मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और इस्लामी स्कॉलर मौलाना डा.कल्बे सादिक का इंतेक़ाल भारतीय सौहार्द के एक सशक्त पुल का टूट जाना जैसा है. वो इक्यासी बरस के थे. कैंसर जैसे आत़कवाद, साम्प्रदायिकता और अशिक्षा से जीवन भर लड़ने वाले डा. सादिक पिछले दो साल से कैंसर की बीमारी में मुब्तिला थे. इधर करीब एक सप्ताह पहले उन्हें निमोनिया होने पर लखनऊ के एरा अस्पताल के आईसीयू में भर्ती किया गया था. जहां बीते मंगलवार रात दस बजे मौलाना डा.सादिक़ ने अंतिम सांस ली. आज बुधवार उनके यूनिटी कॉलेज में साढ़े ग्यारह बजे उनकी नमाजे जनाजा हुई और दोपहर दो से तीन बजे के दौरान लखनऊ के चौक इलाक़े स्थित गुफरानाब इमामबाड़े में मौलाना को सुपर्द खाक के वक्त उनके दर्शन के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए. मौत की खबर के चंद मिनट बाद ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिया धर्मगुरु की मृत्यु पर शोक संदेश व्यक्त किया.
मौलाना अपने पीछे ये तीन पुत्र, एक पुत्री और भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं. इनके एक पुत्र कल्बे सिब्तैन नूरी बतौर मौलाना अपने वालिद की इल्मी विरासत संभाले हैं. धर्म,जातियों या मसलकों के बीच सेतु बन कर फासले भरने की कोशिश करने वाले मौलाना डा.कल्बे सादिक का चला जाना वाक़ई बड़ा नुक़सान है. इत्तेहिद, सोहार्द, मिलसारी, खुशमिजाज़ी, अखंडता, धर्मनिरपेक्षता, मुस्कुराहट, मोहब्बत और गंगा जमुनी तहज़ीब का पर्याय डा. सादिक के पास नफरत को शिकस्त देने का हर फार्मूला था.
वो मोहब्बत से नफरती माहौल से निपटना जानते थे. अयोध्या विवाद से लेकर गुजरात दंगों की आग मे पानी डालने की उनकी कोशिश हमेशां याद की जायेगी.इल्म की मशाल से वो संकीर्णता के अंधेरे भेदने के क़ायल थे. अयोध्या देश को दशकों तक उलझाये रहा. सन 1990 से 2020 के तीन दशक के दौरान शुरु से आखिर तक डा.सादिक मुस्लिम समाज से गुजारिश करते रहें कि वो विवादित जमीन को राम मंदिर निर्माण के लिए हिन्दू भाइयो के सिपुर्द कर दें.
डॉक्टर मौलाना कल्बे सादिक़ अमन के पैरोकार के रूप में याद किये जाएंगे
यदि मुस्लिम समाज उनकी बात मान जाता तो कोर्ट का फैसला आने की नौबत नहीं आती और भारतीय मुस्लिम समाज को दुनिया में सबसे बड़ा दरियादिल मान लिया था. हिंदू समाज में अल्पसंख्यकों के प्रति सम्मान और प्यार बढ़ जाता.
साम्प्रदायिक नफरत की सियासत धवस्त हो जाती. विभिन्न धर्मों, जातियों और मुसलमानों के तमाम मसलकों की एकता स्थापित करने के प्रयास करने वाले डा. सादिक़ ने हमेशां अशिक्षित समाज में शिक्षा की अलख जलाने पर बल दिया। सर सय्यद अहमद ख़ान की तरह डा.सादिक़ ने मुस्लिम समाज के उत्थान के लिए इल्म की रौशनी फैलाने पर विशेष बल दिया. और इस मिशन को ना सिर्फ तक़रीलों और तहरीरों के जरिए बल्कि अमली तौर पर आगे बढ़ाया.
उनका मानना था कि ग़रीबी, कट्टरता, संकीर्णता, अंधविश्वास, धर्म के प्रति गलतफहमियां, रूढ़ियां, कुरितियां, नफरत और साम्प्रदायिकता की जड़ अज्ञानता ही होती है. गंदी सियासत अज्ञानता का लाभ उठाकर समाज को बांटती है. आपस में झगड़ा पैदा करती है. जेहालत की माचिस से सियासतदां दंगों और नफरत की आग लगाकर अपना-अपना वोट बैंक तैयार कर लेते हैं. यही कारण है कि पॉलिटिकल एजेंडों में शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता.
डा.कल्बे सादिक के ऐसे ख्यालों की तकरीरें और मजलिसें पूरी दुनियां में पसंद की जाती थीं. उन्होंने हिंदू-मुसलमानों और शिया-सुन्नी के बीच किसी भी खायी को भरने के लिए मोहब्बत और एकता के पैग़ाम दिए. वो कहते थे कि अस्ल मजहब जोड़ता है तोड़ता नहीं है. जो तोड़े वो मजहब सियासत होती है. डा. सादिक मुस्लिम आरक्षण के ख़िलाफ थे. सिक्ख समाज की तारीफ करते हुए वो कहा करते थे कि इस अल्पसंख्यक कौम ने कभी भी आरक्षण नहीं लिया और वो मेहनत और संघर्षों से क़तरा-क़तरा हासिल करके तरक्की की रेस में आगे रहते हैं.
मौलाना कल्बे सादिक अज्ञानता, भ्रष्टाचार और गरीबी को देश की तरक्की की रुकावट मानते थे. उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भी खूब तकरीरें दीं. उनका कहना था कि किसी भी किस्म के आतंकवाद का वास्ता किसी भी मज़हब से नहीं हो सकता हां किसी भी तरह की सियासत से दहशतगर्दी का रिश्ता ज़रूर हो सकता है. इस्लामिक स्कॉलर, शिया धर्मगुरु और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष डा. सादिक ऐसे तरक्कीपसंद शिक्षाविद थे कि उन्हें आज का सर सय्यद अहमद ख़ान कहा जाता था.
वो एरा यूनिवर्सिटी, यूनिटी कॉलेज,और तमाम शैक्षणिक संस्थाओं के अलावा चेरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक सदस्य रहे. 1984 में उन्होंने तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट क़ायम किया. जिसमें गरीब बच्चों की पढ़ाई मे मदद और मेधावी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति दी जाती है. उनके यूनिटी कॉलेज ने शैक्षणिक संस्थाओं में एक अलग पहचान बनाई. इस कालेज की दूसरी शिफ्ट में मुफ्त तालीम दी जाती है. अलीगढ़ में एम यू कॉलेज क़ायम किया. टेक्निकल कोर्सेज़ के लिए इंडस्ट्रियल स्कूल बनाया. लखनऊ के काज़मैन में चेरिटेबल अस्पताल शुरू किया.
अमेरिका सहित दुनियां के दर्जनों देशों में इनकी मजलिसें और तकरीरें पसंद की जाती थीं. उन्होंने गुफरान माब इमामबाड़े की खूबसूरत बिल्डिंग का निर्माण कर उसमें रोशनी हॉस्टल बनवाया. बेवाओ, यतीमों, बीमारों की मदद के साथ उनके इदारों (संस्थानों) में बच्चों की पढ़ाई के लिए विशेष योगदान देने का प्रावधान है.
ये बात कम ही लोग जानते हैं कि गुजरात दंगों की नफरत के शोले से भी डा.कल्बे सादिक साम्प्रदायिक सौहार्द, भाईचारे का पैगाम लेकर आये थे. उन्होंने बताया था कि वो एक मजलिस पढ़ने गुजरात गये थे. वहां दंगों की शुरुआत हो चुकी थी. लेकिन उन्हें ये अंदाजा नहीं था कि इतना जबरदस्त फसाद और नरसंहार हो जायेगा. इस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के श्रम मंत्री उनके पास बहुत हड़बड़ाहट मे आये और बोले डाक्टर साहब मैं आपको एयरपोर्ट छोड़ने जाऊंगा.
मौलाना कल्बे सादिक साहब ने बताया था कि उस हिंदू भाई (मोदी की गुजरात सरकार के श्रम मंत्री) ने मुझे गुजरात से सुरक्षित लखनऊ पंहुचाने के लिए एयरपोर्ट तक छोड़ा. और मैं ख़ैरियत से सही सलामत गुजरात से लखनऊ वापिस हुआ.ख़ैर तमाम खूबियों वाला मोहब्बत का पैग़ाम देने वाला, इल्म की रौशनी फैलाने वाला, इत्तेहाद की खुश्बू फैलाने वाले, आतंकवाद के खिलाफ लड़ने वाले मौलाना वक्त के बहुत पाबंद थे.
उन्होंने शायद यही सही वक्त चुना. नफरत के अंधेरों के बढ़ते हुए माहौल से लड़ने के लिए मोहब्बत का पैगाम, एकता की हिदायतें और इल्म की रौशनी देकर चले गये डाक्टर साहब.
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डा.कल्बे सादिक और उनके विचारों का सेहमतमंद होना बेहद जरूरी है
Sorry Captain Ashutosh... तुम्हें शायद ही किसी ने याद रखा!
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