'श्रद्धा की हत्या के लिए फांसी भी हो जाए, तो कोई गम नहीं. जन्नत में जाने पर 72 हूरें मिलेंगी. और, उसके 20 से ज्यादा हिंदू लड़कियों से संबंध थे.' श्रद्धा के 35 टुकड़े करने के आरोपी आफताब ने पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान ये शब्द कहे थे. आमतौर पर किसी को भी ये शब्द चौंकाने वाले लग सकते हैं. क्योंकि, आफताब तो एक अच्छी जॉब करने वाला पढ़ा-लिखा लड़का था. और, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तो आफताब ने खुद को नारीवादी, समलैंगिता का समर्थक जैसी प्रगतिवादी सोच वाला बता रखा था. लेकिन, पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान जब उसी आफताब के मुंह से जन्नत, हूरें, हिंदू लड़की जैसे शब्द निकलने लगें. तो, झटका लगना स्वाभाविक सी बात है.
वैसे, आफताब की तरह ही प्रगतिवादी सोच रखने वाले वोक समुदाय और बुद्धिजीवी वर्ग ने श्रद्धा मर्डर केस को लेकर हद दर्जे की असंवेदनशीलता का परिचय दिया था. जब आफताब जैसे लव जिहादी हत्यारे को एक सामान्य सा हत्यारा साबित करने की कोशिश की गई हो. जब श्रद्धा मर्डर केस को महज एक खौफनाक हत्या के मामले की तरह देखने की बात की गई हो. जब श्रद्धा मर्डर केस की तुलना इसी तरह से की गई अन्य हत्याओं से करते हुए लव जिहाद की परिकल्पना को खारिज करने की कोशिश की गई हो. तब आफताब की कही गई ये बातें तब और चुभने लगती हैं.
दरअसल, आफताब जैसे आदतन अपराधियों के लिए एक बड़ा वर्ग हमेशा तैयार खड़ा रहता है. जो ऐसे किसी मामले के सामने आते ही आफताब सरीखे लव जिहादियों को सिस्टम के पीड़ित के तौर पर पेश करने लगता है. जो बताने लगता है कि भारत में मुस्लिमों को रोज ही ऐसे न जाने कितने आरोपों से गुजरना पड़ता है. जो बताता है कि आफताब को निशाना ही इसलिए बनाया जा रहा है....
'श्रद्धा की हत्या के लिए फांसी भी हो जाए, तो कोई गम नहीं. जन्नत में जाने पर 72 हूरें मिलेंगी. और, उसके 20 से ज्यादा हिंदू लड़कियों से संबंध थे.' श्रद्धा के 35 टुकड़े करने के आरोपी आफताब ने पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान ये शब्द कहे थे. आमतौर पर किसी को भी ये शब्द चौंकाने वाले लग सकते हैं. क्योंकि, आफताब तो एक अच्छी जॉब करने वाला पढ़ा-लिखा लड़का था. और, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तो आफताब ने खुद को नारीवादी, समलैंगिता का समर्थक जैसी प्रगतिवादी सोच वाला बता रखा था. लेकिन, पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान जब उसी आफताब के मुंह से जन्नत, हूरें, हिंदू लड़की जैसे शब्द निकलने लगें. तो, झटका लगना स्वाभाविक सी बात है.
वैसे, आफताब की तरह ही प्रगतिवादी सोच रखने वाले वोक समुदाय और बुद्धिजीवी वर्ग ने श्रद्धा मर्डर केस को लेकर हद दर्जे की असंवेदनशीलता का परिचय दिया था. जब आफताब जैसे लव जिहादी हत्यारे को एक सामान्य सा हत्यारा साबित करने की कोशिश की गई हो. जब श्रद्धा मर्डर केस को महज एक खौफनाक हत्या के मामले की तरह देखने की बात की गई हो. जब श्रद्धा मर्डर केस की तुलना इसी तरह से की गई अन्य हत्याओं से करते हुए लव जिहाद की परिकल्पना को खारिज करने की कोशिश की गई हो. तब आफताब की कही गई ये बातें तब और चुभने लगती हैं.
दरअसल, आफताब जैसे आदतन अपराधियों के लिए एक बड़ा वर्ग हमेशा तैयार खड़ा रहता है. जो ऐसे किसी मामले के सामने आते ही आफताब सरीखे लव जिहादियों को सिस्टम के पीड़ित के तौर पर पेश करने लगता है. जो बताने लगता है कि भारत में मुस्लिमों को रोज ही ऐसे न जाने कितने आरोपों से गुजरना पड़ता है. जो बताता है कि आफताब को निशाना ही इसलिए बनाया जा रहा है. क्योंकि, वो मुस्लिम है. और, इसकी वजह से एक सियासी दल को फायदा होगा. लेकिन, आफताब जैसे लव जिहादी समाज के लिए कितने खतरनाक हैं, इस पर बात करने से ये प्रगतिवादी सोच रखने वाले मुंह चुरा ले जाते हैं.
कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने 5 साल के लिए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया था. पीएफआई वो मुस्लिम चरमपंथी संगठन था. जो लोगों में इस्लामिक कट्टरता बढ़ाने के लिए देशभर में कई तरह के आयोजन करता था. इतना ही नहीं, मुस्लिम युवकों को लव जिहाद करने के लिए उकसाने से इतर इसे अंजाम देने के लिए पैसा, घर, नौकरी जैसी चीजें भी पीएफआई उपलब्ध कराता था. और, लव जिहाद के लिए मुस्लिम युवाओं को ट्रेनिंग भी देता था. आखिर क्या वजह है, जो किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है कि आफताब भी ऐसे ही किसी ट्रेनिंग कैंप में शामिल हुआ हो?
वैसे, 'जन्नत में हूरें' मिलने की बात किसी भी सामान्य मुस्लिम को मुंह से शायद ही सुनाई देंगी. लेकिन, ये वो लॉलीपॉप है. जो मुस्लिम युवाओं को इस्लाम के नाम पर चुसाया जाता है. और, वो मजहब की इन सीखों में अंधे होकर वो सब करने को तैयार हो जाते हैं. जो आफताब ने किया है. और, जिसकी वजह से उसे फांसी पर चढ़ जाने का भी कोई मलाल नहीं होने वाला है. क्योंकि, इस्लामिक कठमुल्लाओं ने आफताब जैसे न जाने कितनों को जन्नत और हूरों का ख्वाब दिखाकर उनसे न जाने कितनी श्रद्धाओं को ठिकाने लगवा दिया है. लेकिन, हमारे समाज ने इस विषय पर बातचीत को वर्जित कर रखा है.
क्योंकि, इसकी वजह से हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना खतरे में आने लगता है. बावजूद इसके की कोई भी आफताब सरीखा लव जिहादी खुद को प्रगतिवादी सोच के चोले से ढंकते हुए ऐसी घटनाओं को आसानी से अंजाम देने में जरा सा भी नहीं हिचकता है. ऐसा क्यों है, प्रगतिवादी सोच वाले इस समस्या पर विचार नहीं करना चाहते हैं. जबकि, मजहबी कट्टरता तेजी से हमारे देश की मुख्य समस्या बनने की ओर बढ़ती जा रही है. पूरे देश में सैकड़ों की संख्या में शाहीन बाग बनाए जा चुके हैं. लेकिन, किसी को इसकी चिंता नहीं है. आखिर क्यों?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.