर रोने लगी. उसने लोगों से कहा कि घर में डकैती हुई है. बदमाशों ने 7 लोगों का मर्डर किया है. लेकिन पुलिस ने जब सलीम से कड़ाई से पूछताछ की तो पूरा सच सामने आ गया. 15 जुलाई 2010 को अमरोहा के तत्कालीन जिला जज एए हुसैनी ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई. फांसी की सजा को पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा. अमरोहा जिला जज ने दोनों का डेथ वारंट भी जारी कर दिया. इस बीच शबनम को उसके प्रेमी से एक बच्चा हुआ. उसने गवर्नर और प्रेसिडेंट से बेटे का वास्ता देकर क्षमा की गुहार लगाई. हालांकि, शबनम की डेथ वारंट के खिलाफ याचिका पूर्व प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी ने रिजेक्ट कर दी. सितम्बर 2015 में यूपी के गवर्नर राम नाईक ने भी दया याचिका याचिका खारिज कर दी थी. शबनम गांव के ही स्कूल में शिक्षा मित्र के पद पर कार्यरत थी, जबकि उसका प्रेमी सलीम महज छठीं पास है.
सोनिया: विधायक की बेटी की सनसनीखेज वारदात
हरियाणा की रहने वाली सोनिया और उसके पति संजीव ने प्रॉपर्टी के लालच में अपने ही परिवार के आठ लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी. सोनिया के पिता बरवाला के विधायक रेलूराम पुनिया थे. 23 अगस्त 2001 को रेलूराम और उनके परिवार के आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. साल 2004 को सेशन कोर्ट ने दोनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में साल 2005 को हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया. साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने वापस सेशन कोर्ट की सजा बरकरार रखने का फैसला दिया. याचिका खारिज होने के बाद सोनिया और संजीव ने राष्ट्रपति के पास दया के लिए याचिका लगाई. इसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दिया. इसी बीच संजीव पैरोल से फरार हो गया. तीन साल पुलिस उसे खोजती रही.
इसी साल 2 फरवरी को मेरठ से संजीव को गिरफ्तार किया गया है. उसके बारे में एक चौंकाने वाली जानकारी यह सामने आई है कि वह पिछले दो सालों से अमरेली (गुजरात) जिले के राजुला गांव के छतलिया आश्रम में साधू बनकर रह रहा था. बताया जाता है कि संजीव और सोनिया ने अपने जन्मदिन पर 23 अगस्त 2001 को फार्म हाउस में एक पार्टी रखी थी. पार्टी में सभी को बुलाया गया. इस दौरान सोनिया और संजीव ने सभी को कोल्डड्रिंक में बेहोशी की दवा मिला दी. सभी के बेहोश होते ही लोहे के सरिए से सिर में वार कर एक के बाद एक सभी को मौत के घाट उतार दिया. रेलूराम पुनिया, पत्नी कृष्णा, बेटे सुनील, बहू शकुंतला, बेटी प्रियंका, 4 साल के पोते लोकेश, ढाई साल की पोती शिवानी और डेढ़ महीने की प्रीति की हत्या कर दी गई.
रेणुका और सीमा: 42 बच्चों की हत्यारिन महिलाएं
नाम- रेणुका शिंदे और सीमा गावित. रिश्ता- दोनों सगी बहनें. पता- पुणे की यरवडा जेल. जुर्म- 42 बच्चों की हत्या. जी हां, मानवीय इतिहास में सीरियल किलिंग की ऐसी वारदात शायद ही पहले कभी हुई हो, जहां एक ही परिवार की महिलाएं शामिल हो. इसमें रेणुका और सीमा के साथ उनकी मां अंजना गावित भी शामिल थी. उसकी मौत जेल में ही एक बीमारी से हो चुकी है. अंजना नासिक की रहने वाली थी. एक ट्रक ड्राइवर के साथ भागकर पुणे आ गई. दोनों की एक बेटी हुई रेणुका. प्रेमी ट्रक ड्राइवर पति ने अंजना को छोड़ दिया. एक साल बाद अंजना ने एक रिटायर्ड सैनिक मोहन से शादी कर ली. इससे दूसरी बेटी सीमा हुई. ये शादी भी नहीं चली. अंजना दो बेटियों के साथ सड़क पर आ गई. पेट भरने के लिए बच्चियों के साथ चोरियां करने लगी.
बताया जाता है कि कुछ दिनों बाद मां और दोनों बेटियां मिलकर बच्चे चुराने लगीं. उन बच्चों से भी चोरी करातीं. बच्चा काम का नहीं रहता तो उसे मार देतीं. ज्यादातर को पटक-पटक मारती थी. बच्चों को मारने के उन्होंने ऐसे तरीके अपनाएं कि सुनकर ही दिल दहल जाएगा. साल 1990 से लेकर 1996 तक महज 6 साल में तीनों ने मिलकर 42 बच्चों की हत्या कर दी थी. साल 2001 में एक सेशन कोर्ट ने दोनों बहनों को मौत की सजा सुनाई थी. हाईकोर्ट में इस केस की अपील में साल 2004 को हाईकोर्ट ने भी 'मौत की सजा' को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि ऐसी औरतों के लिए ‘मौत की सजा' से कम कुछ भी नहीं है. हालांकि, पुलिस इन तीनों महिलाओं को 13 अपहरण और 6 हत्याओं में आरोप सिद्ध कर पाने में ही सफल रही है.
साइनाइड मल्लिका: 'रेयरेस्ट ऑफ़ दी रेयर' केस
वैसे तो मानवीय इतिहास में सीरियल किलिंग की वारदात बहुत पुरानी है. 'सीरियल किलर' ठग बहराम से लेकर निठारी के 'नर पिशाच' सुरेंद्र कोली तक अनेक नाम हमारे सामने हैं. लेकिन देश की सबसे पहली लेडी सीरियल किलर साइनाइड मल्लिका की कहानी बहुत खौफनाक है. मल्लिका साइनाइड खिलाकर लोगों को मार डालती थी. उसका वास्तविक नाम केजी केम्पम्मा है. वो बंगलुरू की रहने वाली है. उसने 1999 से 2007 के बीच छह महिलाओं को साइनाइड खिला कर मार डाला था. वह महिलाओं को हमदर्द बनने के नाटक करती और फिर मार डालती थी. वह मंदिरों के आसपास मानसिक रूप से परेशान महिलाओं को खोजती और उनको भरोसा दिलाती थी कि वो सब पूजा-पाठ से सब ठीक कर देगी. महिलाएं उसकी बातों में आ जाती थीं.
साइनाइड मल्लिका साजिश के तहत पहले तो पूजा-पाठ करती, लेकिन बाद में उनके खाने-पीने की चीज में साइनाइड मिला कर अपने शिकार को मौत के हवाले कर देती थी. वह ज्वेलरी की दुकान गहनों की सफाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले साइनाइड का इस्तेमाल करती. हर वारदात से उसको करीब 30 हजार मिल जाते थे. मल्लिका चिट फंड का व्यापार भी करती थी. अपने परिवार से अलग रहती थी. इन वारदातों में उसके अलावा किसी की कोई भागीदारी नहीं थी. साल 2007 में 44 साल की उम्र में इस लेडी सीरियल किलर को गिरफ्तार किया गया. उसको अप्रैल, 2012 में सजा-ए-मौत दी गई, जिसे उम्रकैद में बदल दिया गया. उसके खिलाफ कोई सीधा सबूत नहीं मिल पाने के कारण कोर्ट ने इस केस को 'रेयरेस्ट ऑफ़ दी रेयर' केस में डाला.
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