आजकल खुद में व्यस्त और मस्त रहने की प्रवृत्ति के कारण बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन हो या फिर शॉपिंग मॉल, हर जगह लोग कान में ईयरफोन लगाए नजर आते हैं. इनमें युवाओं की तादाद अधिक होती है. अगर देखा जाए तो दुनिया भर में अब ईयरफोन लगाकर पैदल चलना या वाहन चलाना लोगों के लिए आम बात हो गई है. इसके उपयोग से एक तरफ जहां हादसों में बढ़ोतरी हो रही हैं तो दूसरी ओर यह मनुष्य के बहरेपन का सबसे बड़ा कारण भी बनता जा रहा है. नतीजतन, इसके कारण दुनिया भर में 1 अरब से अधिक युवाओं और बच्चों को सुनने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में भी करीब 6.5 करोड़ से ज्यादा लोग आंशिक या पूरी तरह से बहरेपन का शिकार हैं और ईयरफोन के लगातार इस्तेमाल से यह खतरा और बढ़ता जा रहा है. अक्सर देखा जाता है कि लोग शुरुआत में बहरेपन को गंभीरता से नहीं लेते हैं. लोगों को इसे बीमारी मानने में 4 से 6 साल लग जाते हैं. तब तक यह समस्या काफी हद तक बढ़ चुकी होती है. इसके इलाज के लिए उन्हें हियरिंग एड नाम की मशीन लगाने की नौबत आ जाती है.
भारत में हर साल लगभग 6 लाख हियरिंग एड मशीनें बेची जाती हैं. यानी सुनने की समस्या से पीड़ित ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. कान की समस्या को गंभीरता से न लेने के कारण लोग जल्द ही बहरे हो जाते हैं. वहीं, इसके कारण लोग भूलने की बीमारी या डिप्रेशन जैसी कई मानसिक बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोध के अनुसार, वर्तमान में दुनिया में 43 करोड़ से अधिक लोग श्रवण दोष से पीड़ित हैं. अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक यह संख्या बढ़कर 70 करोड़ हो...
आजकल खुद में व्यस्त और मस्त रहने की प्रवृत्ति के कारण बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन हो या फिर शॉपिंग मॉल, हर जगह लोग कान में ईयरफोन लगाए नजर आते हैं. इनमें युवाओं की तादाद अधिक होती है. अगर देखा जाए तो दुनिया भर में अब ईयरफोन लगाकर पैदल चलना या वाहन चलाना लोगों के लिए आम बात हो गई है. इसके उपयोग से एक तरफ जहां हादसों में बढ़ोतरी हो रही हैं तो दूसरी ओर यह मनुष्य के बहरेपन का सबसे बड़ा कारण भी बनता जा रहा है. नतीजतन, इसके कारण दुनिया भर में 1 अरब से अधिक युवाओं और बच्चों को सुनने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में भी करीब 6.5 करोड़ से ज्यादा लोग आंशिक या पूरी तरह से बहरेपन का शिकार हैं और ईयरफोन के लगातार इस्तेमाल से यह खतरा और बढ़ता जा रहा है. अक्सर देखा जाता है कि लोग शुरुआत में बहरेपन को गंभीरता से नहीं लेते हैं. लोगों को इसे बीमारी मानने में 4 से 6 साल लग जाते हैं. तब तक यह समस्या काफी हद तक बढ़ चुकी होती है. इसके इलाज के लिए उन्हें हियरिंग एड नाम की मशीन लगाने की नौबत आ जाती है.
भारत में हर साल लगभग 6 लाख हियरिंग एड मशीनें बेची जाती हैं. यानी सुनने की समस्या से पीड़ित ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. कान की समस्या को गंभीरता से न लेने के कारण लोग जल्द ही बहरे हो जाते हैं. वहीं, इसके कारण लोग भूलने की बीमारी या डिप्रेशन जैसी कई मानसिक बीमारियों के भी शिकार हो जाते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोध के अनुसार, वर्तमान में दुनिया में 43 करोड़ से अधिक लोग श्रवण दोष से पीड़ित हैं. अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक यह संख्या बढ़कर 70 करोड़ हो जाएगी.
वहीं, यह भी कहा गया है कि 2050 तक हर 4 में से 1 व्यक्ति को सुनने की समस्या का सामना करना पड़ेगा. डॉक्टरों के मुताबिक इंसान का कान आमतौर पर 60 डेसिबल की आवाज को सहन कर सकता है, लेकिन बाजार में उपलब्ध ईयरफोन के डेसिबल इससे कहीं ज्यादा प्रबल होते हैं. यदि ईयरफोन पर 90 डेसिबल की ध्वनि में 40 घंटे से अधिक समय तक संगीत सुना जाए तो कान की नसें पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाती हैं. ऐसे में मनुष्य की सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है.
तेज आवाज में गाने सुनने से हार्ट बीट तेज हो जाती है और वह नॉर्मल स्पीड के मुकाबले तेजी से धड़कने लगता है. जिसकी वजह से दिल को नुकसान पहुंच सकता है. जिस तरह मोबाइल का इस्तेमाल ड्राइविंग के लिए खतरनाक है, उसी तरह ईयरफोन लगाकर गाड़ी चलाना बहुत जोखिम भरा है. इससे हम ड्राइव और सुरक्षा दोनों के लिए खतरा पैदा करते हैं. ईयरफोन के कारण एकाग्रता नहीं बन पाती है, व्यक्ति गीतों की धुन में खोया रहता है.
यहां तक कि अगल-बगल वाले वाहनों का हॉर्न भी सुनाई नहीं देता. और कई बार हम बड़े हादसों का शिकार हो जाते हैं. वैसे ईयरफोन में संगीत सुनते वक्त तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जब कान से इसे हटाओ तो कुछ समय के लिए एक अजीब सा दर्द होता है. ज्यादा डेसिबल में संगीत सुनने के बाद कुछ समय के लिए कानों में अजीब सी सनसनाहट होती है. अगर आप भी ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं तो सावधान हो जाएं, यह आपकी सुनने की क्षमता को प्रभावित करता है और इससे आपकी श्रवण शक्ति भी जा सकती है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.