एक लड़की जिसकी शादी हुई, कुछ सालों बाद तलाक भी हो गया. उसे मातृत्व का सुख लेना था तो सोचा किसी बच्चे को गोद ले लूंगी लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. लगातार तीन बार कोशिश करने के बाद भी उसे निराशा हाथ लगी. वह सेल्फडिपेंडेंट महिला होने के साथ स्ट्रांग और मॉडर्न भी है. उसने हार नहीं मानी और सरोगेसी के बारे में सोचा.
पता चला कि यह काफी खर्चीला होने वाला है. इसके बाद फैमिली डॉक्टर ने आईसीआई तकनीक के बारे में बताया... और इस तरह यह महिला दकियानूसी रीति-रिवाजों को तोड़ते हुए स्पर्म डोनेशन की मदद से एक बेटे की मां बनीं. हम जिसकी बात कर रहे हैं उनका नाम संयुक्ता बैनर्जी है. जिन्हें अपने फैसले पर गर्व है.
संयुक्ता ने महज 37 साल की उम्र में जो फैसला लिया है वह अच्छे-अच्छे नहीं कर पाते, क्योंकि लोगों को पता है कि सिंगल पैरेंट बनना आसान नहीं है. जिंदगी की तमाम उतार-चढ़ाव के बाद आज संयुक्ता एक सेल्फडिपेंडेंट, मजबूत, मॉडर्न महिला हैं जो खुद के शर्तों पर जीती हैं. जिससे बाकी दूसरी लड़कियों को प्रेरणा मिलती है. इनकी कहानी जानकर कई लोगों ने कहा है कि असल नारीवाद तो यह है. तो चलिए आपको इनके सिंगल मदर बनने की पूरी कहानी बताते हैं.
जब हमने संयुक्ता बैनर्जी से बात की तो मां बनने की खुशी उनकी आवाज से साफ झलक रही थी. वो चहक जो सिर्फ एक महिला तभी महसूस कर सकती है जब वो किसी नन्हीं सी जान को इस दुनियां में लाती है. बच्चे की एक मुस्कान से वह महिला अपने सभी दुखों को भुला देती है. मां बनने की खुशी क्या होती है, यह तो तभी पता चलता है जब कोई महिला बच्चे को जन्म देती है.
उसकी नन्हीं उंगलियों के बीच मां अपनी सारी ममता उड़ेल देती है. वो कहते हैं ना कि मां बनने का सुख जिंदगी...
एक लड़की जिसकी शादी हुई, कुछ सालों बाद तलाक भी हो गया. उसे मातृत्व का सुख लेना था तो सोचा किसी बच्चे को गोद ले लूंगी लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. लगातार तीन बार कोशिश करने के बाद भी उसे निराशा हाथ लगी. वह सेल्फडिपेंडेंट महिला होने के साथ स्ट्रांग और मॉडर्न भी है. उसने हार नहीं मानी और सरोगेसी के बारे में सोचा.
पता चला कि यह काफी खर्चीला होने वाला है. इसके बाद फैमिली डॉक्टर ने आईसीआई तकनीक के बारे में बताया... और इस तरह यह महिला दकियानूसी रीति-रिवाजों को तोड़ते हुए स्पर्म डोनेशन की मदद से एक बेटे की मां बनीं. हम जिसकी बात कर रहे हैं उनका नाम संयुक्ता बैनर्जी है. जिन्हें अपने फैसले पर गर्व है.
संयुक्ता ने महज 37 साल की उम्र में जो फैसला लिया है वह अच्छे-अच्छे नहीं कर पाते, क्योंकि लोगों को पता है कि सिंगल पैरेंट बनना आसान नहीं है. जिंदगी की तमाम उतार-चढ़ाव के बाद आज संयुक्ता एक सेल्फडिपेंडेंट, मजबूत, मॉडर्न महिला हैं जो खुद के शर्तों पर जीती हैं. जिससे बाकी दूसरी लड़कियों को प्रेरणा मिलती है. इनकी कहानी जानकर कई लोगों ने कहा है कि असल नारीवाद तो यह है. तो चलिए आपको इनके सिंगल मदर बनने की पूरी कहानी बताते हैं.
जब हमने संयुक्ता बैनर्जी से बात की तो मां बनने की खुशी उनकी आवाज से साफ झलक रही थी. वो चहक जो सिर्फ एक महिला तभी महसूस कर सकती है जब वो किसी नन्हीं सी जान को इस दुनियां में लाती है. बच्चे की एक मुस्कान से वह महिला अपने सभी दुखों को भुला देती है. मां बनने की खुशी क्या होती है, यह तो तभी पता चलता है जब कोई महिला बच्चे को जन्म देती है.
उसकी नन्हीं उंगलियों के बीच मां अपनी सारी ममता उड़ेल देती है. वो कहते हैं ना कि मां बनने का सुख जिंदगी का सबसे बड़ा सुख होता है लेकिन लोगों की यह सोच तब कहां चली जाती है जब कोई महिला सिंगल मदर बनती है. लोग क्यों सिंगल मदर को दूसरी नजरों से देखते हैं?
जबकि वह मां तो अपने बच्चे को प्यार देने में कोई भेदभाव नहीं करती, उसे भी गर्भअवस्था में उन्हीं तकलीफों से गुजरना पड़ता है. बच्चे को जन्म देते समय उसे भी उन्हीं असहनीय तकलीफों को झेलना पड़ता है फिर समाज के नजर में यह गलत कैसे हो सकता है? खैर, संयुक्ता ने हमें बताया कि उनका परिवार, सहकर्मी और कुछ खास दोस्तों ने उनका बहुत सपोर्ट किया.
यह कितनी अच्छी बात है कि धीरे-धीरे ही सही परिवर्तन तो आ ही रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि 'जो लोग निगेटिव कॉमेंट करते हैं कम से कम मेरे सामने तो नहीं करते और वैसे भी उनकी परवाह किसे है? बहुत से लोेग उन्हें मां बनने की बधाई दे रहे हैं. साथ ही इतना बड़ा कदम उठाने पर उनकी सराहना भी कर रहे हैं. अब नकारात्मक बोलने वालों को चुप कराने की परवाह भी नहीं है, क्योंकि फर्क नहीं पड़ता. अगर फर्क पड़ने के बारें में सोचा होता और दुनियां की परवाह की होती तो शायद संयुक्ता सिंगल मदर बनने का फैसला नहीं ले पातीं.
आपके लिए संयुक्ता बैनर्जी की पोस्ट:
‘अपने अंदर एक और दिल को धड़कते देखने से ज्यादा खुशी दुनियां की और कोई चीज नहीं दिला सकती. शेक्सपीयर की कही वह बात को कि प्यार अंधा होता है-एक मां से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता, जो बिना देखे, बिना जाने- अपने अंदर पल रही जान को पूरे दिल से चाहती है, इस दुनिया में सबसे ज्यादा चाहती है, खुद से भी ज्यादा. अपनी कोख में 8-9 महीने पालने के बाद उस नन्हीं जान को जन्म लेते और उसे अपनी बाहों में भरने से ज्यादा भावुक कुछ और नहीं हो सकता.
मैंने इस पल के लिए बहुत लंबा इंतजार किया. 7-8 साल से अडॉप्शन के लिए कोशिश कर रही थी. किन्हीं वजहों से उसमें सफलता नहीं मिली, ऐसे उम्मीद अब भी है कि एक बेटी अडॉप्ट कर पाऊं भविष्य में लेकिन जब दिसम्बर 2020 में CARA से रेजिस्ट्रेशन रिन्यू करने के लिए फोन आया तो मैं सोच में पड़ गई. ऐसा लगा कि और 3 साल इंतजार के बाद भी अगर कुछ हासिल न हुआ तो क्या करूंगी, क्या मां बनने का सपना सपना ही रह जाएगा? इसके बाद थोड़ा एक्सप्लोर करना शुरु किया.
पता चला कि सिंगल मॉम भी बना जा सकता है. अगर कोई पार्टनर नहीं है तो किसी फर्टिलिटी प्रोसेस की मदद ली जा सकती है. बहुत R&D करने के बाद तय किया कि डोनर के जरिए आर्टिफिशियल इन्सेमिनेशन के जरिए कोशिश करूंगी जिसे ICI यानि intracervical insemination कहते हैं. ये फैसला आसान नहीं था, लेकिन अडॉप्शन करती तो भी सिंगल मॉम ही बनती और बच्चे को पिता का नाम नहीं मिलता तो इसलिए मेरे लिए ये बहुत मुश्किल फैसला भी नहीं था. जब आपके पास फैमिली और फ्रेंड्स का अच्छा सपोर्ट सिस्टम हो तो ऐसे फैसले लेने में और आसानी होती है.
ऐसे 8 महीनों का ये सफर बेहद कठिन रहा, पर उसपर कभी और बात, आज की ये पोस्ट सिर्फ ये बताने के लिए कि सिंगल मॉम बनना मुमकिन है. अगर इस तरह की कोई पोस्ट मैंने पहले पढ़ी होती तो शायद इतना वक्त न लगाती ये फैसला लेने में.’‘मेरी शादी 20 अप्रैल 2008 में हुई थी. पति को बच्चा नहीं चाहिए था. मुझे मातृत्व का सुख लेना था।. 2014 में उनसे अलग हो गए. 2017 में तलाक हो गया, फिर मैंने नए सिरे से जिंदगी शुरू करने का निर्णय लिया.
मैंने आईसीआई तकनीक को अपनाने का निर्णय लिया. इसमें केवल स्पर्म डोनेशन लेना होता है, वह भी बिना किसी के संपर्क में आए. इसमें डोनर की पहचान गोपनीय रहती है. फरवरी में मुझे पता चला मैंने कंसीव कर लिया है. डॉक्टर की देखरेख में 24 अगस्त को बेटे को जन्म दिया और इसतरह मेरा सपना भी पूरा हो गया और हां बच्चे का बर्थसर्टिफिकेट पर बच्चे के पिता का नाम नहीं है.'
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क्या अब मैं एक पापी हो गई हूं?
संयुक्ता के अनुसार, ‘अगर आप शादी के बंधन में हैं तो मां बने बिना एक महिला का अस्तित्व ही नहीं होता, लेकिन अगर आपकी शादी टूट चुकी है या आपकी कभी शादी ही नहीं हुई है तो एक महिला का मां बनना एक पाप है. इस हिसाब से तो अब समाज की नजरों में मेरा एक पाप सामने आ चुका है, मैं पापी हो गई हूं. मेरी मां 70 साल की उम्र तक एक साये की तरह मेरे साथ खड़ीं रहीं. जब आपका परिवार और दोस्त साथ होते हैं तो चीजें आसान हो जाती हैं.’
हमने इस कहानी से पहले बहुत से सिंगल मदर के बारे में सुना है, जाना है लेकिन जब संयुक्ता यानी सिंगल मदर संयुक्ता की पोस्ट पढ़ी तब यकीन हुआ कि अब शायद सच में सिंगल मदर बनना संभव है, समाज बदल रहा है. इतने सारे लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया इस बात की गवाही है. वो होता है ना कि दूर-दूर की बातें सुनकर हम बस हां-हां, हो सकता है, हुआ होगा जैसे शब्द बोलकर बात को चाल देते हैं क्योंकि हमें उन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता या शायद हमें यह यकीन नहीं होता.
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अब हमने जो अपने सामने देखा होता है उसी को सच मानते हैं. संयुक्ता की इस पोस्ट को मैंने कई बार पढ़ा, सभी की प्रतिक्रिया देखी तो और पढ़ने का मन किया. आज यकीन हो गया कि महिला अधिकार सिर्फ बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि जिंदगी में उतारने वाली बात है. हमारी तरफ से आपको ढेर सारी शुभकामनाएं मॉमी संयुक्ता बैनेर्जी...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.