मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के विदिशा जिले के ग्यारसपुर स्वास्थ्य केंद्र से जो तस्वीर सामने आई है वो इस देश के स्वास्थ्य विभागों को शर्मिंदा करने के लिए काफी है. यहां नसबंदी करवाने आईं 41 महिलाओं को ऑपरेशन के बाद बिस्तर तक मुहिया नहीं करवाया गया. उन्हें अस्पताल के कॉरिडोर में ठंडी जमीन पर लाइन से लेटा दिया गया, वो भी उस हालत में जब उन्हें सही देखभाल की जरूरत होती है.
जब मामला खुला तो स्वास्थ्य विभाग की नींद खुली. सीएमओ ने कहा कि 'जांच की जा रही है जिससे आगे ये घटना दोबारा न हो.'
स्वास्थ्य विभाग नहीं सुधरेंगे
बताया जा रहा है कि सर्दियों के मौसम में यहां हर साल स्वास्थ्य विभाग विशेष नसबंदी शिविर लगाता है, जहां काफी संख्या में महिलाएं आती हैं.लेकिन ये हमेशा की हा बात रही है कि शिविर में डॉक्टर्स ऑपरेशन करते हैं और फिर उन मरीजों के साथ कुछ बुरा हो जाता है. डॉक्टरों को ऑपरेशन करने के टार्गेट दिए जाते हैं जो हमेशा मरीजों पर भारी पड़ते हैं. टार्गेट पूरा करने के चक्कर में डॉक्टर जल्दी-जल्दी कई ऑपरेशन एक साथ कर डालते हैं. लेकिन बाद में मरीजों को दी जाने वाली सुविधाओं से पल्ला झाड़ लेते हैं क्योंकि उनका काम तो हो गया.
2014 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में ऐसे ही एक नसबंदी कैंप में लापरवाही की वजह से 13 महिलाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. जिसके बाद डॉक्टरों को गाइडलाइन्स दी गई थीं कि एक दिन में डॉक्टर केवल 30 ऑपरेशन ही कर सकते हैं. लेकिन अक्सर डॉक्टर्स टार्गेट पूरा करने के लिए इन गाइडलाइन्स को भी ताक पर रख देते हैं. यहां भी एक दिन में 41 ऑपरेशन कर दिए गए, बिना किसी व्यवस्था के.
नसबंदी के बाद महिलाओं को ठंड में फर्श पर लेटा दिया गया
देखते ही शरीर में सिहरन पैदा कर देने वाली ये तस्वीर सिर्फ स्वास्थ्य विभागों की लापरवाही ही नहीं बताती, बल्कि कई और सवाल खड़े कर रही है. जिनके जवाब आज तक किसी को नहीं मिले.
पुरुष-प्रधान समाज, प्रशासन और पति भी दोषी
ये 41 महिलाएं हैं. यहां पुरुष क्यों नहीं हैं?? नसबंदी करवाने के लिए हमेशा महिलाएं ही स्वास्थ्य केंद्रों में क्यों दिखाई देती हैं. पुरुष नसबंदी क्यों नहीं करवाते? परिवार नियोजन का पूरा भार महिला के ऊपर ही क्यों लादा जाता है? ऑपरेशन करवाया जाएगा तो वो महिला करवाएगी. परिवार नियोजन करना होगा तो गर्भनिरोधक गोलियां भी महिला ही खाएगी. पुरुष न कंडोम पहनेंगे और न नसबंदी करवाएंगे. क्योंकि भारत के पुरुष अबी तक इस भ्रम से बाहर ही नहीं आ पाए हैं कि कंडोम से यौन सुख नहीं मिलता और नसबंदी से पुरुषत्व कम हो जाता है.
पुरुष नसबंदी बहुत जल्द होने वाला एक सुरक्षित और स्वस्थ विकल्प है, लेकिन दुनिया भर में ये प्रचलन में नहीं है. कारण पितृसत्ता, पुरुष क्यों करे, महिला करेगी. जबकि महिला नसबंदी के साथ आंतरिक रक्तस्राव, संक्रमण, यहां तक कि एक अस्थानिक गर्भावस्था का भी जोखिम होता है. लेकिन ये जोखिम सिर्फ महिलाओं के ही भाग्य में लिखे हैं. पुरुषों को काम सिर्फ 'आनंद' लेना है.
ये पितृसत्ता ही है कि आज ये 41 महिलाएं फर्श पर लेटने को मजबूर हैं. हैरानी होती है कि इस अवस्था में भी इनके पति इनके साथ वहां मौजूद नहीं थे. महिलाएं पूरे घर का ख्याल रखती हैं, लेकिन खुद का ख्याल रखने की जिम्मेदारी भी उन्ही की ही है. पुरुष अपनी इन जिम्मेदारियों के प्रति इतने निष्क्रीय क्यों हैं?
एक अध्ययन से पता चलता है कि 2008 से 2016 तक, भारत में गर्भनिरोधक का उपयोग 35% गिर गया. 2015-16 में पुरुष नसबंदी दर भी 10 साल की तुलना में 1% से 0.3% तक गिर गई. सरकार और स्वास्थ्य विभाग कितना सक्रीय है वो इस बात से साफ पता चलता है कि इनके जागरुकता अभियान सालों से लोगों की मानसिकता को बदल ही नहीं पाए हैं.
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