समाज ने शादी नाम की संस्था को इस तरह गढ़ा है कि एक स्त्री और पुरुष रीति रिवाजों के साथ एक हो जाएं और परिवार बढ़ाएं. यूं समझें कि परिवार बढ़ाने के लिए शादी जरूरी है. जीवन इसी तरह से चलता आया है. लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि बच्चे के लिए शादी करने की जरूरत अब नहीं रह गई है? हां ये सुनने में थोड़ा अजीब जरूर है, बहुतों को ये अनैतिक भी लग सकता है, लेकिन हकीकत तो ये है कि आज महिलाएं खुद ये कह रही हैं. और सिर्फ कह ही नहीं रहीं बल्कि कर के भी दिखा रही हैं. आज महिलाएं पार्टनर (partner) की जगह पेरेंट (parent) बनना चुन रही हैं. क्यों? वो आगे बताते हैं.
बच्चों को पालन पोषण करना तो मां का कर्तव्य रहा है. बच्चे को एक मां से अलग देखा ही नहीं जा सकता. ठीक उसी तरह जैसे महिला को बिना पुरुष के देखा नहीं जा सकता. एक महिला का जीवन तब तक सफल नहीं माना जाता जब तक कि उसकी शादी न हो जाए. और इसीलिए कंवारी मां, या बिन ब्याही मां जैसे शब्द समाज में अनैतिक माने जाते हैं. क्योंकि एक आम समझ ये कहती है कि बच्चा तो पुरुष के बिना आ नहीं सकता, बिना सेक्स के गर्भ नहीं ठहर सकता. बच्चे को पालने के लिए परुष की जरूरत तो होती ही है. अकेली महिला क्या कर पाएगी.
लेकिन आज ये सभी बातें गलत साबित हो रही हैं. क्योंकि ये तो सच है कि बच्चे पुरुष के बिना नहीं आ सकते लेकिन उसके लिए शादी और सेक्स की बाध्यता नहीं रही. क्योंकि बच्चे को गोद लेकर भी मां बना जा सकता है. और वैज्ञानिक क्रांति के इस युग में सरोगेसी(surrogacy), egg donation, IVF जैसे तमाम रास्तों से बच्चा पाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत आसान हो गया है. पर हां ये भी तभी संभव है जब वो आर्थिक रूप से मजबूत हो.
बिना पति के मां बनना क्यों चुन रही हैं...
समाज ने शादी नाम की संस्था को इस तरह गढ़ा है कि एक स्त्री और पुरुष रीति रिवाजों के साथ एक हो जाएं और परिवार बढ़ाएं. यूं समझें कि परिवार बढ़ाने के लिए शादी जरूरी है. जीवन इसी तरह से चलता आया है. लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि बच्चे के लिए शादी करने की जरूरत अब नहीं रह गई है? हां ये सुनने में थोड़ा अजीब जरूर है, बहुतों को ये अनैतिक भी लग सकता है, लेकिन हकीकत तो ये है कि आज महिलाएं खुद ये कह रही हैं. और सिर्फ कह ही नहीं रहीं बल्कि कर के भी दिखा रही हैं. आज महिलाएं पार्टनर (partner) की जगह पेरेंट (parent) बनना चुन रही हैं. क्यों? वो आगे बताते हैं.
बच्चों को पालन पोषण करना तो मां का कर्तव्य रहा है. बच्चे को एक मां से अलग देखा ही नहीं जा सकता. ठीक उसी तरह जैसे महिला को बिना पुरुष के देखा नहीं जा सकता. एक महिला का जीवन तब तक सफल नहीं माना जाता जब तक कि उसकी शादी न हो जाए. और इसीलिए कंवारी मां, या बिन ब्याही मां जैसे शब्द समाज में अनैतिक माने जाते हैं. क्योंकि एक आम समझ ये कहती है कि बच्चा तो पुरुष के बिना आ नहीं सकता, बिना सेक्स के गर्भ नहीं ठहर सकता. बच्चे को पालने के लिए परुष की जरूरत तो होती ही है. अकेली महिला क्या कर पाएगी.
लेकिन आज ये सभी बातें गलत साबित हो रही हैं. क्योंकि ये तो सच है कि बच्चे पुरुष के बिना नहीं आ सकते लेकिन उसके लिए शादी और सेक्स की बाध्यता नहीं रही. क्योंकि बच्चे को गोद लेकर भी मां बना जा सकता है. और वैज्ञानिक क्रांति के इस युग में सरोगेसी(surrogacy), egg donation, IVF जैसे तमाम रास्तों से बच्चा पाना किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत आसान हो गया है. पर हां ये भी तभी संभव है जब वो आर्थिक रूप से मजबूत हो.
बिना पति के मां बनना क्यों चुन रही हैं महिलाएं?
'सिंगल मदर्स' (single mothers) टर्म भले ही नई हो, लेकिन अकेली मां होना नया नहीं है. महिलाओं और माताओं की कैटेगरी देखें तो जो नतीजे निकलते हैं वो सिंगल महिलाओं की सोच को प्रभावित करते हैं. दुनिया में पहली वो माताएं जिनके पति गुजर गए और वो अकेले बच्चों की परवरिश कर रही हैं, कामकाजी हैं. पति के बिना जीवन जीना उनकी मजबूरी है, इनमें वो भी हैं जो नौकरी पेशा हैं और वो भी है जो बच्चों को पालने के लिए किसी और पर आश्रित हैं. दूसरी वो माताएं जो पति से अलग होकर बच्चों की परवरिश कर रही हैं. तलाक ले चुकी हैं और कामकाजी भी हैं. यहां उनकी पर्सनल लाइफ भले ही खराब हो, तलाकशुदा होने का सामाजिक कलंक भी झेल रही हैं लेकिन बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी ईमानदारी के साथ निभाती हैं. तीसरी वो माताएं भी हैं जो पति के साथ हैं, हाउसवाइफ हैं और घर पर रहकर ही बच्चों की परवरिश करती हैं. इनपर घर और बच्चे दोनों की जिम्मेदारी है. इन महिलाओं क प्रतिशत भारत में सबसे ज्यादा है. आखिरी कैटेगरी है उन माताओं की जो शादीशुदा हैं, कामकाजी हैं और घर, बाहर और बच्चे सभी की जिम्मेदारी निभाती हैं. इन्हें सुपरवूमेन (super women) कहा जाता है.
और इन सभी महिलाओं और इनके जीवन की जद्दोजहद को देखते हुए आज की लड़कियां शादी ही नहीं करना चाहतीं. और जब हर चीज पारिवारिक विकास के लिए ही की जा रही है तो सबसे सुलभ तरीका यही है कि शादी, पति और ससुराल के पचड़ों में ही नहीं पड़ा जाए. आजकल पार्टनर के बिना जीवन जीना महिलाओं को ज्यादा सरल लगता है. वंश बढ़ाने के लिए बच्चा तो बिना partner के भी मिल जाता है.
बिना शादी के मां बनना अब नॉर्मल है
अब से दो दशक पहले, 25 साल की उम्र में सुष्मिता सेन (Sushmita sen) ने एक बेटी को गोद लिया था, और उसके 10 साल बाद फिर एक बेटी को गोद लिया, आज वो दोनों बच्चों की सिंगल मॉम हैं, और अकेले ही उनकी परवरिश कर रही हैं. टीवी की क्वीन कही जाने वाली एकता कपूर (Ekta Kapoor) बच्चा तो चाहती थीं लेकिन शादी नहीं करना चाहती थीं. उन्होंने कई बार IVF की कोशिश की, जो असफल रहीं और आखिरकार वो सरोगेसी की मदद से मां बनीं. शादी नहीं करने का कारण जो उन्होंने दिया वो था आजकल लोगों के टूटते रिश्ते. एकता कहती थीं कि उनके शादीशुदा फ्रेंडस अब शादी से अलग हो चुके हैं, उन्होंने इतने तलाक देख लिए कि अब वो सिर्फ बच्चा चाहती हैं, पति नहीं. हाल ही में टीवी एक्ट्रेस साक्षी तंवर (sakshi tanwar) ने भी एक बच्ची को गोद लिया है. ये वो नाम हैं जिनसे लोग परिचित हैं, इनके अलावा तमाम आत्मनिर्भर महिलाओं ने पार्टनर की जगह मां बनना चुना है.
2015 में Central Adoption Resource Authority(CARA) की गाइडलाइंस थीं कि एक सिंगल महिला 55 साल की उम्र तक किसी भी जेंडर के बच्चे को गोद ले सकती है. CARA के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में 93 सिंगल महिलाओं ने बच्चे गोद लिए हैं. और ये संख्या हर साल बढ़ ही रही है. इसलिए इन महिलाओं का ये कहना कि- मैंने शादी नहीं की इसका मतलब ये नहीं कि मेरे बच्चा नहीं हो सकता' किसी को अजीब नहीं लगना चाहिए. पति, शादी और ससुराल चाहना या न चाहना किसी भी व्यक्ति की पर्सनल चॉइस होती है. और हर किसी को इसका सम्मान करना चाहिए. मां बनना किसी भी रिश्ते से ऊपर होता है चाहे शादी के बंधन में रहकर मां बना जाए या फिर बाहर रहकर.
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