अमेरिका में इन दिनों क्रांति छिड़ी हुई है, जिसे #BlackLivesMatter जैसी बातों के साये में लड़ने की कोशिश जारी है. अमेरिका के अश्वेत नागरिकों के साथ ही गोरे अमेरिकी भी सड़कों पर उतरे हुए हैं और जगह-जगह प्रदर्शन की मशाल जल रही है. इस बीच कोरोना संकट भी अमेरिका और भारत समेत लगभग पूरी दुनिया पर कब्जा जमाए है. ऐसे में अमेरिका में जारी क्रांति की आग दिल्ली स्थित शाहीन बाग में भी सुलगने लगी है और यहां भी नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ फिर से एकजुट होकर मशाल जलाने यानी विरोध की शुरुआत की कोशिशें होने लगी है. साथ ही इस तरह की भी खबरें आ रही हैं कि जामिया मिलिया इस्लामिया के स्टूडेंट भी यूनिवर्सिटी गेट पर आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं. लग रहा है कि #BlackLivesMatter का इंडियन वर्जन #MuslimLivesMatter दिखने को मिल सकता है.
दिल्ली में कोरोना वायरस से हालात बहुत खराब हैं
इस बीच दिल्ली पुलिस ने भी शाहीन बाग में कैंप लगा दिया है और किसी प्रकार की गतिविधि पर पैनी नजर बनाए हुए है. सोशल मीडिया पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है ताकि किसी प्रकार के भड़काऊ पोस्ट लिखने वालों और कोरोना संकट के बीच आंदोलन फैलाकर लोगों की जान दांव पर लगाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके. एंटी सीएए प्रोटेस्ट का एपिसेंटर माने जाने वाले शाहीन बाग पर सरकार की नजर इसलिए भी है कि दिल्ली में कोरोना वायरस का विस्फोट देखने को मिल रहा है और संक्रमितों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में किसी तरह का रिस्क लोगों की लाशें बिछाने के लिए काफी है. इसी कारण केंद्र की नरेंद्र मोदी और प्रदेश की अरविंद केजरीवाल सरकार शाहीन बाग प्रदर्शन स्थल को लेकर सतर्क हो गई है.
अब बात करते हैं कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि शाहीन बाग आंदोलन को पूनर्जीवित करने की बात निकल आई और इससे जुड़ी गतिविधियों की खबर भी आने लगी, जबकि दिल्ली समेत पूरा देश कोरोना वायरस की चपेट में हैं और लगातार बढ़ रहीं चुनौतियों से दो-दो हाथ करने की असफल कोशिश करता दिख रहा...
अमेरिका में इन दिनों क्रांति छिड़ी हुई है, जिसे #BlackLivesMatter जैसी बातों के साये में लड़ने की कोशिश जारी है. अमेरिका के अश्वेत नागरिकों के साथ ही गोरे अमेरिकी भी सड़कों पर उतरे हुए हैं और जगह-जगह प्रदर्शन की मशाल जल रही है. इस बीच कोरोना संकट भी अमेरिका और भारत समेत लगभग पूरी दुनिया पर कब्जा जमाए है. ऐसे में अमेरिका में जारी क्रांति की आग दिल्ली स्थित शाहीन बाग में भी सुलगने लगी है और यहां भी नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ फिर से एकजुट होकर मशाल जलाने यानी विरोध की शुरुआत की कोशिशें होने लगी है. साथ ही इस तरह की भी खबरें आ रही हैं कि जामिया मिलिया इस्लामिया के स्टूडेंट भी यूनिवर्सिटी गेट पर आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं. लग रहा है कि #BlackLivesMatter का इंडियन वर्जन #MuslimLivesMatter दिखने को मिल सकता है.
दिल्ली में कोरोना वायरस से हालात बहुत खराब हैं
इस बीच दिल्ली पुलिस ने भी शाहीन बाग में कैंप लगा दिया है और किसी प्रकार की गतिविधि पर पैनी नजर बनाए हुए है. सोशल मीडिया पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है ताकि किसी प्रकार के भड़काऊ पोस्ट लिखने वालों और कोरोना संकट के बीच आंदोलन फैलाकर लोगों की जान दांव पर लगाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके. एंटी सीएए प्रोटेस्ट का एपिसेंटर माने जाने वाले शाहीन बाग पर सरकार की नजर इसलिए भी है कि दिल्ली में कोरोना वायरस का विस्फोट देखने को मिल रहा है और संक्रमितों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. ऐसे में किसी तरह का रिस्क लोगों की लाशें बिछाने के लिए काफी है. इसी कारण केंद्र की नरेंद्र मोदी और प्रदेश की अरविंद केजरीवाल सरकार शाहीन बाग प्रदर्शन स्थल को लेकर सतर्क हो गई है.
अब बात करते हैं कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि शाहीन बाग आंदोलन को पूनर्जीवित करने की बात निकल आई और इससे जुड़ी गतिविधियों की खबर भी आने लगी, जबकि दिल्ली समेत पूरा देश कोरोना वायरस की चपेट में हैं और लगातार बढ़ रहीं चुनौतियों से दो-दो हाथ करने की असफल कोशिश करता दिख रहा है. लोग ये भी बोल रहे हैं कि क्या आन पड़ी है जो इस संकट काल में भी एंटी सीएए प्रोटेस्ट का झंडा उठाए शाहीन बाग 2.0 शुरू करने की योजना बन रही है. तो बताते चलें कि बीते हफ्ते अमेरिका के मिनिसोटा राज्य स्थित मिनियापॉलिस इलाके में गोरे पुलिसकर्मी ने एक अश्वेत अमेरिकी नागरिक की हत्या कर दी. इस घटना का वीडियो जैसे ही वायरल हुआ, अमेरिका में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. सबसे दिलचस्प बात ये है कि रंगभेद और नस्लभेद के खिलाफ न सिर्फ अश्वेत अमेरिकी घरों से बाहर निकले, बल्कि इनका गोरे अमेरिकियों ने भी खूब साथ दिया और अमेरिका की सड़कें #BlackLivesMatter बैनर से पट गईं.
सरकार सख्त, दोषियों के धड़पकड़ की कवायद तेज
अमेरिका का यह आंदोलन इतना प्रभावी और सफल दिखने लगा कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी यह बात उठने लगी कि अगर अमेरिका में संगठित तरीके से आंदोलन हो सकते हैं और इसका सकारात्मक परिणाम दिख सकता है तो हमारे यहां क्यों नहीं. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और सोशल मीडिया पर चिंगारी चल गई. और जब चिंगारी जल गई तो इसे यहां के कुछ बुद्धिजीवियों ने हवा दे दी और फिर आग लग गई. लेकिन क्या यह संभव और जरूरी है, जब समूचा देश और राष्ट्रीय राजधानी कोरोना वायरस से त्रस्त हो. कोरोना संकट बढ़ने के बाद 24 मार्च को लॉकडाउन में जबरदस्ती शाहीन बाग खोलने के बाद दिल्ली पुलिस ने कई उत्पातियों और दिल्ली दंगे के दोषियों को धर दबोचा और यह प्रक्रिया जारी है, ताकि फिर से आंदोलन की आग में दिल्ली न जले. सरकार शाहीन बाग और दिल्ली दंगों से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी करके दबाव बढ़ा रही है.
वहीं शाहीन बाग आंदोलन की योजना बनाने वाले इसके स्वरूप में बदलाव को लेकर सिर खपा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस बार अगर आंदोलन शुरू हुआ तो यह काफी आक्रामक होगा और इसे देशव्यापी बनाने की कोशिश होगी, चाहे वह सोशल मीडिया पर आक्रामक प्रचार के जरिये हो या जगह-जगह पर लोगों को एकजुट करके. माना जा रहा है कि नागरिकता कानून, एनआरसी और एनपीआर को वापस लेने की मांग को इस बार #MuslimLivesMatter नारे के साये में लड़ने की योजना बनाई जा रही है. शाहीन बाग से शुरू एंटी सीएएन-एनआरसी-एनपीआर आंदोलन को मुस्लिमों के अस्तित्व और भविष्य में उनकी दशा तय करने वाले युद्ध से जोड़कर दिखाने की कोशिशें हो सकती हैं. वैचारिक स्तर भी कोशिशें चल रही हैं और इसका अंदाजा सरकार को भी है, इसलिए शाहीन बाग के साथ ही दिल्ली के कई इलाकों में पुलिस की गश्ती बढ़ गई है.
ये सब तो बात हुई सरकार से लोगों की नाराजगी, चाहे वह सीएए को लेकर हो, एनआरसी या एनपीआर को लेकर हो या वैचारिक, लेकिन इन सबके बीच असल समस्या जो लोगों के सामने मुंह खोले खड़ी है, वह है कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप. अगर आप सरकार की नीतियों को सही नहीं मानते तो विरोध जायज है और होनी चाहिए, लेकिन किसी की जान की कीमत पर नहीं. मान लीजिए शाहीन बाग प्रोटेस्ट शुरू हुआ, भीड़ बढ़ने लगेगी, यातायात की समस्या तो होगी ही, साथ ही प्रदर्शनकारियों में कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा भी बढ़ेगा और फिर दिखेगी लाश ही लाश. वैसे ही दिल्ली के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. कोरोना टेस्ट नहीं हो पा रहे हैं, संक्रमितों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा है और लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है. दलों के बीच जरूरत से ज्यादा राजनीति शुरू हो गई है. ऐसे माहौल में क्या दिल्ली शाहीन बाग 2.0 को झेल पाएगी. मुझे तो नहीं लगता, अगर आपको लगता है तो आप अपनी राय जगजाहिर कीजिए.
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