'इसी में कुछ कमी है. दोनों पति तो ख़राब नहीं होगा?'
'एक बेटी थी तो दूसरी शादी नहीं करनी चाहिए थी. अपना कमाती और बेटी को अच्छे से पालती.'
'दूसरी शादी की फिर दूसरा बच्चा पैदा किया. एक बच्ची की परवरिश अकेले कर नहीं पा रही थी, अब दूसरे का क्या करेगी?'
ऐसी और इससे भी ज़्यादा गयी-बीती बातें सोशल मीडिया पर ‘कसौटी ज़िंदगी की’ से मशहूर हुई ऐक्ट्रेस श्वेता तिवारी के लिए औरतें लिख रहीं हैं. क्योंकि श्वेता तिवारी ने अपने दूसरे पति अभिनव पर घरेलू हिंसा और पहली शादी से हुई बेटी पर हाथ उठाने और गाली देने की वजह से पुलिस में FIR दर्ज करवाई.
देखिए, कहने को तो हम सब प्रोग्रेसिव समाज का हिस्सा हैं मगर सोचिए हमारी सोच अब भी कहां अटकी पड़ी है. क्या एक तलाकशुदा औरत को दोबारा प्रेम और शादी करने हक नहीं है? क्या जिसका तलाक हो चुका है उससे अगर कोई प्रेम करता है तो उस प्रेम पर उसे भरोसा नहीं करना चाहिए? और अगर तलाकशुदा स्त्री भरोसा करके अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत उस शख़्स के साथ करती है. फिर बाद में अगर वो शख़्स उसे धोखा दे, वादे तोड़े, मारे-पीटे तब भी उस औरत को चुपचाप सिर्फ इसलिए सहते रहना चाहिए क्योंकि उसके पहले पति से उसकी नहीं बनी. तलाक़ हो गया.
क्या हम सच में इंसानी तौर पर इतने संवेदनहीन हो चुके हैं? हमें श्वेता का दर्द नहीं दिख रहा. हमें ये नहीं दिख रहा कि कैसे एक औरत जिसको उसके पहले पति ने टुकड़ों में बिखरा हुआ छोड़ दिया था. कैसे उस औरत ने खुद को समेटा होगा. अपने ज़ख़्मों पर कैसे उसने चादर डाल एक बार फिर से हिम्मत की होगी प्यार करने की, किसी पर भरोसा करने की. और...
'इसी में कुछ कमी है. दोनों पति तो ख़राब नहीं होगा?'
'एक बेटी थी तो दूसरी शादी नहीं करनी चाहिए थी. अपना कमाती और बेटी को अच्छे से पालती.'
'दूसरी शादी की फिर दूसरा बच्चा पैदा किया. एक बच्ची की परवरिश अकेले कर नहीं पा रही थी, अब दूसरे का क्या करेगी?'
ऐसी और इससे भी ज़्यादा गयी-बीती बातें सोशल मीडिया पर ‘कसौटी ज़िंदगी की’ से मशहूर हुई ऐक्ट्रेस श्वेता तिवारी के लिए औरतें लिख रहीं हैं. क्योंकि श्वेता तिवारी ने अपने दूसरे पति अभिनव पर घरेलू हिंसा और पहली शादी से हुई बेटी पर हाथ उठाने और गाली देने की वजह से पुलिस में FIR दर्ज करवाई.
देखिए, कहने को तो हम सब प्रोग्रेसिव समाज का हिस्सा हैं मगर सोचिए हमारी सोच अब भी कहां अटकी पड़ी है. क्या एक तलाकशुदा औरत को दोबारा प्रेम और शादी करने हक नहीं है? क्या जिसका तलाक हो चुका है उससे अगर कोई प्रेम करता है तो उस प्रेम पर उसे भरोसा नहीं करना चाहिए? और अगर तलाकशुदा स्त्री भरोसा करके अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत उस शख़्स के साथ करती है. फिर बाद में अगर वो शख़्स उसे धोखा दे, वादे तोड़े, मारे-पीटे तब भी उस औरत को चुपचाप सिर्फ इसलिए सहते रहना चाहिए क्योंकि उसके पहले पति से उसकी नहीं बनी. तलाक़ हो गया.
क्या हम सच में इंसानी तौर पर इतने संवेदनहीन हो चुके हैं? हमें श्वेता का दर्द नहीं दिख रहा. हमें ये नहीं दिख रहा कि कैसे एक औरत जिसको उसके पहले पति ने टुकड़ों में बिखरा हुआ छोड़ दिया था. कैसे उस औरत ने खुद को समेटा होगा. अपने ज़ख़्मों पर कैसे उसने चादर डाल एक बार फिर से हिम्मत की होगी प्यार करने की, किसी पर भरोसा करने की. और फिर जिसपर उसने भी वही किया जो पहला पति कर रहा था. तो क्या उसे चुपचाप दूसरे पति की ज़्यादती सहते रहना चाहिए था?
इस वक़्त में अगर श्वेता की हिम्मत और उसके जज़्बे को जो आप सराह नहीं सकते तो कम से कम ये जहर मत उगलिए.
श्वेता तिवारी एक मजबूत महिला हैं, उन्हें शायद इस बात से फर्क़ भी न पड़े. मगर इस तरह का रिएक्शन अगर कोई आम महिला पढ़ेगी, जो किसी तरह की प्रताड़ना झेल रही होगी तो तलाक लेना छोड़िए इस जजमेंट की वजह से चुपचाप सहती रहेगी. क्योंकि उसको तो यही लगेगा न कि पति जुल्म कर रहा है तो क्या हुआ, समाज में उसकी इज़्ज़त तो बची हुई है. तलाक के बाद तो आप उसे तरह-तरह के नाम देने लग जाएंगे न. और फिर हर औरत के अंदर इतनी हिम्मत कहां होती है कि वो अपने लिए स्टैंड ले सके.
अपने लिए स्टैंड न लेने पाने की सबसे बड़ी वजह ये सोच है. जो अब भी तलाक, शादी न निभा पाने के लिए औरतों को ही ज़िम्मेदार ठहराती है. प्लीज़ इस सोच को बदलिए. खासकर वो महिलाएं जो आज श्वेता को जज कर रहीं हैं, कल को अगर उनकी बेटी के साथ कुछ होगा तो बाकी औरतें उसे भी जज करेंगी. और नाक बचाने के नाम पर शायद वो अपनी बेटी की ख़ुशियों की भी बलि चढ़ा दें?
श्वेता ने जो किया उस जज़्बे के लिए उन्हें सलाम. श्वेता जैसी स्त्रियां इस डूबते समाज की हिम्मत हैं. एक मज़बूत स्त्री से प्रेम करना और फिर प्रेम को निभा पाना सबके बस की बात नहीं है.
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