मर के भी किसी को याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे.
कहेगा फूल हर कली से बार बार, जीना इसी का नाम है...
इस गाने को कितनी दफा हम सभी ने सुना होगा, लेकिन इसका सही मतलब 6 साल की यह बच्ची दुनिया को समझा गई. वह खुद तो मर गई लेकिन 6 लोगों को जिंदगी दे गई. जिदंगी की क्या कीमत होती है यह मरने वाले से बेहतर कौन समझ सकता है?
ये मौसम, लोग, पेड़, चांद, नदी, सड़कें और बहारे यह सब देखना भला किसे अच्छा नहीं लगता है? इस जहां को भला कौन छोड़कर जाना चाहता है? यह बच्ची तो अभी अपने बाबुल के आंगन में चहक रही थी, दुनिया देखना तो बहुत बड़ी बात है. एक दिन वह चारपाई पर सो रही थी तभी उसके पिता को धमाके की आवाज सुनाई दी, देखा तो बेटी के सिर से खून निकल रहा था.
मां को तो कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है. वह तो बच्चों के लिए खाना बना रही थी. जल्दी से वे दोनों बच्ची को लेकर दिल्ली एम्स ट्रॉमा सेंटर पहुंचे. वहां डाक्टरों ने देखा तो बताया कि बच्ची के ब्रेन में गोली लगी है. जहां दो दिन बाद वह ब्रेन डेड हो गई. भगवान जाने कहां, किसने गोली चलाई जिसने बच्ची की जान ले ली.
अपनी बच्ची को पालने वाले हाथ कापने लगे. पिता मानो जैसे कह रहे हैं दो दिन से तो ऐसी ही दिख रही है. आप ठीक से चेक कीजिए. मां बैचैन होने लगी, उसे यकीन था कि इस बड़े अस्पताल में उसकी बेटी जरूर ठीक हो जाएगी. शायद उसने यह भी सोच लिया होगा कि घर जाकर उसके पसंद का खाना बनाकर उसे अपने हाथों से खिलाएगी. मां ने डॉक्टर को टोका भी होगा कि सर, आप ये क्या बोल रहे हैं. उसे डॉक्टर पर भरोसा नहीं हो रहा होगा, लेकिन सच को कौन टाल सकता है?
माता-पिता को तो समझ नहीं आ रहा था...
मर के भी किसी को याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे.
कहेगा फूल हर कली से बार बार, जीना इसी का नाम है...
इस गाने को कितनी दफा हम सभी ने सुना होगा, लेकिन इसका सही मतलब 6 साल की यह बच्ची दुनिया को समझा गई. वह खुद तो मर गई लेकिन 6 लोगों को जिंदगी दे गई. जिदंगी की क्या कीमत होती है यह मरने वाले से बेहतर कौन समझ सकता है?
ये मौसम, लोग, पेड़, चांद, नदी, सड़कें और बहारे यह सब देखना भला किसे अच्छा नहीं लगता है? इस जहां को भला कौन छोड़कर जाना चाहता है? यह बच्ची तो अभी अपने बाबुल के आंगन में चहक रही थी, दुनिया देखना तो बहुत बड़ी बात है. एक दिन वह चारपाई पर सो रही थी तभी उसके पिता को धमाके की आवाज सुनाई दी, देखा तो बेटी के सिर से खून निकल रहा था.
मां को तो कुछ समझ ही नहीं आया कि क्या हो रहा है. वह तो बच्चों के लिए खाना बना रही थी. जल्दी से वे दोनों बच्ची को लेकर दिल्ली एम्स ट्रॉमा सेंटर पहुंचे. वहां डाक्टरों ने देखा तो बताया कि बच्ची के ब्रेन में गोली लगी है. जहां दो दिन बाद वह ब्रेन डेड हो गई. भगवान जाने कहां, किसने गोली चलाई जिसने बच्ची की जान ले ली.
अपनी बच्ची को पालने वाले हाथ कापने लगे. पिता मानो जैसे कह रहे हैं दो दिन से तो ऐसी ही दिख रही है. आप ठीक से चेक कीजिए. मां बैचैन होने लगी, उसे यकीन था कि इस बड़े अस्पताल में उसकी बेटी जरूर ठीक हो जाएगी. शायद उसने यह भी सोच लिया होगा कि घर जाकर उसके पसंद का खाना बनाकर उसे अपने हाथों से खिलाएगी. मां ने डॉक्टर को टोका भी होगा कि सर, आप ये क्या बोल रहे हैं. उसे डॉक्टर पर भरोसा नहीं हो रहा होगा, लेकिन सच को कौन टाल सकता है?
माता-पिता को तो समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करें. उनकी आखिरी आस भी टूट गई थी. ऐसे में कोई यह कहे कि अपनी मरी हुई बेटी के अंगों का दान कर दो तो किसी को भी बुरा लगेगा?
बच्ची के माता-पिता बेहद साधारण परिवार से हैं. वे यूपी के कासगंज जिले के कुमरावा गांव के रहने वाले हैं जो रोजी-रोटी कमाने के लिए नोएडा सेक्टर-121 में रहते हैं. पिता हरिनारायण प्रजापति सिलाई करते हैं. मां भी परिवार के लिए काम करती हैं.
जब डॉक्टर ने माता-पिता से अंगदान बात कही तो उन्होंने मना कर दिया. उन्हें तो अंगदान के बारे में पता ही नहीं था, लेकिन जब डॉक्टर ने समझाया कि ऐसा करने से उनकी बेटी के जरिए कई लोगों की जान बच जाएगी तो वे तैयार हो गए. इसतरह इस बेटी ने छोटी उम्र में अंगदान कर एम्स का इतिहास बदल दिया है.
दरअसल, भारत में 10 लाख लोगों में से सिर्फ 0.26 प्रतिशत ही अंगदान करते हैं. जिस वजह से देश में हर साल करीब 5 लाख लोगों की मौत हो जाती है. अगर बाकी लोग भी रोली के माता-पिता की तरह सोचना शुरु कर दें तो कई जिंदगियां बच सकती हैं.
फिलहाल बच्ची के लिवर को लखनऊ के एक बच्चे में ट्रांसप्लांट किया गया. उसकी दोनों किडनी एम्स में इस्तेमाल की गई. जिससे तीन लोग तो तुरंत मौत के मुंह से निकल आए. वहीं बच्ची का हार्ट, हार्ट वॉल्व से किसी की जान बच जाएगी और दोनों कॉर्निया से किसी के आंखों की रोशनी लौट आएगी.
इस माता-पिता ने दूसरों बच्चों की जान की खातिर अपनी लाडली के अंगों का दान कर यह सिखा दिया कि, सिर्फ पढ़-लिख लेने और अमीर होने से कोई महान नहीं बन जाता है. इस माता-पिता ने कई लोगों को अंगदान करने की प्रेरणा दी है.
ऐसे नेक काम करने के लिए बड़ा जिगरा और हिम्मत चाहिए जो इस मां-बाप ने दिखाई है. ऐसे माता-पिता की कहानी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचनी चाहिए ताकि लोग इस काम के लिए आगे आ सकें.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.