रोज सुबह आंख खुलते ही आप सबसे पहला काम क्या करते हैं? अपना फोन चेक करते हैं, है ना? चलिए ठीक है. अब जरा कल्पना कीजिए कि एक दिन सुबह आपकी आंख खुलती है और आप देखते हैं कि आपका फोन बिस्तर के किनारे नहीं है. उस समय आपको कैसा महसूस होगा? क्या आप चिंतित हो जाते हैं? क्या आपके दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं? अगर आपके सभी जवाब हां में हैं तो सावधान हो जाएं; इस बात की बड़ी संभावना है कि आप नोमोफोबिया से पीड़ित हैं.
साधारण शब्दों में कहें तो नोमोफोबिया का मतलब होता है आपने मोबाइल फोन के बिना रहने या फिर किसी कारण से अपना इस्तेमाल न कर पाने का एक बेतुका सा डर. इसलिए अगर आप किसी भी लक्षण से सहमत होते हैं तो आप निश्चित रूप से संकट में हैं:
हमेशा ये महसूस होता है कि आपका फोन के वाइब्रेट हो रहा है
जब आपका फोन आपके पास न हो या फिर स्वीच ऑफ हो तो भी आपको महसूस होता है कि आपका फ़ोन वाइब्रेट करता है, तो बिना शक ये नोमोफोबिया का केस है. और आपको फोन के वाइब्रेट होने का आभास हो रहा है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप अपना ज्यादातर समय मैसेज, ईमेल और सोशल मीडिया को चेक करने में खर्च करती हैं. आपका दिमाग फोन का इतना आदि हो चुका है कि फोन के पास ना होने के बावजूद आपको इसके पास होने और वाइब्रेट होने का भ्रम होता रहता है. अमेरिका के इंडियाना यूनीवर्सिटी में किए गए एक रिसर्च के मुताबिक हमारा दिमाग फोन के वाइब्रेशन को ठीक उसी तरह फील करने लगता है जैसे खुजली के लिए हमारा शरीर अपने आप ही रिएक्ट करता है.
आप सेल फोन...
रोज सुबह आंख खुलते ही आप सबसे पहला काम क्या करते हैं? अपना फोन चेक करते हैं, है ना? चलिए ठीक है. अब जरा कल्पना कीजिए कि एक दिन सुबह आपकी आंख खुलती है और आप देखते हैं कि आपका फोन बिस्तर के किनारे नहीं है. उस समय आपको कैसा महसूस होगा? क्या आप चिंतित हो जाते हैं? क्या आपके दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं? अगर आपके सभी जवाब हां में हैं तो सावधान हो जाएं; इस बात की बड़ी संभावना है कि आप नोमोफोबिया से पीड़ित हैं.
साधारण शब्दों में कहें तो नोमोफोबिया का मतलब होता है आपने मोबाइल फोन के बिना रहने या फिर किसी कारण से अपना इस्तेमाल न कर पाने का एक बेतुका सा डर. इसलिए अगर आप किसी भी लक्षण से सहमत होते हैं तो आप निश्चित रूप से संकट में हैं:
हमेशा ये महसूस होता है कि आपका फोन के वाइब्रेट हो रहा है
जब आपका फोन आपके पास न हो या फिर स्वीच ऑफ हो तो भी आपको महसूस होता है कि आपका फ़ोन वाइब्रेट करता है, तो बिना शक ये नोमोफोबिया का केस है. और आपको फोन के वाइब्रेट होने का आभास हो रहा है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप अपना ज्यादातर समय मैसेज, ईमेल और सोशल मीडिया को चेक करने में खर्च करती हैं. आपका दिमाग फोन का इतना आदि हो चुका है कि फोन के पास ना होने के बावजूद आपको इसके पास होने और वाइब्रेट होने का भ्रम होता रहता है. अमेरिका के इंडियाना यूनीवर्सिटी में किए गए एक रिसर्च के मुताबिक हमारा दिमाग फोन के वाइब्रेशन को ठीक उसी तरह फील करने लगता है जैसे खुजली के लिए हमारा शरीर अपने आप ही रिएक्ट करता है.
आप सेल फोन मिमिक्री करते हैं
साइकोलॉजी टुडे में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक "सेल फोन मिमिक्री ऐसी घटना है, जहां सेलफोन यूजर किसी और को अपना सेलफोन यूज करते देखते ही अपना सेल फोन को चेक करने के लिए मजबूर हो जाता है. ऐसा अक्सर अनजाने में होता है."
तो अगर आपका सहकर्मी अपना फोन चेक कर रहा/रही है और आप उसकी नकल करने लगते हैं तो ये आपके लिए खतरे की घंटी है. जाग जाइए.
फोन की बैटरी कम होने पर आपक परेशान हो जाते हैं
मान लीजिए: आप अपना फोन चेक करने के लिए उठाते हैं और वो कम बैटरी की वार्निंग दिखाने लगता है. बस इतना देखते ही आप परेशान हो जाते हैं. क्या कभी ऐसा आपके साथ हुआ है? अगर हां तो आप निश्चित रूप से नोमोफोबिया से पीड़ित हैं.
गार्जियन में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है, "जैसे ही फोन की बैटरी लाल ज़ोन में आती है आपका दिमाग अपने आप फड़कने लगता है और आप आस-पास में पावर सॉकेट खोजने लगते हैं. यह एक सार्वभौमिक समस्या है. इसका इलाज बहुत आसान है."
आप अपना फोन अपने तकिए के नीचे रखकर सोते हैं
बिस्तर आराम करने के लिए होता है, फोन रखने के लिए नहीं. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अपने तकिए के नीचे फोन के साथ कभी सोना नहीं चाहिए. लेकिन अगर ये काम आप हर दिन करते हैं तो इसका साफ मतलब है कि आप अपने गैजेट के आदी हो चुके हैं.
दुर्भाग्य से, फोन की अत्यधिक लत उससे अलग होने की चिंता का कारण बन जाता है. सोते समय या कोई और काम करते समय फोन को खुद से अलग रखने की आदत डालें.
आपको तुरंत जवाब देने की आवश्यकता महसूस होती है
आप मैसेज, व्हाट्सएप, ईमेल और सोशल मीडिया अपडेट्स को लेकर बहुत सजग रहते हैं. और जैसे ही कोई आपको पिंग करता है, आप अपने फोन की तरफ कूद पड़ते हैं और जवाब देने लगते हैं. ये तभी तक सही है जब तक आप किसी सुरक्षित वातावरण में हैं. लेकिन अगर आप ड्राइव करते समय या सड़क पर चलते समय भी इस आवेग को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं तो ये खतरे का संकेत है.
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