अक्सर घरों में लड़कियों को हमेशा रोका टोका जाता है. कई बार तो घरवाले यह कहते हैं कि घर का कामकाज सीख लो वरना ससुराल में जा कर क्या करोगी. पता नहीं कब शादी होगी, कब ससुराल जाएगी, तो अभी से ऐसी बातें करके उसके बचपन को क्यों खराब करना.
लड़कियों को लेकर माता-पिता की चिंता समझ आती है. वे चाहते हैं कि बेटी जहां भी रहे खुश रहे. इसलिए वे बेटियों को तरह-तरह की बातें सिखाते रहते हैं, लेकिन इनमें कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिससे बेटियों का भला न होकर बुरा हो सकता है. अक्सर बेटियां ससुराल में दम तोड़ देती हैं, लेकिन माता-पिता के बताए गए नियमों का पालन करना नहीं छोड़तीं. जब तक घरवालों को सच्चाई समझ आती है बहुत देर हो चुकी होती है. वे अपने दिल के टुकड़े को खो चुके होते हैं.
हर घर में ऐसा नहीं होता. ऐसा होना भी नहीं चाहिए, लेकिन अगर एक बेटी के साथ भी ऐसा व्यवहार होता है यकीन मानिए हमारे अंदर ही कहीं कमी है. हम बेटियों को दूसरों के खुशी के बारे में तो बता देते हैं लेकिन उसकी खुशी के बारें में बतलाना भूल जाते हैं. उसके लिए सभी रिश्तें जरूरी हैं लेकिन वह भी जरूरी है यह बताना भूल जाते हैं.
बेटियों को खोने के बाद घरवालों को समझ आता है कि काश उसे जुर्म सहना ना सिखाया होता. काश वह अपने लिए आवाज उठा पाती. काश वह हमें कुछ बता पाती. असल में कोई भी माता-पिता अपनी लाडली का बुरा नहीं चाहेगा.
तो आइए जानते हैं कि वो पांच बातें कौन सी हैं. असल में ये बातें सिर्फ पांच नंबर तक ही सीमित नहीं है, जब आप ध्यान से सोचेंगे तब आपको भी समझ आ जाएगा कि इन छोटी-छोटी बातों को बेटियों के जिंदगी पर क्या असर पड़ सकता है. घरवालों को लगता है कि ये 'अच्छी बातें' हैं लेकिन असल मेें इन्ही बातों की...
अक्सर घरों में लड़कियों को हमेशा रोका टोका जाता है. कई बार तो घरवाले यह कहते हैं कि घर का कामकाज सीख लो वरना ससुराल में जा कर क्या करोगी. पता नहीं कब शादी होगी, कब ससुराल जाएगी, तो अभी से ऐसी बातें करके उसके बचपन को क्यों खराब करना.
लड़कियों को लेकर माता-पिता की चिंता समझ आती है. वे चाहते हैं कि बेटी जहां भी रहे खुश रहे. इसलिए वे बेटियों को तरह-तरह की बातें सिखाते रहते हैं, लेकिन इनमें कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिससे बेटियों का भला न होकर बुरा हो सकता है. अक्सर बेटियां ससुराल में दम तोड़ देती हैं, लेकिन माता-पिता के बताए गए नियमों का पालन करना नहीं छोड़तीं. जब तक घरवालों को सच्चाई समझ आती है बहुत देर हो चुकी होती है. वे अपने दिल के टुकड़े को खो चुके होते हैं.
हर घर में ऐसा नहीं होता. ऐसा होना भी नहीं चाहिए, लेकिन अगर एक बेटी के साथ भी ऐसा व्यवहार होता है यकीन मानिए हमारे अंदर ही कहीं कमी है. हम बेटियों को दूसरों के खुशी के बारे में तो बता देते हैं लेकिन उसकी खुशी के बारें में बतलाना भूल जाते हैं. उसके लिए सभी रिश्तें जरूरी हैं लेकिन वह भी जरूरी है यह बताना भूल जाते हैं.
बेटियों को खोने के बाद घरवालों को समझ आता है कि काश उसे जुर्म सहना ना सिखाया होता. काश वह अपने लिए आवाज उठा पाती. काश वह हमें कुछ बता पाती. असल में कोई भी माता-पिता अपनी लाडली का बुरा नहीं चाहेगा.
तो आइए जानते हैं कि वो पांच बातें कौन सी हैं. असल में ये बातें सिर्फ पांच नंबर तक ही सीमित नहीं है, जब आप ध्यान से सोचेंगे तब आपको भी समझ आ जाएगा कि इन छोटी-छोटी बातों को बेटियों के जिंदगी पर क्या असर पड़ सकता है. घरवालों को लगता है कि ये 'अच्छी बातें' हैं लेकिन असल मेें इन्ही बातों की वजह से लड़कियों का जीवन बर्बाद हो जाता है.
1- गलती ना करने पर भी चुप रहना
अक्सर घरों में लड़कियों को चुप रहना सिखाया जाता है. समाज के नजर में बोलती हुई लड़की को गलत समझा जाता है. कंजर्वेटिव फैमिली में आज भी उन लड़कियों को अच्छा माना जाता है जो कम बोलती हों, धीरे बोलती हों. मां अक्सर यही सीखाती रहती हैं कि ससुराल में जाकर तेज मत बोलना, तेज मत हंसना. वरना पड़ोसी कहेंगे, कैसे घर की बेटी आई है इतना तेज हंसती है कि मेरे घर तक आवाज आती है.
बेटियों से सब यह उम्मीद रखते हैं कि घर में शांति बनाए रखने के लिए कई बार गलती ना होते हुए भी उन्हें चुप रहना चाहिए. तभी घर गृहस्थी चल पाएगी. लड़कियां ही किसी की बहू तो किसी की पत्नी बनती हैं, ऐसे में उनसे आप क्यों यह उम्मीद करते हैं कि वे सब कुछ सहकर बस हां में हां मिलाती रहें. यानी किसी के बात का जवाब ना देना. क्या बस हां में हां मिलाने से लड़कियां सुखी रहती हैं. वहीं अगर लड़की लव मैरिज करती है तब तो सारी परेशानियों की जिम्मेदार वह खुद होती है...घरवाले पहले ही बोल देते हैं कि अपने मन से शादी कर रही हो, आगे चलकर कहीं उंच-नीच हुई तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी.
2- शादी के बाद ससुराल ही सबकुछ
यह सबको पता है कि एक ना एक दिन बेटी शादी करके ससुराल चली जाएगी, लेकिन क्या हर बार उसे इस बात का एहसास दिलाना जरूरी है कि जिस घर में वह रह रही है वह उसका नहीं, उसका असली घर ससुराल होगा. यह सीख लड़कियों को अक्सर दी जाती है कि शादी के बाद तुम पराई हो. होता यह है कि शादी के बाद अगर लड़की को कोई प्रॉब्लम हो जाए, पति से ना बने तो भी वह मायके आने की हिम्मत नहीं कर पाती.
घरवाले लड़कियों से यह क्यों नहीं कहते कि वह शादी करके भले ससुराल में नई दुनिया बसाने जा रही है लेकिन अगर मंजिल ना मिले तो बेझिझक अपने घर आ सकती है. यह बिना सोचे कि समाज के लोग क्या कहेंगे. माता-पिता अपने बेटों को यह बात क्यों नहीं बताते कि यह घर सिर्फ उनका नहीं बल्कि घर की बेटी का भी है. ताकि अगर लड़की का पति अच्छा ना निकले या फिर उसे प्रताड़ित किया जाए तो वे बिना सोचे अपने घर आ सके. लड़कियों को क्यों यह सिखाया जाता है कि शादी के बाद ससुराल ही उनका सब कुछ है, क्या उनकी अपनी जिंदगी का कोई मोल नहीं. इस बात का क्या मतलब कि डोली मायके से जाती है और अरथी ससुराल से...क्या आपके लिए शान बेटी के जान से बढ़कर है.
3- कंप्रोमाइज करना
एक लड़की को बचपन से ही कंप्रोमाइज करने की ट्रेनिंग दे दी जाती है. छोटी-छोटी बातों के लिए कंप्रोमाइज. चाहे बचपन में भाई को अपना फेवरेट खिलौना देना हो या मां की गोदी छोड़कर दादी के पास सोना हो. सही बात है हर इंसान को जिंदगी में कुछ ना कुछ कंप्रोमाइज करना पड़ता है, लेकिन बेटियों को कुछ ज्यादा ही झेलना पड़ता है. अपनी पढ़ाई, करियर से लेकर शादी तक में कंप्रोमाइज करना पड़ता है. कई घरों में तो छोटी बहन की शादी पहले करा दी जाती है भले बड़ा भाई उससे 8 साल बड़ा हो.
कंप्रोमाइज करने की यह आदत मायके से पड़ी रहती है फिर लड़कियां ससुराल में आकर भी वही करती हैं. किसी को नौकरी छोड़नी पड़ती है तो किसी को पढ़ाई. घर परिवार में जैसे चल रहा होता है बस कंप्रोमाइज करके जिंदगी चलाती रहती हैं. सबसे जल्दी जगने से लेकर सबसे आखरी में सोने तक. बासी खाने से लेकर कहीं बाहर ना जाने तक. आप कितने घरों में देखते हैं कि घर की महिला या बेटी ट्रिप पर जा रही हो, अपनी सहेलियों के साथ, तो फिर घर का काम कौन करेगा. कुल मिलाकर घर हो या बाहर कंप्रोमाइज करने की जिम्मदारी लड़कियों की होती है.
4- पति को परमेश्वर मानना
पति भले दारूबाज हो और ड्रिंक करके मारता हो, गाली देता हो लेकिन महिलाओं को चुपचाप सब कुछ सहना चाहिए. क्योंकि बचपन से हमें यह घुट्टी पिलाई जाती है कि पति परमेश्वर होता. पति आपका भगवान है जो आपकी पूरी दुनिया होता है. आखिर पति को परमेश्वर का दर्जा दिया किसने. जाहिर सी बात है समाज ने. इसलिए पति की कही हर बात मानना, उसे हर हाल में खुश रखना और उसकी हर गलती पर पर्दा डालना. उसकी गलतियों को चुपचाप बर्दाश्त करना हर तुम्हारा परम कर्तव्य है.
आज भी ज्यादातर घरों में लड़कियों को यही सिखा कर ससुराल भेजा जाता है कि अगर पति गुस्से में आ कर कभी हाथ उठा दे तो उसे उल्टा जवाब ना दें. उसकी शिकायत ना करें क्योंकि आदमी तो होते ही ऐसे हैं. पति गुस्सा करे तो चुप हो जाना और अगर कभी हाथ उठ जाए तो पत्नी को चुपचाप मार खा लेनी चाहिए. माता-पिता बेटियों को यह क्यों नहीं सिखाते कि यहां तक बर्दाश्त मत करना कि पति हाथ उठा सके. जब वह पहली बार ज्यादती करे वहीं उसे रोक देना. बेटियों को यह समझना होगा कि सिर्फ करवा चौथ के दिन पति के लिए भूखे रहने से जिंदगी खुशहाल नहीं रहती, जबकि दोनों के साथ मिलकर रहने से होती है. समझने से होती है, सम्मान करने से होती है.
5- नजरें झुकाकर चलना
बेटी तुम सड़क पर जाओ तो नजरें नीची रखना. कोई कुछ कमेंट करे तो चुपचाप अनसुना करके आगे निकल जाना. कोई छेड़खानी करे तो भी चुप रहना. यानी लोगों से डरकर जीना. तुम्हारे साथ भले गलत हो लेकिन आवाज ना उठाकर चुप रहना, ऐसा करने से बदनामी हो जाती है. गलती कोई भी करे लेकिन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है. अपने हक के लिए आवाज उठाती लड़कियां भला किसे अच्छी लगती हैं. सब बोलेंगे कितनी लड़ाकू है. इसलिए लड़कियों को नजरें झुकाकर ही रहना चाहिए. कुल मिलाकर जो बड़े बोले उस राह पर चलते रहना.
बिना कोई शिकायत किए जहां बोलें वहां पढ़ लेना, जो बोलें वो नौकरी कर लेना, जब शादी कराएं चुपचाप कर लेना. जिससे कराएं उससे कर लेना. बस अपनी पसंद जाहिर मत करना, अपने लिए कुछ बोलना मत. इसी में तुम्हारी भलाई छिपी होती है, आखिर क्यों...मतलब तुम एक लड़की को तुम्हारा जन्म ही इसलिए हुआ है ताकि तुम दूसरों के लिए सोचो अपने लिए कुछ मत सोचना वरना पापा लग जाएगा.
इतना कुछ करने के बाद अगर तुम्हारी मानसिक हालत ठीक ना हो तो भी खामोश रहना, लेकिन साइकोलॉजिस्ट से मत मिलना. बस समाज की चिंता करते रहना अपनी नहीं. यह जमाना बड़ा खराब है इसलिए सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि तुम्हें ससुराल कैसी मिलती है.
तुम्हारी खुशियां, तुम्हारा जीवन सब कुछ दूसरे तय करते हैं तुम खुद नहीं...लड़कियों ये बातें समाज के लिए अच्छी हो सकती हैं लेकिन तुम्हारे लिए नहीं...जरा सोचकर देखना.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.